Biography Of Gurunanak: Guru Nanak Jayanti 2024

Biography Of Gurunanak Guru Nanak Jayanti 2024

Biography Of Gurunanak: गुरूनानक का जीवन परिचय

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु थे, जिनका जन्म 15 अप्रैल, सन् 1469 को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम कालू मेहता और माता का नाम तृप्ता देवी था। बाल्यकाल से ही गुरु नानक एक असाधारण और संवेदनशील बालक थे। उनका मन बचपन से ही आध्यात्मिकता और भक्ति की ओर लग गया था, और वे अक्सर गहरे ध्यान और चिंतन में डूबे रहते थे। तो आईये जानते है। आज के इस पोस्‍ट Biography Of Gurunanak में उनके जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी का बाल्यकाल साधारण बच्चों की तरह नहीं था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत, फारसी और अरबी में प्राप्त की। बचपन में ही उन्होंने धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। गुरु नानक बचपन से ही धार्मिक और बुद्धिमान प्रवृत्ति के थे। वे स्कूल में शिक्षकों से गहरे सवाल पूछते थे, जिससे उनके ज्ञान और भक्ति की गहरी समझ का पता चलता था। वे प्रकृति, भगवान और मानवता के बारे में गहरी रुचि रखते थे और जल्द ही समाज की अन्यायपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाने लगे।

जब उनके पिता ने उन्हें व्यापार करने के लिए पैसे दिए, तो नानक ने उन पैसों से गरीबों को भोजन करवा दिया। इसे “सच्चा सौदा” कहा गया, जो उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जहाँ उन्होंने यह संदेश दिया कि सच्चा सौदा वह है, जिसमें मानवता की सेवा की जाए।

वैवहिक जीवन और परिवार

Biography Of Gurunanak:  गुरु नानक देव जी का विवाह सुलखनी देवी से हुआ था, जो एक साधारण लेकिन धार्मिक परिवार से थीं। उनका विवाह 1487 में बटाला (अब पंजाब, भारत में) में हुआ। उस समय वे 18 वर्ष के थे, सुलखनी देवी के पिता का नाम मूला था, और वे एक धार्मिक और कर्मशील व्यक्ति थे। विवाह के बाद गुरु नानक जी अपनी पत्नी के साथ सुलतानपुर चले गए, जहाँ उन्होंने कुछ समय तक नवाज शाह के यहाँ मोदी (अन्न भंडार के प्रबंधक) के रूप में कार्य किया।

गुरु नानक जी और सुलखनी देवी के दो पुत्र थे:

  1. श्रीचंद: उनका जन्म 1494 में हुआ था। श्रीचंद का जीवन भी आध्यात्मिक रहा, और वे साधना में लीन रहते थे। उन्होंने “उदासी संप्रदाय” की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक पंथ था और इसमें त्याग और साधना पर बल दिया गया। हालांकि वे गुरु परंपरा में नहीं आए, फिर भी उनकी शिक्षाएं और तपस्या का सिख धर्म पर गहरा प्रभाव रहा।
  2. लक्ष्मी दास: उनका जन्म 1497 में हुआ था। वे साधारण जीवन जीते थे और सांसारिक कार्यों में लगे रहे। गुरु नानक जी ने उन्हें भी हमेशा सत्य, ईमानदारी और सेवा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी।

गुरु नानक का पारिवारिक जीवन और आध्यात्मिकता

Biography Of Gurunanak: हालांकि गुरु नानक जी का पारिवारिक जीवन था, परंतु उनका मन सांसारिक बंधनों में नहीं रमता था। उनका ध्यान हमेशा ईश्वर की भक्ति और समाज की सेवा में लगा रहता था। उन्होंने परिवार में रहते हुए भी पूरी मानवता को अपना परिवार माना और अपने परिवार के लोगों को भी सेवा और भक्ति का महत्व सिखाया। उनकी पत्नी सुलखनी ने हमेशा उनका साथ दिया और उनके जीवन के मिशन में सहयोगी रहीं। गुरु नानक जी का पारिवारिक जीवन साधारण था, लेकिन उनके विचार और कार्य असाधारण थे। उनका परिवार और अनुयायी ही उनके सबसे प्रिय थे, और उनके परिवार ने उनके कार्य और शिक्षाओं में हमेशा योगदान दिया।

गुरूनानक जी की धार्मिक यात्रा (उदासियाँ)

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में कई धार्मिक यात्राएँ कीं, जिन्हें “उदासियाँ” कहा जाता है। इन यात्राओं का उद्देश्य समाज को एकता, प्रेम, और भक्ति का संदेश देना था। उन्होंने जाति-प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास, और सामाजिक अन्याय का विरोध किया। उनके संदेश ने न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी लाखों लोगों को प्रभावित किया। उन्होंने लगभग 25 वर्षों में चार मुख्य उदासियाँ कीं और इन यात्राओं के दौरान कई प्रमुख स्थानों का दौरा किया।

प्रथम उदासी (1500-1506)

Biography Of Gurunanak: पहली उदासी में गुरु नानक ने उत्तर भारत के प्रमुख स्थानों का दौरा किया। इसमें हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, मथुरा, वृंदावन, और बनारस जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल शामिल थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि सच्ची पूजा आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति प्रेम में है, न कि बाहरी रीति-रिवाजों में। हरिद्वार में उन्होंने एक ऐसी घटना का वर्णन किया, जिसमें लोगों ने देखा कि नानक जी नदी के विपरीत दिशा में जल अर्पित कर रहे हैं। इस पर उन्होंने लोगों को समझाया कि ईश्वर हर दिशा में है और यह प्रतीकात्मक अर्पण व्यर्थ है।

द्वितीय उदासी (1506-1513)

Biography Of Gurunanak: दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी ने दक्षिण भारत का दौरा किया। इस यात्रा में वे कांचीपुरम, रामेश्वरम, त्रिची, और अन्य स्थानों पर गए। दक्षिण भारत में उन्होंने विभिन्न मंदिरों का भ्रमण किया और कई संतों से मिले। यहाँ उन्होंने संतों के साथ विचार-विमर्श किया और उन्हें यह समझाया कि ईश्वर किसी विशेष स्थान पर नहीं, बल्कि हृदय में वास करता है।

तृतीय उदासी (1514-1518)

Biography Of Gurunanak: तीसरी उदासी में गुरु नानक ने पश्चिम की ओर यात्रा की। वे इस यात्रा के दौरान अरब और फारस भी गए। मक्का और मदीना की यात्रा भी इसी उदासी के अंतर्गत की गई थी। मक्का में उनकी प्रसिद्ध घटना हुई, जिसमें वे अपने पाँव मक्का की ओर करके सो गए थे। इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई, तो गुरु नानक ने कहा, “मुझे ऐसी दिशा दिखाओ, जहाँ ईश्वर न हो।” यह घटना उनके सार्वभौमिक और असीम ईश्वर के सिद्धांत को प्रदर्शित करती है।

चतुर्थ उदासी (1519-1521)

Biography Of Gurunanak: चौथी उदासी में गुरु नानक ने उत्तर भारत के कई अन्य क्षेत्रों और हिमालयी स्थानों की यात्रा की। इस यात्रा में वे तिब्बत और नेपाल जैसे स्थानों पर भी गए। उन्होंने यहाँ के संतों और साधुओं से मुलाकात की और उन्हें अपने विचारों से प्रेरित किया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य विभिन्न धार्मिक परंपराओं को समझना और लोगों को यह सिखाना था कि हर धर्म में समानता और प्रेम की शिक्षा है।

पाँचवीं और अंतिम यात्रा (1521-1522)

Biography Of Gurunanak: अंतिम यात्रा में गुरु नानक जी ने पंजाब के कई हिस्सों का दौरा किया। यह यात्रा उन्होंने अपने जन्मभूमि के पास के गाँवों में की। इस यात्रा में वे करतारपुर पहुँचे और वहीं अपना निवास बनाया। यही स्थान उनके जीवन का अंतिम पड़ाव था।

धार्मिक यात्राओं का उद्देश्य और प्रभाव

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी की इन यात्राओं का उद्देश्य केवल धार्मिक उपदेश देना नहीं था, बल्कि उन्होंने एक नई सामाजिक चेतना का संचार किया। उन्होंने जात-पात, अंधविश्वास, और धार्मिक आडंबरों का खंडन किया और सभी धर्मों के लोगों को समानता, प्रेम, और सेवा का महत्व सिखाया। उनके विचारों ने समाज में एकता, भाईचारे और समानता का संदेश दिया। गुरु नानक जी की इन यात्राओं के कारण ही सिख धर्म की नींव रखी गई, और उनके विचारों का प्रभाव आज भी समाज में देखा जा सकता है।

गुरूनानक जी की शिक्षाएं और संदेश

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं और संदेश दिए, जो सिख धर्म का आधार बने। उनकी शिक्षाओं ने समाज में प्रेम, करुणा, और समानता की भावना का प्रचार किया और धर्म, जाति, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी शिक्षाएं न केवल सिखों के लिए बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।

गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएं और संदेश

  1. “एक ओंकार” – ईश्वर एक है
    गुरु नानक का सबसे महत्वपूर्ण संदेश था “एक ओंकार,” जिसका अर्थ है कि भगवान एक है और सबमें समाहित है। उन्होंने कहा कि सभी जीव और सभी धर्म एक ही ईश्वर के बनाए हुए हैं, इसलिए हम सब एक हैं। ईश्वर निराकार है और वह हर स्थान और हर जीव में विद्यमान है।
  2. नाम जपना – ईश्वर का सिमरन
    गुरु नानक ने भगवान के नाम का सिमरन (ध्यान) करने की शिक्षा दी। उनका मानना था कि ईश्वर का नाम लेने से मन शुद्ध होता है और आत्मा को शांति मिलती है। उन्होंने लोगों को सिखाया कि सच्चे हृदय से भगवान का स्मरण करने से ही जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है।
  3. कीरत करना – ईमानदारी से जीवन यापन
    गुरु नानक जी ने सिखाया कि सभी को ईमानदारी और मेहनत से अपनी जीविका कमानी चाहिए। मेहनत से कमाया हुआ धन ही सच्चा धन होता है। उनका मानना था कि किसी को धोखा देकर या अन्याय से धन कमाना पाप है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और समाज के हित के लिए काम करना चाहिए।
  4. वंड छकना – बाँटना और सेवा करना
    गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि जो कुछ हमारे पास है, उसे दूसरों के साथ बाँटना चाहिए। उन्होंने “लंगर” की परंपरा की शुरुआत की, जिसमें हर व्यक्ति, चाहे उसका धर्म या जाति कुछ भी हो, साथ मिलकर भोजन करता है। यह परंपरा सभी में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती है।
  5. सभी धर्मों का सम्मान करना
    गुरु नानक देव जी ने सभी धर्मों का सम्मान किया और किसी भी धर्म का अपमान करने से मना किया। उनका मानना था कि सभी धर्मों के लोग ईश्वर की संतान हैं और सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। इसलिए, हमें हर व्यक्ति और हर धर्म का सम्मान करना चाहिए।
  6. जाति-पाति और भेदभाव का खंडन
    गुरु नानक ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच, और धार्मिक भेदभाव का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि सभी इंसान एक समान हैं और जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना गलत है। उन्होंने कहा कि सच्चे संत वही हैं, जो सभी में ईश्वर का अंश देखते हैं और किसी को भी ऊँचा या नीचा नहीं मानते।
  7. भौतिकवाद से दूर रहना
    गुरु नानक जी ने लोगों को सांसारिक मोह-माया से दूर रहने का उपदेश दिया। उनका मानना था कि धन-संपत्ति और सांसारिक भोग-विलास से व्यक्ति का मन अशांत होता है और वह सच्चे सुख का अनुभव नहीं कर पाता। उन्होंने लोगों को आडंबर, दिखावा और स्वार्थ से दूर रहकर एक सादा और सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा दी।
  8. स्त्री का सम्मान
    गुरु नानक देव जी ने महिलाओं के अधिकारों और उनके महत्व को मान्यता दी। उस समय समाज में महिलाओं को निम्न स्थान पर रखा जाता था, परंतु गुरु नानक ने उन्हें समान अधिकार देने की बात की। उन्होंने कहा कि स्त्री ही जीवन का आधार है और हमें उन्हें बराबरी का सम्मान देना चाहिए।

गुरु नानक देव जी के संदेश का सार

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार यह है कि मानवता की सेवा, ईश्वर का सिमरन, ईमानदारी से काम, और सभी के प्रति समानता का भाव ही सच्चा धर्म है। उनके विचार केवल धार्मिक उपदेश नहीं थे, बल्कि वे सामाजिक क्रांति का संदेश भी थे, जिसने समाज में प्रेम, करुणा, और भाईचारे का संचार किया।

उनकी शिक्षाएं आज भी हमें एक सच्चे, समर्पित और शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग दिखाती हैं। उनका जीवन और उनके संदेश पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।

गुरूनानक जी की “लंगर” की परंपरा

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने “लंगर” की परंपरा की शुरुआत की, जो सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लंगर एक ऐसा सामूहिक भोजन होता है, जहाँ बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को निःशुल्क भोजन परोसा जाता है। इसका उद्देश्य समाज में समानता, भाईचारा और सेवा की भावना को बढ़ावा देना है।

