PANDIT RAVISHANKAR SHUKLA : पंंडित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

PANDIT RAVISHANKAR SHUKLA : पण्डित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

Pandit Ravishankar Shukla: पंंडित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) एक भारतीय राजनेता और भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के सदस्‍य थे। उन्‍होने अपने कैरियर के दौरान मध्‍य प्रदेश के विकास और जन कल्‍याण के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये एवं मध्‍यप्रदेश राज्‍य के प्रथम मुख्‍यमंत्री के रूप में कार्य किया उनकी प्रशा‍सनिक योग्‍यता के कारण उन्‍हें “पंडित” का उपनाम दिया गया उनके योगदान के लिए पंडित रविशंकर शुक्‍ल को सम्‍मानित किया गया है, एवं भारतीय राजनीति में एक महत्‍वपूर्ण नेता के रूप में याद किया जाता है।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन Birth and early life of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त सन् 1877 को मध्‍यप्रदेश के सागर नामक शहर में एक साधारण परिवार में हुआ था। (Pandit Ravishankar Shukla) के पिताजी का नाम जगन्‍नाथ प्रसाद तथा माताजी का नाम तुलसी देवी था उनकी प्रारंभिक शिक्षा सागर में ही हुई उसके बाद उनके पिताजी जगन्‍नाथ प्रसाद अपने कारोबार के सिलसिले से छत्‍तीसगढ़ के राजनांदगांव आ गये और कुछ समय बाद रायपुर में आकर बस गये।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की शिक्षा Education of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) की शिक्षा के बारे में बात करें तो उनकी प्राथमिक शिक्षा सागर स्थित “सुंन्‍दरलाल पाठशाला” में हुई उन्‍हे 4 साल के आयु में उन्‍हे दाखिला करवाया गया और उन्‍होने 8 वर्ष की आयु में प्राथमिक स्‍तर की शिक्षा पूरी की, उसके बाद माध्‍यमिक शिक्षा भी सागर से पूरी की एवं हाईस्‍कूल की परीक्षा उन्‍होने रायपुर से उर्त्‍तीण किया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने इंटर की परीक्षा जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज Robertson College से उर्त्‍तीण की इस समय उनकी आयु 17 वर्ष थी। सन् 1899 में नागपुर के “हिस्लाेप काॅलेज” से स्‍नातक की पढ़ाई पूरी की और नागपुर से ही उन्‍होने एल.एल.बी. की पढ़ाई भी पूरी की और रायपुर में वकालत शुरू की।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने राष्‍ट्रीय आंदोलन में भाग लिया

पंडित रविशंकर शुुुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) बहुत ही प्रसिद्ध नेेेता व स्‍वतंत्रता सेनानी थे, उन्‍हाेेेने भारत के आजादी के आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्‍सा लिया नागपुर में पढ़ाई के दौरान शुक्‍ल जी का राष्‍ट्रीय आंदोलन से लगाव हो गया। वह 1898 में आयोजित 13 वें कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए अपने शिक्षक के साथ अमरावती गये। उन्‍होने प्रयाग कांग्रेस अधिवेशन 1910 में भाग लिया।

जलियांंवाला बाग हत्‍याकांड 1919 से आहत होकर उन्‍होने अपना संंम्‍पूर्ण समय देश को आजाद कराने के लिए लगाने का संकल्‍प किया। विदेशी वस्‍तुओं का बहिस्‍कार कर स्‍वेदशी के प्रचार हेतु उन्‍होने खादी वस्‍त्र धारण करना आरंभ किया अंग्रेजी शिक्षा का बहिस्‍कार एवं राष्‍ट्रीय शिक्षा के प्रचार के लिए उन्‍होने जनवरी 1921 में रायपुर में राष्‍ट्रीय विद्यालय की स्‍थापना करवायी।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की कैरियर के बारे में

पंडित रविशंकर शुुुक्‍ल नागपुर में LLB की पढ़ाई पूरी करने के बाद सरायपाली चले गये। और सूखा राहत कार्य का निरीक्षण करने लगे उनकी ईमानदारी और कर्तव्‍यनिष्‍ठा के लिए शुक्‍ल जी को पदोन्‍नत कर नायब तहसीलदार बना दिया गया। 1901 में उन्‍होने सर‍कारी नौकरी छोड़कर जबलपुर के “हितकारिणी स्‍कूल” में अध्‍यापन का कार्य शुरू किया 1902 में पंडित रविशंकर शुक्‍ल का विवाह भवानी देवी से हुआ। विवाह के बाद वे खैरागढ़ आ गये और उनकी नियुक्ति एक हाईस्‍कूल में प्राचार्य के पद पर हो गई।

सन् 1907 में पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) ने राजनांदगांव से वकालत की शुरूआत की, और कुछ समय बाद वे रायपुर आकर वकालत करने लगे। 1912 में रविशंकर शुक्‍ल के प्रयासों से कन्‍या कुब्‍ज महासभा की स्‍थापना हुई। उन्‍होने रायपुर के कन्‍या कुब्‍ज छात्रवास की स्‍थापना की। तथा कन्‍या कुब्‍ज मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल का राजनैतिक जीवन Political life of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्‍ल सन् 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस जनरल कमेटी के सदस्‍य चुनेे गये। उन्‍हे रायपुर जिला परिषद् के सदस्‍य के रूप में 1921 में ही चुना गया। 1922 में रायपुर जिला परिषद केे एक सम्मेलन में उन्होंने कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को प्रवेश देने से मना कर दिया जिसके चलते उन्‍हे गिरफ्तार कर लिया गया। पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने सभी स्कूलों में वन्दे मातरम् का गायन और राष्ट्रीय झण्डे को फहराना अनिवार्य कर दिया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) सन् 1924 में पहली बार प्रांतीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए वे 1927 से 1936 ई. तक रायपुर जिला परिषद के अध्यक्ष के पद पर रहे। गांधी जी के नमक सत्‍याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन का रायपुर में नेेेेेतृत्‍व किया जिसके लिए उन्‍हे जेल भी जाना पड़ा। सन् 1933 में गांधी जी छत्‍तीसगढ़ प्रवास के दौरान रविशंकर शुक्‍ल जी के बुढ़ापारा स्थित निवास में ठहरे थे।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने बुनियादी शिक्षा सिद्धांत के अनुरूप विद्यामंदिर योजना शुरू की तथा पहली विद्यामंदिर का शिलान्‍यास गांधीजी के द्वारा किया गया। राजनीतिक चेतना और सामाजिक जागरूकता जगाने के लिए उनके द्वारा 1935 में महाकौशल साप्ताहिक पत्रिका की शुरूआत की तथा सन् 1935-36 में उन्‍होने महाकौशल साप्ताहिक पत्रिका शुरू किया। सन् 1936 में डॉ. खरे के मंत्रिमंडल में रविशंकर शुक्ल जी शिक्षा मंत्री बने।

सन् 1939 में मंत्रीमण्‍डल ने त्‍याग पत्र दे दिया, वे संविधान सभा के सदस्‍य भी थे। सन् 1940 में गांधीजी के व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह में भाग लेते हुए वेे पुन: गिरफ्तार कर लिये गये। और उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के प्रथम व्‍यक्तिगत सत्‍याग्राही होने का गौरव प्राप्‍त हुआ। 1942 में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा होने पर उन्‍होने इस आंदोलन में भाग लिया किंतु उन्‍हे मलकापुर रेेेेलवे स्‍टेशन में गिरफ्तार कर लिया गया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल मध्‍यप्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंंत्री के रूप में

15 अगस्‍त सन् 1947 में उन्‍होने सीताबर्दी किलेे (नागपुर) में झंडा फहराया। 1946-47 के विधानसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला और पंडित रविशंकर शुक्ल सीपी, बरार (मध्‍यप्रदेश व आस-पास) क्षेत्र के मुख्यमंत्री बने। सन् 1952 में उन्‍हे फिर से राज्‍य का मुख्‍यमंत्री चुना गया। 1 नवम्बर 1956 को जब मध्य प्रदेश का पुर्नगठन हुआ तो पंडित रविशंकर शुक्ल सर्वसम्‍मति से नए राज्य के मुख्यमंत्री बनाये गये और 31 दिसबंर 1956 तक मुख्‍यमंत्री के पद पर रहे। इस तरह से उन्‍हे मध्‍यप्रदेश का प्रथम मुख्‍यमंत्री बनने का गौरव प्राप्‍त हुआ।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की मृत्‍यु Death of Pandit Ravi Shankar Shukla

मध्‍य प्रदेश के गठन के दो महीने बाद उनके मुख्‍यमंत्री के पद पर रहते हुए कार्यकाल के दौरान ही 1 दिसंबर 1956 को 80 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) निधन हो गया।

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सम्‍मान

पंडित रविशंकर शुुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) बहुत ही प्रसिद्ध भारतीय नेता व स्‍वतंत्रता सेनानी थे। उन्‍होने भारत की आजादी की आंदोलन एवं लड़ाई में बढ़ चढ़कर योगदान दिया। उनके इस योगदान को याद करते हुए भारत सरकार व राज्‍य सरकार ने उनके सम्‍मान में पुरस्‍कार व उनकी मूर्ति स्‍थापित किया है। आईये उनके सम्‍मान के बारे में जानते है……।

  • 1995-1996 से विधान सभा सचिवालय ने (Pandit Ravishankar Shukla) के सम्मान में उत्कृष्ट मंत्री पुरस्कार की स्थापना की है।
  • दिल्ली में संसद भवन परिसर में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) की प्रतिमा स्‍थापित है।
  • पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान– छत्‍तीसगढ़ शासन ने उनकी स्‍मृति में सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में अभिनव प्रयत्‍नों के लिए पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) सम्‍मान स्‍थापित किया है, जो कि सन् 2001 में प्रारंभ किया गया और सामान्‍य प्रशासन विभाग द्वारा प्रदान किया जाता है। पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान के प्रथम प्राप्‍तकर्ता “केयूर भूषण” है। जिन्‍हे 2001 में यह सम्‍मान प्रदान किया गया था।
  • पंडित रविशंकर शुक्‍ल विश्‍वविद्यालय- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) के नाम पर एक विश्वविद्यालय है। जिसकी स्‍थापना 1964 में उच्‍च शिक्षा विभाग द्वारा किया गया है।

प्रशनोत्‍तरी:-

1 पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म कब हुआ था?

2 अगस्‍त 1877 को ।

2 पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म कहां हुआ था?

मध्‍यप्रदेश के सागर नामक शहर में।

3 मध्‍यप्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंत्री कौन थे?

पंडित रविशंकर शुक्‍ल।

4 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के पिता का क्‍या नाम था?

जगन्‍नाथ प्रसाद।

5 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के माता का क्‍या नाम था?

तुलसी देवी।

6 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के पत्नि का क्‍या नाम था?

भवानी देवी।

7 पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान कब प्रारंभ किया गया?

सन् 2001 मे।

8 पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान के प्रथम प्राप्‍तकर्ता कौन है?

केयूूर भूषण 2001।

9 पंडित रविशंकर शुक्‍ल विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना कब हुई थी?

सन् 1964 में।

10 पंडित रविशंकर शुक्‍ल की मृत्‍यु कब हुई?

1 दिसबंर 1956 को 28 वर्ष की आयु में।

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Vishnu Deo Sai

Biography Of Vishnu Deo Sai कौन है विष्‍णुदेव साय?

Biography Of Vishnu Deo Sai विष्‍णु देव साय छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में (बीजेपी) भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्‍ठ आदिवासी नेता है, जिन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में मनोनित किया गया है, इससे पहले वे 2020 से 2022 तक छत्‍तीसगढ़ के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष के रूप में भी काम किया है। एवं रायगढ़ लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रह चके है। आज के इस पोस्‍ट में विष्‍णुदेव साय के वार्ड पंच से लेकर मुख्‍यमंत्री बनने तक का राजनीतिक सफर के बारे में हम जानेगें।

विष्‍णुदेव साय का संक्षिप्‍त परिचय :-

नामविष्‍णुदेव साय
जन्‍म तिथि21 फरवरी 1964 (उम्र 59 वर्ष)
जन्‍म स्‍थानबगिया
जिलाजशपुर
राज्‍यछत्‍तीसगढ़़
देशभारत
पिता का नामश्री रामप्रसाद साय
माता का नामश्र‍ीमति जश्‍मनी देवी
जीवन साथी का नामकौशिल्‍या देवी
संतान1 पुत्र एवं 2 पुत्री
शिक्षा10 वी पास
छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष के रूप में02 जून 2020 से 09 अगस्‍त 2022
राजनीतिक दलभारतीय जनता पार्टी
छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ 13 दिसंबर 2023

जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन

विष्‍णुदेव साय का जन्‍म 21 फरवरी 1964 को छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में जशपुर जिले के बगिया गांव में एक किसान परिवार में हुआ। Vishnu Deo Sai के पिता का नाम रामप्रसाद साय एवं माता का नाम जश्‍मनी देवी है। उन्‍होने प्रारंभिक स्‍कूली शिक्षा जशपुर के कुनकुरी स्थित हायर सेकेंडरी स्‍कूल से की है।

विष्‍णुदेव साय का वै‍क्तिगत एवं वैवाहिक जीवन

विष्‍णुदेव साय सादगी के लिए मशहूर है। वे छत्‍तीसगढ़ के जशपुर जिला के बगिया गांव से आते है। उन्‍होने 1991 में कौशिल्‍या देवी से विवाह की और उनके एक बेटा और दो बेटियां है।

