Bade Tariya Kumhari I बड़े तरिया कुम्‍हारी I मनोरंजन पार्क।

Bade Tariya Kumhari

Bade Tariya Kumhari | बड़े तरिया कुम्हारी दुर्ग

Bade Tariya Kumhari: छत्‍तीसगढ़ राज्‍य पर्यटन, दर्शनीय स्‍थल और तीर्थ स्‍थल के लिए अपने आप में मशहूर होता जा रहा है। जिसके चलते छत्‍तीसगढ़ शासन द्वारा दर्शनीय स्‍थलों, एवं मनोरंजन पार्क को विकसित करने में विशेष पहल किया जा रहा है। इसी कड़ी में आज हम कुम्‍हारी दुर्ग के Bade tariya kumhari मनोरंजन पार्क के बारे में बताने वाले है। जो आजकल काफी चर्चित है। जहां घूमने के लिए लोगों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। यह पार्क एक अनूठा और रोचक स्‍थान है। जो लोगों को आत्‍मनिर्भरता के साथ मनोहर वातावरण में मनोरंजन का भरपूर आनंद प्रदान करता है।

बड़े तरिया मनोरंजन पार्क कहां स्थित है?

Bade tariya kumhari मनोरंजन पार्क छत्‍तीसगढ़ रायपुर से 11 किमी की दूरी पर दुर्ग-भिलाई जिलें में कुम्‍हारी नामक जगह में 18 एकड़ क्षेत्र में 26 करोड़ की लागत से बनाया गया है। Bade tariya मनोरंजन पार्क कुम्‍हारी से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह दुर्ग में स्थित इस समय का सबसे अधिक घूमें जाने वाली जगह बन गई है, क्‍योंकि यह बहुत ही आकर्षक मनोरंजन पार्क है। यह मनोरंजन पार्क विभिन्‍न प्रकार के आकर्षणों का केन्‍द्र बिन्‍दु है। जहां आप अपने दोस्‍तों और परिवार के साथ आनंदमय समय बिता सकते है।

Bade Tariya Kumhari I की खास बातें।

अगर आप घूमने जाने का मन बना रहें है, तो कुम्‍हारी दुर्ग का Bade tariya मनोरंजन पार्क आपके लिए एक बेहतर जगह हो सकती है। यह पार्क प्रतिदिन शाम 5 बजे से रात 10 बजें तक दर्शकों के लिए खुला रहता है। यहां आपको एक साथ कई मनोरंजन के साधन देखने को मिल जायेंगे, मेट्रो सिटी के तर्ज पर विकसित तालाब में लेजर विथ म्यूजिकल फाऊंटेन लगाया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। साथ ही साथ फूड स्टाल, ग्रीन वाकिंग टर्नल, टाय ट्रेन, आर्च व सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण भी किया गया है। जों आकर्षण के केंद्र हैं। जिसे देखने के लिए लोगों में गजब का उत्‍साह रहता है।

बड़े तरिया कुम्‍हारी में मनोरंजन के क्‍या क्‍या साधन है?

छत्‍तीसगढ़ शासन ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भिलाई क्षेत्र में करोड़ो रूपये खर्च करके Bade tariya kumhari मनोरंजन पार्क बनाया है। इस मनोरंजन पार्क का मुख्‍य गेट आकर्षक तरीके से डिजाईन किया गया है, इसके मुख्‍य द्वार के ऊपर एक बैठी हुई चील की प्रतिमा बनाई गई है, जिसे सामने से देखने पर बहुत ही सुंदर प्रतीत होता है। और आपको इस पार्क में अंदर जाने के लिए 10 रूपये का टिकट लेना पड़ेगा । पार्क के अंदर स्थित मनोरंजन के साधनों के बारे में नीचे विस्‍तार से बताने वाले है।

  • लेजर विथ म्‍यूजिकल फाउंटेन (Laser With Musical Fountain)

इस लेजर विथ म्‍यूजिकल फाउंटेन में लेजर की रोशनी द्वारा गीत-संगीत को संगीतमय तरीके से प्र‍दर्शित किया जाता है। जो देखने में बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है। यह शो प्रतिदिन शाम 7:30 बजे शुरू होता है। इस शो को देखने के लिए 20 रूपये शुल्‍क देना पड़ता है। और यह शो 13 मिनट का होता है। इस शो को 1 दिन में सिर्फ 2 बार ही दिखाया जाता है। जिसमें छत्‍तीसगढ़ की लोक कला संस्‍कृति, पंरपरा, एवं प्राकृतिक स्‍थलों को दिखाया जाता है। शो चालू होने से पहले बड़े तरिया पार्क के लाइटों को बंद कर दिया जाता है। जिससे लेजर लाईट अच्‍छे से प्रदर्शित हो और लोगों को आकर्षक लगे।

  • बुलेट टॉय ट्रेन (Bullet Toy Train)

Bade tariya मनोरंजन पार्क में बुलेट टॉय ट्रेन की भी सुविधा उपलब्‍ध है। इस टॉय ट्रेन को भारत में चलने वाले वंदे भारत ट्रेन की तर्ज पर डिजाईन किया गया है। इस टॉय ट्रेन में बैठने के लिए टिकट शुल्‍क 30 रूपये देना पड़ता है। जिसमें 48 बच्‍चे एक साथ बैठकर इस टॉय ट्रेन का मजा ले सकतें है। और इस टॉय ट्रेन में बैठाकर बड़े तरिया के 2-3 चक्‍कर घुमाया जाता है। यह विशेषकर बच्‍चों के लिए बनाई गई है। जिसमें बैठने के लिए बच्‍चों में खासा उत्‍साह देखने को मिलता है। और बच्‍चे आनंदित हो उठते है।

  • लक्ष्‍मण झूला (Lakshman Jhula)

इस Bade tariya kumhari पार्क में लक्ष्‍मण झूला को तरिया के बीचों बीच तिरगें के तीन रंगों से बनाया गया है। जिससे रात के समय में पर्यटकों को और भी आकर्षक और मनमोहक नजारें देखने को मिल जाते है। यह झूला तीन रंगों के प्रकाश से सुसज्जित होती है। जिससे झूले की खूबसूरती में चार चांद लग जाती है।  

  • हरा सुरंग (Green Tunnel)

इस खूबसूरत मनोरंजन पार्क में एक हरा सुरंग का निर्माण किया गया है, जिसे Green Tunnel के रूप में भी जाना जाता है। यह ग्रीन टनल प्रवेश द्वारा के कुछ ही दूरी पर बनाया गया है। जहां पर लोग सुबह सैर करने के लिए आते है। इस टनल के दोनों ओर हरे भरे फूल पौधें का रोपण किया गया है। जिससे आस पास हरियाली का खूबसूरत महौल दिखाई देता है। और इस टनल के नीचे मानव निर्मित आर्टिफिशियल घास लगाई गई है। जो बिलकुल असली घास की तरह ही लगती है। जिसमें चलकर लोगों को अतिआनंद की प्राप्ति होती है।

  • सस्‍पेंशन ब्रिज (Suspension Bridge)

इस ब्रिज का निर्माण तरिया के मध्‍य में किया गया है, जो इधर उधर हिलता-डुलता है, और इसके बगल में दो अलग अलग जगहों पर शेर के मुंह से पानी निकलता हुआ दर्शाया गया। जिसमें ऊपर का भाग शेर ओर नीचे का भाग मछली का है। यह सिंगापुर की तर्ज पर बनाया गया है।

  • चौपाटी (Chaupati)

इस Bade tariya kumhari पार्क के चौपाटी में विभिन्‍न प्रकार के छत्‍तीसगढ़ी फूड समाग्री, छत्‍तीसगढ़ी मिलेटस और देशी-विदेशी फूड सामग्री अलग अलग डिसेस, मिल जायेगें। और इस मनोरंजन पार्क में मनोरंजन करते हुए खाने में रूचि रखने वाले लोग इन स्‍वादिष्‍ट चीजों को खाकर आनंद ले सकते है।

बड़े तरिया कुम्‍हारी मनोरंजन पार्क आने का सही समय क्‍या है?

