झिटकू मिटकी की प्रेम कहानी Jhitku Mitki’s Love Story

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झिटकू मिटकी की अमर प्रेम कहानी

Jhitku Mitki की ये कहानी है बस्‍तर क्षेत्र के कोण्‍डागांव जिले के अंतर्गत केशकाल विश्रामपुरी के पेन्‍ड्रावन गांव में रहने वाले सात भाईयों की एकलौती बहन मिटकी और उनके घर जमाई दामाद झिटकू की, जो आज भी बस्‍तर छत्‍तीसगढ़ में झिटकू मिटकी की प्रेम कहानी, अनोखी प्रेमकथा, सत्‍य प्रेम कहानी आदि नामों से प्रचलित है। तो आईये जानते है, झिटकू मिटकी की इस अमर प्रेम कहानी की गाथा आज की इस लेख में।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का इतिहास (History of Jhitku Mitki’s love story)

कहा जाता है, कि बहुत साल पहले गुलू और कूटा नाम के दो सगे भाई केशकाल विश्रामपुरी के अंतर्गत पेन्‍ड्रावन नामक गांव में परिवार बसाने के लिए आये थे। दोनों भाई में से एक के कोई संतान नही थे, और दूसरे के 8 संतान थे, जिसमें सात भाई और एक बहन थी। उनका पूरा परिवार बहुत ही खुशहाली से अपना जीवन यापन कर रहा था। और उसी समय गांव के नदी में वे सातों भाई एक बांध बना रहे थे।

उस बांध के पानी से वे खेती करके अनाज पैदा कर जीवन यापन करना चाहते थे। उस बांध को बांधते बांधते काफी दिन और कई साल हो गये थे। प्रतिदिन बांध को वे सातों भाई बांध कर शाम को घर आ जाते और सुबह जाकर दखते तो बांध फिर टूटा हुआ मिलता था। यह कई सालों से चला आ रहा था फिर भी वे कभी हार नहीं माने।

उन सातों भाईयों की एक बहुत ही प्‍यारी और दुलारी बहन थी। जिनका नाम था, मिटकी वे अपनी बहन को खूब चाहते थे। उसे अपने आंखों के तारा के रूप में अपने पास घर में ही रखना चाहते थे। अगर उनका शादी भी करेगें तो घर जमाई (लमसेना) के रूप में दामाद को घर में रखने की सोच रहे थे। अगर घर में कोई मिटकी के लिए रिश्‍ता भी लेकर आते तो वे उन्‍हे दूसरे घर में शादी के लिए देना नहीं चाहते थे। और इस बात को सातों भाईयों ने सोच कर रखे थे।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) की प्रेम कहानी की शुरूआत

बस्‍तर की परंपरा एवं संस्‍कृति सदैैव ही अनूठी रही है, आज भी बस्‍तर के गांव गांव में एक नृत्‍य नाचा होता है, जिसे पुसकोलांग या डंडा नृत्‍य कहते है। जिसमें गांव के आदमी (पुरूष) लोग अपनी संस्‍कृति एवं पोशाक के साथ कई दिनों तक अपने घर से बाहर निकल कर किसी दूसरे गांव में  पुसकोलांग नाचने के लिए जाते है, बात उसी समय की है जब उस पेन्‍ड्रावन गांव में पड़ोस के गांव से पुसकोलांग नाचने के लिए कई पुरूष एक साथ आते है, उसमे झिटकू भी शामिल रहता है, और साथ में नाचते रहते है।

उसी बीच झिटकू की नजर मिटकी के ऊपर पर पड़ता है, और मिटकी की नजर झिटकू के ऊपर पड़ता है। दोनो एक दूसरे को देखकर मोहित हो जाते है, और नजरें मिलाने लगते है। पहली नजर में ही उन दोनों को एक दूसरे के प्रति लगाव, प्रेम हो जाता है। झिटकू मन ही मन सोचने लगता है, कि काश वो लड़की मेरे जीवन साथी बनती उसी तरह मिटकी भी मन ही मन झिटकू के प्रति लगाव महसूस करने लगती है। और वे नृत्‍य करते हुए दूसरे गांव की ओर चल देते है।