राजन‍ीतिक जीवन की शुरूआत

विष्‍णुदेव साय ने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1989 में अपने गांव बगिया से थी। उसके बाद वे छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख एवं लोकप्रिय नेता के रूप में उभकर सामने आये। Vishnu Deo Sai छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष से लेकर कई बड़े मंत्री पदों पर रहे। इस तरह एक छोटे से गांव से राजनीतिक सफर की शुरूआत करके आज छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री बनने जा रहे है। आगे उनके राजनीतिक सफर के बारे में विस्‍तार से चर्चा करेंगे।

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गांव के वार्ड पंच से लेकर मुख्‍यमंत्री बनने तक का सफर

विष्‍णुदेव साय ने साल सन् 1989 में अपने राज‍नीतिक जीवन की शुरूआत गांव के वार्ड पंच का चुनाव जीतकर की थी, वे 1990 में निर्विरोध सरपंच के लिए चुने गये इसके बाद सन् 1990 में 1998 तक अविभाजित मध्‍यप्रदेश विधानसभा के सदस्‍य रहे और उनका राजनीतिक सफर धीरे धीर बढ़ती चली गई। सन् 1999 में 13 वीं लोकसभा में Vishnu Deo Sai रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने साल 2006 में बीजेपी ने उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया।

2009 और 2014 में Vishnu Deo Sai फिर से रायगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने, इसके बाद 2014 में नरेन्‍द्र मोदी की सरकार ने उनको केन्‍द्रीय राज्‍यमंत्री बनाया। उनको इस्‍पात खान, श्रम रोजगार मंत्रालय दिया गया। इस तरह से 27 मई 2014 से 2019 तक मंत्री पद पर रहे। राजनीतिक कैरियर में उनकी लोकप्रियता दिनो दिन बढ़ती गई और 2020 में उनको एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया गया।

साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्य समिति में Vishnu Deo Sai को विशेष आमंत्रित सदस्‍य बनाया गया इसके बाद 08 जुलाई 2023 को साय को भारतीय जनता पार्टी ने राष्‍ट्रीय कार्य समिति का सदस्‍य बना दिया।

छत्‍तीसगढ़ के अगले मुख्‍यमंत्री होगें विष्‍णुदेव साय

विष्‍णुदेव साय छत्‍तीसगढ़ के नये मुख्‍यमंत्री होंगे, आपको बता दे कि‍ Vishnu Deo Sai कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतें है इस बार विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए भारत के केन्‍द्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कदृावर नेता अमित शाह ने कहा था, कि‍ आप इन्‍हे विधायक बनाईये मै बड़ा आदमी बना दूंगा। भारतीय जनता पार्टी ने सरगुजा की 14 में से पूरी की पूरी 14 सीटों पर जीत हासिल की है और पूरे प्रदेश में भाजपा ने इस बार 90 में से 54 विधान सभा में जीत दर्ज करते हुए Vishnu Deo Sai को छत्‍तीसगढ़ के अगले आदिवासी मुख्‍यमंत्री बनाने का फैसला कर दिया है।

छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण

छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में Vishnu Deo Sai ने 13 दिसंबर 2023 को रायपुर के साइंस कालेज मैदान में शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली और उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के राज्‍यपाल विश्‍वभूषण हरिचंदन ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाई साथ ही साथ डिप्‍टी सीएम के रूप में अरूण साव एवं विजय शर्मा ने भी शपथ ली। 3 दिसबंर को चुनावी नतीजे आने के बाद 10 दिसबंर को बीजेपी ने अपने सीएम केे नाम की घोषणा की थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी, केन्‍द्रीय गृहमंत्री अमित साह समेत कई दिगज नेता शामिल हुए।

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विष्‍णुदेव साय का जन्‍म कब हुआ था?

21 फरवरी 1964 को

विष्‍णुदेव साय का जन्‍म कहां हुआ था?

छत्‍तीसगढ़ के जशपुर जिला के बगिया गांव में

विष्‍णुदेव साय के पिता का क्‍या नाम है?

श्री रामप्रसाद साय

विष्‍णुदेव साय के माता का क्‍या है?

श्रीमति जश्‍मनी देवी

विष्‍णुदेव साय के पत्नि का क्‍या नाम है?

श्रीमति कौशिल्‍या देवी

विष्‍णुदेव साय कौन से विधान सभा से चुनाव जीते है?

कुनकुरी विधान सभा

विष्‍णुदेव साय कौन से पार्टी के नेता है?

भारतीय जनता पार्टी

विष्‍णुदेव साय ने पद एवं गोपनीयता की शपथ कब ली?

13 दिसंबर 2023 को

विष्‍णुदेव साय छत्‍तीसगढ़ के कौन से नबंर के मुख्‍यमंत्री बने हैं?

छत्‍तीसगढ़ के चौथेे मुख्‍यमंत्री

विष्‍णुदेव साय को किसने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई?

छत्‍तीसगढ़ के राज्‍यपाल विश्‍वभूषण हरिचंदन ने

विष्‍णुदेव साय के साथ डिप्‍टी सीएम के रूप में कौन कौन शपथ लिये?

अरूण साव एवं विजय शर्मा

माउंटेन मैन दशरथ मांझी Dashrath Manjhi Biography In Hindi

Dashrath Manjhi Biography In Hindi

माउंटेन मैन दशरथ मांझी (Mountain Man Dashrath Manjhi)

Dashrath Manjhi: यह जीवनी एक गरीब और आदिवासी मजदूर की है, जो बिहार के एक छोटे से और बेहद पिछड़े गांव के रहने वाले थे, उस गांव में उन दिनों बिजली, पानी, सड़क, अपस्‍ताल जैसी सुविधाओं का अभाव था। अपनी रोजमर्रा की छोटी छोटी जरूरतों एवं बेहतर सुविधाओं के लिए गांव के उस पार पहाड़ी को पार करके पास के कस्‍बे में जाना पड़ता था आगे इस पोस्‍ट में जानेगें की कैसे उन्‍होने उस पहाड़ को काटकर रास्‍ता बनाया और एक माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए।

दशरथ मांझी का संक्षिप्‍त विवरण (Description of Dashrath Manjhi)

नामदशरथ मांझी
उपनाममांउटेन मैन
जन्‍म दिनांक14 जनवरी 1934
जन्‍म स्‍थान गांवगहलौर
जिलागया
राज्‍यबिहार
देशभारत
जीवन साथी का नामफाल्‍गुनी देवी
पेशामजदूरी
निधन17 अगस्‍त 2007
उम्र73 वर्ष
मृत्‍यु का कारणपित्‍ताशय कैंसर
प्रसिद्धि का कारण22 वर्षो तक अकेले पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण किया

दशरथ मांझी का जन्‍म एवं आरंभिक जीवन (Early life of Dashrath Manjhi)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का जन्‍म 14 जनवरी 1934 को बिहार राज्‍य में गया जिले के गहलौर नामक गांव में हुआ था। जिस समय दशरथ मांझी का जन्‍म हुआ, उस समय हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था, पूरे देश के साथ साथ इस गहलौर गांव की स्थिति भी खराब और बहुत पिछड़ा हुआ था। 15 अगस्‍त सन् 1947 में जब देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद तो हो जाता है, फिर भी यहां के गरीब लोग अमीर जमींदार लोगोंं की गुलामी से मुक्‍त नही हो पाते।

आजादी के बाद भी हर जगह जमींदारी प्रथा के चलते अमीर जमींदार अपना हक रखते हैं, गरीब और अशिक्षित लोगों को परेशान करते हैं, उनको उनके मेहनत और हक की रोटी भी नसीब नहीं होती इसी तरह दशरथ मांझी का परिवार भी बहुत गरीब था, उनके पिता एक समय में अपनी जीवन यापन लिए बहुत मेहनत करते थे। दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह फाल्‍गुनी देवी के साथ होता है। दशरथ मांझी के पिता गांव के जमींदार से पैसे उधार लिये थे। जिसे वह चुका नहीं पाये थे।

कर्ज नहीं चुका पाने के कारण जमींदार दशरथ मांझी के पिता को बहुत प्रताड़ि‍त करते है, और उन्‍हे अपने घर पर नौकरी करने के लए मजबूर करते है, तब उनके पिता ने दशरथ मांझी को जमींदार के घर नौकरी के लिए भेज देते है, लेकिन दशरथ मांझी को किसी मी गुलामी करना पंसद नहीं था, इसलिए रात में वे गांव को छोड़कर भाग जाते है। और धनबाद में एक कोयले की खदान में काम करने लग जाते है।

दशरथ मांझी का दुबारा गांव में वापसी

दशरथ मांझी को गांव छोड़कर कोयले के खादन में काम करते हुए लगभग 7 साल बाद सन् 1955 के आसपास जब अपने परिवार की याद सताने लगती है और फिर वह गांव वापस लौट आता है, तब भी उसका गांव वैसा का वैसा ही रहता है, बिजली, पानी, सड़के, स्‍कूल, अस्‍पताल, कुछ भी नहीं, सारी सुविधाओं का अभाव रहता है। और उसकी मां गुजर चुकी होती है। दशरथ मांझी अपने पिता के साथ मजदूरी करके अपना जीवन यापन गुजर बसर करने लगते है।

दशरथ मांझी का अपनी पत्नि से फिर से मुलकात

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह हुआ था और वह अपनी पत्नि को ठीक से पहचानता भी नहीं था दशरथ मांझी के दुबारा गांव वापस आने पर उनके पिता जब दशरथ के ससुराल लड़की को लेने के लिए जाते है, तो लड़की के घर वाले इस विवाह को मानने से इंकार करते हुए फाल्‍गुनी देेेवी को ले जाने से मना कर देते है, क्‍योंकि दशरथ उस समय कोई काम काज नहीं करता था। दशरथ मांझी अपने प्‍यार की खातिर फाल्‍गुनी देेेवी को भगा कर घर ले आता है। और एक अच्‍छे पति पत्नि की तरह जीवन यापन करते है।

दशरथ मांझी की पत्नि का निधन

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी और उनका परिवार मजदूरी करके खुशी खुशी जीवन यापन कर रहा था। दशरथ मांझी काम के लिए पहाड़ के उस पार कस्‍बे में जाते थे जिससे उनकी दो वक्‍त की रोटी का इंतजाम होता था। वह दिन भर काम करके शाम को वापस अपने घर आता। दशरथ मांझी की पत्नि उसके लिए दोपहर का खाना देने पहाड़ को पार करके उस पार जाती थी। एक दिन उसी तरह जब वह खाना देने के लिए उस पहाड़ पर चढ़ी उसी समय उनका पैर अचानक फिसल गई और ग‍िर पड़ी। उस समय उनकी पत्नि गर्भवती थी। गांव में अस्‍पताल जैसी सुविधांए नहीं थी उन्‍हे अस्‍पताल ले जाने के लिए पहाड़ को चढ़कर पार करना पड़ता तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

दशरथ मांझी द्वारा पहाड़ तोड़ने का कार्य (उपलब्धि)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी अपनी पत्नि की मौत की घटना से पूरी तरह टूट जाते है, और मन में ठान लेते है कि इस पहाड़ को तोड़कर सड़क का निर्माण करके गांव और उस पार कस्‍बे की दूरी को कम करेगें वह रोज सुबह छैनी और हथौड़ी लेकर पहाड़ को काटने के लिए निकल जाते थे। दशरथ मांझी 1960 से लेकर 1982 तक लगभग 22 साल तक पहाड़ को छैनी और हथौड़ी से काटते रहे। गहलौर गांव के लोग दशरथ मांझी को पागल तक करार दे दिये थे।

आखिरकार 22 साल की मेहनत के बाद 360 फुट लम्‍बा (110 मी.) 25 फुट गहरा (7.6 मी.) 30 फुट चौड़ा (9.1 मी.) गहलौर की पहाड़ी को काटकर उन्‍हाने सड़क बना दिया और इस सड़क के निर्माण से गया के अत्री और वजीरगंज सेक्‍टर की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। उनकी बनाई इस सड़क उपयोग आज भी उस गांव के लोग करते है।

दशरथ मांझी का निधन (Dashrath Manjhi’s death)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का निधन 73 वर्ष की आयु में 7 अगस्‍त 2007 को अखिल भरतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स), नई दिल्‍ली में हुआ वे पित्‍ताशय के कैंसर से ग्र‍िसित थे। बिहार की राज्‍य सरकार द्वारा उनका अंतिम संस्‍कार किया गया।

माउंनटेन मैन दशरथ मांझी का समाधि स्‍‍थल

Dashrath Manjhi: माउंटेन मैन दशरथ मांझी की समाधि स्थल सैलानियों के लिए प्रेम की मिसाल बन गया है। 22 साल तक उन्होंने अपनी पत्नी के प्रति अगाध प्रेम के चलते गहलौर घाटी की पहाड़ को काट कर रास्‍ता बनाया था उनका समाधि स्‍थल उनके गांव गहलौर में बनाया गया है। आज उनका समाधि (Mountain Man in Gehlaur) स्थल बिहार का ताजमहल के नाम से भी जाना जाता है।

पर्वत पुरूष दशरथ मांझी  का समाधि स्‍थल गहलौर

सम्‍मान

Dashrath Manjhi: दशर‍थ मांझी की इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्‍ताव रखा। और बिहार के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नी‍तीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और अस्‍पताल बनाने का फैसल किया।

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दशरथ मांझी के जीवन पर बनी फिल्‍म

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित “मांझी- द माउंटेन मैन” नाम से 2015 में एक फिल्‍म का निर्माण किया गया है। इस फिल्‍म के निर्देशक केतन मेहता और वायाकॉम 18 मोशन पिक्‍चर्स और एनएफडीसी  इंडिया द्वारा संयुक्‍त रूप से निर्मित है। जिसमें नवाजुद्वीन सिद्धकी द्वारा दशरथ मांझी का मुख्‍य रोल निभाया गया है। जबकि राधिका आप्‍टे ने मांझी की पत्नि की भूमिका निभाई है।

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प्रश्‍नोत्‍तरी

दशरथ मांझी का जन्‍म कब हुआ था? When was Dashrath Manjhi born?