यह Bade tariya मनोरंजन पार्क खुलने का समय शाम 5 बजे और रात्रि 10 तक रहता है। इस बीच में आप किसी भी समय यहां आकर मनोरंजन साधनों का लुत्‍फ उठा सकते है। यहां अन्‍य समय में भी आ सकते है, लेकिन जो यहां के आकर्षण के केन्‍द्र बिन्‍दु हैं उन सुन्‍दर नजारों को आप अन्‍य समय में नहीं देख पायेंगें। इसलिए कोशिश कीजिए की शाम के समय में आये। जिससे इस स्‍थान का भरपूर आनंद ले सकें।

Chendru Mandavi: Tiger Boy चेंदरू मंडावी का जीवन परिचय

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FaQs-

बड़े तरिया मनोरंजन पार्क कहां स्थित है?

दुर्ग-भिलाई जिले के कुम्‍हारी में।

बड़े तरिया कुम्‍हारी कब बना?

2 जून 2023 ।

बड़े तरिया कुम्‍हारी पार्क में प्रवेश शुल्‍क कितना है?

10 रूपये मात्र ।

बड़े तरिया कुम्‍हारी खुलने का समय क्‍या है?

शाम 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक।

बड़े तरिया कुम्‍हारी कितने एकड़ क्षेत्र में फैला है?

18 एकड़।

बड़े तरिया कुम्‍हारी कितनी लागत से बना है?

26 करोड़ की लागत से।

बड़े तरिया कुम्‍हारी रायपुर से कितनी दूरी पर स्थित है?

11 किलोमीटर।

Chendru Mandavi: Tiger Boy चेंदरू मंडावी का जीवन परिचय

Chendru Mandavi: Tiger Boy

Chendru Mandavi The Tiger Boy

Chendru Mandavi: बस्‍तर में रहने वाले आदिवासी ट्राईबल का प्रकृति और जंगलों से गहरा लगाव होता है, वे इन जंगलो और जंगली जानवरों की तन मन से रक्षा करते है, इसलिए जंगली जनवरों और आदि‍वासियों के बीच दोस्‍ताना रिशता होता है। और इन जंगलो से ट्राईब्‍स का जीवन यापन होता है। आज हम इसी बस्‍तर के एक ऐसी आदिवासी शख्‍स के बारे में बताने जा रहे है, जिसका नाम था चेंदरू, और उनकी दोस्‍ती एक बाघ Tiger से थी जिसका नाम टेम्‍बू था।

आगे हम जानेगें कि कैसे एक आदिवासी बालक चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) और बाघ टेम्‍बू की दोस्‍ती परवान चढ़ी और आगे चलकर दूर दूर तक देश दुनिया में उनकी दोस्‍ती की धूम लोगों तक पहुंची जिससे चेंदरू को Tiger Boy के नाम से पुकारा जाने लगा, देश‍ विदेश से लोग उनसे मिलना चाहते थे। तो आईये जानते है, Tiger Boy चेंदरू और टेम्‍बू की कहानी विस्‍तार से……।

चेंदरू मंडावी का जन्‍म और जन्‍म स्‍थान

Tiger Boy के नाम से मशहूर चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) का जन्‍म छत्‍तीसगढ़ में नारायणपुर जिले के अंतर्गत अबूझमाड़ क्षेत्र के घने जंगलों में बसा एक ग्राम गढ़बेंगाल (गढ़बंगाल) में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) मुरिया जनजाति के थे, चेंदरू का बचपन इन घने जंगलों और जंगली जानवरों के बीच में गुजरा था।उनके दादाजी और पिताजी अच्‍छे शिकारी थे। वे जंगलों में शिकार करके एवं खेती करके अपना जीवन यापन करते थे। चेंदरू आगे चलकर Tiger Boy के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुए।

चेंदरू मंडावी का संक्षिप्‍त विवरण

नामचेंदरू मंडावी
उपनामटाइगर बाय Tiger boy
जातिमुरिया जनजाति
जन्‍म स्‍थानगढ़बेंगाल (गढ़बंगाल)
जिला नारायणपुर
राज्‍य छत्‍तीसगढ़
देशभारत
पिता का नाम
माता का नाम
जीवन साथी का नामरैनी मंडावी
भाई का नामश्रीना‍थ सिंह मंडावी
पुत्र का नाम शंकर मंडावी बड़ा पुत्र एवं जैराम मंंडावी छोटा पुत्र
उसके दोस्‍त टाइगर का नाम टेम्‍बू
उनके फिल्‍म का नाम एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga)
मृत्‍यु/आयु18 सितबंर 2013 उम्र 78 साल
प्रसिद्धि बाघा टेम्‍बू Tiger से दोस्‍ती/ एवं उन पर बनी फिल्‍म जंगल सागा

चेंदरू मंडावी और बाघ (टेम्‍बू) Tiger की दोस्‍ती

चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) और बाघ (टेम्‍बू) की दोस्‍ती पूरी दुनिया में किसी अजूबे से कम नही था। चेंदरू बचपन से ही बहुत बहादूर था। उनके दादा और पिताजी कुशल शिकारी थे एक दिन जब वे जंगल से शिकार करके वापस लौटे तो एक बांस के टोकरी में शेर के बच्‍चे को भरकर चेंदरू के लिए उपहार लाये थे। जब उन्‍होने टोकरी खोली तो बाघ के बच्‍चे को देखकर चेंदरू बहुत खुश हुए। और इस मुलाकात से चेंदरू और बाघ की दोस्‍ती की शुरूआत हुई उस बाघ Tiger का नाम चेंदरू ने टेम्‍बू रखा।

चेंदरू हमेशा टेम्‍बू के साथ ही गांव और जंगलों में घूमा करते थे कभी जंगलों में घूमते हुए तेंदुए मिल जाते तो वह भी उनके साथ खेलने लगते चेंदरू और टेम्‍बू साथ साथ नदियों से मछली पकड़ते जब चेंदरू और टेम्‍बू रात को घर वापस आते तो चेंदरू की मां उनके लिए खाना बनाती। चेंदरू और टेम्‍बू साथ में ही खाते घूमते और खेलते थे। इन दोनो की पक्‍की दोस्‍ती थी। धीरे धीरे चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती की दास्‍तान पूरी दुनिया में फैल गई।

चेंदरू और बाघ टेम्‍बू की दोस्‍ती

चेंदरू मंडावी और टेम्‍बू Tiger पर बनी फिल्‍म

बस्‍तर के घनघोर जंगलों से घिरा छोटे से गांव का लड़का चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) ओर टेम्‍बू की दोस्‍ती की कहानी जैसे-जैसे इस दुनिया के सामने आई देश विदेश से लोगों में चेंदरू से मिलने की उत्‍सुकता बढ़ी चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती के किस्‍से जब स्‍वीडन के प्रसिद्ध फिल्‍म डायरेक्‍टर अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) को पता चली तो उन्‍होने बस्‍तर आकर एक ऐसा दृश्य देखा जिसमे एक इंसान और टाइगर एक दूसरे के दोस्‍त है। अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती से प्रभावित होकर पूरी दुनिया को दिखाने का फैसला किया।

इस तरह से सन् 1957 में उन्‍होने चेंदरू और टाइगर टेम्‍बू को लेकर एक फिल्‍म बनाई जिसका नाम द फ्लूट एंड द एरो (The flute and the arrow) था जिसे भारत मे एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga) नाम दिया इस फिल्‍म का मुख्‍य किरदार फिल्‍म के हीरो का रोल चेंदरू ने किया है। यह  फिल्‍म चेंदरू और टेम्‍बू टाइगर के दोस्‍ती पर फिल्‍माया गया है। फिल्‍म का संगीत पंडित रविशंकर ने तैयार किया था 75 मिनट की यह फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब सफल रही, इसकी सफलता को देखते हुए एन द जंगल सागा फिल्‍म को ऑस्‍कर पुरस्‍कार भी मिला।