लंगर की परंपरा की शुरुआत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी के समय में समाज में जाति-प्रथा और ऊँच-नीच की भावना बहुत प्रबल थी। लोग जाति और धर्म के आधार पर एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते थे और एक ही स्थान पर बैठकर भोजन नहीं करते थे। गुरु नानक जी ने इस विभाजन को खत्म करने और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए लंगर की परंपरा शुरू की।

पहली बार लंगर का आयोजन उस समय किया गया जब गुरु नानक जी के पिता ने उन्हें व्यापार के लिए कुछ पैसे दिए थे। गुरु नानक जी ने उन पैसों का उपयोग गरीबों और भूखों को भोजन कराने में किया, जिसे “सच्चा सौदा” कहा गया। इसी घटना को गुरु नानक की सेवा भावना का पहला उदाहरण माना जाता है, और यहीं से लंगर की परंपरा का आरंभ हुआ।

लंगर की विशेषताएँ और उद्देश्य

  1. समानता और भाईचारा
    लंगर में हर व्यक्ति, चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग, या सामाजिक स्तर कुछ भी हो, एक साथ बैठकर भोजन करता है। यह परंपरा समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती है। गुरु नानक जी का यह मानना था कि ईश्वर की दृष्टि में सभी एक समान हैं, और लंगर उसी भावना को दर्शाता है।
  2. सेवा और परोपकार
    लंगर की परंपरा सिखों के लिए सेवा (सेवा भाव) का प्रतीक है। लंगर में भोजन बनाने से लेकर परोसने तक का काम स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है। सभी लोग अपनी क्षमता अनुसार सेवा में योगदान देते हैं, चाहे वह खाना पकाना हो, बर्तन धोना हो, या भोजन परोसना हो। इसे “सेवा” कहा जाता है, और यह सिख धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक है।
  3. भूखों और जरूरतमंदों के लिए भोजन
    लंगर का उद्देश्य केवल समानता का संदेश देना नहीं, बल्कि भूखे और जरूरतमंद लोगों को भोजन प्रदान करना भी है। सिख गुरुद्वारों में लंगर हर समय उपलब्ध रहता है, और कोई भी व्यक्ति किसी भी समय यहाँ आकर भोजन कर सकता है।
  4. सादगी और शुद्धता का प्रतीक
    लंगर में परोसा जाने वाला भोजन सादा और शाकाहारी होता है, ताकि सभी लोग इसे ग्रहण कर सकें और किसी की धार्मिक या व्यक्तिगत मान्यताओं को ठेस न पहुँचे। इस भोजन को बड़े ही शुद्ध और विनम्र तरीके से बनाया जाता है और पूरे सम्मान के साथ परोसा जाता है।
  5. समर्पण और सामुदायिक भावना
    लंगर सामुदायिक भावना का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति सहयोग करता है और भोजन को साझा करता है। इसमें कोई उच्च-नीच का भाव नहीं होता। सभी लोग मिलकर खाना बनाते हैं, भोजन करते हैं, और इसके बाद मिलकर सफाई करते हैं।

लंगर का आधुनिक महत्व

Biography Of Gurunanak: आज भी लंगर की परंपरा दुनिया के हर गुरुद्वारे में निभाई जाती है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों लोग लंगर में भोजन करते हैं। यह परंपरा आज वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्ध हो चुकी है। आपदाओं के समय, प्राकृतिक संकटों के दौरान, और कहीं भी जरूरतमंदों के बीच सिख समुदाय लंगर सेवा के माध्यम से सहायता पहुँचाता है।

गुरु नानक जी की यह परंपरा आज के समाज के लिए भी एक प्रेरणा है, जो मानवता, समानता और सेवा के मूल्यों को प्रदर्शित करती है। लंगर हमें यह सिखाता है कि हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं, और हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम, समानता, और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

गुरूनानक जी का अंतिम समय और ज्योति जोत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी का अंतिम समय भी उनके जीवन की तरह ही अद्वितीय और प्रेरणादायक था। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में करतारपुर नामक स्थान पर निवास किया, जिसे उन्होंने स्वयं बसाया था। यहाँ उन्होंने लोगों को धर्म, सेवा, और सत्य का मार्ग दिखाने के अपने कार्य को जारी रखा। करतारपुर में उन्होंने एक समुदाय की स्थापना की, जहाँ सभी लोग मिलकर काम करते थे और ईश्वर की भक्ति करते थे। गुरु नानक जी का यही स्थान उनके अनुयायियों के लिए शिक्षा और प्रेरणा का केंद्र बन गया था।

अंतिम समय और ज्योति जोत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में अपनी शारीरिक लीला समाप्त की। उनकी अंतिम विदाई के समय उनके अनुयायियों में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग थे। उनकी शिक्षाओं और उनके जीवन का हर एक पल सभी धर्मों के लोगों के लिए प्रेरणादायक था, और इसलिए सभी उन्हें अपने तरीके से विदाई देना चाहते थे।

उनके निधन के समय एक अनोखी घटना घटी। हिंदू अनुयायियों का मानना था कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होना चाहिए, जबकि मुस्लिम अनुयायी उनका दफन करना चाहते थे। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के अनुसार, वे न केवल किसी एक धर्म के थे, बल्कि सभी धर्मों का आदर करते थे और सभी के लिए समान प्रेम और सम्मान रखते थे।

यहाँ पर गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को पहले से ही यह संदेश दिया था कि उनके शारीरिक शरीर का मोह छोड़ देना चाहिए, क्योंकि असली गुरु का स्वरूप उसके विचारों और शिक्षाओं में होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब हिंदू और मुस्लिम अनुयायी उनके शरीर के पास पहुँचे तो वहाँ उनके शरीर के बजाय एक सफेद चादर मिली, और दोनों समुदायों ने इसे आधा-आधा बाँट लिया। हिंदू अनुयायियों ने उस चादर को जलाकर उसकी राख को प्रवाहित किया, जबकि मुस्लिम अनुयायियों ने उसे दफन कर दिया।

गुरु नानक का ज्योति जोत समाना

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक के निधन को “ज्योति जोत समाना” कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका प्रकाश (ज्योति) ईश्वर के साथ समाहित हो गया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण में यह संदेश दिया कि गुरु का कार्य कभी समाप्त नहीं होता; वह अनंत काल तक अपने विचारों और शिक्षाओं के रूप में जीवित रहता है।

गुरु नानक जी के बाद, उनकी शिक्षाओं को उनके उत्तराधिकारी गुरु अंगद देव जी ने आगे बढ़ाया। गुरु नानक जी ने गुरुत्व की यह परंपरा बनाई, जो उनके दसवें उत्तराधिकारी गुरु गोबिंद सिंह जी तक चली।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रभाव

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना उनके अनुयायियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। उनके विचार और शिक्षाएं उनके शारीरिक रूप से न होने के बाद भी लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करती रहीं। उनका जीवन और शिक्षाएं हमें बताती हैं कि सच्चा गुरु वही होता है जो अपने अनुयायियों को सच्चाई, प्रेम, और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

आज भी, गुरु नानक देव जी का प्रकाश उनके अनुयायियों के दिलों में जीवित है। उनकी शिक्षाओं और संदेशों ने सिख धर्म की नींव रखी और उनके विचार पूरी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

गुरु नानक जयंती कैसे मनाई जाती है?

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जयंती, जिसे “गुरुपर्व” या “प्रकाश उत्सव” के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इसे सिख समुदाय के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है। इस दिन को गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

गुरु नानक जयंती मनाने के प्रमुख तरीके

  1. अखंड पाठ (गुरु ग्रंथ साहिब का लगातार पाठ)
    गुरु नानक जयंती से दो दिन पहले “अखंड पाठ” का आयोजन किया जाता है। इसमें गुरु ग्रंथ साहिब का लगातार 48 घंटे का पाठ किया जाता है। इसका आयोजन गुरुद्वारों में और कई लोग इसे अपने घरों में भी करते हैं। इस पाठ को बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ सुना जाता है, और इसके समापन पर भजन-कीर्तन किए जाते हैं।
  2. नगर कीर्तन
    गुरु नानक जयंती के एक दिन पहले “नगर कीर्तन” का आयोजन होता है। इसमें गुरु ग्रंथ साहिब को एक भव्य पालकी में सजाकर पूरे नगर में शोभायात्रा निकाली जाती है। यह शोभायात्रा मुख्यतः पंज प्यारों द्वारा नेतृत्व की जाती है, जो पारंपरिक वस्त्रों में होते हैं। शोभायात्रा में सिख झंडा (निशान साहिब) भी लहराया जाता है। कीर्तन, शबद और भक्ति संगीत के साथ यह शोभायात्रा बहुत ही उल्लासपूर्वक निकाली जाती है।
  3. प्रभात फेरियाँ
    गुरु नानक जयंती के कुछ दिन पहले से ही प्रभात फेरियाँ (सुबह की परिक्रमा) शुरू हो जाती हैं। भक्तजन सुबह-सुबह इकट्ठा होते हैं और गुरु नानक देव जी के भजन गाते हुए गुरुद्वारों या घरों के पास से गुजरते हैं। इन प्रभात फेरियों का उद्देश्य लोगों में गुरु नानक देव जी के विचारों और शिक्षाओं का प्रचार करना होता है।
  4. गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ और कीर्तन
    गुरु नानक जयंती के दिन गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ और कीर्तन का आयोजन होता है। इसमें गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है और उनकी जीवन कथा सुनाई जाती है। भक्तजन इस अवसर पर श्रद्धा भाव से गुरु नानक देव जी के संदेशों को सुनते हैं और उनका अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं।
  5. लंगर (सामूहिक भोजन)
    गुरु नानक जयंती के दिन हर गुरुद्वारे में लंगर का आयोजन होता है। लंगर सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें सभी जाति, धर्म, और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह परंपरा गुरु नानक देव जी के समानता, सेवा और भाईचारे के संदेश को साकार रूप में प्रकट करती है।
  6. कविता और प्रवचन
    इस दिन गुरु नानक देव जी के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित कविताएँ, प्रवचन, और शबद गाए जाते हैं। सिख विद्वान और गुरु के अनुयायी उनके विचारों, शिक्षाओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा करते हैं।
  7. विशेष सजावट
    गुरुद्वारे और सिख समुदाय के घरों को इस अवसर पर विशेष रूप से सजाया जाता है। लाइटिंग और रंग-बिरंगे फूलों से गुरुद्वारों को सजाया जाता है, जिससे पूरे वातावरण में एक उत्सव का माहौल बन जाता है।
  8. सामाजिक सेवा और परोपकार
    गुरु नानक देव जी की जयंती के अवसर पर सिख समुदाय में कई लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। वे कपड़े, भोजन, और अन्य आवश्यक वस्तुएं वितरित करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। इसके माध्यम से वे गुरु नानक जी की सेवा और परोपकार की शिक्षा का पालन करते हैं।

गुरु नानक जयंती का महत्व

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जयंती का महत्व न केवल सिखों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए है। गुरु नानक जी ने समाज में समानता, प्रेम, और सेवा का संदेश दिया था, और उनके जीवन से जुड़े ये मूल्य आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनकी शिक्षाओं के आधार पर इस पर्व का उद्देश्य लोगों को प्रेम, करुणा, और भाईचारे की भावना का पालन करने के लिए प्रेरित करना है।

गुरु नानक देव जी के संदेश और उनके जीवन की शिक्षाएँ आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं, और उनकी जयंती इन शिक्षाओं को पुनः याद करने और उनके मार्ग पर चलने का अवसर देती है।

गुरु नानक जयंती 2024 को कब मनाई जायेगी?