14 जनवरी 1934

दशरथ मांझी के पत्नि का क्‍या नाम था? What was the name of Dashrath Manjhi’s wife?

फाल्‍गुनी देवी

दशरथ मांझी के बेटा का क्‍या नाम था? What was the name of Dashrath Manjhi’s wife?

भागीरथी मांझी

मांउनटेन मैन के नाम से किसे जाना जाता है? Who is known as Mountain Man?

दशरथ मांझी

दशरथ मांझी ने कौन सा पहाड़ को काटा था? Which mountain was cut by Dasharatha Manjhi?

गहलौर पहाड़

दशरथ मांझी के जीवन पर बनी फिल्‍म का क्‍या नाम है? What is the name of the film made on the life of Dashrath Manjhi?

मांझी द मांउनटेन मैन

दशरथ मांझी की मृत्‍यु कब हुई? When did Dashrath Manjhi die?

17 अगस्‍त 2007 को नई दिल्‍ली में

बिहार का ताजमहल किसे कहा जाता है? Which is called Taj Mahal of Bihar?

दशरथ मांझी के समाधि स्‍थल को

दशरथ मांझी के समाधि स्‍थल कहां स्थित है? Where is the Samadhi place of Dashrath Manjhi located?

बिहार के गहलौर गांव में

Jyotiba Phule Biography: IIज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय II

Jyotiba Phule Biography II ज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय।I

Jyotiba Phule Biography: ज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय।

Jyotiba Phule:- इस देश में समय समय पर कई महान व्‍यक्ति एवं समाज सुधारक हुए जिन्‍होने समाज में व्‍याप्‍त बुराईयों को दूर कर समाज को ऊपर उठाने में अपना अहम् योगदान दिया। उन्‍ही में से एक महान व्‍यक्ति ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। उन्‍होने महिलाओं की शिक्षा से लेकर सभी वर्गो की शिक्षा के लिए उल्‍लेखनीय कार्य किये। आज के इस लेख में ज्‍योतिबा फुले के जीवन के बारे में जानकारी देंगें।

Jyotiba Phule सारांश :-

नामज्‍योतिबा फुले (Jyotiba Phule)
पूरा नाम महात्‍मा ज्‍योतिराव गोविन्‍दराव फुले
उपनामज्‍योतिबा फुले, महात्‍मा फुले, ज्‍योतिराव फुले
जन्‍म दिनांक11 अप्रैल 1827
जन्‍म स्‍थानखानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र
मा‍ता का नामचिमनबाई
पिता का नामगोविन्‍दराव फुले
जीवन साथी का नामसावित्री बाई फुले
पुत्र/पुत्री का नाम
भाई का नामराजाराम
मुख्‍य विचारनीतिशास्‍त्र, धर्म, मानवतावाद
प्रसिद्विसमाजिक कार्यकर्ता
उपाधिमहात्‍मा की उपाधि
देशभारत
राज्‍य क्षेत्रमहाराष्‍ट्र
राष्‍ट्रीयताभारतीय
जीवन काल63 वर्ष
मृत्‍यु28 नवंबर सन् 1890

ज्‍योतिबा फुले का जन्‍म एवं आरम्भिक जीवन

ज्‍योतिबा फुले का जन्‍म 11 अप्रैल 1827 ई0 को तात्कालिक ब्रिटिश भारत के खानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था इनके पिता का नाम गोविन्‍दराव और माता का नाम चिमनबाई था। मात्र 1 वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद इनका पालन पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई के द्वारा किया गया। इनके दादाजी कई वर्ष पूर्व सतारा से पुणे आकर माली के व्यवसाय में फूलों के गजरे बनाने का काम करने लगे, जिनके चलते ये फुले कहलाए और इन्हें महात्मा फुले और ज्यतिबा फुले (Jyotiba Phule) के नाम से भी जाना जाता है।

ज्‍योतिबा फुले की शिक्षा (Education)

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को 7 वर्ष के आयु में विद्यालय में दाखिला करवाया गया लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण वहां पढ़ाई नहीं कर पाए इनके अंदर पढ़ने की बहुत इच्छा थी इसलिए इनकी दाई, सगुनाबाई ने घर में ही पढ़ाई के इंतजाम कर दिए। ज्योतिबा फुले ने आरंभिक शिक्षा मराठी में अध्ययन किया, बीच में ही पढाई छूट जाने के बाद वे 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा तक की पढाई पूरी की इस तरह अध्ययन करते-करते उनका ज्ञान इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि वह अपने से बड़े उम्र के लोगों के साथ बैठकर चर्चा किया करते थे।

ज्‍योतिबा फुले का वैवाहिक जीवन

Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले का विवाह सन् 1840 में सावित्री बाई फुले से हुआ, उन्‍होने अपनी धर्मपत्नि सावित्री बाई फुले को स्‍वयं शिक्षा प्रदान की जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेविका बनीं। सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला अध्‍यापिका थी दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में तथा महिलाओं व पिछड़े व अछूतों के उत्‍थान के लिए दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर उल्‍लेखनीय कार्य किये।

ज्‍योतिबा फुले द्वारा स्‍कूल की स्‍थापना

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को शिक्षा के प्रति बहुत ही लगाव था, उन्‍हे महान व्‍यक्तियों की जीवनी पढ़ने और उनके बारे में जानने की बड़ी रुचि थी उन्हें जब ज्ञान हुआ कि सभी मनुष्‍य (नर-नारी) समान हैं, तो उनमें ऊँच-नीच  भेद भाव क्यों होना चाहिए। इसलिए स्त्रियों की  शिक्षा और उनकी दशा सुधारने के लिए ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने सन् 1848 में एक स्कूल खोला। बालिकाओं के लिए यह देश में पहला विद्यालय था परंतु लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली।

तब इन्होने दिन रात मेहनत करके स्वयं यह कार्य किया और अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया। किंतु कुछ उच्च वर्ग के लोगो द्वारा उनके इस कार्य में बाधा डालने की कोशिश की गई। परन्तु ज्योतिबा फुले नहीं रुके तो उनके पिता पर दबाव डाल कर इन्हे पत्नी सहित घर से निकलवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनके कार्य व जीवन में बाधा जरूर आयी। परन्तु शीघ्र ही वे फिर से अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो गए। और एक के बाद एक बालिकाओं के लिए तीन स्‍कूल खोल दिये। इस तरह से सावित्री बाई फुले देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनी।

ज्‍योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्‍थापना

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर सन् 1873 को एक सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य शुद्र और अछूतों को न्याय और समाज में उचित स्थान दिलाना था। और इसकी स्थापना के पीछे ज्योतिबा फुले के जीवन का एक बहुत बड़ा अनुभव जुड़ा हुआ है। वे एक शादी में गए थे वहां पर काफी अपमानित करके उन्‍हे निकाल दिया गया। बाद में अपने पिताजी से पूछा कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ तो उन्‍होने बताया कि वे लोग उच्च जाति के लोग हैं और हम नीच जाति के, इसलिए हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते।

जिस पर ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने अपने पिताजी से पूछा की वे किस मामले में हम से श्रेष्ठ है, मैं उनसे ज्यादा शिक्षित हूं, ज्यादा अच्छे कपड़ा पहनता हूं, ज्यादा अच्‍छा जीवन शैली में जी रहा हूं, इस सवाल जवाब उनके पिताजी के पास नहीं था। उन्होंने बस इतना ही कहा कि यह एक प्रथा है, जो सदियों से चली आ रही है और हमें इसे मानना ही पड़ेगा। बस यहीं से ज्योतिबा फूले के मन में सत्य को खोजने और जानने की इच्छा जागृत हुई।

उन्होंने धर्म के वास्तविकता को समझा और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रकृति कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करता, यह धर्म और शोषण वाले नियम तो इंसानों ने बनाए है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य यही था कि शूद्र और अछूत लोगों को पुजारी, पुरोहित आदि की दासता से मुक्त कराया जाए। इसीलिए उन्होंने पंडित, पुरोहित पुजारी के धार्मिक कार्य में अनिवार्यता का विरोध किया। निम्‍न वर्गो एवं शूद्रों को शिक्षित और योग्य बनाना इस संस्‍था के प्रमुख कार्य थे। 

सामाजिक कार्य एवं योगदान

Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले ने दलितों, पिछड़ो, अछूतों, विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के अनके कार्य किये, इसके साथ ही गरीब किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। ज्‍योतिबा फुले समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समर्थक थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्‍यवस्‍था ऊंच नीच की प्रथा, धर्म और भेदभाव के विरुद्ध थे। ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज में व्‍याप्‍त बुराईयों को मुक्त करना चाहते थे।

उन्‍होने अपना सम्पूर्ण जीवन स्त्रियों की शिक्षा एवं स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में लगा दिया। 19 वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। ज्‍योतिबा फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। इसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से मान्यता भी प्राप्त की। इन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया। ये विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे।

उपाधि एवंं सम्‍मान

  • महात्‍मा की उपाधि :- Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्‍याय दिलाने के लिए सत्‍यशोधक समाज की स्‍थापना की ब्राम्‍हण पुरोहित के बिना ही विवाह संस्‍कार आरम्‍भ करवाया और इसे मुबंई उच्‍च न्‍यायालय से भी मान्‍यता मिली। वे बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे उनके संघर्ष के कारण सरकार ने “एग्रीकल्‍चर एक्‍ट” पास किया। उन्‍होने अपने पूरे जीवन में समाज के लिए जो त्‍याग और बलिदान भरे कार्य किये थे, उनकी इस समाजसेवा को देखकर 1888 में मुबंई की एक विशाल सभा में बहादूर विटृठलराव कृष्‍णाजी वान्‍देकर ने उन्‍हे “महात्‍मा की उपाधि” दी।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि :- स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए ज्‍योतिबा फुले को सन् 1883 में तत्‍कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा “स्‍त्री शिक्षण के आद्यजनक” कहकर गौरवान्वित किया गया।

ज्‍योतिबा फुले का निधन

Jyotiba Phule:- अपना सम्‍पूर्ण जीवन समाज के लिए समर्पित करने वाले महान समाज सेवक ज्‍योतिबा फुले का शरीर अंतिम समय में लकवाग्रस्‍त होने के कारण दिनो दिन कमजोर होता चला गया और 28 नवंबर 1890 को 63 वर्ष की आयु में पुणे (महाराष्‍ट्र) में उनका निधन हो गया। 

महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले रोहिलखंड विश्‍वविद्यालय बरेली उ0प्र0 Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University

यह एक सरकारी विश्‍वविद्यालय है इसकी स्‍थापना 1975 में राेहिलखंड विश्‍वविद्यालय के रूप में की गई थी उसके बाद महान समाज सुधारक महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले के सम्‍मान में अगस्‍त सन् 1997 में इसका नाम बदलकर महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले राेहिलखंड विश्‍वविद्यालय (Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University) कर दिया गया है इस विश्‍वविद्यालय का परिसर लगभग 206 एकड़ (83) हेक्‍टेयर में फैला हुआ है। यह विश्‍वविद्यालय NAAC A ++ मान्‍यता प्राप्‍त है। आईएसओ 9001:2015 और 14001:2015 प्रमाणित विश्‍वविद्यालय है।

ज्‍योतिबा फुले की जंयती कब मनाई जाती है (Jyotiba Phule Jayanti)

Ans:- 11 अप्रैल 1827

भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थी?

Ans:- सावित्री बाई फुले

ज्‍योतिबा फुले के पिता का क्‍या नाम था?

Ans:- गोविन्‍दराम फुले

ज्‍योतिबा फुले के माता का क्‍या नाम था?

Ans:- चिमनबाई

ज्‍योतिबा फुले का पूरा नाम क्‍या था?

Ans:- महात्‍मा ज्‍योतिबाराव गोविन्‍दराव फुले

ज्‍योतिबा फुले की पत्नि का क्‍या नाम था?

Ans:- सावित्री बाई फुले

ज्‍योतिबा फुले की प्रमुख पुस्‍तक कौन सी है?

Ans:- गुलामगिरी

ज्योतिबा फुले कौन सी जाति के थे?

Ans:- माली

Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University कहां स्थित है?

Ans:- बरेली उत्‍तरप्रदेश

ज्योतिबा फुले को महात्मा क्यों कहा गया?

Ans:- ज्योतिबा ने दलितों और वंचित तबके को न्याय दिलाने के लिए 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की उनकी समाजसेवा देखकर साल 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।

ज्योतिबा फुले ने कौन सा स्कूल खोला था?

Ans:- 1848 में लड़कियों के लिए पहली पाठशाला पुणे में खोली।

ज्योतिबा फुले की मृत्‍यु कब हई?

Ans:- 28 नवंबर 1890

ज्योतिबा फुले की मृत्यु कैसे हुई?