बस्‍तर का पहला भारतीय हालीवुड हीरो चेंदरू मंडावी

सन् 1957 में जब चेंदरू और टेम्‍बू टाइगर को लेकर फिल्‍म बनाई गई उस समय चेंदरू (Chendru Mandavi) की उम्र महज 10 साल की थी और चेंदरू को इस फिल्‍म के लिए प्रतिदिन 2 रूपये मिलते थे। एन द जंगल सागा (En The Jungle Saga) फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर तो खूब सफल रही, साथ ही साथ यूरोपीय देशो में जब इस फिल्‍म को पर्दे पर दिखाया गया तो चेंदरू को खूब पंसद किया जाने लगा इस तरह से बस्‍तर का एक आदिवासी बालक भारत का पहला हालीवुड हीरो बन गया।

टाइगर बाय चेंदरू के नाम पर प्रकाशित किताब

अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) जब बस्‍तर फिल्‍म बनाने आये और द जंगल सागा फिल्‍म की सूटिंग की और इस फिल्‍म ने चेंदरू को दुनिया भर में मशहूर कर दिया। अरने सक्सडॉर्फ की पत्नि अस्त्रिड सक्‍सडॉर्फ एक अच्‍छे फोटोग्राफर थी उन्‍होने इस फिल्‍म की सूटिंग के दौरान चेंदरू की कई तस्‍वीरें खीचीं थी उन्‍होने चेंदरू की उन दुर्लभ तस्‍वीरों को एक किताब में प्रकाशित किया और शानदार किताब लिखी उस किताब का नाम उन्‍होने ‘चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ रखा इस तरह चेंदरू मंडावी के नाम से एक किताब भी प्रकाशित हुई।

स्‍वीडन से लौटने के बाद तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से हुई मुलाकात

द जंगल सागा फिल्‍म की सूटिंग बस्‍तर में लगभग 1 साल तक हुई। स्‍वीडन में दर्शक इस असली हीरो को पास से देखना चाहते थे फिल्‍म के निर्देशक अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) सूटिंग के कुछ समय बाद चेंदरू मंडावी को स्‍वीडन ले गये चेंदरू को वहां काला हीरो कहा गया गया अरने सक्सडॉर्फ ने चेंदरू को अपने घर में रखा था। करीब 1 साल तक चेंदरू स्‍वीडन में रहा और उस दौरान उन्‍होने स्‍वीडन देखा और स्‍वीडन के लोगों ने चेंदरू को।

स्‍वीडन में चेंदरू प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के माध्‍यम से अपने चाहने वाले लोगों से मुलाकात करते थे 1 साल बाद आखिरकार एक दिन चेंदरू अपने देश लौट आया लौटते हुए वे संमदर के रास्‍ते मुबंई पहुंचा। उन दिनों भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। नेहरू चेंदरू के लोकप्रियता के किस्‍से सुन चुके थे। उन्‍होने चेंदरू से मुलाकात की और पढ़ने के लिए कहा और नौकरी देने की बात भी कही लेकिन चेंदरू (Chendru Mandavi) के पिता ने मना कर दिया और वापस अपने गांव गढ़बंगाल बुला लिया।

चेंदरू मंडावी के दोस्‍त टेम्‍बू की मृत्‍यु

स्‍वीडन से चेंदरू (Chendru Mandavi) के लौटने के कुछ समय बाद उसके बचपन के दोस्‍त टेम्‍बू टाइगर की मृत्‍यु हो गई। टेम्‍बू के मृत्‍यु से चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) को गहरा अघात लगा। टेम्‍बू के बिना चेंदरू अपने आप को अकेला महसूस करते हुए उदास रहने लगे।

चेंदरू मंडावी की मृत्‍यु Death of Chendru Mandavi

अपने दोस्‍त टेम्‍बू की मृत्‍यु के बाद चेंदरू (Chendru Mandavi) अपने गांव गढ़बंगाल में धीरे धीरे अपनी पुरानी जिन्‍दगी में लौटा गुमनाम हो गया और गुमनामी की जिन्‍दगी जीते लंबी बिमारी से जूझते हुए चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) की 18 सितबंर 2013 को 78 वर्ष की आयु में मृत्‍यु हो गई।

जंगल सफारी नया रायपुर में चेंदरू का स्‍मारक

दुनिया भर में बाघों से दोस्‍ती का पैगाम देने वाले चेंदरू की मौत पर किसी ने उसे सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजली देने की जरूरत तक नहीं समझी। उसकी मृत्‍यु के पश्‍चात् बस्तर की इस प्रतिभाशाली गौरवगाथा की याद में छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर के जंगल सफारी में चेंदरू और उसके दोस्‍त टेम्‍बू का स्मारक बना कर सच्ची श्रद्धाजंली दी है।

चेंदरू पर्यावरण पार्क नारायणपुर

यह पर्यावरण पार्क नारायणपुर जिले का एक फेमस पार्क है, जिसे वनमंडल नारायणपुर के द्वारा विकसित किया गया है। इस पार्क में चेंदरू और टेम्‍बू की दोस्‍ती की प्रतिमा लगाई है। इसी तरह चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) की प्रसिद्धि के कारण उनके सम्‍मान मे नारायणपुर के नया बस स्‍टैण्‍ड चौक एवं ग्राम पंचायत गढ़बेंगाल में भी चेंदरू की प्रतिमा का अनावरण किया गया है।

चेंदरू पार्क नारायणपुर Chendru Park Narayanpur

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प्रश्‍नोत्‍तरी

चेंदरू मंडावी का जन्‍म कहां हुआ था?

नारायणपुर अबूझमाड़ के गढ़बेंगाल में।

Tige Boy के नाम से किसे जाना जाता है?

चेंदरू मंडावी । Chendru Manadavi

चेंदरू मंडावी के फिल्‍म का क्‍या नाम था?

द जंगल सागा।

चेंदरू मंडावी के दोस्‍त बाघ Tiger का क्‍या नाम था?

टेम्‍बू।

चेंदरू मंडावी कौन से जाति के थे?

मुरिया जनजाति।

चेंदरू मंडावी (Chendru Mandavi) के पत्नि का क्‍या नाम था?

रैनी मंडावी।

द जंगल सागा फिल्‍म के डायरेक्‍टर कौन थे?

अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff)

फिल्‍म के डायरेक्‍टर अरने सक्सडॉर्फ (Arne Sucksdorff) कहां के रहने वाले थे?

स्‍वीडन। Sweden.

द जंगल सागा फिल्‍म कब रीलिज किया गया था?

सन् 1957 में।

इस फिल्‍म के लिए चेंदरू को कितने रूपये मिलते थे?

2 रूपये प्रतिदिन।

चेंदरू मंडावी के नाम से प्रकाशित किताब का क्‍या नाम है?

चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ ।

‘चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर’ किताब किसने लिखी है?

अस्त्रिड सक्‍सडॉर्फ। Astrid Suxdorf.

चेंदरू मंडावी की मुलाकात किस प्रधानमंत्री से हुई थी?

पंडित जवाहर लाल नेहरू।

चेंदरू का स्‍मारक कहां बनाया गया है?

नया रायपुर के जंगल सफारी में।

चेंदरू पार्क कहां स्थित है?

नारायणपुर।

चेंदरू की मृत्‍यु कब हुई?