मिटकी के लिए घर जमाई दामाद ढूंढने का सफर 

इधर मिटकी के सातों भाई भी अपनी बहन के लिए घर जमाई दामाद (लमसेना) खोजने की सोच रहे थे। कई दिन बीत गये अपनी बहन के लिए दामाद खोजते खोजते। अचानक एक दिन वे पड़ोस के उसी गांव में जाते है, जिस गांव के लोग पुसकोलांग नृत्‍य करने के लिए उनके गांव आये थे। और वे संयोगवश झिटकू के घर में ही चले जाते है। और उनके परिवार से मिटकी की शादी के लिए बात करते है, कि हमारे यहां एक लड़की है, जिसके लिए हम लोग घर जमाई दामाद खोज रहे है।

फिर झिटकू के परिवार वाले  भी कहते है, कि हम भी इसके लिए लड़की ढूंढ रहे है। और दोनो परिवार वाले शादी के लिए राजी हो जाते है। फिर एक दिन अच्‍छा समय देखकर मिटकी के परिवार वाले लड़के के घर जाते है, और नीति नियम को पूरा करके झिटकू को घर जमाई बनाकर अपने घर ले आते है। सब लोग खुशी खुशी रहते है। सातों भाई चाहते थे, कि झिटकू और मिटकी घर पर ही रह कर काम करें उनसे ज्‍यादा काम न करवायें। इस तरह से वे सातों भाई काम करने जाते थे।

लेकिन झिटकू के मन में भी रहता था कि वे भी उनके साथ काम करने के लिए जाएं एक दिन वह उनके साथ काम पर जाने के लिए पूछता है। फिर वे काम पर ले जाने के लिए तैयार हो जाते है। इस तरह से उस बांध को बांधने के बाद भी बार बार टूट जाने की बात गांव में रखते है। कोई आदमी रहता है, वह बताता है की पास के एक गांव में कोई बैगा रहता है, वहां जाकर देखो। तो मिटकी के कुछ भाई उस बैगा के पास जाते है, और अपनी परेशानी बताते है।

कई सालों हम लोग उस बांध को बांधने की कोशिश कर रहे है, दिन में बांध कर आते है, लेकिन सुबह फिर से वह टूट जाता है। तब वह बैगा बताता है कि आप जिस जगह में बांध को बांध रहे हो वहां पर नर बलि देने से बांध बंध जायेगा। और यह भी बताता है,‍ कि बलि अपने आदमी को नहीं देना है, किसी पराया आदमी की बलि देने से ही अपकी समस्‍या का हल होगा। फिर घर आकर ये सब बाते बतातें है, तो घर वाले मना कर देते है कि ऐसा करने से अगर लोगो को पता चलेगा तो बदनामी होगी।

झिटकू को बलि देने की कहानी

वे सातों भाई सोचते है कि अगर नरबलि नहीं देगें तो फिर उस बांध को कैसे बांध पायेंगे। इसी तरह कई दिन बीत गये कोई आदमी ही नहीं मिला वहां पर नरबलि देने के लिए तभी उन सातों भाईयों में एक भाई बोलता है, कि क्‍यों न हमारे घर जमाई दमाद को ही वहां बलि दे देते है। तो बाकि भाई लोग कहते है, कि ऐसा कैसे कर सकते है अगर ऐसे करेगें तो हमारी बहन का क्‍या होगा।

सभी भाई एक दूसरे से बात करते है, और सोचते है, बलि दिये बिना हमारा काम भी नहीं बनेगा। कई दिन बीत जाने के बाद सातों भाईयों में एक दिन आपसी सहमति बन जाती है। और वे तय कर लेते है, कि अपने घर जमाई दमाद को ही वहां पर बलि देगें और अपने बहन के लिए कोई दूसरा पति ढूंढ लेगें दूसरे दिन जब सब लोग अपने काम पर एक साथ काम कर रहे होते है।

तभी उसी बीच एक भाई झिटकू का हाथ को पकड़ता है। और बाकी भाई लोग टंगिया फावड़ा और कुदाल से झिटकू को मार कर वहीं पर बांध के पार में दफना कर उसकी बलि दे देते है। उसी समय घर में मिटकी सभी काम पूरा करने के बाद दोपहर को आराम करते रहती है। एक झपकी सी ले रही होती है। तभी अचानक मिटकी को सपना आता है, कि उसके भाई लोग झिटकू को दौड़ा दौड़ा कर मार रहे है, उनका नींद अचानक खुलता है, मन में बैचैनी सी होने लगती है।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का अंत

