Gundadhur Free Biography In Hindi 1 गुंडाधूर का जीवन परिचय

Gundadhur:  बस्‍तर में भूमकाल विद्रोह के जननायक।

Gundadhur: भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल के अनेक महान क्रांतिकारी वीरों में बस्‍तर के अनेक क्रांतिकारियों का नाम सामने आता है, जिन्‍होने देश  लिए अपना सब-कुछ न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों के साथ आजादी के लड़ाई में अपना एक अलग योगदान दिया है, जिनका नाम  इतिहास में हमेशा के लिए याद किया जायेगा। तो आईये जानते है। बस्‍तर में भूमकाल विद्रोह के जननायक अमर शहीद वीर गुंडाधूर के जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें।

Gundadhur: का जीवन परिचय

गुण्डाधूर (Gundadhur) का जन्म बस्तर अंचल के एक नेतानार नामक  छोटे से गाँव में धुरवा जनजाति परिवार में हुआ था। यह वीर युवक सन् 1910 के भूमकाल विद्रोह का प्रमुख सूत्रधार था। बस्‍तर में हजारों आदिवासियों के प्रेरणा स्‍त्रोत और भूमकाल विद्रोह के जननायक वीर शहीद गुंडाधूर के नेतृत्‍व में आदिवासियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजी शासन के खिलाफ डटकर सामना किया और बस्‍तर के आदिवासियों के हक अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी बस्‍तर की प्राकृतिक संपदा को लूट रहे अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई और बस्‍तर को एक अगल पहचान दिलाई।

गुंडाधूर (Gundadhur) का अंग्रेजों के विरूत्द्ध आजादी के लड़ाई में योगदान ?

छत्‍तीसगढ़ का दक्षिणी भाग बस्‍तर क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, 1 फरवरी 1910 को समूचे बस्‍तर में एक विद्रोह का भूचाल आया  जिसे भूमकाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस समय अंग्रेजों के दमनकारी नीति के कारण बस्‍तर में भूमकाल के रूप में प्रकट हुआ। इसका संदेश आम की टहनियों में लाल मिर्च बांधकर गांव गांव भेजा जाता था ।

विद्रोह में सबसे पहले अंग्रेजों के संचार तंत्र को नष्‍ट कर अंग्रेजों के समर्थक कर्मचारियों को भयभीत किया गया। तब रायपुर से मेजर गेयर और डी ब्रेड को बस्‍तर आना पड़ा अंग्रेजों ने बहुत ही क्रूरतापूर्वक ग्रामों को जलाना शुरू कर दिया, और सैकड़ो लोगों को फांसी पर लटकाया गया । और यह विद्रोह मई 1910 तक कुचल दिया गया। वीर गुंडाधूर ने दोबारा अपने साथियों को एकत्रित करके बस्‍तर के एक ग्राम आलनार में अंग्रेजों के विरूद्ध मुकाबला शुरू किया, लेकिन इस बार सोनू मांझी नाम के एक विश्‍वसाघाती व्‍यक्ति ने इसकी सूचना अंग्रेजों का दे दी ।

अंग्रेजों ने अमर शहीद वीर गुंडधूर के साथियों को चारों तरफ से घेर लिया और इस आंदोलन से जुड़े सैकड़ो लोगों पर गोलियां चलवाई सभी मारे गये। किंतु अ्ंग्रेजों के बंदूक का सामना करते हुए वीर गूंडाधूर बच निकले और अंग्रेजों द्वारा बस्‍तर का कोना कोना छान मारने के बावजूद भी वे अंत तक पकड़ में नहीं आये। 35 साल की उम्र में गुंडाधूर ने एसे लड़ाई छेड़ी कि अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। कुछ समय के लिए अंग्रेजों को  गुफा मे छिपना पड़ा था। ऐसे महान क्रांतिकारी वीर गुंडाधूर को लोग आज भी याद करते है, और उनकी भूमकाल की गाथा आज भी बस्‍तर की लोक गीतों में सुनाई जाती है।

Gundadhur: गुंडाधूर को भूमकाल विद्रोह 1910 का जननायक क्‍यों कहा जाता है ?