18 सितबंर 2013

PANDIT RAVISHANKAR SHUKLA : पंंडित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

PANDIT RAVISHANKAR SHUKLA : पण्डित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

Pandit Ravishankar Shukla: पंंडित रविशंकर शुक्‍ल की जीवनी

पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) एक भारतीय राजनेता और भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के सदस्‍य थे। उन्‍होने अपने कैरियर के दौरान मध्‍य प्रदेश के विकास और जन कल्‍याण के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये एवं मध्‍यप्रदेश राज्‍य के प्रथम मुख्‍यमंत्री के रूप में कार्य किया उनकी प्रशा‍सनिक योग्‍यता के कारण उन्‍हें “पंडित” का उपनाम दिया गया उनके योगदान के लिए पंडित रविशंकर शुक्‍ल को सम्‍मानित किया गया है, एवं भारतीय राजनीति में एक महत्‍वपूर्ण नेता के रूप में याद किया जाता है।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन Birth and early life of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त सन् 1877 को मध्‍यप्रदेश के सागर नामक शहर में एक साधारण परिवार में हुआ था। (Pandit Ravishankar Shukla) के पिताजी का नाम जगन्‍नाथ प्रसाद तथा माताजी का नाम तुलसी देवी था उनकी प्रारंभिक शिक्षा सागर में ही हुई उसके बाद उनके पिताजी जगन्‍नाथ प्रसाद अपने कारोबार के सिलसिले से छत्‍तीसगढ़ के राजनांदगांव आ गये और कुछ समय बाद रायपुर में आकर बस गये।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की शिक्षा Education of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) की शिक्षा के बारे में बात करें तो उनकी प्राथमिक शिक्षा सागर स्थित “सुंन्‍दरलाल पाठशाला” में हुई उन्‍हे 4 साल के आयु में उन्‍हे दाखिला करवाया गया और उन्‍होने 8 वर्ष की आयु में प्राथमिक स्‍तर की शिक्षा पूरी की, उसके बाद माध्‍यमिक शिक्षा भी सागर से पूरी की एवं हाईस्‍कूल की परीक्षा उन्‍होने रायपुर से उर्त्‍तीण किया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने इंटर की परीक्षा जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज Robertson College से उर्त्‍तीण की इस समय उनकी आयु 17 वर्ष थी। सन् 1899 में नागपुर के “हिस्लाेप काॅलेज” से स्‍नातक की पढ़ाई पूरी की और नागपुर से ही उन्‍होने एल.एल.बी. की पढ़ाई भी पूरी की और रायपुर में वकालत शुरू की।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने राष्‍ट्रीय आंदोलन में भाग लिया

पंडित रविशंकर शुुुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) बहुत ही प्रसिद्ध नेेेता व स्‍वतंत्रता सेनानी थे, उन्‍हाेेेने भारत के आजादी के आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्‍सा लिया नागपुर में पढ़ाई के दौरान शुक्‍ल जी का राष्‍ट्रीय आंदोलन से लगाव हो गया। वह 1898 में आयोजित 13 वें कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए अपने शिक्षक के साथ अमरावती गये। उन्‍होने प्रयाग कांग्रेस अधिवेशन 1910 में भाग लिया।

जलियांंवाला बाग हत्‍याकांड 1919 से आहत होकर उन्‍होने अपना संंम्‍पूर्ण समय देश को आजाद कराने के लिए लगाने का संकल्‍प किया। विदेशी वस्‍तुओं का बहिस्‍कार कर स्‍वेदशी के प्रचार हेतु उन्‍होने खादी वस्‍त्र धारण करना आरंभ किया अंग्रेजी शिक्षा का बहिस्‍कार एवं राष्‍ट्रीय शिक्षा के प्रचार के लिए उन्‍होने जनवरी 1921 में रायपुर में राष्‍ट्रीय विद्यालय की स्‍थापना करवायी।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की कैरियर के बारे में

पंडित रविशंकर शुुुक्‍ल नागपुर में LLB की पढ़ाई पूरी करने के बाद सरायपाली चले गये। और सूखा राहत कार्य का निरीक्षण करने लगे उनकी ईमानदारी और कर्तव्‍यनिष्‍ठा के लिए शुक्‍ल जी को पदोन्‍नत कर नायब तहसीलदार बना दिया गया। 1901 में उन्‍होने सर‍कारी नौकरी छोड़कर जबलपुर के “हितकारिणी स्‍कूल” में अध्‍यापन का कार्य शुरू किया 1902 में पंडित रविशंकर शुक्‍ल का विवाह भवानी देवी से हुआ। विवाह के बाद वे खैरागढ़ आ गये और उनकी नियुक्ति एक हाईस्‍कूल में प्राचार्य के पद पर हो गई।

सन् 1907 में पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) ने राजनांदगांव से वकालत की शुरूआत की, और कुछ समय बाद वे रायपुर आकर वकालत करने लगे। 1912 में रविशंकर शुक्‍ल के प्रयासों से कन्‍या कुब्‍ज महासभा की स्‍थापना हुई। उन्‍होने रायपुर के कन्‍या कुब्‍ज छात्रवास की स्‍थापना की। तथा कन्‍या कुब्‍ज मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल का राजनैतिक जीवन Political life of Pandit Ravi Shankar Shukla

पंडित रविशंकर शुक्‍ल सन् 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस जनरल कमेटी के सदस्‍य चुनेे गये। उन्‍हे रायपुर जिला परिषद् के सदस्‍य के रूप में 1921 में ही चुना गया। 1922 में रायपुर जिला परिषद केे एक सम्मेलन में उन्होंने कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को प्रवेश देने से मना कर दिया जिसके चलते उन्‍हे गिरफ्तार कर लिया गया। पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने सभी स्कूलों में वन्दे मातरम् का गायन और राष्ट्रीय झण्डे को फहराना अनिवार्य कर दिया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) सन् 1924 में पहली बार प्रांतीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए वे 1927 से 1936 ई. तक रायपुर जिला परिषद के अध्यक्ष के पद पर रहे। गांधी जी के नमक सत्‍याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन का रायपुर में नेेेेेतृत्‍व किया जिसके लिए उन्‍हे जेल भी जाना पड़ा। सन् 1933 में गांधी जी छत्‍तीसगढ़ प्रवास के दौरान रविशंकर शुक्‍ल जी के बुढ़ापारा स्थित निवास में ठहरे थे।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल ने बुनियादी शिक्षा सिद्धांत के अनुरूप विद्यामंदिर योजना शुरू की तथा पहली विद्यामंदिर का शिलान्‍यास गांधीजी के द्वारा किया गया। राजनीतिक चेतना और सामाजिक जागरूकता जगाने के लिए उनके द्वारा 1935 में महाकौशल साप्ताहिक पत्रिका की शुरूआत की तथा सन् 1935-36 में उन्‍होने महाकौशल साप्ताहिक पत्रिका शुरू किया। सन् 1936 में डॉ. खरे के मंत्रिमंडल में रविशंकर शुक्ल जी शिक्षा मंत्री बने।

सन् 1939 में मंत्रीमण्‍डल ने त्‍याग पत्र दे दिया, वे संविधान सभा के सदस्‍य भी थे। सन् 1940 में गांधीजी के व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह में भाग लेते हुए वेे पुन: गिरफ्तार कर लिये गये। और उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के प्रथम व्‍यक्तिगत सत्‍याग्राही होने का गौरव प्राप्‍त हुआ। 1942 में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा होने पर उन्‍होने इस आंदोलन में भाग लिया किंतु उन्‍हे मलकापुर रेेेेलवे स्‍टेशन में गिरफ्तार कर लिया गया।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल मध्‍यप्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंंत्री के रूप में

15 अगस्‍त सन् 1947 में उन्‍होने सीताबर्दी किलेे (नागपुर) में झंडा फहराया। 1946-47 के विधानसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला और पंडित रविशंकर शुक्ल सीपी, बरार (मध्‍यप्रदेश व आस-पास) क्षेत्र के मुख्यमंत्री बने। सन् 1952 में उन्‍हे फिर से राज्‍य का मुख्‍यमंत्री चुना गया। 1 नवम्बर 1956 को जब मध्य प्रदेश का पुर्नगठन हुआ तो पंडित रविशंकर शुक्ल सर्वसम्‍मति से नए राज्य के मुख्यमंत्री बनाये गये और 31 दिसबंर 1956 तक मुख्‍यमंत्री के पद पर रहे। इस तरह से उन्‍हे मध्‍यप्रदेश का प्रथम मुख्‍यमंत्री बनने का गौरव प्राप्‍त हुआ।

पंडित रविशंकर शुक्‍ल की मृत्‍यु Death of Pandit Ravi Shankar Shukla

मध्‍य प्रदेश के गठन के दो महीने बाद उनके मुख्‍यमंत्री के पद पर रहते हुए कार्यकाल के दौरान ही 1 दिसंबर 1956 को 80 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) निधन हो गया।