फिर सोचती है कि उसके भाई लोग ऐसा नहीं कर सकते क्‍योंकि वे सभी उनसे बहुत ही लाड़ प्‍यार करते है। कुछ समय बाद उसके भाई लोग घर आ जाते है, तो वह पूछने लगती है कि झिटकू कहां है, तो सभी भाई अलग अलग बाते बनाकर बहकाने की कोशिश करतें है। फिर वह उस सपने के बारे में सोचती है, और वह उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ती है। और झिटकू झिटकू की आवाज देते हुए ढूंढने लगती है।

लेकिन कही भी झिटकू नजर नहीं आता है फिर उस बांध के पार में मिट्टी में दफन झिटकू का हाथ दिखाई देता है। वह उसे बहार निकालती है। चूंकि उन दोनो का शादी नहीं हुआ रहता है। इस प्रकार से मिटकी भी उसी बांध के गहरे पानी में कूदकर अपनी जान दे देती है।

झिटकू मिटकी की मरने के बाद की स्थिति 

उसी साल उस पेंड्रावन गांव में भारी अंकाल भूखमरी पड़ जाता है। बारिश नहीं होता आदमी लोग बीमार पड़ते है। पूरे गांव में महामारी फैल जाता है। पशु पक्षी मर रहे होते है, गांव में सन्‍नाटा छा जाता है उसके बाद वे सातों भाई फिर उसी बैगा के पास जाते है, तो वह बताता है कि आप जिसे बलि दिये थे। और आपकी बहन की आत्‍मा भटक रहें है।

अब उनको देवी देवता के रूप गांव में स्‍थान देकर मानना पड़ेगा। और वैसे ही किये फिर अकाल, भूखमरी गरीबी दूर हो गया। और लोगों में धीरे धीरे इस बात पर विश्‍वास हाेने लगा। तब से लेकर आज तक झिटकू बाबा, मिटकी माता जिसे गपादाई के नाम से भी लोग आराध्य देवी के रूप में पूजते हैं, आज भी विश्रामपुरी के उस गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु मिटकी Jhitku Mitki के नाम से चैत्र माह में मंडई मेला का आयोजन किया जाता है। जहां पर उन्‍हे पेंड्रावंडीन माता के रूप में पूजा जाता है।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) बस्‍तर आर्ट (शिल्‍पकला) के रूप में

बस्‍तर के कलाकार Jhitku Mitki की प्रेम कहानी को आज भी अपनी कलाओं में संजोकर जिवित रखे हुए है। काष्ठ और मेटल से बनी यह मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रचलित हैं, बस्तर संभाग के कई क्षेत्रों में आज भी झिटकु-मिटकी की मूर्तियां बनाई जाती हैं, मेटल से बनी इन प्रतिमाओं में झिटकू की पहचान हाथ में वाद्य यंत्र और मिटकी की पहचान हाथों मे बांस की टोकरी से की जाती है, एवं प्रेम करने वालो के दिलों में उनकी अमर प्रेम कहानी हमेशा के लिए जिवित है।

लोग इन प्रेमी जोड़ों के प्रतीक कहलाने वाले Jhitku Mitki की मूर्ति ले जाते हैं. इन्हें अपने घर में रखना शुभ मानते हैं और इस अमर प्रेम कहानी के किस्‍से देश प्रदेश ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी सुनाएं जाते है।

झिटकू मिटकी पर बनी फिल्‍म (film based on jhitku mitki)

Jhitku Mitki की प्रेम कहानी पर एक फिल्‍म भी बनाया गया है, जिसके निर्देशक राजा खान एवं झिटकू का मुख्‍य किरदार लालजी कोर्राम एवं मिटकी का किरदार बाम्‍बे की ईरोइन लवली द्वारा निभाया गया है। और यह फिल्‍म पूरी तरह से झिटकू और मिटकी की प्रेम कहानी पर आधारित है।

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