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी की जयंती 2024 में 15 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी, जो कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। इस पवित्र पर्व को प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है और यह सिख समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और उनके जीवन को सम्मानित किया जाता है।

गुरुद्वारों में इस दिन “अखंड पाठ” का आयोजन किया जाता है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे तक लगातार पाठ होता है। इसके बाद नगर कीर्तन (धार्मिक जुलूस) निकाले जाते हैं, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब को सजाए गए रथ पर रखा जाता है और लोग भक्ति गीत गाते हुए चलते हैं। इस दौरान सिख पारंपरिक मार्शल आर्ट “गटका” का प्रदर्शन भी किया जाता है। गुरुद्वारों में लंगर (सामूहिक भोजन) की व्यवस्था होती है, जिसमें सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोग मिलकर भोजन करते हैं, जो गुरु नानक जी की समानता और सेवा की भावना का प्रतीक है।

FAQS-

1. गुरु नानक जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
गुरु नानक जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के ननकाना साहिब में स्थित है। उनके जन्मदिवस को कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है।

2. गुरु नानक जी का प्रमुख संदेश क्या था?
गुरु नानक जी ने “एक ओंकार” का संदेश दिया, जिसका अर्थ है “सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं।” उन्होंने समाज में समानता, सेवा, सत्य, और ईश्वर की भक्ति पर जोर दिया। उनके प्रमुख सिद्धांतों में “नाम जपो” (ईश्वर का नाम स्मरण करो), “किरत करो” (इमानदारी से काम करो), और “वंड छको” (अपनी संपत्ति को दूसरों के साथ साझा करो) शामिल हैं।

3. गुरु नानक जी की प्रमुख धार्मिक यात्राएँ कौन-सी थीं?
गुरु नानक जी ने चार मुख्य यात्राएँ (उदासियाँ) कीं, जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत, और अरब देशों में फैली हुई थीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्त करना और सच्चाई की राह दिखाना था।

4. गुरु नानक जी ने “लंगर” की परंपरा क्यों शुरू की?
गुरु नानक जी ने “लंगर” की परंपरा समानता और सेवा की भावना को बढ़ावा देने के लिए शुरू की। इसमें सभी जाति, धर्म, और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।

5. गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना का क्या अर्थ है?
गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना 22 सितंबर 1539 को हुआ था। इसका अर्थ है कि उनका भौतिक शरीर ईश्वर में समा गया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएँ अनंत काल तक जीवित रहेंगी।

6. गुरु नानक जी की शिक्षाओं को कौन से धार्मिक ग्रंथ में संग्रहित किया गया है?
गुरु नानक जी की शिक्षाएँ “गुरु ग्रंथ साहिब” में संग्रहित हैं। इसे सिखों का पवित्र धर्मग्रंथ माना जाता है, जिसमें उनके जीवन और शिक्षाओं के उपदेश और शबद (भजन) हैं।

7. गुरु नानक जी का संदेश किन समाजिक मुद्दों को संबोधित करता था?
गुरु नानक जी ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच का भेदभाव, अंधविश्वास, और धार्मिक कट्टरता का विरोध किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य समान हैं, और हमें प्रेम, सत्य, और सेवा की भावना के साथ जीवन जीना चाहिए।

8. गुरु नानक जी का उत्तराधिकारी कौन था?
गुरु नानक जी ने गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी चुना। गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और सिख धर्म की परंपरा को सुदृढ़ किया।

9. गुरु नानक जी के निधन को किस नाम से जाना जाता है?
उनके निधन को “ज्योति जोत समाना” कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका भौतिक रूप समाप्त हो गया, लेकिन उनका आध्यात्मिक प्रकाश अनंत है।

10. गुरु नानक जयंती कब मनाई जाती है?
यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो अक्टूबर-नवंबर में पड़ता है। 2024 में यह 15 नवंबर को मनाई जाएगी​।

11.गुरु नानक जी का योगदान किस ग्रंथ में संग्रहित है?
उनकी शिक्षाएँ और भजन “गुरु ग्रंथ साहिब” में संकलित हैं, जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है।

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Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट का जीवन परिचय

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट एक प्रसिद्ध भारतीय पहलवान हैं, जिनका नाम कुश्ती के क्षेत्र में उल्लेखनीय है। जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में अपने देश का नाम रोशन किया है। वे प्रसिद्ध फोगाट परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जिसने भारत को कई कुश्ती चैंपियन दिए हैं। विनेश का संबंध भारत के उस परिवार से है, जिसके सदस्यों ने भारतीय कुश्ती में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज के इस पोस्‍ट Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay में उनके जीवन के बारे में जानेगें।

विनेश फोगाट का जन्‍म

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट एक भारतीय महिला पहलवान हैं, उनका जन्म 25 अगस्त 1994 को हरियाणा के बालाली गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम राजपाल फोगाट और माता का नाम प्रेमलता फोगाट है। उनके चाचा महावीर फोगाट ने उन्हें और उनकी बहनों को कुश्ती में प्रशिक्षित किया, जो कि उस समय की एक दुर्लभ बात थी।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश की स्कूली शिक्षा हरियाणा में हुई, जहां उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में ही कुश्ती में रुचि दिखाना शुरू कर दिया था। इसके बाद उन्होंने पूरे समर्पण के साथ अपने कुश्ती करियर पर ध्यान केंद्रित किया और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। उनकी शिक्षा का अधिक विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनकी प्राथमिकता हमेशा कुश्ती रही है, लेकिन उनका शुरुआती प्रशिक्षण अपने गांव में परिवार की देखरेख में ही हुआ था।

विनेश फोगाट का पालन-पोषण एक ग्रामीण परिवेश में हुआ, जहाँ परंपरागत रूप से लड़कियों को कुश्ती जैसे खेलों में शामिल नहीं किया जाता था। फिर भी, अपने चाचा महावीर फोगाट की प्रेरणा और प्रशिक्षण से, उन्होंने कुश्ती में करियर बनाने का निर्णय लिया। उन्हें शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि समाज का समर्थन नहीं था। इसके बावजूद, उन्होंने मेहनत और लगन से कुश्ती की दुनिया में अपना नाम बनाया।

कैरियर और उपलब्धियाँ

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ निम्‍नलिखित हैं:

1. एशियाई खेल:

  • 2014 में हुए एशियाई खेलों में विनेश फोगाट ने कांस्य पदक जीता।
  • 2018 के जकार्ता एशियाई खेलों में उन्होंने 50 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया, जिससे वे एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं।

2. कॉमनवेल्थ खेल:

  • 2014 के ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
  • 2018 के गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों में भी उन्होंने 50 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया।

3. विश्व कुश्ती चैंपियनशिप:

  • 2019 में नूर-सुल्तान में आयोजित विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता और इसके साथ ही टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए क्‍वालीफाई किया।

4. ओलंपिक:

  • विनेश ने 2016 के रियो ओलंपिक में हिस्सा लिया, जहाँ उन्हें चोट के कारण प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ा। हालाँकि, चोट के बाद भी उन्होंने संघर्ष जारी रखा और 2020 के टोक्यो ओलंपिक में क्‍वालीफाई किया।

5. एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप:

  • विनेश ने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कई पदक जीते हैं, जिनमें स्वर्ण, रजत और कांस्य शामिल हैं।

अन्य विशेषताएँ और सम्मान:

  • विनेश को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो भारतीय खेल में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
  • वे भारतीय महिला कुश्ती की प्रमुख चेहरा मानी जाती हैं और अपने जुनून एवं समर्पण से उन्होंने दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया है।

विनेश फोगाट की करियर एक प्रेरणा है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, जो पारंपरिक सोच से हटकर अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं।

पुरस्कार और सम्मान

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं:

  • अर्जुन अवॉर्ड: 2016 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार: 2020 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान से सम्मानित किया गया।

व्यक्तिगत जीवन

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: विनेश फोगाट ने 2018 में अपने साथी पहलवान सोमवीर राठी से शादी की। उनके पति भी कुश्ती में रुचि रखते हैं, और दोनों अपने करियर में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।

विनेश का जीवन संघर्ष, साहस और मेहनत की प्रेरणा देता है। उन्होंने साबित किया है कि समाज की बाधाओं के बावजूद, समर्पण और कड़ी मेहनत से कोई भी ऊँचाइयाँ हासिल कर सकता है।

Vinesh Phogat Ka Jeevan Parichay: Biography Of Viesh Phogat

प्रश्‍नोत्‍तरी:

विनेश फोगाट का जन्‍म कब हुआ था?

25 अगस्‍त 1994

विनेश फोगाट का जन्‍म कहां हुआ था?

हरियाणा के बलाली में।

विनेश फोगाट के पिता का क्‍या नाम है?

विनोद फोगाट

विनेश फोगाट के माता का क्‍या नाम है?

सरला देवी

विनेश फोगट टू गीता फोगट कौन है?

गीता और बबीता फोगाट की चचेरी बहन है।

विनेश फोगाट के पति कौन हैं?

सोमवीर राठी

विनेश फोगाट को अर्जुन अवार्ड कब प्रदान किया गया?

2016 में

विनेश फोगाट को राजीव गांधी खेल रत्‍न पुरूस्‍कार कब प्रदान किया गया?

2020 में

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Biography of ratan tata: रतन टाटा का जीवन परिचय रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत के एक प्रतिष्ठित नाम है। रतन टाटा भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में से थे, और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं। उनका पूरा नाम रतन नवल टाटा है। वे अपने व्यवसायिक नैतिकता, परोपकार और दूरदर्शिता के लिए जाने जाते हैं। जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। रतन टाटा भारत में उद्योग और परोपकार के प्रतीक माने जाते हैं। उनका जीवन सादगी, परिश्रम, और मानवता की सेवा के लिए समर्पित है। हमारे आज के इस पोस्‍ट में रतन टाटा के जीवन के बारे में जानेगें।

Biography of ratan tata: रतन टाटा का संक्ष्प्ति परिचय

नामरतन टाटा
पूरा नामरतन नवल टाटा
जन्‍म तिथिजन्म 28 दिसंबर 1937
जन्‍म स्‍थानमुबंई
पिता का नामनवल टाटा
मां का नामसोनू टाटा
राष्‍ट्रीयताभारतीय
धर्मपारसी
टाटा समूह में कैरियर की शुरूआत1962 में
पद्म भूषण2000
पद्म विभूषण2008
निधन09 अक्‍टूबर 2024
आयु86 वर्ष
Biography of ratan tata: रतन टाटा का जीवन परिचय

रतन टाटा का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा

Biography of ratan tata: रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। वे टाटा परिवार की तीसरी पीढ़ी से हैं और जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित टाटा समूह की धरोहर को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। उनके पिता का नाम नवल टाटा था और माँ का नाम सोनू टाटा। रतन टाटा का जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा, और उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से समाज पर गहरा प्रभाव डाला।

रतन टाटा का पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया। क्योंकि उनके माता-पिता बचपन में ही अलग हो गए थे। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई और बाद में बिशप कॉटन स्कूल, शिमला से की। इसके बाद उन्होंने अमेरिका की यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन की और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया।

रतन टाटा का कैरियर

Biography of ratan tata: 1962 में रतन टाटा ने टाटा समूह में एक सामान्य कर्मचारी के रूप में काम शुरू किया। उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया और विभिन्न कठिनाइयों का सामना किया। अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर उन्होंने टाटा समूह में अपनी पहचान बनाई। रतन टाटा ने टाटा समूह के साथ अपने करियर की शुरुआत की और टाटा स्टील में ग्राउंड लेवल पर काम करना शुरू किया।

उन्होंने कठिन मेहनत और अपनी लगन से कंपनी में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं और अपने कौशल को साबित किया। 1991 में, उन्हें टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार किया, जिनमें टाटा मोटर्स, टाटा टी, टाटा स्टील और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कंपनियां शामिल हैं।

रतन टाटा ने टाटा समूह को वैश्विक स्तर पर भी पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई महत्वपूर्ण अधिग्रहण किए, जैसे कि ब्रिटिश स्टील निर्माता कोरस और जगुआर-लैंड रोवर का अधिग्रहण, जिसने टाटा को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। 2008 में, उन्होंने टाटा नैनो नामक दुनिया की सबसे किफायती कार को लॉन्च किया, जिसे “लोगों की कार” के रूप में जाना जाता है।

रतन टाटा का व्यक्तिगत जीवन और आदर्श

Biography of ratan tata: रतन टाटा एक सरल और विनम्र व्यक्ति माने जाते हैं। वे कभी विवाह नहीं कर पाए और कहते हैं कि उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने विवाह का विचार किया था, लेकिन परिस्थितियों के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। वे अपने पालतू कुत्तों से बेहद प्रेम करते हैं और एक शांतिप्रिय जीवन जीना पसंद करते हैं।

रतन टाटा एक सरल और विनम्र व्यक्ति माने जाते हैं। वे अविवाहित हैं और अपने जीवन में समाज की सेवा और व्यवसाय के प्रति समर्पित रहे हैं। जिन्होंने हमेशा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दी है।

रतन टाटा का जीवन और करियर युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो यह दर्शाता है कि कड़ी मेहनत, नैतिकता और समाज के प्रति दायित्व के साथ एक सफल और संतुलित जीवन जिया जा सकता है। आज, रतन टाटा भारतीय समाज में एक आदर्श माने जाते हैं और उनके विनम्र स्वभाव और परोपकारी दृष्टिकोण के कारण लोग उन्हें बेहद सम्मान देते हैं।

उपलब्धियां और टाटा समूह में योगदान

Biography of ratan tata: 1961 में, रतन टाटा ने टाटा समूह के साथ काम करना शुरू किया और शुरुआत में टाटा स्टील के साथ जुड़े। वहाँ उन्होंने ब्लू-कॉलर कामों से शुरुआत की, जिसमें वह अन्य कर्मचारियों के साथ मिलकर स्टील प्लांट में कार्यरत रहे। 1991 में जे.आर.डी. टाटा के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद रतन टाटा को टाटा समूह का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

सेवानिवृत्ति और परोपकार

Biography of ratan tata: रतन टाटा ने 2012 में टाटा समूह के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद भी वे टाटा ट्रस्ट और टाटा फाउंडेशन के जरिए समाज सेवा और परोपकार में सक्रिय हैं। उन्होंने कई स्टार्टअप्स में भी निवेश किया है और युवाओं को प्रेरित किया है। रतन टाटा का मानना है कि उद्योग और व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य समाज को बेहतर बनाना है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत धन से कई परोपकारी कार्यों में योगदान दिया है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में। उन्होंने भारत में कैंसर रिसर्च, हॉस्पिटल निर्माण, और बच्चों के लिए शिक्षा में भी अपना योगदान दिया है।

पुरस्कार और सम्मान

Biography of ratan tata: रतन टाटा को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें भारत सरकार द्वारा दिए गए पद्म भूषण और पद्म विभूषण प्रमुख हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें विश्व स्तर पर भी कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं।

रतन टाटा आज भी भारतीय उद्योग जगत के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं और उनकी विनम्रता, परोपकार और नेतृत्व क्षमता सभी के लिए आदर्श हैं। रतन टाटा का जीवन प्रेरणादायक है और उन्होंने अपने जीवन में कई लोगों को अपने आदर्शों और कार्यों से प्रेरित किया है। उनका जीवन दर्शन यह है कि उद्योग और व्यवसाय को सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़कर ही समाज का समग्र विकास किया जा सकता है।

रतन टाटा का निधन

Biography of ratan tata: भारतीय उद्योग जगत के एक महान उद्योगपति रतन टाटा का 09 अक्‍टूूूबर 2024 को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया।

निष्कर्ष

Biography of ratan tata: रतन टाटा एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय उद्योग जगत में अपनी पहचान बनाई है और समाज सेवा में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनके आदर्शों और कार्यों से प्रेरणा लेकर अनगिनत लोग अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी सादगी, विनम्रता, और मानवता की भावना उन्हें एक महान व्यक्तित्व बनाती है।

Biography of ratan tata: रतन टाटा का जीवन परिचय

FAQS-

1. रतन टाटा का जन्‍म कब हुआ था?