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सम्‍मान

पंडित रविशंकर शुुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) बहुत ही प्रसिद्ध भारतीय नेता व स्‍वतंत्रता सेनानी थे। उन्‍होने भारत की आजादी की आंदोलन एवं लड़ाई में बढ़ चढ़कर योगदान दिया। उनके इस योगदान को याद करते हुए भारत सरकार व राज्‍य सरकार ने उनके सम्‍मान में पुरस्‍कार व उनकी मूर्ति स्‍थापित किया है। आईये उनके सम्‍मान के बारे में जानते है……।

  • 1995-1996 से विधान सभा सचिवालय ने (Pandit Ravishankar Shukla) के सम्मान में उत्कृष्ट मंत्री पुरस्कार की स्थापना की है।
  • दिल्ली में संसद भवन परिसर में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) की प्रतिमा स्‍थापित है।
  • पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान– छत्‍तीसगढ़ शासन ने उनकी स्‍मृति में सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में अभिनव प्रयत्‍नों के लिए पंडित रविशंकर शुक्‍ल (Pandit Ravishankar Shukla) सम्‍मान स्‍थापित किया है, जो कि सन् 2001 में प्रारंभ किया गया और सामान्‍य प्रशासन विभाग द्वारा प्रदान किया जाता है। पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान के प्रथम प्राप्‍तकर्ता “केयूर भूषण” है। जिन्‍हे 2001 में यह सम्‍मान प्रदान किया गया था।
  • पंडित रविशंकर शुक्‍ल विश्‍वविद्यालय- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पंडित रविशंकर शुक्ल (Pandit Ravishankar Shukla) के नाम पर एक विश्वविद्यालय है। जिसकी स्‍थापना 1964 में उच्‍च शिक्षा विभाग द्वारा किया गया है।

प्रशनोत्‍तरी:-

1 पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म कब हुआ था?

2 अगस्‍त 1877 को ।

2 पंडित रविशंकर शुक्‍ल का जन्‍म कहां हुआ था?

मध्‍यप्रदेश के सागर नामक शहर में।

3 मध्‍यप्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंत्री कौन थे?

पंडित रविशंकर शुक्‍ल।

4 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के पिता का क्‍या नाम था?

जगन्‍नाथ प्रसाद।

5 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के माता का क्‍या नाम था?

तुलसी देवी।

6 पंडित रविशंकर शुक्‍ल के पत्नि का क्‍या नाम था?

भवानी देवी।

7 पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान कब प्रारंभ किया गया?

सन् 2001 मे।

8 पंडित रविशंकर शुक्‍ल सम्‍मान के प्रथम प्राप्‍तकर्ता कौन है?

केयूूर भूषण 2001।

9 पंडित रविशंकर शुक्‍ल विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना कब हुई थी?

सन् 1964 में।

10 पंडित रविशंकर शुक्‍ल की मृत्‍यु कब हुई?

1 दिसबंर 1956 को 28 वर्ष की आयु में।

गुरू घासीदास जयंती 2023 विशेषांक : घासीदास जी के 42 अमृतवाणी

गुरू घासीदास

गुरू घासीदास जंयती 2023

गुरू घासीदास सतनाम धर्म के संथापक एवं महान व्‍यक्तित्‍व के थे, जिन्‍होने समाज में फैले अशांति को दूर करते हुए सामाजिक न्‍याय, समानता, सच्‍चाई और शांति की वकालत की और सामाजिक उत्‍पीड़न से उत्‍पीड़ित‍ नीचली जातियों की मदद करने का प्रयास किया। जिसके परिणामस्‍वरूप उन्‍होने उस दौर की क्रूर एवं दमनकारी भारतीय समाज में एक नयी जागृति पैदा की। गुरू घासीदास जी के अनुयायी उन्‍हे “अवतारी पुरूष” मानते थे।

यही कारण है कि छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में गुरू घासीदास की जयंती व्‍यापक उत्‍सव के रूप में पूरे राज्‍य में बड़ी धूम-धाम श्रद्धा और उत्‍साह के साथ मनाई जाती है। गुरू घासीदास की जन्‍म भूमि और तपो भूमि गिरौदपुरी धामा तथा कर्मभूमि भंडारपूरी था। जहां उन्‍होने अपना उपदेश (संदेश) दिये थे। आज वे स्‍थान सतनामी समाज के धार्मिक और सांस्‍कृतिक तीर्थ स्‍थल के रूप में विख्‍यात हैं। इसलिएगुरु घासीदास बाबाकी जयंती पर हर साल 18 दिसंबर को एवं पूरे माह भर बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

इस दिन सतनाम अपने घर के नजदीकी जैतखाम के पास जाकर पूजा करते हैं, सत्य और अहिंसा के आधार पर जो सतनामी पंथ में निहित है, और उसकी विशेषता है, भाईचारा और संगठन शक्ति। गुरू घासीदास जी सामाजिक तथा आध्यात्मिक जागरण की आधारशिला स्थापित करने में ये सफल हुए और छत्तीसगढ़ में इनके द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ के आज भी लाखों अनुयायी हैं। गुरू घासीदास जी की जयंती पर उनके सिद्धांत और अमृतवाणी के बारे में जानेंगे।

गुरू घासीदास बाबा के 42 अमृतवाणी (उपदेश)

1- सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।)

2-जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे। 

3-सतनाम ल जानव, समझव, परखव तब मानव।

4-बइला-भईसा ल दोपहर म हल मत चलाव।

5-सतनाम ल अपन आचरण में उतारव।

6-अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परंपरावाद ल झन मानव।

7-दाई-ददा अउ गुरू के सनमान करिहव।

8-हुना ल साहेब समान जानिहव।

9-इही जनम ल सुधारना साँचा ये। (पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।)

10-गियान के पंथ किरपान के धार ये।

11-दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।

12-मरे के बाद पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे। पितर पूजा झन करिहौ, जीते-जियात दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव। 

13-जतेक हव सब मोर संत आव।

14-तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू।

15-रिस अउ भरम ल त्यागथे तेकरे बनथे।

16-दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन निकालहव।

17-बारा महीना के खर्चा सकेल लुहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे।

18-ये धरती तोर ये येकर सिंगार करव।

19-झगरा के जर नइ होवय ओखी के खोखी होथे।

20-नियाव ह सबो बर बरोबर होथे।

21-मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइही त मोला सूजगा मे हुदेसे कस लागही।

22-भीख मांगना मरन समान ये न भीख मांगव न दव, जांगर टोर के कमाए ल सिखव।

23-सतनाम ह घट घट में समाय हे, सतनाम ले ही सृष्टि के रचना होए हावय।

24-मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय।

25-पानी पीहु जान के अउ गुरू बनावव छान के।

26 -मोर ह सब्बो संत के आय अउ तोर ह मोर बर कीरा ये। (चोरी अउ लालच झन करव।)

27-सतनाम ह जीवन के आधार आय।

28-खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के राखिहव।

29-पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु।

30-जान के मरइ ह तो मारब आएच आय फेर कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय।

31-अवैया ल रोकन नहीं अऊ जवैया ल टोकन झन।

32-चुगली अऊ निंदा ह घर ल बिगाडथे।

33-धन ल उड़ावव झन, बने काम में लगावव।

34-जीव ल मार के झन खाहु।

35-गाय भैंस ल नागर म झन जोतहु।

36-मन के स्वागत ह असली स्वागत आय।

37-जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे पीहू पानी वइसे बोलहु बानी।

38-एक धुबा मारिच तुहु तोर बराबर आय।

39-काकरो बर काँटा झन बोहु।

40-बैरी संग घलो पिरीत रखहु।

41-अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु मन काकरो ले कमती नई हावव।

42-मंदिरवा म का करे जईबो अपन घर के ही देव ल मनईबो।

गुरू घासीदास बाबा के 07 सिद्धांत

  • सतनाम पर अडिग विश्‍वास रखो।
  • मूर्ति पूजा मत करो
  • जाति-पांति के चक्‍कर में मत पड़ो।
  • जीव की हत्‍या मत करो।
  • नशा का सेवन मत करो।
  • पराई स्‍त्री को माता बहन मानो।
  • चोरी और जुआ से दूर रहो।