Ans:- लकवाग्रस्त होन के कारण 

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Veer Narayan Singh: देश के आजादी के लड़ाई में सैकड़ो स्‍वतंत्रता सेनानियों ने सालों तक संघर्ष किया और अपना बलिदान दिये उन बलिदान देने वालों में छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में एक नाम शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है। जिन्‍होने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपना बलिदान दिया शहीद वीर नारायण सिंह (1795-1857) छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के प्रथम स्‍वतंत्रता सेनानी, सच्‍चे देश भक्‍त एवं सोनाखान के जमींदार गरीबो के मसीहा थे। आईये जानते है शहीद वीर नारायण सिंह के वीर गाथा के बारे में।

वीर नारायण सिंह का जन्‍म Birth of Veer Narayan Singh

Veer Narayan Singh: वीर नारायण सिंह का जन्‍म छत्‍तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था पिता का नाम रामसाय था यह बिंझवार जनजाति के थे और इनके परदादा सोनाखान के दिवान थे। वीर नारायण सिंह के पूर्वज सारंगढ़ के जमींनदार के वंशज थे, और लगभग 300 गावों की जमींदारी इनके पास थी। पिता की मृत्‍यु के बाद 35 साल की उम्र में ही वीर नारायण सिंह ने अपने पिता से जमींदारी का अधिकार ले लिया था। उनका स्‍थानीय लोगों से अटूट लगाव था।

वीर नारायण सिंह का कार्य और योगदान।

Veer Narayan Singh: छत्‍तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल शहीद वीर नारायण सिंह ने फूंका था उन्‍होने छापामार युद्ध नीति का प्रयोग कर अंंग्रेजों के नाक में दम करके रख दिया था कई बार अंग्रेेेजी सेना ने उन्‍हे सोनाखान में पकड़ने और मारने के लिए योजना बनाई लेकिन असफल रहे। उन्‍होने यहां के गरीब जनता के उत्‍थान के लिए और आदिवासी समाज के विकास के लिए कार्य करते रहे और देश को आजाद कराने में उनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका रही।

वीर नारायण सिंह ने गोदाम में रखे अनाज को गरीबों में बंटवा दिया था।

Veer Narayan Singh: सन् 1856 में इस क्षेत्र में बारिश नहीं होने कारण भीषण अकाल पड़ गया लोग पीने के पानी तक के लिए तरस गये धान का भंडार कहा जाने वाला यह क्षेत्र सूखे से ग्रसित हो गया लोगो के पास खाने के लए कुछ नहीं था और जो कुछ भी था वो अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार जमाखोरी करके अपने गोदाम में भर कर रखे थे। उन्‍ही में एक अंग्रजों से सहायता प्राप्‍त कसडोल के साहूकार माखनलाल अपने गोदामों में अवैध और जोर जबरदस्‍ती से धन एकत्रित करके रखे हुए थे।

वीर नारायण सिंह हजारो किसानों के साथ मिलकर उस गोदाम में रखे अनाज को लूट लेते है, और भूख से पीड़‍ित जनता में बांट देते है। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्‍टी इलियट से की गई और अंग्रेजों द्वारा उन्‍हे 24 अक्‍टूबर 1856 को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया जाता है। 1857 में जब स्‍वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो जेल में बंद लोगो ने वीर नारायण सिंह को ही अपना नेता मान लिया। और अंग्रेजों के खिलाफ बढ़ते अत्‍याचारों के विरूद्ध बगावत करने की ठान ली।

वीर नारायण सिंह द्वारा सेना का गठन।

Veer Narayan Singh: 28 अगस्‍त 1857 में ब्रिटिश सेना में कार्यरत कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण सिंह जेल से भाग निकले और अपने गांव सोनाखान पहुंच गये वहां पर उन्‍होने 500 सैनिकों की एक सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुकाबला किया अंग्रेज जब वीर नारायण सिंह से लड़ नहीं पाये तो बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने यहां के जनता पर अत्‍याचार करना शुरू कर दिया उन्‍होने स्‍थानीय लोगों के घर जलाकर तरह तरह के अत्‍याचार करके लोगो से बदला लेना आरम्‍भ कर दिया।

लोगो को अंग्रेजों के अत्‍याचार से बचाने के लिए आत्‍मसमपर्ण।

Veer Narayan Singh: अंग्रेजों द्वारा जनता के प्रति अत्‍याचार से आहत होकर वीर नारायण सिंह ने अपने लोगो की जान बचाने के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने आत्‍मसमपर्ण कर दिया। उनके आत्‍मसमपर्ण का मूल उदेश्‍य यह था कि उनके कारण गरीब जनता को कोई हानि न पहुंचे उनको कोई अत्‍याचार सहना न पड़े और जनता की भलाई के लिए उन्‍होने आत्‍मसमपर्ण कर दिया।

वीर नारायण सिंह को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।

Veer Narayan Singh: समपर्ण के बाद 10 दिसबंर 1857 को अंग्रेजों द्वारा रायपुर में उन्‍हे सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई और मृत्‍यु के बाद उनके शव को तोप से बांध कर सरे आम उड़ा दिया गया यह स्‍थान वर्तमान में जय स्‍तम्‍भ चौक के नाम से जाना जाता है। सार्वजनिक रूप से हुए इस कुकृत्‍य से आम लोगों में और ब्रिटिश सेना के भारतीयों में एक प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और एक नई क्रांति का आरम्‍भ हुआ। शहीद वीर नारायण सिंह को इस समर के लिए छत्‍तीसगढ़ का प्रथम बलिदानी माना जाता है।

वीर नारायण सिंह के नाम पर बनाई गई स्‍मृतियां एवं सम्‍मान

Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह की गौरव गाथा आज भी छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में जनमानस के बीच सुनाई देती है। सोनाखान के लोग उन्‍हे देवता की तरह पूजते है प्रदेशवासियों के साथ साथ पूरे देश में उन्‍हे एक आदर्श के रूप में माना जाता है। जिसके चलते छत्‍तीसगढ़ शासन ने प्रतिष्ठित जगहों के नाम उनके नाम पर रखा है एवं उनके स्‍मृति में पुरस्‍कार सम्‍मान प्रदान किया जाता है, जिसकी कुछ झलकियां निम्‍नानुसार है:-

  • Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium- छत्‍तीसगढ़ में देश के दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्‍टेडियम का नाम शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर रखा है। रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम का निर्माण साल 2008 में करवाया है। यह स्टेडियम कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है। इस स्‍टेडियम की क्षमता 65,000 है। इस स्‍टेडियम की देख रेख व संचालन छत्‍तीसगढ़ सरकार द्वारा किया जा जाता है।   

Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium Raipur

  • शहीद वीर नारायण सिंह सम्‍मान- Veer Narayan Singh: स्‍वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह की स्‍मृति में “शहीद वीर नारायण सिंह सम्‍मान” छत्‍तीसगढ़ आदिम जाति कल्‍याण विभाग द्वारा आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्‍थान के लिए उत्‍कृष्‍ठ कार्य करने वाले व्‍यक्ति को दिया जाता है। स्‍थापना वर्ष 2001 इस सम्‍मान के अंतर्गत 2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्‍ह युक्‍त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है। प्रथम प्राप्‍तकर्ता आदिवासी शिक्षण समिति, पाड़ीमार को वर्ष 2001 में प्रदान किया गया था।
  • पोस्‍टल स्‍टाम्‍प शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर- Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह को सम्‍मान देने के लिए उनकी 130 वीं बरसी पर 1987 में भारत सरकार ने 60 पैसे का पोस्‍टल स्‍टाम्‍प जारी किया जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया।

वीर मेला राजा राव पठार के बारे में भी जाने:-

Veer Mela Rajarao Pathar:- छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृति, त्यौहार और परम्परा के लिए देश भर में जाना जाता है। जिसमें मेला मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के सभी जिलों में अलग अलग रूप से मंडई का आयोजन किया जाता है। लेकिन बालोद जिले में हर साल आयोजित होने वाले वीर मेला का एक विशेष महत्व होता है। जहां सर्व आदिवासी समाज के तत्त्वाधान में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में वीर मेला या देव मेला का आयोजन किया जाता है।

सर्व आदिवासी समाज द्वारा किया जाता है आयोजन:-Veer Narayan Singh: वीर मेला छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के बालोद जिला में धमतरी जगदलपुर नेशनल हाईवे पर धमतरी से 15 किलोमीटर दूर स्थित राजा राव पठार पर छत्‍तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह की याद में प्रतिवर्ष उनके बलिदान दिवस पर 10 दिसबंर को मनाया जाता है। यह आदिवासी समाज की वेशभूषा संस्कृति को जानने का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आकर आप उनकी संस्कृति से वाकिफ हो सकते है। इसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। यहां हर साल आम लोगों के साथ साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी पहुंचते हैं। इस मेल में प्रदेश भर के ध्रुव गोड़, बैगा, कमार समाज के आदिवासी शामिल हाेते हैं।

तीन दिनों तक होता है मेला का आयोजन:- Veer Narayan Singh: राजाराव पठार में सर्व आदिवासी समाज के तत्वावधान में प्रतिवर्ष 08, 09 और 10 दिसम्बर को शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर विराट वीर मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें देव स्थापना, देव मेला, आदिवासी हॉटबाज़ार, रैली, आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम, रेला पाटा, आदिवासी महापंचायत तथा शहीद वीर नारायण सिंह की श्रद्वांजली सभा का कार्यक्रम किया जाता है।

Veer Mela Rajarao Pathar वीर मेला राजा राव पठार

वीर नारायण सिंह का जन्‍म कब हुआ था? When was Veer Narayan Singh born?

1795 में।

वीर नारायण सिंह का जन्म कहाँ हुआ था? Where was Veer Narayan Singh born?

छत्‍तीसगढ़ के सोनाखान में।

वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस कब मनाया जाता है? When is Veer Narayan Singh Martyrdom Day celebrated?

10 दिसबंर को।

वीर नारायण सिंह कौन से राज्य के थे? Veer Narayan Singh belonged to which state?

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ।

वीर नारायण सिंह को फांसी की सजा क्यों दी गई है? Why has Veer Narayan Singh been given death sentence?

1857 की क्रांति का समर्थन करने की वजह से ।

वीर नारायण सिंह किसका पुत्र था? Whose son was Veer Narayan Singh?

सोनाखान के जमींदार रामसाय।

वीर नारायण सिंह का पूरा नाम क्या है? What is the full name of Veer Narayan Singh?

वीर नारायण सिंह बिंझवार।

वीर नारायण सिंह कौन से जाति के थे? Which caste did Veer Narayan Singh belong to?

बिंझवार।

सोनाखान क्यों प्रसिद्ध है? Why is Sonakhan famous?

सोनाखान के राजा वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण।

सोनाखान के राजा कौन थे? Who was the king of Sonakhan?

वीर नारायण सिंह।

सोनाखान के जमींदारन कौन थे? Who was the landlord of Sonakhan?

वीर नारायण सिंह।

शहीद वीर नारायण सिंह को फांसी कब दी गई? When was martyr Veer Narayan Singh hanged?

10 दिसंबर 1857 को।

वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम कब बना? When was Veer Narayan Singh International Cricket Stadium built?

2008 मे।

वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट की क्षमता कितनी है? Veer Narayan Singh What is the potential of international cricket?

65000।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान किस क्षेत्र में दिया जाता है? Veer Narayan Singh Samman is given in which field?

आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्‍थान के लिए।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान की शुरूआत कब हुई? When was Veer Narayan Singh Samman started?

2001 में।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान में क्‍या प्रदान किया जाता है? What is given in Veer Narayan Singh Samman?

2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्‍ह युक्‍त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है।

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Pandit Sundarlal Sharma: छत्‍तीसगढ़ के गांधी के रूप में विख्‍यात पं. सुन्‍दरलाल शर्मा नाट्यकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला में निपुण विद्ववान थे। उन्‍होने प्रदलाद चरित्र, करूणाद-पचीसी, व सतनामी-भजन-मालाा जैसे ग्रंथों की रचना की साथ ही छत्‍तीसगढ़ में जन जागरण तथा समाजिक क्रांति के अग्रदूत माने जाते है, वे कवि, सामाजसेवक, इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता, स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज के इस पोस्‍ट में पं. सुन्‍दरलाल शर्मा के जीवन के बारे में जानेगें।

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा का जन्‍म (Birth of Pandit Sundarlal Sharma)

Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा का जन्‍म 21 दिसंबर 1881 को छत्‍तीसगढ़ प्रांत में राजिम के समीप महानदी के किनारे बसे ग्राम चन्‍द्रपुर में हुआ था। उनके पिता का जगलाल तिवारी उस समय कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे, एवं उनकी माता का नाम देवमति था। पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा के हृदय में बचपन से ही हिंसा के प्रति घृणा थी, वे अस्‍पृश्‍यता को भारत के गुलामी तथा समाज के पतन का कारण मानते थे। उन्‍होने समाज की उत्‍थान एवं संगठन के लिए गांव-गांव घूमकर लोगों को जागरूक किया।

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा की शिक्षा (Education of Pandit Sunderlal Sharma)

Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा की स्‍कूली शिक्षा प्राथमिक स्‍तर तक ही हुई क्‍योंकि उन दिनो छत्‍तीसगढ़ में शिक्षा का प्रचार प्रसार बहुत कम था और आगे घर पर ही उन्‍होने स्‍वाध्‍याय से संस्‍कृत, बंग्‍ला, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, उड़‍िया आदि भाषाएं भी सीख ली सुन्‍दर लाल शर्मा साहित्‍य और पढ़ाई में अत्‍यधिक रूचि रखते थे उनके अंदर ज्ञान और दक्षता हासिल करने की जबरदस्‍त ललक थी, किशोरावस्‍था से ही उन्‍होने कविताएं, लेख, एवं नाटक लिखना शुरू कर दिये थे। गांवो में अंधविश्‍वास, अज्ञानता सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार प्रसार को अधिक महत्‍व देते थे।  

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा की रचनाएं (ग्रंथ) (Works (books) of Pandit Sunderlal Sharma)

Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा भाषा और साहित्‍य में विशेष रूचि रखने के साथ-साथ एक महान साहित्‍यकार थे। उन्‍होने हिन्‍दी भाषा के साथ छत्‍तीसगढ़ी बोली को भाषा का रूप दिलाने के लिए अथक प्रयास किया, वे हिन्‍दी भाषा एवं छत्‍तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की जिसमें छत्‍तीसगढ़ी दानलीला उनकी प्रसिद्ध रचना है। यह छत्‍तीसगढ़ का प्रथम प्रबंध-काव्‍य है। वे अपनी कविताओं में “सुन्‍दर कवि” उपनाम का उपयोग करते थे। उन्‍होने छत्‍तीसगढ़ी में दुलरवा पत्रिका, और हिन्‍दी में कृष्‍णा जन्‍म स्‍थान पत्रिका की रचना की।

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा की प्रकाशित प्रमुख कृतियां

  • छत्‍तीसगढ़ी दानलीला
  • काव्‍यामृतवर्षिणी
  • राजीव प्रेम-पियूष
  • सीता परिणय
  • पार्वती परिणय
  • प्रल्‍हाद चरित्र
  • ध्रुव आख्‍यान
  • करूणा पच्‍चीसी
  • श्री कृष्‍णा जन्‍म आख्‍यान
  • सच्‍चा सरदार
  • विक्रम शशिकला
  • विक्‍टोरिया वियोग
  • श्री रघुनाथ गुण कीर्तन
  • प्रताप पदावली
  • सतनामी भजनमाला
  • कंस वध

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा का योगदान (Contribution of Pandit Sunderlal Sharma)

Pandit Sundarlal Sharma: छत्‍तीसगढ़ की राजनीति व देश के स्‍वतंत्रता आंदोलन में उनका विशेष योगदान रहा है, 19 शताब्‍दी के अंमित चरण में देश में राजनीतिक और सांस्‍‍कृतिक चेतना की लहरें जाग उठ रही थी, उसी समय समाज सुधारकों, चिंतको तथा देशभक्‍तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को एक नयी सोच और सही दिशा प्रदान की छत्‍तीसगढ़ के गांव गांव में  व्‍याप्‍त अंधविश्‍वास, अस्‍पृश्‍यता, समाजिक कुरीतियों, और रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए समाजिक चेतना को घर-घर पहुंचाने के लिए सुन्‍दरलाल शर्मा ने उल्‍लेखनीय कार्य किया।

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा ने राष्‍ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेद, आदिवासी आंदोलन, स्‍वदेशी आंदोलन जिसमें विदेशी वस्‍तुओं के बहिस्‍कार तथा देशी वस्‍तुओं के प्रचार प्रसार पर जोर दिया। पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा एक ऐसे विचारक थे जिनकी स्‍पष्‍ट मान्‍यता थी कि समाज के सभी वर्गो को राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक समानता का अधिकार मिलें पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा 1903 में अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्‍य बने उन्‍होने 1907 में सूरत में आयोजित राष्‍ट्रीय अधिवेशन में जाने वाले छत्‍तीसगढ़ के युवाओं का नेतृत्‍व किया था।

सन् 1907 में राजिम में संस्‍कृत पाठशाला तथा कुछ वर्षो बाद वाचनालय स्थापित किया रायपुर के ब्राहृमण पारा में बाल समाज पुस्‍तकालय की स्‍थापना का श्रेय भी उन्‍हे दिया जाता है। सन 1916 में उन्‍होने गो-वध के विरूद्ध  एक आंदोलन चलाया, उनके द्वारा सन् 1920 में धमतरी के समीप कंडेल नहर सत्‍याग्रह का सफल नेतृत्‍व किया गया। हरिजनोउद्धार का कार्य करवाया जिसकी प्रशंसा महात्‍मा गांधी ने अपने मुक्‍त कंठ से करते हुए सुन्‍दर लाल शर्मा को इस कार्य में अपना गुरू माना था। उनके इस प्रयासों से ही महात्‍मा गांधी 20 दिसम्‍बर 1920 को पहली बार रायपुर आए।

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा का निधन

Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा जीवन भर समाजिक कार्य और जनजागरण करते रहे, वे जीवन-पर्यन्‍त सादा जीवन, उच्‍च विचार के आदर्शो का पालन करते हुए सदैव समाज सेवा में लीन रहते थे। अत्‍यधिक परिश्रम करने से, उनका शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्‍बर सन् 1940 को उनका निधन हो गया।

सम्‍मान:-

  • “पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा सम्‍मान” छत्‍तीसगढ़ में जन जागरण तथा समाजिक क्रांति के अग्रदूत पं. सुन्‍दरलाल शर्मा के स्‍मृति में यह सम्‍मान छत्‍तीसगढ़ के संस्‍कृति विभाग द्वारा साहित्‍य के क्षेत्र में दिया जाता है। इसकी स्‍थापना 2001 में की गई थी। पुरस्‍कार राशि 2 लाख रूपये प्रथम “सुन्‍दरलाल शर्मा सम्‍मान” विनोद कुमार शुक्‍ल को 2001 में प्रदान किया गया था।
  • सुन्‍दरलाल शर्मा मुक्‍त विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना” पंडित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर की स्थापना छत्तीसगढ़ शासन के अधिनियम क्र. 26 सन् 2004 द्वारा। माननीय राज्यपाल की अनुमति से इस अधिनियम को 20 जनवरी, 2005 को की गई इसका उद्देश्य राज्य के दूरवर्ती इलाकों में शिक्षा से वंचित समूहों के लिए दूरस्थ शिक्षा प्रणाली द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञानदान, समर्थवान और कुशल बनाना है। आज दूरस्थ शिक्षा पद्धति को शिक्षा के क्षेत्र में सपनों को साकार करने वाली वैज्ञानिक पद्धति के रूप में जाना जाता है।
  • भारत सरकार ने पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा की स्‍मृति में 1990 में एक डाक टिकट भी जारी किया था।

पं. सुन्‍दरलाल शर्मा मुक्‍त विश्‍वविद्यालय (Pandit Sundarlal Sharma University)

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FaQs

छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में किसे जाना जाता है?

पंडित सुन्‍दरलाल शर्मा। (Pandit Sundarlal Sharma)

पंडित सुंदरलाल शर्मा को प्रथम बार जेल कब हुई थी?

1914 में । सन 1921 से 1942 के दौरान वह गाँधी जी के सत्याग्रह में भाग लेकर 8 बार जेल गए।

पंडित सुंदरलाल शर्मा की कुल कितनी रचनाएं प्रकाशित है?

उन्होंने 22 ग्रंथो की रचना की। उनकी सबसे चर्चित रचना छत्तीसगढ़ी दानलीला थी।

पंडित सुंदरलाल शर्मा के प्रथम काव्य का नाम क्या है?

पंडित सुंदरलाल शर्मा नें 1904 में छत्तीसगढ़ी दान लीला नामक खंड काव्य नाटक की रचना की थी।

CG का गांधी कौन है?

पंडित सुन्दरलाल शर्मा। (Pandit Sundarlal Sharma)

पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म कब हुआ था? When was Pandit Sundarlal Sharma born?

21 दिसंबर 1881 को।

पंडित सुंदरलाल शर्मा की मृत्यु कैसे और कब हुई?

समाज सेवा में रत परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर 1940 को आपका निधन हुआ।

सुंदरलाल शर्मा जी ने स्वदेशी के प्रचार प्रसार के लिए क्या किया?

अपनी जमीन जायदाद बेचकर राजिम, धमतरी और रायपुर में स्वदेशी वस्तुओं की कई दुकानें खोलीं।

जय छत्तीसगढ़ दाई के लेखक कौन है?

पंडित सुन्दरलाल शर्मा। (Pandit Sundarlal Sharma)

Biography of Guru Ghasidas II गुरू घासीदास का जीवन परिचय II

गुरू घासीदास का जीवन परिचय II Biography of Guru Ghasidas II

Biography of Guru Ghasidas गुरू घासीदास का जीवन परिचय

Biography of Guru Ghasidas: बात उस समय की है जब छत्‍तीसगढ़ में 17 वीं सदी में समाज में छूआछूत, ऊंचनीच, भेदभाव छलकपट का बोलबाला था। मंंदिरोंं में धर्म और कर्म के नाम पर नरबलि पशुबलि की परम्‍परा प्रचलित थी अंधविश्‍वास के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा था। राजनीतिक महौल बहुत की खराब स्थिति में था। ऐसे समय में संत गुरू घासीदास जी का जन्‍म होता है।

उन्‍होने सतनाम धर्म की स्‍थापना की और मानव मानव एक समान का संदेश दिया तथा मूर्ति पूजा का विरोध कर असमानताओं को दूर करने एवं मानव कल्‍याण के सुधार के लिए काम करते हुए समाज में फैले जातपांत, छुआछूत जैसे कुरूतियों को दूर कर समाज में एक नई सोच और विचार उत्‍पन्‍न करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज के इस लेख में ऐसे महान संत Guru Ghasidas जी के जीवन के बारे में जानेगें।

Guru Ghasidas: सारांश :-

नामघासीदास
उपनामसंत गुरू बाबा घासीदास
जन्‍म दिनांक18 दिसम्‍बर 1756 ईस्‍वी.
जन्‍म स्‍थानबलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी
मा‍ता का नामअमरौतिन
पिता का नाममंहगूदास
जीवन साथी का नामसपूरा देवी
पुत्र/पुत्री का नामअमरदास, बालकदास, आगरदास, अड़‍गडिहा दास, सुभद्रा
वंशसतनामी
धर्मसतनाम (हिंदू)
प्रसिद्विसतनाम धर्म के संस्‍थापक गुरू घासीदास बाबा
उत्‍तराधिकारीगुरू बालक दास
देशभारत
राज्‍य क्षेत्रछत्‍तीसगढ़
राष्‍ट्रीयताभारतीय
जीवन काल94 वर्ष
मृत्‍युसन् 1850 ईस्‍वी.

गुरू घासीदास जी का जन्‍म और प्रारंभिक जीवन

Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी का जन्‍म 18 दिसम्‍बर सन् 1756 में बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में हुआ था इनकी माता का नाम अमरौतिन व पिता का नाम मंहगूदास था बचपन में ही माता का देहांत हो जाने के बाद उनका पालन पोषण उनके पिता द्वारा किया गया। कुछ लोगों की मान्‍यता है, कि Guru Ghasidas के पूर्वज उत्‍तर भारत हरियाणा के नारनौल के रहने वाले थे।

सन् 1672 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब से लड़ाई के बाद वहां से पलायन कुछ सतनामी परिवार महानदी के किनारे मध्‍यप्रदेश के चंद्रपुर में आ कर बस गये। कहा जाता है, कि औरंगजेब ने फरमान जारी कर दिया था, कि जो भी राजा, जमींदार इनको शरण देगा उन्‍हे कठोर सजा दण्‍ड दिया जायेगा। उनके डर से कई राजा लोग इन सतनामियों को पड़ककर औरंगजेब के हवाले कर दिये। और कुछ परिवार चंद्रपुर से होते हुए सोनाखान के जंगलों में पहुंच गये और वे छत्‍तीसगढ़ में आकर बस गये।

गुरू घासीदास जी का वैवाहिक जीवन

Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी का विवाह छत्‍तीसगढ़ की प्राचीन राधजानी एवं बौद्व नगर सिरपुर में वहां के रहने वाले अंजोरीदास की पुत्री सपुरा से हुआ था गुरू घासीदास का सिरपुर में आध्‍यात्मिक की ओर लगाव हुआ। विवाहोपरांत उनके 4 पुत्र और एक पुत्री का जन्‍म होता है। जिनके नाम 1. अमरदास 2. बालकदास 3. आगरदास 4. अड़गडिहा दास, एवं पुत्री का नाम सुभत्रा थी। उनके बड़े पुत्र अमरदास की युवावास्था में ही अचानक मृत्‍यु हो जाने से द्वितीय पुत्र बालकदास उनके उत्‍तराधिकारी बने।

सतनाम धर्म की स्‍थापना कब हुई थी?

Guru Ghasidas: रायपुर शहर से लगभग 56 किलोमीटर की दूरी पर उत्‍तर पूर्व में पलारी के समीप एक भंडार नामक गांव स्थित है, इस गांव की मालगुजारी यहां के एक लोहार परिवार रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एंव उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन रहते थे। उनके कोई वंशज नही थे, रायसिंग लोहार गौटिया को जब पता चलता है, कि संत गुरू घासीदास जी उनके गांव के पास हैं तो उन्‍हे अपने निवास स्‍थान चलने के लिए निवेदन करते है।

जब निवेदन स्‍वीकार कर Guru Ghasidas जी उनके निवास जाते है। वहां पर बहुत ही आदर पूर्वक उनका सम्‍मान, स्‍वागत सत्‍कार किया जाता है, और गुरू घासीदास के क्रांतिकारी‍ विचार सुनते है। उनके विचार से प्रभावित होकर भंडार गांव का मालगुजारी स्‍वामित्‍व गुरू घासीदास जी को सौंप देते है, इस प्रकार सन् 1840 में भंडार गांव में रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एवं उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन के सहयोग से गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म की स्‍थापना की।

गुरु घासीदास जी का निधन

Guru Ghasidas: गुुरू घासीदास जी का निधन 1850 ई. में हुआ उनके मृत्‍यु का कारण अज्ञात है, मृत्‍यु के पश्‍चात् उत्‍तराधिकारी गुरू बालक दास हुए जो गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र थे और उनके बताये हुए मार्ग के अनुसार सतनाम धर्म को आगे बढ़ाया तथा सतनाम आंदोलन में बढ़ चढ़़कर हिस्‍सा लिये।

गुरु घासीदास जंयती 2023 (Guru Ghasidas Jayanti 2023)

Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जंयती प्रतिवर्ष 18 दिसम्‍बर को मनाया जाता है गुरू घासीदास जंयती की शुरूआत 1938 ई. में दादा नकुल देव ने अपने गृह ग्राम भोरिंग (महासमुंद) में  किया था। गुरू घासीदास जी की जानकारी और जंयती का सुझाव डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने भी दिया था। मान्‍यवर कांसीराम साहब ने उनके कार्यो और विचारों को देश विदेश में प्रसारित करने का महान काम किया। तब से लेकर आज तक हर साल 18 दिसम्‍बर को गुरू घासीदास जंयती मनाया जाता है।

गुरु घासीदास के कितने रावटी स्थल हैं?

Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी ने सतनाम मत को बहुत ही सरल शब्‍दों में अभूतपूर्व परिवर्तन किया। आश्‍चर्य की बात यह है, कि जिन जिन गांवो जगहों में उन्‍होने यात्रा की वहां की जन समस्‍याओं को समाधान करने का प्रयास किया उनकी इस प्रकार की यात्रायों को रावटी (पड़ाव) कहते थे। उन्‍होने जिन जिन जगहों पर रावटी पड़ाव लगाया था। उनमें से 7 रावटी (पड़ाव) जिसमें दलहा पोड़ी (जांजगीर चांपा), बस्‍तर दंतेवाड़ा, कांकेर, पानाबरस, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, भोरमदेव (कर्वधा) आदि का उल्‍लेख मिलता है। तथा मंडला, बालाघाट, जबलपुर, अमरकंटक, में भी सतनाम पंथ का प्रचार प्रसार किया था।

गुरु घासीदास जी का तपो स्‍थल छाता पहाड़ कहां स्थित है?

Chhata Pahad Chhattisgarh: यह छाता पहाड़ बलौदा बाजार से लगभग 50 किलोमीटर की दुरी पर गिरौदपूरी धाम में मुख्‍य मंदिर से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर सोनाखान रेंज ( बारनवापारा अभ्‍यारण्‍य ) के घनघोर जंगल में स्थित है। छातापहाड़, बलौदा बाजार जिले का एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्‍थल और सतनाम पंथ के प्रर्वतक Guru Ghasidas जी की तपोस्‍थली है। लोगो की मान्‍यता है, कि गुरू घासीदास जी गहन चितंन के लिए छह माह समय का लक्ष्‍य बानाया और उन्‍होने विचारों के लिए इस छाता पहाड़ को चुना था।

गुरु घासीदास जी का तपो स्‍थल छाता पहाड़ Chhata Pahad Chhattisgarh:

गुरू घासीदास जी के 42 अमृत वाणी क्‍या क्‍या है?

Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी के अमृतवाणियों में उनके 42 अमृतवाणी समाज में प्रचलित, प्रासंगिक और सर्वमान्‍य है।

1- सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।)
2-जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे। 
3-सतनाम ल जानव, समझव, परखव तब मानव।
4-बइला-भईसा ल दोपहर म हल मत चलाव।
5-सतनाम ल अपन आचरण में उतारव।
6-अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परंपरावाद ल झन मानव।
7-दाई-ददा अउ गुरू के सनमान करिहव।

8-हुना ल साहेब समान जानिहव।
9-इही जनम ल सुधारना साँचा ये। (पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।)
10-गियान के पंथ किरपान के धार ये।
11-दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।
12-मरे के बाद पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे। पितर पूजा झन करिहौ, जीते-जियात दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव। 
13-जतेक हव सब मोर संत आव।
14-तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू।
15-रिस अउ भरम ल त्यागथे तेकरे बनथे।
16-दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन निकालहव।
17-बारा महीना के खर्चा सकेल लुहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे।
18-ये धरती तोर ये येकर सिंगार करव।
19-झगरा के जर नइ होवय ओखी के खोखी होथे।
20-नियाव ह सबो बर बरोबर होथे।
21-मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइही त मोला सूजगा मे हुदेसे कस लागही।
22-भीख मांगना मरन समान ये न भीख मांगव न दव, जांगर टोर के कमाए ल सिखव।

23-सतनाम ह घट घट में समाय हे, सतनाम ले ही सृष्टि के रचना होए हावय।
24-मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय।
25-पानी पीहु जान के अउ गुरू बनावव छान के।
26 -मोर ह सब्बो संत के आय अउ तोर ह मोर बर कीरा ये। (चोरी अउ लालच झन करव।)

27-सतनाम ह जीवन के आधार आय।
28-खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के राखिहव।
29-पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु।
30-जान के मरइ ह तो मारब आएच आय फेर कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय।
31-अवैया ल रोकन नहीं अऊ जवैया ल टोकन झन।
32-चुगली अऊ निंदा ह घर ल बिगाडथे।
33-धन ल उड़ावव झन, बने काम में लगावव।
34-जीव ल मार के झन खाहु।
35-गाय भैंस ल नागर म झन जोतहु।
36-मन के स्वागत ह असली स्वागत आय।
37-जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे पीहू पानी वइसे बोलहु बानी।
38-एक धुबा मारिच तुहु तोर बराबर आय।
39-काकरो बर काँटा झन बोहु।
40-बैरी संग घलो पिरीत रखहु।
41-अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु मन काकरो ले कमती नई हावव।
42-मंदिरवा म का करे जईबो अपन घर के ही देव ल मनईबो।

गुरु घासीदास जी के उपदेश क्या थे? 

Guru Ghasidas: गुरु घासीदास जी ने सत्य के मार्ग पर चलना सिखाया, सभी जीवों और मनुष्यों पर दया करना, मांस-मदिरा, जीव-हत्या, चोरी, जुआ, मूर्तिपूजा व आडम्बरों का विरोध कर सभी में समानता का भाव, मानव-मानव में भेदभाव न रखना आदि उनके प्रमुख उपदेश थे घासीदास जी का कहना था, सभी मानव का धर्म एक है इन उपदेशों और संदेशों के माध्यम से सन्त गुरु घासीदास जी ने समाजसुधार के साथ-साथ धर्म का सही मार्ग दिखलाया था और समाज में एक नयी रोशनी पैदा की थी।

प्रमुख उपदेश :-

  • सत्य एवं अहिंसा
  • धैर्य
  • लगन
  • करूणा
  • कर्म
  • सरलता
  • व्यवहार
  • वह बचपन से सत्य और अहिंसा के पुजारी थे |
  • वह हमेशा से लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलने का उपदेश देते थे |
  • हमें जाती पाती को भुलाकर एकता को अपनाना चाहिए |
  • हमें कभी भी गलत काम नहीं करना चाहिए |
  • हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए |

जय स्‍तंभ (जैतखाम) की स्‍थापना कब हुई थी?

जैतखाम:- लकड़ी का बड़ा सा खंबा होता है जिसे चबूतरा में गढ़ाया जाता है उस खंबे को सफेद रंग में रंगकर सफेद झंडा लगाया जाता है। Guru Ghasidas ने सतनाम पंथ सतनाम आंदोलन के विजय के प्रतीक के रूप में 1849 ई. में जय स्‍तंभ जैतखाम की स्‍थापना की थी। जैतखाम सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जयस्तंभ है वास्तव में यह एक स्तम्भ है जिसे एक विशाल प्रतीक के रूप में माना जाता है।

इस स्तम्भ को सतनाम धर्म के लोगों द्वारा पूजा की जाती है। सतनाम धर्म को बोलचाल की भाषा में सतनामी जाती के रूप में जाना जाता है, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक माना जाता है। वर्तमान समय में छत्‍तीसगढ़ में गुरू बाबा Guru Ghasidas की जन्‍मभूमि गिरौदपुरी धाम में राज्‍य शासन द्वारा 50 करोड़ की लागत से 77 मीटर ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है। जो दिल्‍ली के कुतुब मीनार से भी लगभग 5 मीटर ऊंचा है।

Jaitkham Girodhpuri Chhattisgarh जय स्‍तंभ (जैतखाम) गिरौदपुरी धाम

गुरु घासीदास विश्‍वविद्यालय (Guru Ghasidas Vishwavidyalaya)

Guru Ghasidas University: गुरु घासीदास विश्वविद्यालय भारत का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 16 जून 1983 को बिलासपुर, तत्कालीन मध्य प्रदेश में हुई थी। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। संसद में पेश केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2009 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया।

औपचारिक रूप से राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा स्थापित गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (जीजीयू) का औपचारिक रूप से उद्घाटन 16 जून 1983 को हुआ था। यह भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ और राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालयों के संघ का एक सक्रिय सदस्य है। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से B+ के रूप में मान्यता प्राप्त है। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में स्थित, विश्वविद्यालय का नाम महान संत गुरु घासीदास के सम्मान में उचित रूप से रखा गया है, विश्वविद्यालय एक आवासीय सह सम्बद्ध संस्था है, इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर राजस्व संभाग है।

गुरू घासीदास राष्‍ट्रीय उद्यान : Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh

Guru Ghasidas: गुरू घासीदास नेशनल पार्क की स्‍‍थापना 5 अक्‍टूबर, 2021 को कि गई। 2001 से पहले यह संंजय गांंधी नेशनल पार्क सीधी (मध्‍यप्रदेश) का हिस्‍सा था यह पार्क कोरिया जिले के बैकुंठपुर सोनहत मार्ग में पांंच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, एवं छत्‍तीसगढ़ का चौथा टाईगर रिजर्व नेशनल पार्क है। अचानकमार टाईगर रिजर्व के बाद राज्‍य का दूसरा सबसे बड़ा टाईगर रिजर्व है इसका क्षेत्रफल 1440 वर्ग कि.मी. है इस पार्क के अंदर हसदेव नदी बहती है और गोपद नदी का उद्गगम स्‍थल है।

Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh: गुरू घासीदास राष्‍ट्रीय उद्यान

FaQs

गुरु घासीदास के प्रमुख सिद्धांत कौन से थे?

(1) सतनाम् पर विश्वास रखना। (2) जीव हत्या नहीं करना। (3) मांसाहार नहीं करना। (4) चोरी, जुआ से दूर रहना।

गुरु घासीदास के कितने बच्चे थे?

5 बच्‍चे थे जिसमें 4 पुत्र एवं 1 पुत्री थी।

गुरु घासीदास के रावटी स्थल कितने हैं?

गुरू घासीदास जी के 7 रावटी स्‍थल है।

गुरु घासीदास के लिए छत्तीसगढ़ में कौन सा स्थान प्रसिद्ध है?

गिरौधपुरी धाम।

गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व से कौन सी नदी बहती है?

हसदेव नदी।

गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व कहां स्थित है?

कोरिया जिले के बैंकुठपुर में।

गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व किस राज्य में है?

छत्‍तीसगढ़़ में।

सतनाम पंथ में किसकी पूजा होती है?

गुरू घासीदास बाबा की।

गुरु घासीदास का गोत्र क्या है?  

गुरू घासीदास धृतलहरे गोत्र के थे।

छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ के संपादक कौन थे?

गुरू घासीदास जी

गुरू घासीदास जंयती कब मनाई जाती है?

18 दिसबंर को।

सतनामी विद्रोह कब शुरू हुआ?

1672 में।

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Jhitku Mitki Ki Prem Kahani

झिटकू मिटकी की अमर प्रेम कहानी

Jhitku Mitki की ये कहानी है बस्‍तर क्षेत्र के कोण्‍डागांव जिले के अंतर्गत केशकाल विश्रामपुरी के पेन्‍ड्रावन गांव में रहने वाले सात भाईयों की एकलौती बहन मिटकी और उनके घर जमाई दामाद झिटकू की, जो आज भी बस्‍तर छत्‍तीसगढ़ में झिटकू मिटकी की प्रेम कहानी, अनोखी प्रेमकथा, सत्‍य प्रेम कहानी आदि नामों से प्रचलित है। तो आईये जानते है, झिटकू मिटकी की इस अमर प्रेम कहानी की गाथा आज की इस लेख में।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का इतिहास (History of Jhitku Mitki’s love story)

कहा जाता है, कि बहुत साल पहले गुलू और कूटा नाम के दो सगे भाई केशकाल विश्रामपुरी के अंतर्गत पेन्‍ड्रावन नामक गांव में परिवार बसाने के लिए आये थे। दोनों भाई में से एक के कोई संतान नही थे, और दूसरे के 8 संतान थे, जिसमें सात भाई और एक बहन थी। उनका पूरा परिवार बहुत ही खुशहाली से अपना जीवन यापन कर रहा था। और उसी समय गांव के नदी में वे सातों भाई एक बांध बना रहे थे।

उस बांध के पानी से वे खेती करके अनाज पैदा कर जीवन यापन करना चाहते थे। उस बांध को बांधते बांधते काफी दिन और कई साल हो गये थे। प्रतिदिन बांध को वे सातों भाई बांध कर शाम को घर आ जाते और सुबह जाकर दखते तो बांध फिर टूटा हुआ मिलता था। यह कई सालों से चला आ रहा था फिर भी वे कभी हार नहीं माने।

उन सातों भाईयों की एक बहुत ही प्‍यारी और दुलारी बहन थी। जिनका नाम था, मिटकी वे अपनी बहन को खूब चाहते थे। उसे अपने आंखों के तारा के रूप में अपने पास घर में ही रखना चाहते थे। अगर उनका शादी भी करेगें तो घर जमाई (लमसेना) के रूप में दामाद को घर में रखने की सोच रहे थे। अगर घर में कोई मिटकी के लिए रिश्‍ता भी लेकर आते तो वे उन्‍हे दूसरे घर में शादी के लिए देना नहीं चाहते थे। और इस बात को सातों भाईयों ने सोच कर रखे थे।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) की प्रेम कहानी की शुरूआत