बस्‍तर में राजा रूद्रप्रताप देव के शासन काल में अंग्रेजों ने बस्‍तर में एक ऐसा दीवान नियुक्‍त किया था। जो अंग्रेज शासन के अधीन काम करता था। वह बस्‍तर के आदिवासियों के साथ शोषण और उन पर अत्‍याचार करता था। उनसे काम लेकर मजदूरी नहीं देते थे। उस दीवान का नाम बैजनाथ पंडा था। बस्‍तर के लोगों को कोई समस्‍या होने पर राजा से मिलने नहीं दिया जाता था।

यह सब देखकर लोगों को समझ आने लगा की यह सब अंग्रेजों की दमनकारी नीति और यहां के लोगों का भोलेपन का परिणाम है, जिससे जनता में चिंता होने लगी सन् 1909 में जनता ने बस्‍तर राजा के चाचा लाल कालेन्‍द्र सिंह और उनकी सौतेली मॉ रानी सुवर्ण कुंवर के साथ मिलकर एक सभा का आयोजन किया।हजारों की संख्‍या में लोग इन्‍द्रावती नदी के तट पर एकत्रित हुए।

इस सभा में सर्वसम्‍मति से एक वीर साहसी नव युवक गुंडाधूर को इस विद्रोह का नेता चुना गया। गुंडाधूर बस्‍तर के नेतानार नामक गांव का एक निडर और पराक्रमी था। उस समय लोग गुंडाधूर को बागा धुरवा के नाम से जानते थे। जिन्‍होने ने 1910 में अंग्रे‍जों के खिलाफ शुरू की गई भूमकाल विद्रोह का नेतृत्‍व किया इस कारण शहीद वीर गुंडधूर को भूमकाल विद्रोह 1910 का जननायक कहा जाता है।

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Gundadhur:  भूमकाल दिवस कब मनाया जाता है ?

सन् 1910 में भूमकाल विद्रोह का आंरभ होता है। वीर गुंडाधूर के नेतृत्‍व में इस आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाती है, इस आंदोलन को स्‍थानीय बोली में भूमकाल कहा जाता है। क्रांति का संदेश  गांव गांव तक लोगों में पहुंचाने के लिए आम की टहनियों में लाल मिर्च बांधकर भेजा जाता है, जिसे लोग स्‍थानीय भाषा में डारामिरी कहते थे।

सबसे पहले बस्‍तर में 2 फरवरी 1910 को इस भूमकाल आंदोलन की शुरूआत होती है, और बस्‍तर के पुसपाल बाजार को सबसे पहले लूटा जाता है। अंग्रेजों के थाने में आग लगा दिया जाता है, और आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया जाता है। बस्‍तर की अस्मिता बचाने के लिए अ्ंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई इस लड़ाई में लगभग 25 हजार लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी। इस आंदोलन की दास्‍तान आज भी इतिहास में पन्‍नों में दर्ज है। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 10 फरवरी को वीर शहीद गुंडाधूर के बलिदान दिवस पर भूमकाल दिवस मनाया जाता है।

गुंडाधूर (Gundadhur) सम्‍मान किस क्षेत्र में दिया जाता है ?

वीर गुंडाधूर एक महान सेनानी तिरांदाजी में माहिर छापामार युद्ध के जानकार एंव बस्‍तर के आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए तत्‍पर थे। छत्‍तीसगढ़ शासन ने उनकी स्‍मतिृ में साहसिक कार्य और द्वारा खेल के क्षेत्र में तीरंदाजी में उत्‍कृट प्रदर्शन के लिए गुंडाधूर सम्‍मान की शुरूआत किया है।

Birsa Munda Jayanti 2023 : Birsa Munda Kaun the I बिरसा मुंडा जयंती 2023

Birsa Munda Jayanti 2023 : Birsa Munda Kaun the I बिरसा मुंडा जयंती 2023

Birsa Munda Jayanti 2023

Birsa Munda Jayanti 2023

Birsa Munda Jayanti 2023: भगवान बिरसा मुण्डा एक भारतीय युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी व मुंडा जनजाति के लोकप्रिय लोक नायक थे, उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत के समय बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया था। यही वजह है कि बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व लोकनायक के रूप में स्‍वतंत्रता सेनानी के रूप में उभर कर दुनिया के सामने आये। आज के समय में भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और पूजते हैं तथा ‘धरती आबा’ के नाम से भी जानते हैं।

बिरसा मुंडा जयंती 2023 में कब है?

जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है कि 15 नवंबर 1875 में बिरसा मुंडा का जन्‍म मुंडा जनजाति में करमी मुंंडा व सुगना मुंडा दम्‍पति के घर में उलीहातु गांव में हुआ था इसलिये पुरेे भारत में प्रतिवर्ष 15 नवंबर को मनाया जाता है । इस साल यानि कि 2023 में भी 15 नवंबर 2023 को भारत के आदिवासी समुुुुदाय व पूरा भारत Birsa Munda Jayanti मनायेगा ।

Birsa Munda ka Janm Kab Hua ?

बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय के मुंडा जनजाति में 15 नवंबर 1875 में झारखंड के खुटी जिले के उलीहातु नामक गांव में हुआ था, बिरसा मुंडा करमी मुंडा माता और पिता सुगना मुंडा के सुपुत्र थे । इनकी प्रारंभिक शिक्षा साल्‍हा गांव में ही पूरा हुआ उसके बाद वे चाईबासा जी0ई0एल0 चार्च (गोस्नर एवं जिलकल लुथार) से अपनी आगे की शिक्षा प्राप्‍त की थी ।

बिरसा मुंडा विद्रोह कब हुआ?

1858-94 का सरदारी आंदोलन बिरसा मुंडा के उलगुलान का आधार बना, जो भूमिज-सरदारों के नेतृत्व में लड़ा गया था। 1894 में सरदारी लड़ाई मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण सफल नहीं हुआ, जिसके बाद आदिवासी बिरसा मुंडा के विद्रोह में शामिल हो गए।

Birsa Munda Ka Nidhan kab hua tha ?

मुंडा विद्रोह को दबाने के लिए बिरसा मुंडा को 1895 में अंग्रेजी शासन ने हजारी बाग केन्‍द्रीय जेल कारागर में दो साल कारावास की सजा दी सुनाई गई, अंतिम में 09 जून 1900 में कारागार में ही अंग्रेजों के द्वारा जहर देकर बिरसा मुंडा की जान ले ली अर्थात् बिरसा मुंडा ने अपनी अंतिम सांस 1900 को रांची के कारागर में ली। आज भी बिरसा मुंडा को उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

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बिरसा मुंडा के नाम पर बनाई गई स्‍मृतियां

बिरसा मुंडा ने अपनी 25 साल की बहुत ही कम उम्र मेंं ही लोकप्रियता हासिल की थी जिसके चलते आदिवासी बाहुल्‍य राज्‍य झारखण्‍ड शासन ने उनके नाम पर राज्‍य के कई प्रतिष्ठित जगहों का नाम भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर रखा है। जिनकी कुछ झलकिंया निम्‍नानुसार है –

  • Birsa Munda Hockey Stadium– बिरसा मुंडा इतनी लोकप्रियता हासिल की थी कि झारखंण्‍ड व उड़ीसा सरकार ने अंतराष्‍ट्रीय हॉकी स्‍टेडियम का नाम आदिवासी नेता एवं स्‍वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है । इस स्‍टेडियम में 20011 स्‍थायी सीटों की बैठने की क्षमता है। इस स्‍टेडियम को 29 जनवरी 2023 को गिनीज वर्ल्‍ड रिकार्ड द्वारा सबसे बड़े हॉकी स्‍टेडियम का दर्जा दिया गया है। जो कि 15 एकड़ की भूमि में बना है। यह स्‍टेडियम उड़ीसा के राउरकेला में स्थित है यह स्‍टेडियम पूरी तरह उड़ीसा सरकार के स्‍वामित्‍व अधिकार में है। इस स्‍टेडियम का संचालन व देख रेख खेल एवं युवा सेवायेंं, उड़ीसा सरकार के द्वारा किया जाता है।
  • Birsa Munda Airport- बिरसा मुण्डा Airport झारखण्ड स्थित एक व्‍यस्‍ततम हवाई अड्डा है। इसका प्रबन्धन व संचालन भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के द्वारा की जाती है, जो कि राँची शहर के हिनू मोहल्ले के समीप स्थित है और शहर के मुख्य स्थानो से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पूरे भारत का बीसवाँ सबसे व्यस्त Airport है। इस Airport का नाम झारखंड के युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुण्डा के नाम पर रखा गया है।