28 दिसम्‍बर 1937 ।

2. रतन टाटा का पूरा नाम क्‍या है?

रतन नवल टाटा।

3. रतन टाटा के पिता का क्‍या नाम था?

नवल टाटा ।

4. रतन टाटा के मां का क्‍या नाम था?

सोनू टाटा।

5. रतन टाटा ने टाटा समूह में अपने कैरियर की शुरूआत कब की थी?

सन 1962 में ।

6. रतन टाटा को पद्म भूषण से कब सम्‍मानित किया गया था?

2000 में।

7. रतन टाटा को पद्म विभूषण से कब सम्‍मानित किया गया था?

2008 में।

8. रतन टाटा का निधन कब हुआ?

09 अक्‍टूबर 2024 को।

9. रतन टाटा किस धर्म के थे?

पारसी।

10. टाटा का दूसरा नाम क्‍या है?

Tisco टिस्‍को ।

11. Tisco टिस्‍को का पूरा नाम क्‍या है? .

टाटा आयरन एण्‍ड स्‍टील कंपनी।

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Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल का जीवन परिचय

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Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल की जीवनी

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay:  दोस्‍तों आज हम बताने जा रहे हैं, छत्‍तीसगढ़ के एक  महान विभूति के बारे में जिसका नाम है। डॉ. खूबचंद बघेल (Dr. Khubchand Baghel) इनके नाम से छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई नागरिक परिचित नहीं होगा। डॉ. खूबचंद बघेल जिन्‍होने आजादी के लड़ाई से लेकर सामाजिक कार्यो के लिए कई महान कार्य किये इन्‍ही महान क्रांतिकारी सपूतों के बदौलत छत्तीसगढ़ को ना सिर्फ हमारे देश में एक पहचान मिली बल्कि विदेशों में भी छत्तीसगढ़ का नाम रोशन हुआ। आज के इस पोस्‍ट Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay में उनके बारे में विस्‍तार से जानेगें।

डॉ. खूबचंद बघेल का संक्षिप्‍त विवरण Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay:

नामडॉ. खूबचंद बघेल (Dr. Khubchand Baghel)
जन्‍म तिथि19 जुलाई 1900
जन्‍म स्‍थानरायपुर के पथरी नाम गांव में
पिता का नामजुड़ावन सिंह
माता का नामकेतकी बाई
पत्नि का नामराजकुंवर
शैक्षणिक योग्‍यताएल. एम. पी. (बाद में सरकार द्वारा एम.बी.बी.एस. का दर्जा दिया गया)
रचनाऊँच-नींच, करम-छंडहा, जनरैल सिंह, भारतमाता
निधन22 फरवरी 1969

डॉ. खूबचंद बघेल का जन्‍म Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay:

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ खूबचंद बघेल का जन्म 19 जुलाई सन् 1900 को रायपुर के पथरी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री जुड़ावन सिंह तथा माता का श्रीमती केतकी बाई था।

डॉ. खूबचंद बघेल की शिक्षा

डॉ. खूबचंद बघेल की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुआ। और आगे की पढ़ाई के लिए उन्‍हे रायपुर के सरकारी स्‍कूल में दाखिला करवाया गया जहां से उन्‍होने अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी की उसके बाद उन्होंने नागपुर के रॉबर्ट्सन मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। उसी बीच देशभर में चलने वाले असहयोग आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्‍होने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और आंदोलन में शामिल हो गये। बाद में घर वालों के समझाईस देने के उपरांत उन्‍होने  फिर से एल.एम.पी. (लेजिस्लेटिव मेडिकल प्रक्टिसनर) नागपुर में दाखिला लिया और सन् 1923 में एल.एम.पी. की परीक्षा उर्त्‍तीण की जिसे बाद में सरकार द्वारा (एल.एम.पी.) को एम.बी.बी.एस. का दर्जा दिया गया। 

डॉ. खूबचंद बघेल का विवाह एवं संतान

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल का विवाह कम उम्र में ही कर दिया गया था, वे सिर्फ 10 वर्ष के थे और अपनी प्राथमिक कक्षा की पढ़ाई कर रहे थे। उसी समय उनका विवाह उनसे 3 साल छोटी कन्या राजकुँवर से करा दिया गया था। उनकी पत्नी राजकुँवर से 3 पुत्रियाँ पार्वती, राधा और सरस्वती का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने पुत्र मोह के कारण डॉ. भारत भूषण बघेल को गोद लिया था।

डॉ. खूबचंद बघेल का राजनीतिक सफर

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल ने सन् 1923 में झण्डा सत्याग्रह में भाग लिया था, वे  सन् 1925 से 1931 तक शासकीय चिकित्सक के पद पर कार्य करते हुए वे छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में आये और सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में वन कानून का उलंघन करते हुए वे सरकारी कर्मचारी होते हुए भी 10 अक्टूबर 1930 को सत्याग्रहियों का साथ दिया एवं उनका नेतृत्व करने लगे, इस कारण उन्हें शासन से नोटिस मिला तो सन् 1931 में सरकारी पद त्याग कर उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया।

सन् 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के द्वितीय चरण में 15 फरवरी 1932 को डॉ. खूबचंद बघेल के साथ महंत लक्ष्मीनारायण दास एवं नंदकुमार दानी भी गिरफ्तार कर लिए गए । सन् 1933 में जेल से रिहा होने के पश्चात् उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर हरिजन उत्थान का कार्य प्रारंभ कर दिया। कांग्रेस समिति द्वारा उन्हें प्रांतीय हरिजन सेवा समिति का मंत्री नियुक्त किया गया ।

सन् 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ होते ही वे पुनः राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए तथा घूम-घूम कर युद्ध विरोधी भावनाओं का प्रसार करने लगे। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में वे निर्विरोध चुने गए। इस तरह सन 1946 में उन्‍हे तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया।

स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर वे कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1951 के बाद आम चुनाव में वे विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए। 1965 तक विधानसभा के सदस्य रहे। 1965 में राज्यसभा के लिए चुने गए ओर राजनीति से 1968 तक जुड़े रहे। और इस तरह से उनका राजनीतिक सफर रहा।

डॉ. खूबचंद बघेल की रचना

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल एक अच्‍छे साहित्‍कार भी थे। उनके द्वारा की गई रचनाएं इस प्रकार से है-

  1. ऊँच-नींच: ऊँच-नींच डॉ. खूबचंद बघेल द्वारा रचित एक नाटक है जिसमें छुआछूत और जातिप्रथा को कम करने के लिए इस नाटक के माध्‍यम से मंचन किया गया। 
  2. करम-छड़हा:  करम छड़हा नाटक एक आम आदमी की गाथा और बेबसी को दर्शाता है।
  3. जनरैल सिंह: इसके द्वारा छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने का मार्ग बताया गया है। 
  4. भारतमाता: सन् 1962 में भारत चीन युद्ध के समय इसे लिखकर मंचन कराया गया तथा चंदा इकठ्ठा कर भारत सरकार के पास भिजवाया गया।  

डॉ. खूबचंद बघेल का निधन

Dr. Khubchand Baghel Ka Jeevan Parichay: डॉ. खूबचंद बघेल हमेशा से छत्तीसगढ़ के विकास और छत्तीसगढ़ को एक अलग पहचान दिलाने के लिए कार्य किया, और वे हमेशा छत्तीसगढ़ के दब्बूपन को दूर करने के लिए अनेक प्रयास किये, वे हमेशा यही चाहते थे की छत्तीसगढ़ को लोग क्यों ऐसे हीन भावना से देखते है हमेशा इससे सौतेला व्यावहार क्यों करते हैं बस इन्ही बातों की चिंता उन्हें सताते रहती थी। जातिगत भेदभाव, कुरीतियों को मिटाने वाले इस महान व्यक्ति का निधन संसद के शीतकालीन सत्र के लिए भाग लेने दिल्ली गए हुए थे वहाँ दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक निधन 22 फरवरी 1969 को हो गया। 

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Champai Soren Ka Jeevan Parichay कौन हैं चंपई सोरेन

Champai Soren Ka Jeevan Parichay चंपई सोरेन एक भारतीय राजनेता है। और अभी 2024 में  झारखंड के वर्तमान मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ लिये है। आपको बता दें की चंपई सोरेन झारखंड राज्‍य के सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्‍व करते है। और साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्‍य भी हैं। इससे पहले हेमंत सोरेन की सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर रहे है। चंपई सोरेन झारखंड राज्‍य की मांग को लेकर हुए आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ थे। चंपई सोरेन का झारखंड राज्‍य के विकास में महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। और उन्‍हे झारखंड टाइगर के नाम से भी जाना जाता है।

Champai Soren Ka Jeevan Parichay चंपई सोरेन का जन्‍म और शिक्षा

Champai Soren Ka Jeevan Parichay चंपई सोरेन का जन्म झारखंड राज्‍य के जिलिंगगौड़ा में 11 नवंबर सन 1956 हुआ था। चंपई सोरेन के पिता का नाम स्‍वर्गीय सिमर सोरेन माता का नाम मानको सोरेन है। चंपई सोरेन एक कृषक परिवार से आते है। उन्‍होने अपनी शिक्षा सन् 1974 में जमशेदपुर स्थित राम कृष्ण मिशन हाई स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की थी और मैट्रिक की उपाधि ली है। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सीमित उपलब्धि के बावजूद, उनकी राजनीतिक के क्षेत्र में समझ और कार्य कुशलता का परिचय उनके लंबे राजनीतिक करियर में मिलता है।

चंपई सोरेन का राजनीतिक जीवन

Champai Soren Ka Jeevan Parichay चंपई सोरेन की राजनीतिक जीवन की बात करें तो सन् 1991 में उन्‍होने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की और वे विधायक के रूप मे चुने गए किंतु चंपई सोरेन का असल राजनीतिक करियर 2005 से माना जाता है। जब वे पहली बार झारखंड की दूसरी विधानसभा के लिए चुने गए थे। उनकी अपनी राजनीतिक समझ और जनता के बीच क्षेत्रीय विकास के प्रति कार्यकुशला ने उन्हें बहुत जल्द ही एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। सन् 2009 में वे झारखंड की तीसरी विधानसभा के लिए फिर से चुने गए।

जिसमें उन्‍होने 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपने विभागों में कई महत्वपूर्ण पहल और कार्य किए। उसके बाद 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक, वे खाद्य और नागरिक आपूर्ति, परिवहन मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य के लोगों के लिए महत्वपूर्ण नीतियों और सुधारों का नेतृत्व किया।

सन् 2014 में वे चौथी बार विधानसभा में पुनः चुने गए। और फिर 2019 में पांचवीं बार चुने गये जहां उन्होंने परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के रूप में कार्य किया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने सामाजिक न्याय और विकास के विभिन्न कार्यक्रमों का आरंभ किया। इस प्रकार एक के बाद एक लगातार अपने राजनीतिक अनुभवों और जनता के बीच अपने कार्यशैली से झारखण्‍ड के जनता के लिए लोकप्रिय होते चले गये।

झारखण्‍ड के नये मुख्‍यमंत्री के रूप में चंपई सोरेन

Champai Soren Ka Jeevan Parichay अपने लंबे राजनीतिक सफर और अनुभवों से चंपई सोरेन ने झारखण्‍ड की जनता के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये है। और अभी हाल ही में  हेमंत सोरेन के इस्‍तीफे बाद 2024 में, उन्हें झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में मनोनित किया गया है। जो उनके लंबे और उपलब्धिपूर्ण राजनीतिक करियर का चरमोत्कर्ष है। उनके नेतृत्व में, झारखंड राज्य ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और उनका ध्यान राज्य के समग्र विकास पर केंद्रित रहा है।

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FAQS-

चंपई सोरेन कौन है?

झारखण्‍ड राज्‍य के मुख्‍यमंत्री।

चंपई सोरेन किस राजनीतिक पार्टी से संबंधित है?

वे झारखण्‍ड मुक्ति मोर्चा के सदस्‍य है।

चंपई सोरेन ने किस वर्ष से राजनीति में प्रवेश किया?