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Satrenga Picnic Spot Korba II छत्‍तीसगढ़ का मिनी गोवा II

Satrenga Resort Korba II सतरेंगा पिकनिक स्‍पॉट कोरबा II

Satrenga Picnic Spot प्र‍िसिद्ध पर्यटन स्‍थल सतरेंगा कोरबा।

Satrenga: छत्‍तीसगढ़ का कोरबा जिला यूं तो उर्जा राजधानी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा कोरबा जिला पर्यटन के लिए भी मशहूर होता जा रहा है, आज हम उसी कोरबा जिले के सतरेंगा के बारे में बताने जा रहें है। जो बहुत ही कम समय में कोरबा का पर्यटन स्‍थल के रूप में सामने आया है। अगर आप भी अपने दोस्‍तों एवं परिवार के साथ कहीं घूमने की प्‍लानिंग कर रहे है। तो इस Satrenga की मनोरम एवं सुंदर वादियों का आनंद ले सकते है।

मिनी गोवा के नाम से मशहूर सतरेंगा पिकनिक स्‍पॉट की खास बातें

अगर आप गोवा जाने का प्‍लान बना रहें है, और किसी कारणवश गोवा नहीं जा पा रहें है, तो आपको कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। क्‍योंकि आप छत्‍तीसगढ़ में ही गोवा का एहसास कर सकते है। जी हां हम बात कर रहे है Satrenga Picnic Spot कोरबा की जो मिनी गोवा के नाम से भी प्रसिद्ध है। और यहां पर बहुत दूर दूर से पर्यटक गोवा जैसी मनोरम नजारों को देखने के लिए आते है, यह छत्‍तीसगढ़ के सबसे चर्चित पिकनिक स्‍पॉट में से गिना जाता है।

सतरेंगा पिकनिक स्‍पॉट कहां पर स्थित है?

Satrenga Picnic Spot छत्‍तीसगढ़ के कोरबा शहर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। आपको बता दें कि हसदेव नदी पर जंगल के बीच में हसदेव बांगो बांध का निर्माण किया गया है। और यहां पर पहाड़ो से घिरे बांध के बीचों बीच कई छोटे छोटे दवीप टापू बने हुए है। उन्‍ही टापूओं में से यह सतरेंगा भी है। जो कोरबा के प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल के लिए जाना जाता है, और कोरबा की नई पहचान बन गई है। यह छोटे छोटे टापू सतरेंगा की खूबसूरती को और भी सुंदर बनाते है।

सतरेंगा में स्थित महादेव पर्वत का नजारा

Satrenga में एक पहाड़ स्थित है, जिसे महादेव पर्वत के नाम से जाना जाता है। क्‍योंकि यह पर्वत शिवलिंग के आकार लिये हुए प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। इस पर्वत का खूबसूरत नाजारा यहां पर आने वाले पर्यटको को  सेल्‍फी लेने के लिए मजबूर करता है। इसी को देखते हुए गार्डन में एक सेल्‍फी जोन भी बनाया गया है। पहाड़ो से घिरे हुए झील का नीला पानी यहां के महौल को और सुदंर बनाता है। और गोवा जैसे माहौल का अुनभव कराता है।

सतरेंगा में नौकाविहार एवं बोटिंग का भी आनंद ले सकते है

Satrenga Picnic Spot छत्‍तीसगढ़ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि दूसरे राज्‍य एवं देश विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन पर्यटन स्‍थल है। यहां पर आकर लोग विभिन्‍न प्रकार की मनोरंजन सुविधाओं जैसे बोंटिग, लक्‍जरी रिसोर्ट, फ्लोटिंग रेस्टारेंट, वाटर स्पोर्ट्स, एडवेंचर स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग एवं अन्य आकर्षण, घुड़सवारी, नौकाविहारआदि का आनंद ले सकते हैं। जिसमें सभी प्रकार की मनोरंजन सेवाओं के लिए अलग दरों में फिस निर्धारित किया गया है।

नौका विहार:- नौका विहार करने के लिए 20 से 50 रूपये तक का शुल्‍क लिया जाता है, जिसमें लगभग 0.5 किमी तक घुमाया जाता है।

बोटिंग:- अगर आपको बोटिंग का आनंद लेना है तो जल संसाधन विभाग द्वारा बोटिंग कराया जाता है, जिसका शुल्‍क लगभग 100 प्रति व्‍यक्ति है।

इसके साथ साथ सतरेंगा बोर्ड क्लब और रिसोर्ट में अलग-अलग बोटिंग के लिए अलग अलग शुल्‍क निर्धारित हैं।

  1. Pontan Boat / 10 सीटर – 3000/- रूपये
  2. Max Boat / 08 सीटर – रु. 2400/- रूपये
  3. Rocket Boat / 04 सीटर – रु. 1600/- रूपये
  4. Jeta Boat / 02 सीटर – रु. 1200/- रूपये

सतरेंगा को छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग ने वॉटर टूरिज्म के रूप में विकसित किया है

छत्‍तीसगढ़ सरकार द्वारा सतरेंगा के इस पकिनिक स्‍पॉट को विकसित करने के लिए फरवरी 2020 में एक बैठक हुई। जिसके फलस्‍वरूप इस स्‍थान को सुंदर और बेहतर बनाया जा रहा है। यहां खुबसुरत गार्डन का निर्माण, रेस्‍ट हाउस, वाटर स्‍पोर्टस और टिकिटिंग की भी व्‍यवस्‍था बनाई गई है, वैसे तो यहां पर ज्‍यादातर लोग फैमिली और दोस्‍तों के साथ पिकनिक या बोटिंग, नेचर कैम्‍पिंग के लिए ही आते है, पर रेस्ट हाउस बन जाने के बाद छत्‍तीसगढ़ के बहार से भी आने वाले पर्यटक यहां रूककर प्रकृति के बीच रहकर अपने फैमिली के साथ समय व्‍यतीत कर पायेंगे और यहां की सुदंर वादियों का आनंद ले पायेंगें।

Satrenga Picnic Spot जाने का सही समय जिससे की आप भरपूर आनंद ले सके।

अगर आप अपने दोस्‍तों या फैमिली के साथ Satrenga Picnic Spot जाने की योजना बना रहे है, तो यहाँ जाने का सबसे सही समय जुलाई से जनवरी-फरवरी तक माह होगा। क्‍योंकि इस समय यहाँ का पानी प्रर्याप्‍त मात्रा में भरा रहता हैं। जिससे आप वहां की सुविधाओं का भरपूर आनंद उठा सको। पहाड़ो के बीच में बने बांध का पानी कम होने की स्थिति में वहां बोटिंग और नौकाविहार का सही लुप्‍त नहीं ले पायेगें इसलिए यहां जाने का सही समय जुलाई से फरवरी महीने तक को माना जा सकता हैं।

Satrenga Picnic Spot तक कैसे पहुंचे।

छत्‍तीसगढ़ के इस खूबसूरत जगह पर आप अपनी फैमिली और दोस्‍तों के साथ समय बिता सकते हैं। कोरबा जिले के सतरेंगा जाने के लिए हवाई सफर, ट्रेन और निजी वाहनों से पहुंचा जा सकता है, रेल मार्ग से जाने के लिए सबसे निकटतम रेल स्टेशन कोरबा है, जिसकी दूरी लगभग 40 किलोमीटर है, बिलासपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 130 किलोमीटर है, हवाई मार्ग से जाने के लिए रायपुर एयरपोर्ट से लगभग 200 किलोमीटर और बिलासपुर एयरपोर्ट से 130 किलोमीटर दूर है। वहीं सतरेंगा पहुंचने के लिए कोरबा शहर से 45 किलोमीटर लंबी सड़क से आसानी से पहुंच सकते है।

Manjhingarh Hill Tourist place II मांझीनगढ़ की पहाड़ी II

विशाखापट्टनम के 5 खूबसूरत जगहें । Vizag Tourist Places

FaQs :-

छत्‍तीसगढ़ का मिनी गोवा किसे कहते है?