बस्‍तर की परंपरा एवं संस्‍कृति सदैैव ही अनूठी रही है, आज भी बस्‍तर के गांव गांव में एक नृत्‍य नाचा होता है, जिसे पुसकोलांग या डंडा नृत्‍य कहते है। जिसमें गांव के आदमी (पुरूष) लोग अपनी संस्‍कृति एवं पोशाक के साथ कई दिनों तक अपने घर से बाहर निकल कर किसी दूसरे गांव में  पुसकोलांग नाचने के लिए जाते है, बात उसी समय की है जब उस पेन्‍ड्रावन गांव में पड़ोस के गांव से पुसकोलांग नाचने के लिए कई पुरूष एक साथ आते है, उसमे झिटकू भी शामिल रहता है, और साथ में नाचते रहते है।

उसी बीच झिटकू की नजर मिटकी के ऊपर पर पड़ता है, और मिटकी की नजर झिटकू के ऊपर पड़ता है। दोनो एक दूसरे को देखकर मोहित हो जाते है, और नजरें मिलाने लगते है। पहली नजर में ही उन दोनों को एक दूसरे के प्रति लगाव, प्रेम हो जाता है। झिटकू मन ही मन सोचने लगता है, कि काश वो लड़की मेरे जीवन साथी बनती उसी तरह मिटकी भी मन ही मन झिटकू के प्रति लगाव महसूस करने लगती है। और वे नृत्‍य करते हुए दूसरे गांव की ओर चल देते है।

मिटकी के लिए घर जमाई दामाद ढूंढने का सफर 

इधर मिटकी के सातों भाई भी अपनी बहन के लिए घर जमाई दामाद (लमसेना) खोजने की सोच रहे थे। कई दिन बीत गये अपनी बहन के लिए दामाद खोजते खोजते। अचानक एक दिन वे पड़ोस के उसी गांव में जाते है, जिस गांव के लोग पुसकोलांग नृत्‍य करने के लिए उनके गांव आये थे। और वे संयोगवश झिटकू के घर में ही चले जाते है। और उनके परिवार से मिटकी की शादी के लिए बात करते है, कि हमारे यहां एक लड़की है, जिसके लिए हम लोग घर जमाई दामाद खोज रहे है।

फिर झिटकू के परिवार वाले  भी कहते है, कि हम भी इसके लिए लड़की ढूंढ रहे है। और दोनो परिवार वाले शादी के लिए राजी हो जाते है। फिर एक दिन अच्‍छा समय देखकर मिटकी के परिवार वाले लड़के के घर जाते है, और नीति नियम को पूरा करके झिटकू को घर जमाई बनाकर अपने घर ले आते है। सब लोग खुशी खुशी रहते है। सातों भाई चाहते थे, कि झिटकू और मिटकी घर पर ही रह कर काम करें उनसे ज्‍यादा काम न करवायें। इस तरह से वे सातों भाई काम करने जाते थे।

लेकिन झिटकू के मन में भी रहता था कि वे भी उनके साथ काम करने के लिए जाएं एक दिन वह उनके साथ काम पर जाने के लिए पूछता है। फिर वे काम पर ले जाने के लिए तैयार हो जाते है। इस तरह से उस बांध को बांधने के बाद भी बार बार टूट जाने की बात गांव में रखते है। कोई आदमी रहता है, वह बताता है की पास के एक गांव में कोई बैगा रहता है, वहां जाकर देखो। तो मिटकी के कुछ भाई उस बैगा के पास जाते है, और अपनी परेशानी बताते है।

कई सालों हम लोग उस बांध को बांधने की कोशिश कर रहे है, दिन में बांध कर आते है, लेकिन सुबह फिर से वह टूट जाता है। तब वह बैगा बताता है कि आप जिस जगह में बांध को बांध रहे हो वहां पर नर बलि देने से बांध बंध जायेगा। और यह भी बताता है,‍ कि बलि अपने आदमी को नहीं देना है, किसी पराया आदमी की बलि देने से ही अपकी समस्‍या का हल होगा। फिर घर आकर ये सब बाते बतातें है, तो घर वाले मना कर देते है कि ऐसा करने से अगर लोगो को पता चलेगा तो बदनामी होगी।

झिटकू को बलि देने की कहानी

वे सातों भाई सोचते है कि अगर नरबलि नहीं देगें तो फिर उस बांध को कैसे बांध पायेंगे। इसी तरह कई दिन बीत गये कोई आदमी ही नहीं मिला वहां पर नरबलि देने के लिए तभी उन सातों भाईयों में एक भाई बोलता है, कि क्‍यों न हमारे घर जमाई दमाद को ही वहां बलि दे देते है। तो बाकि भाई लोग कहते है, कि ऐसा कैसे कर सकते है अगर ऐसे करेगें तो हमारी बहन का क्‍या होगा।

सभी भाई एक दूसरे से बात करते है, और सोचते है, बलि दिये बिना हमारा काम भी नहीं बनेगा। कई दिन बीत जाने के बाद सातों भाईयों में एक दिन आपसी सहमति बन जाती है। और वे तय कर लेते है, कि अपने घर जमाई दमाद को ही वहां पर बलि देगें और अपने बहन के लिए कोई दूसरा पति ढूंढ लेगें दूसरे दिन जब सब लोग अपने काम पर एक साथ काम कर रहे होते है।

तभी उसी बीच एक भाई झिटकू का हाथ को पकड़ता है। और बाकी भाई लोग टंगिया फावड़ा और कुदाल से झिटकू को मार कर वहीं पर बांध के पार में दफना कर उसकी बलि दे देते है। उसी समय घर में मिटकी सभी काम पूरा करने के बाद दोपहर को आराम करते रहती है। एक झपकी सी ले रही होती है। तभी अचानक मिटकी को सपना आता है, कि उसके भाई लोग झिटकू को दौड़ा दौड़ा कर मार रहे है, उनका नींद अचानक खुलता है, मन में बैचैनी सी होने लगती है।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का अंत

फिर सोचती है कि उसके भाई लोग ऐसा नहीं कर सकते क्‍योंकि वे सभी उनसे बहुत ही लाड़ प्‍यार करते है। कुछ समय बाद उसके भाई लोग घर आ जाते है, तो वह पूछने लगती है कि झिटकू कहां है, तो सभी भाई अलग अलग बाते बनाकर बहकाने की कोशिश करतें है। फिर वह उस सपने के बारे में सोचती है, और वह उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ती है। और झिटकू झिटकू की आवाज देते हुए ढूंढने लगती है।

लेकिन कही भी झिटकू नजर नहीं आता है फिर उस बांध के पार में मिट्टी में दफन झिटकू का हाथ दिखाई देता है। वह उसे बहार निकालती है। चूंकि उन दोनो का शादी नहीं हुआ रहता है। इस प्रकार से मिटकी भी उसी बांध के गहरे पानी में कूदकर अपनी जान दे देती है।

झिटकू मिटकी की मरने के बाद की स्थिति 

उसी साल उस पेंड्रावन गांव में भारी अंकाल भूखमरी पड़ जाता है। बारिश नहीं होता आदमी लोग बीमार पड़ते है। पूरे गांव में महामारी फैल जाता है। पशु पक्षी मर रहे होते है, गांव में सन्‍नाटा छा जाता है उसके बाद वे सातों भाई फिर उसी बैगा के पास जाते है, तो वह बताता है कि आप जिसे बलि दिये थे। और आपकी बहन की आत्‍मा भटक रहें है।

अब उनको देवी देवता के रूप गांव में स्‍थान देकर मानना पड़ेगा। और वैसे ही किये फिर अकाल, भूखमरी गरीबी दूर हो गया। और लोगों में धीरे धीरे इस बात पर विश्‍वास हाेने लगा। तब से लेकर आज तक झिटकू बाबा, मिटकी माता जिसे गपादाई के नाम से भी लोग आराध्य देवी के रूप में पूजते हैं, आज भी विश्रामपुरी के उस गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु मिटकी Jhitku Mitki के नाम से चैत्र माह में मंडई मेला का आयोजन किया जाता है। जहां पर उन्‍हे पेंड्रावंडीन माता के रूप में पूजा जाता है।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) बस्‍तर आर्ट (शिल्‍पकला) के रूप में

बस्‍तर के कलाकार Jhitku Mitki की प्रेम कहानी को आज भी अपनी कलाओं में संजोकर जिवित रखे हुए है। काष्ठ और मेटल से बनी यह मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रचलित हैं, बस्तर संभाग के कई क्षेत्रों में आज भी झिटकु-मिटकी की मूर्तियां बनाई जाती हैं, मेटल से बनी इन प्रतिमाओं में झिटकू की पहचान हाथ में वाद्य यंत्र और मिटकी की पहचान हाथों मे बांस की टोकरी से की जाती है, एवं प्रेम करने वालो के दिलों में उनकी अमर प्रेम कहानी हमेशा के लिए जिवित है।

लोग इन प्रेमी जोड़ों के प्रतीक कहलाने वाले Jhitku Mitki की मूर्ति ले जाते हैं. इन्हें अपने घर में रखना शुभ मानते हैं और इस अमर प्रेम कहानी के किस्‍से देश प्रदेश ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी सुनाएं जाते है।

झिटकू मिटकी पर बनी फिल्‍म (film based on jhitku mitki)

Jhitku Mitki की प्रेम कहानी पर एक फिल्‍म भी बनाया गया है, जिसके निर्देशक राजा खान एवं झिटकू का मुख्‍य किरदार लालजी कोर्राम एवं मिटकी का किरदार बाम्‍बे की ईरोइन लवली द्वारा निभाया गया है। और यह फिल्‍म पूरी तरह से झिटकू और मिटकी की प्रेम कहानी पर आधारित है।

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Praveer Chand Bhanjdev: बस्तर में अंतिम शासन महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव (1936-1948) ने किया। महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव बस्तर के सभी समुदाय, मुख्यतः आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। आदिवासियों और यहां के जनता के हितों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सरकार के सामने आवाजा उठाते है, उनका मानना था कि यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के आदिवासियों मूलनिवासियों का मालिकाना हक होना चाहिए। तो आईये जानते है, इस पोस्‍ट के माध्‍यम से उनकी जीवन से जुड़ी रोचक बातें।

प्रवीर चंद भंजदेव का परिचय एवं परिवार का विवरण

नामप्रवीर चंद भंजदेव
जन्‍म दिनांक25 जून 1929
जन्‍म स्‍थानशिलांग
माता का नामप्रफुल्‍ल कुमारी देवी
पिता का नामप्रफुल्‍ल चंद भंजदेव
पत्नि का नामशुभराज कुमारी
भाई/बहनकमला देवी, विजय चंद भंजदेव, गीता देवी
नाना का नामरूद्रप्रताप देव
शिक्षारायपुर के राजकुमार कालेज एवं लंदन में
मृत्‍यु25 मार्च 1966

प्रवीर चंद भंजदेव जी का जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन (Birth and early life of Praveer Chand Bhanjdev)

प्रवीर चंद भंजदेव जी का जन्‍म 25 जून 1929 को शिलांग में हुआ था उनकी माता का नाम प्रफुल्‍ल कुमारी देवी एवं पिता का नाम प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव था माता की मृत्‍यु के पश्‍चात् 6 वर्ष की अल्‍पायु में 28 अक्‍टूबर 1936 को ब्रिटिश शासन द्वारा उनका राजतिलक कर दिया जाता है, एवं ब्रि‍टिश शासन के संरक्षण में उनका देखभाल किया जाता है।

प्रवीर चंद भंजदेव की शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन (Praveer Chand Bhanjdev’s education and married life)

प्रवीर चंद भंजदेव की शिक्षा रायपुर के राजकुमार कालेज में हुई उसके बाद पढ़ने के लिए वे लंदन चले गये। उनका विवाह 4 जुलाई 1961 को पाटन राजस्‍थान की राजकुमारी शुभराज कुमारी, राज ऋषि राव साहेब उदय सिंहजी और पाटन की रानी त्रैलोक्‍य राज लक्ष्‍मी की बेटी से हुआ ।   

प्रवीर चंद भंजदेव का राजनैतिक जीवन (Political life of Praveer Chand Bhanjdev)

प्रवीर चंद भंजदेव का राजनैतिक जीवन तो बपचन से ही शुरू हो चुका था। 6 वर्ष की आयु में ही 28 अक्‍टूबर 1936 को ब्रिटिश शासन द्वारा उनका औपचारिक राजतिलक कर दिया जाता है। तथा प्रवीर चंद भंजदेव के 18 वर्ष की आयु पूर्ण होते ही जुलाई 1947 में उन्‍हे ब्रिटिश सरकार द्वारा बस्‍तर रियासत का पूर्ण राज्‍य अधिकार दे दिया जाता है।

उसी समय 1947- 48 में भारत देश आजाद होता है, और 15 दिसबंर 1947 को प्रवीर चंद भंजदेव विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर देते है, अधिकारिक तौर पर 1 जनवरी 1948 को बस्‍तर रियासत भारत के अधीन आ जाता है, सबसे पहले विधान सभा चुनाव 1957 में होता है, जिसमें अविभाजित मध्‍यप्रदेश विधानसभा में प्रवीर चंद भंजदेव जगदलपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते है, और विजयी हो जाते है।

तत्‍कालीन सरकार द्वारा बस्तर के वनों और खनिजों का दोहन किया जाता है। जिससे महाराजा को ऐसा महसूस होता है, कि यहां के जो आदिवासी जनता (प्रजा) है। उनका शोषण हो रहा है। और वे उस शोषण के विरूद्व सरकार के खिलाफ आवाज उठाते है, और विभिन्‍न तरीके से हड़ताल, एवं धरना प्रदर्शन करके सरकार का ध्‍यान आकर्षण करना चाहते है, फिर भी जब सरकार का ध्‍यान उनकी ओर आकर्षित नहीं होती है, तो वे अपने विधायक पद से सन् 1959 को इस्‍तीफा दे देते है।

सन् 1961 को प्रवीर चंद भंजदेव को जेल भेज दिया जाता है, जब वे 1962 को जेल से बहार आ जाते है, और सोचते है कि अब लोकतांत्रिक तरीके से यहां की जनता के लिए अब लड़ाई लड़नी है। उसके बाद तत्‍कालीन बस्‍तर क्षेत्र की 10 विधान सभा सीटों में अपनी अलग पार्टी बनाकर कर उम्‍मीदवार खड़ा करतें है। और अगामी विधान सभा चुनाव में 10 में से 09 सीटों पर विजयी हासिंल करते हैं।

प्रवीर चंद भंजदेव (Praveer Chand Bhanjdev) की मृत्‍यु एंव बस्‍तर महल गोली कांड कब हुआ ?

महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव की लोकप्रियता बस्‍तर में यहां के जनता के प्रति बहुत ही ज्‍यादा थी। वे बस्‍तर की प्रजा के लिए अपना सब कुछ न्‍यौछावर कर दिये। 24 मार्च 1966 को उनके राजमहल को घेराबंदी किया जाता है, और उन पर गोलियां चलाई जाती है। 25 मार्च 1966 को बस्‍तर महल गोली कांड होता है, और प्रवीर चंद भंजदेव की उनके ही राजमहल में मृत्‍यु हो जाती है।

प्रवीर चंद भंजदेव के पूर्वज एवं परिवारिक सदस्‍य  कौन कौन थे ?

राजा प्रवीर चंद भंजदेव के राज परिवार में उनके पूर्वज नाना जी रूद्रप्रताप देव, माता जी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी, पिता प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव, एवं इनके चार भाई बहन थे, सबसे बड़ी बहन का नाम कमला देवी एवं दूसरे नंबर पर स्‍वयं प्रवीर चंद भंजदेव, तीसरे नंबर पर उनके भाई विजय चंद भंजदेव चौथे नंबर पर उनकी छोटी बहन गीता देवी थी।

बस्‍तर जगदलपुर का एयरपोर्ट कब बना था ?

प्रवीर चंद भंजदेव की माता जी बस्‍तर की महारानी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी को अपेंडिक्‍स की बिमारी हो जाती है, जिसका ईलाज कराने के लिए उन्‍हे पहले रायपुर फिर लंदन ले जाया जाता है। जहां पर उनकी मौत हो जाती है। मौत के बाद उन्‍हे वहीं पर दफना दिया जाता है। बाद में विरोध करने के उपरांत उनकी अस्थियां लाने के लिए बस्‍तर जगदलपुर में एयरपोर्ट बनाया जाता है।

निष्‍कर्ष:-

बस्‍तर रियासत के अंतिम महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव यहां के जनता के लिए बहुत की लोकप्रिय थे, उनकी लोकप्रियता इसी अंदाज से लगाया जा सकता है, कि बस्‍तर में दंतेश्‍वरी मांई जी के फोटो के साथ महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव जी का फाटो लोग अपने घरों में लगाते हैं, इतने वर्ष बीत जाने बाद भी प्रवीर चंद भंजदेव बस्‍तर के लोगों में आज भी जीवित है।

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FaQs

प्रवीर चंद भंजदेव का जन्‍म कब एवं कहां हुआ था ? When and where was Praveer Chand Bhanjdev born?

25 जून 1929 को शिलांग में।

प्रवीर चंद भंजदेव के पिता का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chand Bhanjdev’s father?

प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव।

प्रवीर चंद भंजदेव के माता का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chand Bhanjdev’s mother?

प्रफुल्‍ल कुमारी दवी।

प्रवीर चंद भंजदेव की शादी कब हुई थी ? When did Praveer Chand Bhanjdev get married?

04 जुलाई 1961 को ।

प्रवीर चंद भंजदेव की पत्नि का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chandra Bhanjdev’s wife?

महारानी शुभराज कुमारी।

छत्‍तीसगढ़ की एकमात्र महिला शासिका कौन थी ? Who was the only woman ruler of Chhattisgarh?

महारानी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी।

बस्‍तर महल गोली कांड कब एवं कहां हुआ था ? When and where did the Bastar Mahal shooting incident take place?

25 मार्च 1966 को बस्‍तर राजमहल में।

राज्‍य अंलकरण पुरस्‍कार तिरंदाजी के क्षेत्र में किसके सम्‍मान में दिया जाता है ? In whose honor is the State Decoration Award given in the field of archery?

प्रवीर चंद भंजदेव के सम्‍मान में।

प्रवीर चंद भंजदेव के पिता कौन से वंश के शासक थे ? Praveer Chand Bhanjdev’s father was the ruler of which dynasty?

उड़ीसा के मयूरभंज वंश के।

छत्‍तीसगढ़ में सेंट ऑफ जेरूसेलम की उपाधि किसे दिया गया था ? Who was given the title of Saint of Jerusalem in Chhattisgarh?

रूद्र प्रताप देव।

APJ Abdul Kalam: Best Biography अब्‍दुल कलाम की जीवनी

APJ Abdul Kalam:

APJ Abdul Kalam: Ka Jeevan Parichay

APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम भारत के “मिसाईल मेन” भारत के 11 वें राष्‍ट्रपति, एक जानेमाने वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) एवं भारतीय आं‍तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विकास कार्य में अपना महत्‍वपूण योगदान दिये। तथा द्वितीय परमाणु परीक्षण में निर्णायक भूमिका निभाने के साथ-साथ कई सर्वोच सम्‍मान से सम्‍मानित हुए उनकी जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें संक्षिप्‍त में विस्‍तार से आगे जानेगें……।

एपीजे अब्‍दुल कलाम का प्रारंभिक जीवन (Early Life):

APJ Abdul Kalam: का जन्‍म सन् 15 अक्‍टूबर 1931 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्‍य के रामेश्‍वर जिला, धनुषकोड़ी गांव में एक मध्‍यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलाब्‍दीन एक नाविक थे, और मछुआरों को नाव किराये पर देते थे। मां आशियम्‍मा एक गृहणी थी, पांच भाई बहनों में एपीजे अब्‍दुल कलाम सबसे छोटे थे। वे अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए बचपन के दिनों में अखबार बांटा करते थे। आगे चलकर यही व्‍यक्ति भारत का मिसाईल मेन से लेकर भारत के जनवादी राष्‍ट्रपति के रूप में पूरी दुनिया में लोकप्रिय बन गये।

एपीजे अब्‍दुल कलाम की शिक्षा (Education):

APJ Abdul Kalam: की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्‍वरम के पंचायत स्‍कूल में हुई वे पढ़ाई में सामान्‍य थे, पर नई नई चीजों को सीखने जानने के लिए उनके अंदर जुनून था। बचपन मे पक्षियों को उड़ते देख डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम ने तय कर लिया था। की उन्‍हे आगे चलकर विमान विज्ञान के क्षेत्र में ही जाना है, उसके बाद आगे की शिक्षा St. Joseph’s College से एवं सन् 1950 में मद्रास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (MIT) से एरोनिटिकल इंजीनियरिंग (आंतरिक्ष विज्ञान) में स्‍नातक की शिक्षा पूरी की ।

व्‍यवसाय (Career):

APJ Abdul Kalam: अपनी पढ़ाई मद्रास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी से पूरी करने के बाद हावरक्राप्‍ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान में प्रवेश लिया। उसके बाद वह सन् 1962 में भारतीय आंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आये। भारतीय वैज्ञानिक, अब्‍दुल कलाम ने देश के मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों को विकसित करने में  प्रमुख भूमिका निभाई ।

सफलताएं (Achievements) :

APJ Abdul Kalam: को मिसाईल मेन के नाम से भी जाना जाता है, वे एक वैज्ञानिक, इंजीनियर, के रूप में विख्‍यात थे। उन्‍होने बहुत सारे मिशन का नेतृत्‍व किया और सफल भी हुए। उन्‍हे पद्म भूषण, पद्म विभूषण, और भारत रत्‍न जैसे बड़े बड़े सम्‍मानों से नवाजा गया। और भारत के 11 वें राष्‍ट्रपति के रूप में भी चुने गये।

APJ Abdul Kalam:निधन (Death):

डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम 27 जुलाई सन् 2015  की शाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में “रहने योग्‍य ग्रह” पर एक व्‍याख्‍यान दे रहे थे तब उन्‍हे कार्डियक अरेस्‍ट (दिल का दौरा) पड़ा और वे बेहोश कर गिर पड़े लगभग 6:30 बजे उन्‍हे गंभीर हालत में बेथानी अस्‍पताल में में लाया गया, और शाम 7:45 बजे उनका निधन हो गया।  

एपीजे अब्‍दुल कलाम का पूरा नाम क्‍या है ? : (APJ Abdul Kalam: Full Name)

एपीजे अब्‍दुल कलाम का पूरा नाम “अवुल पाकिर जैनुलाब्‍दीन अब्‍दुल कलाम” था। जिसमें मतलब अवुल उनके परदादा पी मतलब पाकिर उनके दादा जे मतलब जैनुलाब्‍दीन  उनके पिता और अब्‍दुल कलाम उनका खुद का नाम था।

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एपीजे अब्‍दुल कलाम को प्रदान किया गया सम्‍मान/पुरस्‍कार: (APJ Abdul Kalam: Award)
क्र.पुरस्‍कार/सम्‍मान का नामसम्‍मान का वर्ष
1पद्म भूषण1981
2पद्म विभूषण1990
3विशिष्‍ट शोधार्थी1994
4भारत रत्‍न1997
5इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय एकता पुरस्‍कार1997
6वीर सावरकर पुरस्‍कार1998
7रामानुजन पुरस्‍कार2000
8डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स की मानद उपाधि2007
9किंग चार्ल्‍स मेडल2007
10डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स एण्‍ड टेक्‍नोलॉजी की मानद उपाधि2007
11डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स मानद उपाधि2008
12डॉक्‍टर ऑफ इंजीनियरिंग मानद उपाधि2008
13वॉन कार्मन विंग्‍स अंतराष्‍ट्रीय अर्वाड2009
14हूवर मेडल2009
15मानद डॉक्‍टरेट2009
16डॉक्‍टर ऑफ इंजीनियरिंग2010
17आइ ई.ई.ई. मानद सदस्‍यता2011
18डॉ. ऑफ लॉज मानद उपाधि2012
19डॉ. ऑफ साइन्‍स2014
APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम द्वारा लिखी गई पुस्‍तकें: (Books)
  1. विंग्‍स ऑफ फायर एन ऑटोबायोग्राफी
  2. मिशन ऑफ इंडिया ए विजन ऑफ इंडिया यूथ
  3. टर्निंग पॉइंट्स ए जर्नी थ्रू चैलेंजस
  4. द फैमिली एंड द नेशन
  5. स्पिरिट ऑफ इंडिया
  6. गवर्नेंस फॉर ग्रोथ इन इंडिया
  7.  रेगनिटेड साइंटिफिक पाथवेयस टू ए ब्राईटर फ्यूचर
  8. इंडिया 2020 ऐ विजन फॉर द न्‍यू मिलेनियम
  9. फेलियर टू सक्‍सेस लेजेंडरी लिव्‍स
  10.  थॉट्स फॉर चेंज वी कैन डू इट
  11. मैनिफेस्‍टो फॉर चेंज
  12. टारगेट 3 बिलियन
  13.  द साइंटिफिक इंडिया ए टवेंटी फर्स्‍ट सेंचुरी गाइड टू द वर्ल्‍ड अराउंड अस
  14. इन्‍डोमिटेवल स्पिरिट
  15. माय जर्नी ट्रांस्‍फॉरर्मिंग ड्रीम्‍स इनटू एक्‍शनस
  16. यू आर बोर्न टू ब्‍लॉसम टेक माय जर्नी बियॉन्‍ड
  17. द लुमिनिउस स्‍पार्क्‍स ए बायोग्राफी इन वर्स एंड कलर्स
  18. ब्‍योंड 2020 ए विजन फॉर टुमारो इंडिया
  19. इग्‍नाइटेड माइंडस अन्‍लेशिंग द पॉवर विथिन इंडिया
  20. यू आर यूनिक स्‍केल न्‍यू हाइट्स बाए थॉट्स एंड एक्‍शनस
  21. गाइडिंग सोल्‍स डायलॉग्‍स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ
  22. ट्रांस्‍सन्‍डेंस माई स्पिरिचुअल एक्‍सपीरियंसीस
  23. फोर्स योर फ्यूचर कैंडिड, फोर्थराईट, इंस्‍पाइरिंग
  24. द गाइडिंग लाइट ए सिलेक्‍शन ऑफ कोटेशन फ्रॉम माई फेवरेट बुक्‍स
  25. इन्स्पिरिंग थॉट्स कोटेशन क्‍यूटेशन सीरीज
APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम के महान विचार:-
  • इससे पहले की सपने सच हो आपको सपने देखने होगें।
  • शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा  है, किसी व्‍यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्‍य को आकार देता है।
  • अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो।
  • विज्ञान मानवता के लिए एक खूबसूरत तोहफा है, इसे हमें बिगाड़ना नहीं चाहिए।
  • इंतजार करने वाले को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।
  • मनुष्‍य के लिए कठिनाईयों का होना बहुत जरूरी है क्‍योंकि कठिनाईयों के बिना आंनद नहीं लिया जा सकता।
  • सपने हो नही जो आप सोते समय देखते हो, सपने हो है जो आपको सोने नही देते।