वर्ष सन् 1991 से।

झारखण्‍ड के नये मुख्‍यमंत्री कौन है?

चंपई सोरेन।

चंपई सोरेन के पिता का क्‍या नाम है?

सिमर सोरेन।

चंपई सोरेन ने कहां तक पढ़ाई की है?

10 वी तक।

चंपई सोरेन कौन से विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्‍व करते है?

सरायकेला।

चंपई सोरेन झारखण्‍ड के कौन से क्रम के मुख्‍यमंत्री है?

सातवें।

चंपई सोरेन को और किस नाम से जाना जाता है?

झारखण्‍ड टाइगर।

Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना का जीवन परिचय

Biography Of Rashmika Mandana

Biography Of Rashmika Mandana भारतीय फिल्‍म अभिनेत्री रश्मिका मंदाना

Biography Of Rashmika Mandana : रश्मिका मंदाना एक भारतीय अभिनेत्री है। और दक्षिण भारतीय फिल्‍मों में काम करती है। रश्मिका मंदाना ‘नेशनल क्रश ऑफ इंडिया’ के नाम से पुरे भारत में लोकप्रिय है। रश्मिका मंदाना एक फिल्म अभिनेत्री, और मॉडल है। आपको बता दें कि रश्मिका मंदाना 2014 में “क्‍लीन एंड क्लियर टाइम्‍स फ्रेश फेस ऑफ इंडिया” प्रतियोगिता में विजय घोषित हुई थी। आज के इस पोस्‍ट Biography Of Rashmika Mandana में उनके जीवन के बारें में जानेगें।

रश्मिका मंदाना का व्‍यक्तिगत जीवन संंक्षिप्‍त विवरण

नामरश्मिका मंदाना
उपनाम निक नेमनेशनल क्रश, मोनिशा, मोनिका, और मोनी
जन्‍म तिथि5 अप्रैल 1996
जन्‍म स्‍थानविराजपेट कोडागु, कर्नाटक, भारत
पिता का नाममदन मंदाना
मां का नामसुमन मंदाना
राष्‍ट्रीयताभारतीय
धर्महिन्‍दू
कद (Hight)5 फिट 6 इंच (168 cm)
वजन (Weight)54 Kg
राशिमेष
शैक्षणिक योग्‍यताग्रेजुएशन, अंग्रेजी और मनोविज्ञान में स्‍नातक
पेशाअभिनेत्री, मॉडल

Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना की जन्‍म तिथि

रश्मिका मंदाना का जन्‍म 5 अप्रैल 1996 को कर्नाटक के विराजपेट कोडागु में एक मध्‍यवर्गीय परिवार में हुआ था। रश्मिका मंदाना के पिता का नाम मदन मंदाना व माता का नाम सुमन मंदाना है। रश्मिका के पिता कर्नाटक के सरकारी संस्थान में बाबू के पद पर कार्यरत थे। उनकी एक बहन भी हैं जिनका नाम सीमन है।

Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना की शिक्षा

रश्मिका मंदन्ना की शिक्षा की बात करें तो रश्मिका मन्दाना ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कर्नाटक में स्थित पूरब पब्लिक स्कूल से पूरी की स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने एम एस रमैया कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स से मास्‍टर ऑफ साइकोलॉजी की डिग्री हासिल की। रश्मिका को बचपन से ही एक्टिंग और मॉडलिंग का बहुत ज्यादा शौक था जिसके चलते वह अपने कॉलेज दिनों में कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ मॉडलिंग भी करती थी।

रश्मिका मंदाना का फिल्‍मी दुनिया में कैरियर

रश्मिका मंदाना ने साल 2016 में कन्नड़ फिल्म ‘किरिक पार्टी’ से फिल्‍मी दुनिया में अपना कदम रखा। इस फिल्‍म में रश्मिका ने सान्‍वी जोसेफ का किरदार निभाया था। यह फिल्‍म एक बड़ी हिट साबित हुई। साल 2016 की सबसे ज्‍यादा कमाई करने वाली फिल्‍मों में ‘किरिक पार्टी’ का नाम भी शामिल है।

रश्मिका मंदाना ने साल 2018 में रोमांटिक ड्रामा चालो के साथ अपना तेलुगु डेब्यू किया, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। उसी वर्ष में, उसने रोमकॉम फिल्म गीता गोविंदम में अभिनय किया, जो तेलुगु सिनेमा के इतिहास में सबसे अधिक लाभ कमाने वालों में से एक बन गई, जिसने उसे बहुत बड़ी पहचान दिलाई।

उनकी तीसरी तेलुगु उद्यम मल्टीस्टारर बड़े बजट की फिल्म थी जिसका नाम देवदास था, जो भारतीय बॉक्स ऑफिस पर औसत हिट रही, इसने अपनी पहली हिट फिल्म के बाद तेलुगु फिल्म उद्योग में एक ही वर्ष में लगातार तीसरी हिट फिल्म हासिल की। कन्नड़ फिल्म उद्योग में हिट, खुद को तेलुगु सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित किया।

Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना का जीवन परिचय

रश्मिका मंदाना की पसंदीदा चीजें

पसंदीदा भोजनडोसा
पसंदीदा अभिनेताबॉलीवुड- शहरूख खान, रणवीर सिंह, सिद्धार्थ मल्‍होत्रा
हॉलीवुड- चेनिंग टैटम, इयान मैकलीन
पसंदीदा अभिनेत्रीश्रीदेवी एवं एमा वॉटसन
पसंदीदा संगीतकारजस्टिन बीबर, शकीरा
पसंदीदा रंगकाला
Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना का जीवन परिचय

रश्मिका मंदाना की टॉप 10 फिल्‍में

फिल्‍मसन्
किरिक पार्टी2016
अंजनी पुत्र2017
चलो2018
गीता गोविंदम2018
यजमाना2019
डिअर कामरेड2019
सरिलेरू नीकेवरू2020
पोगरू2021
सुलतान2021
पुष्‍पा2021
Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना का जीवन परिचय

रश्मिका मंदाना की जीवन से जुड़ी रोचक जानकारी

  • रश्मिका मंदाना की मातृभाषा कन्नड़ है।
  • रश्मिका मंदाना को जिमिंग और ट्रैवलिंग का शौक हैं।
  • रश्मिका मंदाना मांसाहारी हैं।
  • रश्मिका मंदाना के हाथ पर एक टैटू भी है। जिसमें उन्होंने irreplaceable लिखवाया है।
  • दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में प्रवेश करने के लिए क्लीन एंड क्लियर विज्ञापन उनके लिए पहली सफलता थी।
  • वह एक शौकीन चावला यात्रा प्रेमी है। लंदन उनका पसंदीदा ट्रैवलिंग डेस्टिनेशन है।
  • कॉलेज से स्नातक करने के बाद, उन्होंने मॉडलिंग करियर की शुरुआत की।
  • साउथ सिनेमा की सुपरस्‍टार मानी जाने वाली रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna) ने बेहद ही कम उम्र में तरक्की हासिल की। 19 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली फिल्म साइन की थी।

Biography Of Rashmika Mandana रश्मिका मंदाना का जीवन परिचय

कर्पूरी ठाकुर कौन थे।Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay।

एनिमल मूवी बनाने वाले संदीप रेड्डी वांगा कौन हैं? Sandip Reddy Wanga

FAQs

रश्मिका मंदाना का जन्म कब हुआ?

5 अप्रैल 1996।

रश्मिका मंदाना का जन्म कहां हुआ?

कर्नाटक के विराजपेट में।

रश्मिका मंदाना का निक नेम क्‍या है?

नेशनल क्रश, मोनिशा, मोनिका, और मोनी।

रश्मिका मंदाना के पिता का क्‍या नाम है?

मदन मंदाना।

रश्मिका मंदाना के माता का क्‍या नाम है?

सुमन मंदाना।

रश्मिका मंदाना ने अपने हाथ के टैैैटूू पर क्‍या लिखवाया है?

Irreplaceable

रश्मिका मंदाना ने किस फिल्म से डेब्यू किया?

कन्नड़ फिल्म ‘किरिक पार्टी।

साल 2012 में रश्मिका मंदाना ने कौन सा खिताब जीता है?

क्लीन एंड क्लियर फ्रेश फेस ऑफ़ इंडिया का खिताब।

साल 2015 में रश्मिका मंदाना ने कौन सा खिताब जीता है?

लैमोड बैंगलोर के प्रतिष्ठित मॉडल हंट में टीवीसी का खिताब।

साल 2015 में रश्मिका मंदाना ने कौन आवार्ड जीता है?

सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री के लिए SIIMA अवार्ड।

कर्पूरी ठाकुर कौन थे।Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay।

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: भारतीय राजनेताओं में आपने कई महान राजनेताओं के बारे में सुना पढ़ा या देखा होगा। जिन्‍होने अपने जीवन में कई महान काम किये उन्‍ही में एक कर्पूरी ठाकुर बिहार के समाजवादी नेता भारत के स्‍वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, तथा बिहार राज्‍य के दूसरे उपमुख्‍यमंत्री तथा दो बार मुखमंत्री थे। वे एक बहुत ही सरल स्‍वाभाव एवं ईमानदार व्‍यक्तित्‍व के थे। उनके जैसे नेता आज के समय में मिल पाना मुश्किल ही नहीं अपितु नामुमकिन है। उनकी लोकप्रियता के कारण उन्‍हे जननायक कहा जाता है। आगे उनके जीवन के बारे में जानेगें।

कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म एवं  शिक्षा

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म 24 जनवरी सन् 1924 को बिहार में समस्‍तीपुर जिले के पितौंझिया नामक गाँव में हुआ था। जिसे अब ‘कर्पूरीग्राम’ कहा जाता है। वे नाई जाति परिवार के अतंर्गत आते थे। उनके पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। कार्पूरी ठाकुर के पिता गांव के एक सीमान्त किसान थे और अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम किया करते थे। उन्‍होने अपनी मैट्रिक की परीक्षा सन् 1940 में पटना विश्‍वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में पास की।

भारत के स्‍वतंत्रता आंदोलन में योगदान

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: भारत के स्‍वतंत्रता आंदोलन में कई क्रांतिकारी नेताओं का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है, उन्‍ही क्रांतिकारी स्‍वतंत्रता सेनानियों में कर्पूरी ठाकुर का भी अहम योगदान है, उन्‍होने सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। और इस आंदोलन में शामिल होने के परिणामस्‍वरूप उन्‍हे जेल भी जाना पड़ा। उन्‍हे बिहार के भागलपुर कैंप जेल में डाल दिया गया जहां पर 2 साल 2 महीने यानि कुल (26 महीने) तक जेल में रहना पड़ा। जेल की सजा काटने के पश्‍चात् वे सन् 1945 में रिहा हुए।

कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक जीवन

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक जीवन की बात करें तो इनके राजनैतिक गुरू जय प्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया थे। सन् 1948 में आर्चाय नरेन्‍द्रदेव एवं जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल में कर्पूरी ठाकुर प्रादेशिक मंत्री बने। और देश की आजादी के बाद सन् 1952 में पहला चुनाव आयोजित होता है। जिसमें कर्पूरी ठाकुरी विधायक के तौर पर चुने जाते है।

उसके बाद सन् 1967 के आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्‍व में संयुक्‍त समाजवादी दल (संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी) (संसोपा) एक बड़ी ताकतवर पार्टी के रूप में उभरकर सामने आता है। बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 5 मार्च 1967 से 28 जनवरी 1968 तक रहा। और सन् 1970 में वे बिहार के मुख्‍यमंत्री के रूप में चुने जाते है। पहले मुख्‍यमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल दिसंबर 1970 से जून 1971 तक 6 से 7 माह का था।

सन् 1977 में समस्‍तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से वे सांसद बने। सन् 1977 में दोबारा मुख्‍यमंत्री चुने जाते है। और इस समय इनका कार्यकाल दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक  लगभग 2 साल का था। आपको बता दें कि कर्पूरी ठाकुर अपने मुख्‍यमंत्री का कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये थे। सन् 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता बने। और सन् 1988 में अपनी मृत्‍यु तक विधायक बने रहे।

बिहार की जनता के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये।

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: कर्पूरी ठाकुर अपने कार्यकाल में बिहार की जनता के लिए अनेक महत्‍वपूर्ण कार्य किये सन् 1967 में जब वे बिहार राज्‍य के उपमुख्‍यमंत्री बने तब उन्‍होने बिहार में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के लिए अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। क्‍योंकि उस समय अंग्रेजी के कारण अधिकांश लड़कियां मैट्रिक पास नहीं कर पाती थीं। जिससे लड़कियों के विवाह में मैट्रिक की परीक्षा पास करना बड़ी मुसीबत बन गया था।

कर्पूरी ठाकुर ने इसका आकलन-अध्ययन कराया तो पता चला कि अधिकतर छात्र अंग्रेजी में ही अनुतीर्ण होते हैं। उस समय कक्षा छटवी यां आठवी से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू होती थी। जिससे की अंग्रेजी का ज्ञान देर से शुरू होता था और मैट्रिक की परिणाम खराब होने का यह प्रमुख कारण था। इसी उद्देश्य से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी विषय में पास करने की अनिवार्यता को खत्म कर दी थी।

इस प्रकार से उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुँचाया। और मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था। और बिहार में शराबंदी के लिए उन्‍होने कड़े कदम उठाये थे। और शराब को बिहार राज्‍य में बंद करवाया था।

कर्पूरी ठाकुर को जननायक क्‍यों कहा जाता है?

