KABIRDAS KE DOHE : कबीरदास जी के प्रेरणादायक दोहे
KABIRDAS KE DOHE : संत कबीरदास जी का जन्म सन 1398 ईसवी में एक जुलाहा परिवार में हुआ था। संत कबीरदास जी 15 वीं सदी के भारतीय रहस्यमयी कवि एवं संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महान कवि थे। इनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। संत कबीर के रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। संत कबीर सच्चे भाव से ईश्वर में आस्था रखते थे। उन्होने सामाज में फैली अनेक कुरीतियों एवं कर्मकांड और सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए महान कार्य किये। संत कबीरदास जी ने लोगो को एकता के सूत्र का पाठ पढाया।
KABIRDAS KE DOHE : कबीर के प्रसिद्ध दोहे। अर्थ सहित
1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, की जब वे बुरा मनुष्य को खोजने निकले तो, कोई भी उन्हे बुरा मानव नहीं मिला
2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, कि मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है।
3. चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
अर्थ:- कबीर दास जी के अनुसार, चिंता एक ऐसी डाकिनी है, जो कलेजा को भी काट खा जाती है, इसका इलाज वैद्य भी नही कर सकता।
4. साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, कि परमात्मा तुम मुुझे बस इतना दे दो कि बस मैं अपना गुजारा बर सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूंं।
KABIRDAS KE DOHE : कबीर के बहुमूल्य दोहे। अर्थ सहित
5. गुरू गोविन्द दोउ खेड़े काके लागूं पांय।
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, कि मेरे सामने गुरू और भगवान दोनों खड़ेे है, तो पहले किसका पैर छूउं कहने का तात्पर्य यह है। कि गुरू ने ही ईश्वर को जानने का रास्ता बताया है, तो सबसे पहले गुरू के पैर छूना चाहिए।
6. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, कि मनुुुष्य को हमेशा सुदंर वाणी बोलनी चाहिए जिससे सुनने वाले का मन प्रसन्न हो जाए। और स्वयं भी प्रसन्न रहे।
7. मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि।
अर्थ:- कबीर दास जी कहते है, कि मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है। यह बार-बार नहीं मिलता यह जीवन वैैैसा ही है, जैसे वृृृक्ष से एक बार पत्ते गिर जाते है। जो दुबारा उसी डाल पर नहीं लगते। अर्थात मानव जीवन बहुत ही कठिनाई से मिलता है। एक बार मानव शरीर छूट जाने पर आसानी नहीं मिलता।
8. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार की, पड़ी रहन दो म्यान।
अर्थ:- संत कबीर दास जी कहते है, कि किसी व्यक्ति को उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। क्योंकि असली मोल तो तलवार का होता है। म्यान का नहीं
KABIRDAS KE DOHE : कबीर के बेशकीमति दोहे। अर्थ सहित
9. कबीर, पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार। तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।
अर्थ:- संत कबीरदास जी कहते है, कि अगर पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से भगवान मिल जाते तो मैं पहाड़ की पूजा कर लेता हूं। उसकी जगह कोई घर की चक्की की पूजा नहीं करता जिससे आटा पीस कर लोग अपना पेट भरते है।
10. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
अर्थ:- जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना उंचा होने बावजूद रास्ते में आते जाते राहगीर को छाया नहीं दे सकता। और उसके फल इतने दूर लगते है, कि कोई आसनी से तोड़ नहीं सकता। उसी प्रकार आप कितने भी बड़े आदमी बन जाओं यदि आपके अंदर विनम्रता और सादगी नहीं है। किसी की मदद करने की भावना नहीं है, तो आपके बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।
संत कबीरदास
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