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्‍नशील करते हुए संघर्ष करते रहे। वह सदा गरीबों के अधिकार और कल्‍याण के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया सन् 1978 में बिहार सरकार की ओर से मुंगेरी लाल आयोग को लागू कर दिया जाता है। जिसके अंतर्गत बिहार में आरक्षण के नये सिस्‍टम देखने को मिलते है।

जिसके तहत् कुल आरक्षण 26% के आसपास था। जिसमें 12% आरक्षण ओबीसी को दिया गया था। 08% आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग के लिए था। और महिलाओं के लिए 03% आरक्षण की बात कही गई थी। और सामान्‍य वर्ग के गरीबों के लिए भी 03% आरक्षण दिया गया था। उनका जीवन लोगों के लिये किसी आदर्श से कम नहीं था। उनके अभूतपूर्ण योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।

कर्पूरी ठाकुर दूरदर्शी होने के साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थे। उनका सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्‍ट विचार और अदम्य इच्छाशक्ति बरबस ही लोगों को प्रभावित कर लेती थी और लोग उनके विराट व्यक्तित्‍व के प्रति आकर्षित हो जाते थे। वह देशवासियों को सदैव अपने अधिकारों को जानने के लिए प्रेरित करते रहे, उनकी इस सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता है।

कर्पूरी ठाकुर एक ईमानदार नेता के रूप में दुनिया के सामने मिशाल हैं।

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: आज के समय में कर्पूरी ठाकुर जैसे उच्‍च विचार एवं एक ईमानदार नेता कोई हो ही नहीं सकता। कर्पूरी ठाकुर अपने राजनीतिक जीवन में बिहार के एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे।

आज के समय में जब करोड़ो रुपयों के घोटाले और भ्रष्‍टचार में आए दिन नेताओं के नाम सामने आते है, तब कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, किसी को विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में सुनने को मिलते हैं। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब उनका निधन हुआ तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम पर नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन भी जोड़ न पाए। ऐसे महान नेता थे। कर्पूरी ठाकुर।

कर्पूरी ठाकुर का निधन

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: कर्पूरी ठाकुर अपने राजनीतिक जीवन में कई ऐसे कार्य किये जिसके लिए उन्‍हे सदैव याद किया जायेगा।  कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्‍न से सम्‍मानित किया जायेगा

Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay: (24 जनवरी सन् 1924  से 17 फरवरी सन् 1988) के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्‍य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री थे। उनकी कार्यशैली एवं कुशल राजनीति के दक्ष थे उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें ‘जननायक’ कहा जाता है। 23 जनवरी 2024 को भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्‍न से सम्मानित करने की घोषणा की है।

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कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म कब हुआ था?

24 जनवरी 1924 को।

कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म कहां हुआ था?

बिहार राज्‍य के समस्‍तीपुर जिले में।

कर्पूरी ठाकुर कौन सी जाति के थे?

नाई जाति के।

कर्पूरी ठाकुर के पिता का क्‍या नाम था?

श्री गोकुल ठाकुर।

कर्पूरी ठाकुर के माता का क्‍या था?

श्रीमति रामदुलारी देवी।

कर्पूरी ठाकुर के राजनैतिक गुरू कौन थे?

जयप्रकाश नारायण

कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा कहां तक हुई थी?

मैट्रिक

कर्पूरी ठाकुर बिहार के कितनी बार मुख्‍यमंत्री बने?

दो बार। 1970 एवं 1977 में

कर्पूरी ठाकुर कितनी बार उपमुख्‍यमंत्री बने?

1967 में एक बार

भारत सरकार ने उन्‍हे भारतरत्‍न देने की घोषणा कब की ?

23 जनवरी 2024 को।

कर्पूरी ठाकुर के समय कौन सी आयोग का गठन किया गया था?

मुंगेरी लाल आयोग।

कर्पूरी ठाकुर के जन्‍म स्‍थान को अब किस नाम जाना जाता है?

कर्पूरीग्राम।

कर्पूरी ठाकुर कितनी बार जेल गये?

आजादी के पहले 2 बार एवं आजादी के बाद 18 बार।

कर्पूरी ठाकुर का निधन कब हुआ?

17 फरवरी सन् 1988 में

कर्पूरी ठाकुर का निधन समय आयु क्‍या थी?

64 साल

कर्पूरी ठाकुर का निधन कैसे हुआ?

दिल का दौरा पड़ने से।

Mohammed shami biography in hindi: मोहम्‍मद शमी का जीवन परिचय

Mohammed shami biography

मोहम्‍मद शमी का जीवन परिचय Mohammed shami biography

Mohammed shami biography: मोहम्‍मद शमी एक भारतीय क्रिकेटर है, जो अपनी तेज गेंदबाजी के लिए मशहूर है। शमी दांये हाथ से गेंदबाजी करते है। मोहम्‍मद शमी ने अपनी क्रिकेट कैरियर की शुरूआत पंश्चिम बंगाल की रणजी ट्राफी टीम के साथ की, और उन्‍होने अपना पहला अंतरराष्‍ट्रीय मैच भारत की ओर से 2013 में खेलते हुए भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाई और टी-20, वनडे, और टेस्‍ट क्रिकेट में अपनी प्रतिभा के दम पर दमदार प्रदर्शन प्रदर्शन कर रहे है। आज के इस पोस्‍ट Mohammed shami biography के माध्‍यम उनके जीवन के बारे में आपको जानकारी देगें।  

नाममोहम्‍मद शमी
पूरा नाममोहम्‍मद शमी अहमद
उपनामलालाजी
जन्‍म तिथि03 सितबंर 1990
जन्‍म स्‍थानअमरोह उत्‍तरप्रेदेश
पिता का नामतौसिफ अली अहमद
माता का नामअंजुम आरा
पत्नि का नामहसीन जहां
पुत्री का नामआयरा शमी
नागरिकताभारतीय
धर्मइस्‍लाम
वर्तमान पतादिल्‍ली, भारत
कैरियरभारतीय क्रिकेटर
विवाह की तिथि06 जून 2014
सम्‍मानअर्जुन पुरस्‍कार 2023
Mohammed shami biography

मोहम्‍मद शमी का जन्‍म और जन्‍म स्‍थान (Mohammed shami biography)

Mohammed shami biography: भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्‍मद शमी का जन्‍म 03 सितंबर सन् 1990 को उत्‍तरप्रदेश राज्‍य के अमरोह के सहसपुर नामक गांव में एक किसान परिवार में हुआ। शमी का पूरा नाम मोहम्‍मद शमी अहमद है। उनके पिता का नाम तौसिफ अली अहमद है। एवं उनकी मां का नाम अंजुम आरा है।

मोहम्‍मद शमी के पिता भी तेज गेंदबाजी किया करते थे। लेकिन गांव में सुविधा नहीं होने कारण क्रिकेट में अपना कैरियर नहीं बना पाये। मोहम्‍मद शमी के क्रिकेटर बनने में उनके पिता का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। शमी के पिता ने मुरादाबाद के क्रिकेट कोच बदरूद्धीन सिद्धीकी के पास ले गये जहां उन्‍होने क्रिकेट की कोंचिग ली और अपने पिता का सपना पूरा कर पाये।

मोहम्‍मद शमी की शिक्षा

Mohammed shami biography: मोहम्‍मद शमी ने प्राथमिक स्‍तर की प्रारंभिक शिक्षा अपने जन्‍म स्‍थान ग्राम अमरोह से की है। वे एक किसान परिवार से सबंध रखते है। उनका अधिकांश समय क्रिकेट में ही बीता है। वे अपना पूरा ध्‍यान क्रिकेट पर ही देते थे जिसके चलते ज्‍यादा पढ़ाई नहीं कर पाये और उन्‍होने सिर्फ 10 कक्षा तक ही पढ़ाई की है।  

मोहम्‍मद शमी का क्रिकेट कैरियर की शुरूआत

Mohammed shami biography: मोहम्‍मद शमी ने क्रिकेट खेलने साथ ही अपनी व्‍यक्तिगत जीवन में भी कई कठिनाईयों का सामना किया है। फिर भी उन्‍होने क्रिकेट कैरियर के प्रदर्शन में अपनी योग्‍यता बनाये रखा। मोहम्‍मद शमी की खेलने की शैली उनकी तेज गेंदबाजी और स्विंग है। मोहम्‍मद शमी ने अपने क्रिकेट कैरियर में कई अच्‍छे प्रदर्शन कियें है, और वह भारतीय टीम के एक महत्‍वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में अपनी जगह बनाये हुए है। आगे उनके क्रिकेट कैरियर की सभी फारमेट के बारे में जानेगें।

  • मोहम्‍मद शमी का घरेलू क्रिकेट में कैरियर:- मोहम्‍मद शमी ने अपने घरेलू क्रिकेट कैरियर की शुरूआत 2010 में पश्चिम बंगाल रणजी ट्रॉफी के साथ की अपने डेब्‍यू मैच में उन्‍होने असम के खिलाफ 3 विकेट लिए।
  • मोहम्‍मद शमी का वनडे क्रिकेट में कैरियर:-मोहम्‍मद शमी ने वनडे क्रिकेट में 6 जनवरी 2013 को पाकिस्‍तान के खिलाफ डेब्‍यू किया था और कापी अच्‍छी गेंदबाजी करते हुए 9 ओवर में 23 रन देकर 1 विकट लिये थे। और अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में भारतीय टीम में अपनी ज‍गह बनाई।
  • मोहम्‍मद शमी का टेस्‍ट क्रिकेट में कैरियर:- मोहम्‍मद शमी ने अपनी टेस्‍ट क्रिकेट कैरियर की शुरूआत 6 नवंबर 2013 को वेस्‍टइंडीज के खिलाफ किया था। जिसमें उन्‍होने अपने पहले ही मैच में उन्‍होने 9 विकेट लिये। जो अपने आप में एक रिकार्ड है।
  • मोहम्‍मद शमी का टी-20 क्रिकेट में कैरियर:- मोहम्‍मद शमी ने टी-20 क्रिकेट कैरियर की शुरूआत 30 मार्च 2014 को टी-20 विश्‍वकप में पाकिस्‍तान के खिलाफ डेब्‍यू किया और अपनी डेब्‍यू मैच में उन्‍होने 4 ओवर में 31 रन देकर 2 विकेट चटकाए थे।
  • मोहम्‍मद शमी का आईपीएल क्रिकेट में कैरियर:- मोहम्‍मद शमी नें 2013 मे कोलकाता नाइट राईडर्स के आईपीएल में डेब्‍यू किया था।

मोहम्‍मद शमी का वैवाहिक जीवन

Mohammed shami biography: मोहम्‍मद शमी की शादी 06 जून सन् 2014 को एक मॉडल और आईपीएल में चियर लीडर हसीन जहां से हुई थी। 2015 में शादी के एक साल बाद उनकी एक बेटी का जन्‍म हुआ जिसका नाम आयरा शमी है। और शादी के कुछ साल बाद ही सन् 2018 में हसीन जहां ने मोहम्‍मद शमी पर घरेलू हिंसा और देहेज का आरोप लगाया और वे दोनो अलग हो गये। उन दोनो की पहली मुलाकात 2012 में हुई थी। उस समय हसीन जहां कोलकाता नाइट राईडर्स की चियर लीडर थी। शमी को हसीन जहां से पहली नजर में की प्‍यार हो गया था।

मोहम्‍मद शमी को अर्जुन पुरस्‍कार 2023 से सम्‍मानित किया गया है

भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्‍मद शमी को हाल ही में अर्जुन पुरस्‍कार 2023 से सम्‍मानित किया गया है। मोहम्‍मद शमी ने वनडे विश्‍वकप 2023 में अपनी गेंदबाजी में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 7 मैचों में 24 विकेट लेते हुए सबसे ज्‍यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। क्रिकेट में उनकी इस उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शन को देखते हुए भारत के राष्‍ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने प्रतिष्ठित् अर्जुन पुरस्‍कार 2023 से उन्‍हे सम्‍मानित किया है।

अर्जुन पुरस्‍कार 2023

Mohammed shami biography निष्‍कर्ष:-

Mohammed shami biography: मोहम्मद शमी, भारतीय क्रिकेट टीम के एक उम्‍दा तेज गेंदबाज हैं, वे 145 किमी प्रति घण्‍टे की स्‍पीड से  गेंदबाजी करते है,और अपने नाम को चर्चा में रखते हैं। शमी ने अपने करियर की शुरुआत से ही उच्च गति और उच्च स्तरीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई है। अपनी बेहतरीन प्रदर्शन के बदौलत आज भारतीय क्रिकेट टीम के नियमित सदस्‍य बन गये है।

मोहम्मद शमी ने अपने खेल के अलावा अपने व्यक्तिगत जीवन में भी कई संघर्षों का सामना किया है। उन्होंने संघर्षशीलता और सहयोग की भावना के साथ अपने लिए और टीम के लिए महत्वपूर्ण रूप से योगदान दिया है।

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा का जीवन परिचय

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FAQs:-

मोहम्‍मद शमी का जन्‍म कब हुआ था?

03 सितबंर 1990 को

मोहम्‍मद शमी का जन्‍म कहां हुआ था?

अमरोह उत्‍तरप्रदेश में

मोहम्‍मद शमी के पिता का क्‍या नाम था?

तौसिफ अली अहमद

मोहम्‍मद शमी का पूरा नाम क्‍या है?

मोहम्‍मद शमी अहमद

मोहम्‍मद शमी की मां का नाम क्‍या है?

अंजुम आरा

मोहम्‍मद शमी की पत्नि का नाम क्‍या है?

हसीन जहां

मोहम्‍मद शमी की बेटी नाम क्‍या है?

आयरा शमी

मोहम्‍मद शमी को कौन से पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है?

अर्जुन पुरस्‍कार 2023

मोहम्‍मद शमी का उपनाम क्‍या है?

लालाजी

मोहम्‍मद शमी कितनी स्‍पीड से गेंदबाजी करते हैं?

145 किमी प्रति घण्‍टे की स्‍पीड से

मोहम्‍मद शमी ने वनडे विश्‍वकप 2023 में कितने विकेट लिये हैं?

7 मैचों में 24 विकेट

मोहम्‍मद शमी की शादी कब हुई थी?

06 जून 2014 को

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा का जीवन परिचय

Jaipal Singh Munda Biography

जयपाल सिंह मुंडा का जीवन परिचय (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: हॉकी से लेकर राजनीति में जयपाल सिंह मुंडा की अहम भूमिका थी अविभाजित बिहार राज्‍य की उपमुख्‍यमंत्री बनाये गये थे प्रदेश के खिलाड़ियों के आदर्श और झारखण्‍ड आंदोलन के अगुहा थे। आज आदिवासी उन्‍हे मरांग गोमके के नाम से जानते है। जयपाल सिंह मुंडा एक अंतराष्‍ट्रीय हॉकी खिलाड़ी, क्रांतिकांरी, संविधान सभा के सदस्‍य और भारतीय राजनेता के रूप में विख्‍यात थे उनके द्वारा कई उत्‍कृष्‍ट कार्य किये गये।

जयपाल सिंह मुंडा अपने योगदान और साहसिक कार्य, सेवाएं के लिए प्रसिद्ध है। वे अपने देश समाज के लिए लोकप्रिय व्‍यक्ति होने के साथ साथ आदिवासियों के मसीहा के रूप में भी जाने जाते है, आदिवासी वर्ग समुदाय के लिए उन्‍होने बढ़चढ़ कर हिस्‍सा लिया उनके द्वारा किये गये महान कार्य के लिए देश दुनिया में आज भी याद किये जाते है। आज के इस पोस्‍ट Jaipal Singh Munda Biography के माध्‍यम से उनके जीवन से जुड़ी विभिन्‍न पहलुओं के बारे में जानेगें।

जयपाल सिंह मुंडा का आंरभिक जीवन (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा का जन्‍म झारखंड राज्‍य की राजधानी रांची से 30 किमी दूर खूंटी जिले में स्थित टकरा नामक छोटे से गांव में 3 जनवरी 1903 को एक मुंडा जनजाति के आदिवासी परिवार में हुआ था। बचपन के दिनो में उन्‍हे प्रमोद पहान के नाम से पुकारा जाता था। जयपाल सिंह मुंडा का वास्‍तविक नाम ईश्‍वर जयपाल सिंह था लेकिन उन्‍हे झारखंड के आदिवासी मरड़ गोमके कहते थे। इनके पिता का नाम अमरू पहान था।

जयपाल सिंह मुंडा की शिक्षा (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह ग्राम टकरा में ही हुई उसके बाद 03 जनवरी 1911 को वे रांची के सेंट पॉल स्‍कूल में आ गये इस स्‍कूल के प्रिंसीपल कासग्रेव थे। जयपाल सिंह मुंडा बचपन से ही पढ़ाई में बहुत ही प्रतिभाशाली छात्र थे। पढ़ाई के साथ साथ खेल में भी उनकी गहरी रूची थी। उनके पढ़ाई और खेल के प्रति लगन को देखकर प्रिंसीपल कासग्रेव ने जयपाल सिंह मुंडा के प्रतिभा को पहचाना और काफी प्रभावित हुए। प्रिंसीपल कासग्रेव जयपाल सिंह मुंडा के प्रारम्भिक गुरू भी थे।

जब कासग्रेव प्रिंसीपल के पद से सेवानिवृत हुए उसके बाद उन्‍होने जयपाल सिंह मुंडा को इंग्‍लैण्‍ड लेकर चले गये। और इंग्‍लैण्‍ड में ही जयपाल सिंह मुंडा ने अपना ग्रेजुएशन राजनीति, अर्थशास्‍त्र, और फिलासॉफी में पूरा किया। उसके बाद मास्‍टर डिग्री के लिए ऑक्‍सफोर्ड के सेंट जॉन्‍स कॉलेज में एडमिशन लिया और अर्थशास्‍त्र में उन्‍होनें मास्‍टर डिग्री पूरी की। पढ़ाई के अलावा उन्‍हे हॉकी खेलने का शौक था। और वाद‍ विवाद में भी उन्‍होने खूब नाम कमाया।

जयपाल सिंह मुंडा ने हॉकी में भारत को पहला गोल्‍ड मेडल दिलाया

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा अपनी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध थे। वे हॉकी के एक कमाल के खिलाड़ी थे। सन् 1925 में हाॅॅॅकी में ऑक्‍सफोर्ड ब्‍लू का खिताब जीतने वाले पहले भारतीय छात्र बने। जयपाल सिंह मुंडा जब सन् 1928 में इंग्‍लैण्‍ड में थे। और उन्‍हे उस समय 1928 के ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम की कप्‍तानी करने के लिए कहा गया, उन्‍होने भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्‍व किया था। भारतीय टीम ने उनकी कप्‍तानी में 17 मैचों में से 16 मैच जीते और एक ड्रा रहा और इस तरह से जयपाल सिंह मुंडा ने अपनी कप्‍तानी में भारत को हॉकी में पहला स्‍वर्ण पदक दिलाया था।

जयपाल सिंह मुंडा ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की थी

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा ने पढ़ाई में भी अपनी प्रतिभा दिखाई थी, उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आई सी एस) में हुआ था और उन्‍हे भारतीय सिविल सेवा में काम करने के लिए चुना गया था। सन् 1928 में ओलंपिक हॉकी में भारत को पहला स्‍वर्ण पदक जिताने वाले भारतीय टीम के कप्‍तान के रूप में नीदरलैंड चले गये। जिसके कारण से उनका सिविल सर्विसेज का प्रशिक्षण प्रभावित हुआ। वापस आने के बाद उन्‍हे दोबारा प्रशिक्षण पूरा करने के  लिए कहा गया लेकिन उन्‍होने मना कर दिया और बाद में इस्‍तीफा दे दिया। और देश के लिए आईएएस की नौकरी त्‍याग दी।

जयपाल सिंह मुंडा का योगदान (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: भारत देश को अंग्रेजों के चुंगल से छुड़ाने मे कई वीर सपूतों का योगदान था उन्‍ही में एक झारखंड के जयपाल सिंह मुंडा भी थे जयपाल सिंह मुंडा एक आंदोलनकारी नेता के रूप में भी जाने जाते है। देश को आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका थी। जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के मसीहा थे।

जयपाल सिंह मुंडा के प्रयासों से ही 400 आदिवासी समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला। सन् 1938 में उन्‍होने आदिवासी महासभा की अध्‍यक्षता ग्रहण की थी आदिवासियों के हक और अधिकार के लिए सन् 1950 में राज‍नीतिक दल झारखण्‍ड पार्टी बनाई। जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के अधिकार की आवाज बन गये ।

संविधान सभा के सदस्‍य के रूप में उनका भाषण (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: भारत देश जब आजाद हुआ और भारत का संविधान डॉ. भीमराव अम्‍बेडकर की अध्‍यक्षता में लागू हुआ उस संविधान सभा में कई सदस्‍य थें उन्‍ही में एक जयपाल सिंह मुंडा भी थे। जब भारत का संविधान तैयार किया जा रहा था। तब जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान सभा में अपनी भाषण में कहा था।

मैं सभी से कहना चाहूंगा की अगर कोई देश में सबसे अधिक जुल्‍म का शिकार हुआ है, तो वह हमारे लोग है, पिछले 6000 सालों से उनकी उपेक्षा हुई है, और उनके साथ अपमानजनक व्‍यवहार किया गया है। मैं जिस सिंधु घाटी सभ्‍यता का वंशज हूं। जो उसका इतिहास बताता है, कि आप में से अधिकांश लोग जो यहां बैठे हैं, बाहरी है, घुसपैठिए है, जिनके कारण हमारे लोगों को अपनी धरती छोड़कर जंगल में जाना पड़ा। इसलिए जो यहां संकल्‍प पेश किया जा रहा है।

वह आदिवासियों को लोकतंत्र नहीं सिखाने जा रहा है। आप सब आदिवासियों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते बल्कि उनसे लोकतंत्र सीखना है, आदिवासी पृथ्‍वी पर सबसे अधिक लोकतांत्रिक लोग हैं, मैं कहूंगा क‍ि हमारे लोगों का पूरा इतिहास गैर आदिवासियों के अंतहीन उत्‍पीड़न और बेदखली को रोकने का इतिहास है।

मैं आप सब के कहे हुए पर भी विश्‍वास कर रहा हूं कि हम लोग एक नये अध्‍याय की शुरूआत करने जा रहे है, स्‍वतंत्र भारत में एक नये अध्‍याय की जहां सभी समान होंगें जहां सबको बराबर का अवसर मिलेगा और एक भी नागरिक उपेक्षित नहीं होगा हमारे समाज में जाति के लिए कोई जगह नहीं होगी। हम सभी बराबर होगें।

जयपाल सिंह मुंडा की मृत्‍यु (Jaipal Singh Munda Biography)

Jaipal Singh Munda Biography: जयपाल सिंह मुंडा का निधन 20 मार्च 1970 को मतिष्‍क रक्‍तस्‍त्राव होने के कारण उनके निवास दिल्‍ली में हुई। निधन के समय उनकी आयु 67 वर्ष की थी।

इनके बारे में भी जानें:-

जयपाल‍ सिंह मुंडा हॉकी स्‍टेडियम

जयपाल सिंह मुंडा के सम्‍मान में झारखण्‍ड सरकार द्वारा सन् 2013 में रांची में एक हॉकी स्‍टेडियम खोला गया है। आज के युवा खिलाड़ियो के लिए जयपाल सिंह मुंडा प्रेरणा स्‍त्रोत है। युवा खिलाड़ी उन्‍हे अपना आदर्श मानते है और आज भी खूंटी से सबसे ज्‍यादा हॉकी खिलाड़ी निकलते है।

जयपाल‍ सिंह मुंडा खेल रत्‍न पुरस्‍कार

झारखण्‍ड सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शन करने वाल खिलाड़ी को जयपाल सिंह मुंडा खेल रत्‍न पुरस्‍कार प्रदान किया जाता है।

जयपाल‍ सिंह मुंडा छात्रवृत्ति योजना

जयपाल सिंह मुंडा छात्रवृत्ति योजना झारखण्‍ड सरकार की कल्‍याणकारी योजना है, जिसके तहत् झारखण्‍ड सरकार द्वारा आदिवासी विद्यार्थियों के लिए ऑक्‍सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे प्रतिष्‍ठत यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दिया जाता है।

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Faqs

जयपाल सिंह मुंडा कौन से जनजाति के थे?

मुंडा जनजाति

जयपाल सिंह मुंडा के प्रारम्भिक गुरू कौन थे?

कासग्रेव

जयपाल सिंह मुंडा के बचपन का नाम क्‍या था?

प्रमोद पहान

जयपाल सिंह मुंडा के पिता का क्‍या नाम था?

अमरू पहान

हॉकी में भारत को पहला गोल्‍ड मेडल किसने दिलाया था?

जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा को आदिवासी किस नाम से पुकारते है?

मरांग गोमके

मरांग गोमके का क्‍या मतलब होता है?

महान नेता

हॉकी में आक्‍सफोर्ड ब्‍लू पुरस्‍कार पाने वाले पहले भारतीय छात्र कौन थे?

जयपाल सिंह मुंडा

मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति योजना किसके नाम पर दिया जाता है?

जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा की मृत्‍यु कैसे हुई?

मतिष्‍क रक्‍तस्‍त्राव के कारण

जयपाल सिंह मुंडा ने कौन से पार्टी का गठन किया था?

झारखण्‍ड पार्टी

जयपाल सिंह मुंडा का मूल स्‍थान क्‍या था?

दक्षिणी छोटा नागपुर

सर्वप्रथम बिहार राज्‍य से अलग झारखण्‍ड राज्‍य की मांग किसने की?

जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा हॉकी स्‍टेडियम कहां स्थित है?

रांची में

जयपाल सिंह मुंडा किस खेल के खिलाड़ी थे?

हॉकी

जयपाल सिंह मुंडा को किस राज्‍य का उपमुख्‍यमंत्री बनाया गया था?

बिहार

जयपाल सिंह मुंडा वास्‍‍तविक नाम क्‍या था?

ईश्‍वरदास जयपाल सिंह

Chendru Mandavi: Tiger Boy चेंदरू मंडावी का जीवन परिचय

Chendru Mandavi: Tiger Boy

Chendru Mandavi The Tiger Boy

Chendru Mandavi: बस्‍तर में रहने वाले आदिवासी ट्राईबल का प्रकृति और जंगलों से गहरा लगाव होता है, वे इन जंगलो और जंगली जानवरों की तन मन से रक्षा करते है, इसलिए जंगली जनवरों और आदि‍वासियों के बीच दोस्‍ताना रिशता होता है। और इन जंगलो से ट्राईब्‍स का जीवन यापन होता है। आज हम इसी बस्‍तर के एक ऐसी आदिवासी शख्‍स के बारे में बताने जा रहे है, जिसका नाम था चेंदरू, और उनकी दोस्‍ती एक बाघ Tiger से थी जिसका नाम टेम्‍बू था।

आगे हम जानेगें कि कैसे एक आदिवासी बालक चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) और बाघ टेम्‍बू की दोस्‍ती परवान चढ़ी और आगे चलकर दूर दूर तक देश दुनिया में उनकी दोस्‍ती की धूम लोगों तक पहुंची जिससे चेंदरू को Tiger Boy के नाम से पुकारा जाने लगा, देश‍ विदेश से लोग उनसे मिलना चाहते थे। तो आईये जानते है, Tiger Boy चेंदरू और टेम्‍बू की कहानी विस्‍तार से……।

चेंदरू मंडावी का जन्‍म और जन्‍म स्‍थान

Tiger Boy के नाम से मशहूर चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) का जन्‍म छत्‍तीसगढ़ में नारायणपुर जिले के अंतर्गत अबूझमाड़ क्षेत्र के घने जंगलों में बसा एक ग्राम गढ़बेंगाल (गढ़बंगाल) में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) मुरिया जनजाति के थे, चेंदरू का बचपन इन घने जंगलों और जंगली जानवरों के बीच में गुजरा था।उनके दादाजी और पिताजी अच्‍छे शिकारी थे। वे जंगलों में शिकार करके एवं खेती करके अपना जीवन यापन करते थे। चेंदरू आगे चलकर Tiger Boy के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुए।

चेंदरू मंडावी का संक्षिप्‍त विवरण

नामचेंदरू मंडावी
उपनामटाइगर बाय Tiger boy
जातिमुरिया जनजाति
जन्‍म स्‍थानगढ़बेंगाल (गढ़बंगाल)
जिला नारायणपुर
राज्‍य छत्‍तीसगढ़
देशभारत
पिता का नाम
माता का नाम
जीवन साथी का नामरैनी मंडावी
भाई का नामश्रीना‍थ सिंह मंडावी
पुत्र का नाम शंकर मंडावी बड़ा पुत्र एवं जैराम मंंडावी छोटा पुत्र
उसके दोस्‍त टाइगर का नाम टेम्‍बू
उनके फिल्‍म का नाम एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga)
मृत्‍यु/आयु18 सितबंर 2013 उम्र 78 साल
प्रसिद्धि बाघा टेम्‍बू Tiger से दोस्‍ती/ एवं उन पर बनी फिल्‍म जंगल सागा

चेंदरू मंडावी और बाघ (टेम्‍बू) Tiger की दोस्‍ती

चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) और बाघ (टेम्‍बू) की दोस्‍ती पूरी दुनिया में किसी अजूबे से कम नही था। चेंदरू बचपन से ही बहुत बहादूर था। उनके दादा और पिताजी कुशल शिकारी थे एक दिन जब वे जंगल से शिकार करके वापस लौटे तो एक बांस के टोकरी में शेर के बच्‍चे को भरकर चेंदरू के लिए उपहार लाये थे। जब उन्‍होने टोकरी खोली तो बाघ के बच्‍चे को देखकर चेंदरू बहुत खुश हुए। और इस मुलाकात से चेंदरू और बाघ की दोस्‍ती की शुरूआत हुई उस बाघ Tiger का नाम चेंदरू ने टेम्‍बू रखा।

चेंदरू हमेशा टेम्‍बू के साथ ही गांव और जंगलों में घूमा करते थे कभी जंगलों में घूमते हुए तेंदुए मिल जाते तो वह भी उनके साथ खेलने लगते चेंदरू और टेम्‍बू साथ साथ नदियों से मछली पकड़ते जब चेंदरू और टेम्‍बू रात को घर वापस आते तो चेंदरू की मां उनके लिए खाना बनाती। चेंदरू और टेम्‍बू साथ में ही खाते घूमते और खेलते थे। इन दोनो की पक्‍की दोस्‍ती थी। धीरे धीरे चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती की दास्‍तान पूरी दुनिया में फैल गई।

चेंदरू और बाघ टेम्‍बू की दोस्‍ती

चेंदरू मंडावी और टेम्‍बू Tiger पर बनी फिल्‍म

बस्‍तर के घनघोर जंगलों से घिरा छोटे से गांव का लड़का चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) ओर टेम्‍बू की दोस्‍ती की कहानी जैसे-जैसे इस दुनिया के सामने आई देश विदेश से लोगों में चेंदरू से मिलने की उत्‍सुकता बढ़ी चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती के किस्‍से जब स्‍वीडन के प्रसिद्ध फिल्‍म डायरेक्‍टर अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) को पता चली तो उन्‍होने बस्‍तर आकर एक ऐसा दृश्य देखा जिसमे एक इंसान और टाइगर एक दूसरे के दोस्‍त है। अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती से प्रभावित होकर पूरी दुनिया को दिखाने का फैसला किया।

इस तरह से सन् 1957 में उन्‍होने चेंदरू और टाइगर टेम्‍बू को लेकर एक फिल्‍म बनाई जिसका नाम द फ्लूट एंड द एरो (The flute and the arrow) था जिसे भारत मे एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga) नाम दिया इस फिल्‍म का मुख्‍य किरदार फिल्‍म के हीरो का रोल चेंदरू ने किया है। यह  फिल्‍म चेंदरू और टेम्‍बू टाइगर के दोस्‍ती पर फिल्‍माया गया है। फिल्‍म का संगीत पंडित रविशंकर ने तैयार किया था 75 मिनट की यह फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब सफल रही, इसकी सफलता को देखते हुए एन द जंगल सागा फिल्‍म को ऑस्‍कर पुरस्‍कार भी मिला।

बस्‍तर का पहला भारतीय हालीवुड हीरो चेंदरू मंडावी

सन् 1957 में जब चेंदरू और टेम्‍बू टाइगर को लेकर फिल्‍म बनाई गई उस समय चेंदरू (Chendru Mandavi) की उम्र महज 10 साल की थी और चेंदरू को इस फिल्‍म के लिए प्रतिदिन 2 रूपये मिलते थे। एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga) फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर तो खूब सफल रही, साथ ही साथ यूरोपीय देशो में जब इस फिल्‍म को पर्दे पर दिखाया गया तो चेंदरू को खूब पंसद किया जाने लगा इस तरह से बस्‍तर का एक आदिवासी बालक भारत का पहला हालीवुड हीरो बन गया।

टाइगर बाय चेंदरू के नाम पर प्रकाशित किताब

अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) जब बस्‍तर फिल्‍म बनाने आये और द जंगल सागा फिल्‍म की सूटिंग की और इस फिल्‍म ने चेंदरू को दुनिया भर में मशहूर कर दिया। अरने सक्सडॉर्फ की पत्नि अस्त्रिड सक्‍सडॉर्फ एक अच्‍छे फोटोग्राफर थी उन्‍होने इस फिल्‍म की सूटिंग के दौरान चेंदरू की कई तस्‍वीरें खीचीं थी उन्‍होने चेंदरू की उन दुर्लभ तस्‍वीरों को एक किताब में प्रकाशित किया और शानदार किताब लिखी उस किताब का नाम उन्‍होने ‘चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ रखा इस तरह चेंदरू मंडावी के नाम से एक किताब भी प्रकाशित हुई।

स्‍वीडन से लौटने के बाद तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से हुई मुलाकात

द जंगल सागा फिल्‍म की सूटिंग बस्‍तर में लगभग 1 साल तक हुई। स्‍वीडन में दर्शक इस असली हीरो को पास से देखना चाहते थे फिल्‍म के निर्देशक अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) सूटिंग के कुछ समय बाद चेंदरू मंडावी को स्‍वीडन ले गये चेंदरू को वहां काला हीरो कहा गया गया अरने सक्सडॉर्फ ने चेंदरू को अपने घर में रखा था। करीब 1 साल तक चेंदरू स्‍वीडन में रहा और उस दौरान उन्‍होने स्‍वीडन देखा और स्‍वीडन के लोगों ने चेंदरू को।

स्‍वीडन में चेंदरू प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के माध्‍यम से अपने चाहने वाले लोगों से मुलाकात करते थे 1 साल बाद आखिरकार एक दिन चेंदरू अपने देश लौट आया लौटते हुए वे संमदर के रास्‍ते मुबंई पहुंचा। उन दिनों भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। नेहरू चेंदरू के लोकप्रियता के किस्‍से सुन चुके थे। उन्‍होने चेंदरू से मुलाकात की और पढ़ने के लिए कहा और नौकरी देने की बात भी कही लेकिन चेंदरू (Chendru Mandavi) के पिता ने मना कर दिया और वापस अपने गांव गढ़बंगाल बुला लिया।

चेंदरू मंडावी के दोस्‍त टेम्‍बू की मृत्‍यु

स्‍वीडन से चेंदरू (Chendru Mandavi) के लौटने के कुछ समय बाद उसके बचपन के दोस्‍त टेम्‍बू टाइगर की मृत्‍यु हो गई। टेम्‍बू के मृत्‍यु से चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) को गहरा अघात लगा। टेम्‍बू के बिना चेंदरू अपने आप को अकेला महसूस करते हुए उदास रहने लगे।

चेंदरू मंडावी की मृत्‍यु Death of Chendru Mandavi

अपने दोस्‍त टेम्‍बू की मृत्‍यु के बाद चेंदरू (Chendru Mandavi) अपने गांव गढ़बंगाल में धीरे धीरे अपनी पुरानी जिन्‍दगी में लौटा गुमनाम हो गया और गुमनामी की जिन्‍दगी जीते लंबी बिमारी से जूझते हुए चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) की 18 सितबंर 2013 को 78 वर्ष की आयु में मृत्‍यु हो गई।

जंगल सफारी नया रायपुर में चेंदरू का स्‍मारक

दुनिया भर में बाघों से दोस्‍ती का पैगाम देने वाले चेंदरू की मौत पर किसी ने उसे सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजली देने की जरूरत तक नहीं समझी। उसकी मृत्‍यु के पश्‍चात् बस्तर की इस प्रतिभाशाली गौरवगाथा की याद में छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर के जंगल सफारी में चेंदरू और उसके दोस्‍त टेम्‍बू का स्मारक बना कर सच्ची श्रद्धाजंली दी है।

चेंदरू पर्यावरण पार्क नारायणपुर

यह पर्यावरण पार्क नारायणपुर जिले का एक फेमस पार्क है, जिसे वनमंडल नारायणपुर के द्वारा विकसित किया गया है। इस पार्क में चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती की प्रतिमा लगाई है। इसी तरह चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) की प्रसिद्धि के कारण उनके सम्‍मान मे नारायणपुर के नया बस स्‍टैण्‍ड चौक एवं ग्राम पंचायत गढ़बेंगाल में भी चेंदरू की प्रतिमा का अनावरण किया गया है।

चेंदरू पार्क नारायणपुर Chendru Park Narayanpur

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प्रश्‍नोत्‍तरी

चेंदरू मंडावी का जन्‍म कहां हुआ था?

नारायणपुर अबूझमाड़ के गढ़बेंगाल में।

Tige Boy के नाम से किसे जाना जाता है?

चेंदरू मंडावी । Chendru Manadavi

चेंदरू मंडावी के फिल्‍म का क्‍या नाम था?

द जंगल सागा।

चेंदरू मंडावी के दोस्‍त बाघ Tiger का क्‍या नाम था?

टेम्‍बू।

चेंदरू मंडावी कौन से जाति के थे?

मुरिया जनजाति।

चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) के पत्नि का क्‍या नाम था?

रैनी मंडावी।

द जंगल सागा फिल्‍म के डायरेक्‍टर कौन थे?

अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff)

फिल्‍म के डायरेक्‍टर अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) कहां के रहने वाले थे?

स्‍वीडन। Sweden.

द जंगल सागा फिल्‍म कब रीलिज किया गया था?

सन् 1957 में।

इस फिल्‍म के लिए चेंदरू को कितने रूपये मिलते थे?

2 रूपये प्रतिदिन।

चेंदरू मंडावी के नाम से प्रकाशित किताब का क्‍या नाम है?

चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ ।

‘चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ किताब किसने लिखी है?

अस्त्रिड सक्‍सडॉर्फ। Astrid Suxdorf.

चेंदरू मंडावी की मुलाकात किस प्रधानमंत्री से हुई थी?

पंडित जवाहर लाल नेहरू।

चेंदरू का स्‍मारक कहां बनाया गया है?

नया रायपुर के जंगल सफारी में।

चेंदरू पार्क कहां स्थित है?

नारायणपुर।

चेंदरू की मृत्‍यु कब हुई?

18 सितबंर 2013