सतरेंगा पिकनिक स्‍पॉट।

सतरेंगा कहां स्थित है?

छत्‍तीसगढ़ के कोरबा में।

सतरेंगा को और किस नाम से जानते है?

छत्‍तीसगढ़ का मिनी गोवा।

सतरेंगा कौन से बांध पर स्थित है?

हसदेव बांगो बांध।

Manjhingarh Hill Tourist place II मांझीनगढ़ की पहाड़ी II

Manjhingarh Hill Tourist place II मांझीनगढ़ की पहाड़ी II

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर मांझीनगढ़ की पहाड़ी

Manjhingarh hill Station: छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में बस्‍तर जिला प्राकृतिक सम्‍पदा एवं खनिज संसाधनो से तो भरपूर है ही, उसके साथ ही साथ यह प्रकृतिक सुदंरता से भी भरी पड़ी है, यहां के कल कल करती नदियां, चिडि़यों की चहचाहट से गूंज उठते पहाड़ी, एवं झरनों की सुंदरता किसी की भी मन को मोह लेती है। उसी तरह बस्‍तर के कोंण्‍डागांव जिले के अतंर्गत विश्रामपुरी में स्थित है मांझीनगढ़ की पहाड़ी जो अपने आप में एक प्रकृति की अनुपम छठा बिखेरती है। आज के इस पोस्‍ट में मांझीनगढ़ की पहाड़ी के बारे में बताने जा रहे है, जिससे की आप भी उस Manjhingarh hill Station तक पहुंचे और वहां की प्रकृतिक वादियों का आंनद ले।

Manjhingarh hill Station: मांझीनगढ़ पहाड़ी की भौगोलिक स्थिति

बस्‍तर क्षेत्र पूरी तरह से प्रकृतिक वादियों से घिरा हुआ है, किसी भी क्षेत्र या स्‍थान में वहां की भौगोलिक स्थिति का महत्‍वपूर्ण स्‍थान होता है, उसी तरह इस मांझीनगढ़ पहाड़ी की भी अपनी एक अलग भौ‍गोलिक विशेषता है, यह पहाड़ी केशकाल के बड़ेराजपुर ब्‍लाक में विश्रामपुरी के ग्राम पंचायत खल्‍लारी से 8 किलोमीटर दूरी पर ऊपर की ओर पहाड़ो में बसा हुआ है। यह मांझीनगढ़ (Manjhingarh) समुद्री तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। और एक बहुत बडे़ क्षेत्र में फैला हुआ है।

मांझीनगढ़ क्‍यों प्रसिद्ध है?

यह मांझीनगढ़ की पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, इस Manjhingarh hill Station पर जलप्रपात, एवं चट्टानों के बीच में प्राकृतिक गुफाएं विद्यमान है, जहां पर हजारों वर्ष पुराने शैलचित्र मौजूद हैं, जिसे आज से हजारों साल पहले के मानवों द्वारा इन अदभूत गुफाओं में सजीव पेन्टिंग किया गया है, और आश्‍चर्यजनक बात यह है, कि जब दुनिया में मंदिर मस्जिद, गढ़ किला किसी का भी अस्तित्‍व नहीं था। उस दौर में लिखने व पेन्टिंग करने की ऐसी उच्‍च तकनीक विकसित कर लिये थे। जिसका रंग आज भी सुरक्षित है।

इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी से आस पास के क्षेत्रों का सुंदर नाजारा दिखाई देता है, जिसमें इस पहाड़ी के ऊपर से कांकेर शहर, सरोना, और दुधावा बांध को भी देखा जा सकता है। यहां के घने जंगल, झरने, गुफाएं, एवं शैलचित्र यहां आने वाले पर्यटकों को एक विशेष अनुभव प्रदान करती है। इसके साथ ही साथ यहां पर इस क्षेत्र की लोक संस्‍कृति एवं यहां के निवासियों का देव स्‍थल मौजूद है। जिनके वजह से ही यह स्‍थान आज सुरक्षित एवं संरक्षित है।

Manjhingarh Hill Station मांझीनगढ़ की गुफा

मांझीनगढ़ में स्थित “गढ़मावली माता” एवं भादोम जात्रा के बारे में भी जानें

इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी को लोग सिर्फ प्रकृतिक सौंदर्य के लिए ही जानते है, लेकिन उससे भी बढ़कर इस स्‍थान का एक विशेष महत्‍व है। यह मांझीनगढ़ सबसे पहले यहां के निवासियों का देव स्‍थल के रूप में प्रसिद्ध है। क्‍योंकि यहां पर “गढ़मावली माता” का स्‍थान है। जिसे आस पास के स्‍थनीय लोग सेवा अर्जी करते है पूजते है। और इस मांझीनगढ़ में जहां पर “गढ़मावली माता” विराजमान है। प्रतिवर्ष भादोम जात्रा का आयोजन किया जाता है।

यह भादोम जात्रा भादो माह में केशकाल के भंगाराम जात्रा के दिन ही आयोजित होती है। आस पास के सभी गांवों के लोग देवी देवता और पेन शक्तियों के साथ बड़ी संख्‍या में यहां पर पहुंचते है। और गांवों को प्राकृतिक आपदा से बचाने, सुख समृद्धि, खुशहाली के “गढ़मावली माता” के स्‍थान में सेवा अर्जी विनती करते है। जिसके कारण ही यहां की संस्‍कृति की अपनी अलग पहचान है जिसे यहां के निवासियों ने आज तक बचाकर संजोकर रखा है।

मांझीनगढ़ को जैव विविद्यता पार्क के रूप में विकसित करने की घोषणा

(Manjhingarh) मांझीनगढ़ कोंडागाँव जिले के एक विशेष प्रचलित ईको टूरिज्म स्थल के रूप में लोगों को लुभा रहा है। यहां के घने जंगल, प्राकृतिक गुफाएं हजारों साल पुराना शैलचित्र, वन्य जीव, औषधीय पौधे, सुंदर मनमोहक वादियाँ तथा यहां की भौगोलिक संरचनायें पर्यटकों को एक विशेष अनुभव और आनंद प्रदान करती हैं।

मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की इन्‍ही विशेषताओं के कारण 18 मार्च 2023 को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोंडागांव जिले के केशकाल विधानसभा के ग्राम बांसकोट में भक्त माता कर्मा जयंती एवं मुख्यमंत्री कन्या विवाह के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से भाग लेते हुए मांझीगढ़ को पर्यटन स्थल घोषित किया।

कोण्‍डागांव जिले के तत्‍कालिन कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने खालेमुरवेंड में लिंगोधारा पर्यटन स्थल, बांध और मांझिनगढ़ का सौंदर्यीकरण करने अधिकारियों के साथ स्थल निरीक्षण किया व सभी को जल्द से जल्द प्रोजेक्ट तैयार करने निर्देश दिया। और जंगल सफारी की तर्ज पर मांझीनगढ़ Manjhingarh hill Station को बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित किया जाएगा।

मांझीनगढ़ तक कैसे पहुंचे?  

इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी पर पहुंचने के लिए सबसे पहले रायपुर की तरफ से आने वाले पर्यटकों को केशकाल घाटी को पार करते हुए केशकाल में विश्रामपुरी चौक पहुंचना होगा उसी तरह जगदलपुर की ओर से आने वाले पर्यटकों को केशकाल के विश्रापुरी चौक पहुचना होगा और केशकाल से विश्रामपुरी की दूरी 20 किमी, विश्रामपुरी से आमडीही होते हुए ग्राम पंचायत खल्‍लारी की दूरी लगभग 06 किमी और खल्‍लारी से पहाड़ी तक 08 किमी की दूरी तय करके मांझीनगढ़ स्‍थल तक पहुंचा जा सकता है।

सारांश:-

इस मांझीनगढ़ को प्रकृति ने अपने प्राकृतिक सौंदर्य से खुब निखारा है, मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की खूबसूरत नजारें, पेड़ पौधे, सुंदर वातावरण यहां आने वाले पर्यटकों के मन को मोह लेती है, जिससे की लोग इस स्‍‍थान पर बार बार आना पंसद करते है। और इस स्‍थान का आनंद लेना चाहते है। अगर आप भी इस स्‍थान पर आना चाहते है और मांझीनगढ़ के बारे में जानता चाहते है, तो एक बार मांझीगढ़ की यात्रा जरूर करें।

मेरी इस लेख की माध्‍यम से यहां आने वाले पर्यटकों से एक अग्रह है, कि जब भी इस तरह के प्राकृतिक जगहों पर जायें तो वहां के वातावरण का खास ध्‍यान दें कोई गंदगी न फैलायें, प्‍लास्‍टिक युक्‍त चीजों को इधर उधर न फेंके वहां की चीजों को नुकसान न पहुचायें जिससे की उस प्राकृतिक सौदंर्य पर कोई प्रभाव पड़े क्‍योंकि प्रकृति हमें कोई भी चीजें निशुल्‍क उपहार प्रदान करती है। और हम मानव अपनी स्‍वार्थ के लिए प्रकृति के दिये इस उपहार को नष्‍ट करके विनाश के कगार पर ले जाते है।

Biography Of Vishnu Deo Sai I विष्‍णु देव साय का जीवन परिचय

अमेरिका के प्रथम राष्‍ट्रपति ‘जॉर्ज वाशिंगटन’ के लोकप्रिय 7 विचार।George Washington Hindi Quotes

FaQs :-

मांझीनगढ़ कहां पर स्थित है?

कोण्‍डागांव जिले में विश्रापुरी के खल्‍लारी गांव के समीप पहाड़ी पर

मांझीनगढ़ क्‍यों प्रसिद्ध है?

प्राकृतिक सौंदर्य के लिए

मांझीनगढ़ में क्‍या क्‍या स्थित है?

जलप्रपात, प्राकृतिक गुफाएं, शैलचित्र एवं “गढ़मावली” माता का स्थान

मांझीनगढ़ समुद्र तल से कितनी ऊंचाई पर स्थित है?

समुद्र तल से 5000 फीट

मांझीनगढ़ के शैलचित्र कितनी वर्ष पुरानी है?

10 हजार साल पुरानी

मांझीनगढ़ में कौन सा जात्रा होता है?

भादोम जात्रा

मांझीनगढ़ में कौन से माता का स्‍थान है?

गढ़मावली माता

मांझीनगढ़ के ऊपर से कौन कौन से स्‍थान दिखाई देते है?

कांकेर शहर, सरोना, एवं दुधावा बांध

Biography Of Vishnu Deo Sai I विष्‍णु देव साय का जीवन परिचय

Vishnu Deo Sai

Biography Of Vishnu Deo Sai कौन है विष्‍णुदेव साय?

Biography Of Vishnu Deo Sai विष्‍णु देव साय छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में (बीजेपी) भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्‍ठ आदिवासी नेता है, जिन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में मनोनित किया गया है, इससे पहले वे 2020 से 2022 तक छत्‍तीसगढ़ के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष के रूप में भी काम किया है। एवं रायगढ़ लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रह चके है। आज के इस पोस्‍ट में विष्‍णुदेव साय के वार्ड पंच से लेकर मुख्‍यमंत्री बनने तक का राजनीतिक सफर के बारे में हम जानेगें।

विष्‍णुदेव साय का संक्षिप्‍त परिचय :-

नामविष्‍णुदेव साय
जन्‍म तिथि21 फरवरी 1964 (उम्र 59 वर्ष)
जन्‍म स्‍थानबगिया
जिलाजशपुर
राज्‍यछत्‍तीसगढ़़
देशभारत
पिता का नामश्री रामप्रसाद साय
माता का नामश्र‍ीमति जश्‍मनी देवी
जीवन साथी का नामकौशिल्‍या देवी
संतान1 पुत्र एवं 2 पुत्री
शिक्षा10 वी पास
छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष के रूप में02 जून 2020 से 09 अगस्‍त 2022
राजनीतिक दलभारतीय जनता पार्टी
छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ 13 दिसंबर 2023

जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन

विष्‍णुदेव साय का जन्‍म 21 फरवरी 1964 को छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में जशपुर जिले के बगिया गांव में एक किसान परिवार में हुआ। Vishnu Deo Sai के पिता का नाम रामप्रसाद साय एवं माता का नाम जश्‍मनी देवी है। उन्‍होने प्रारंभिक स्‍कूली शिक्षा जशपुर के कुनकुरी स्थित हायर सेकेंडरी स्‍कूल से की है।

विष्‍णुदेव साय का वै‍क्तिगत एवं वैवाहिक जीवन

विष्‍णुदेव साय सादगी के लिए मशहूर है। वे छत्‍तीसगढ़ के जशपुर जिला के बगिया गांव से आते है। उन्‍होने 1991 में कौशिल्‍या देवी से विवाह की और उनके एक बेटा और दो बेटियां है।

राजन‍ीतिक जीवन की शुरूआत

विष्‍णुदेव साय ने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1989 में अपने गांव बगिया से थी। उसके बाद वे छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख एवं लोकप्रिय नेता के रूप में उभकर सामने आये। Vishnu Deo Sai छत्‍तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष से लेकर कई बड़े मंत्री पदों पर रहे। इस तरह एक छोटे से गांव से राजनीतिक सफर की शुरूआत करके आज छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री बनने जा रहे है। आगे उनके राजनीतिक सफर के बारे में विस्‍तार से चर्चा करेंगे।

माउंटेन मैन दशरथ मांझी Dashrath Manjhi Biography In Hindi

गांव के वार्ड पंच से लेकर मुख्‍यमंत्री बनने तक का सफर

विष्‍णुदेव साय ने साल सन् 1989 में अपने राज‍नीतिक जीवन की शुरूआत गांव के वार्ड पंच का चुनाव जीतकर की थी, वे 1990 में निर्विरोध सरपंच के लिए चुने गये इसके बाद सन् 1990 में 1998 तक अविभाजित मध्‍यप्रदेश विधानसभा के सदस्‍य रहे और उनका राजनीतिक सफर धीरे धीर बढ़ती चली गई। सन् 1999 में 13 वीं लोकसभा में Vishnu Deo Sai रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने साल 2006 में बीजेपी ने उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया।

2009 और 2014 में Vishnu Deo Sai फिर से रायगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने, इसके बाद 2014 में नरेन्‍द्र मोदी की सरकार ने उनको केन्‍द्रीय राज्‍यमंत्री बनाया। उनको इस्‍पात खान, श्रम रोजगार मंत्रालय दिया गया। इस तरह से 27 मई 2014 से 2019 तक मंत्री पद पर रहे। राजनीतिक कैरियर में उनकी लोकप्रियता दिनो दिन बढ़ती गई और 2020 में उनको एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया गया।

साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्य समिति में Vishnu Deo Sai को विशेष आमंत्रित सदस्‍य बनाया गया इसके बाद 08 जुलाई 2023 को साय को भारतीय जनता पार्टी ने राष्‍ट्रीय कार्य समिति का सदस्‍य बना दिया।

छत्‍तीसगढ़ के अगले मुख्‍यमंत्री होगें विष्‍णुदेव साय

विष्‍णुदेव साय छत्‍तीसगढ़ के नये मुख्‍यमंत्री होंगे, आपको बता दे कि‍ Vishnu Deo Sai कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतें है इस बार विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए भारत के केन्‍द्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कदृावर नेता अमित शाह ने कहा था, कि‍ आप इन्‍हे विधायक बनाईये मै बड़ा आदमी बना दूंगा। भारतीय जनता पार्टी ने सरगुजा की 14 में से पूरी की पूरी 14 सीटों पर जीत हासिल की है और पूरे प्रदेश में भाजपा ने इस बार 90 में से 54 विधान सभा में जीत दर्ज करते हुए Vishnu Deo Sai को छत्‍तीसगढ़ के अगले आदिवासी मुख्‍यमंत्री बनाने का फैसला कर दिया है।

छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण

छत्‍तीसगढ़ के चौथे मुख्‍यमंत्री के रूप में Vishnu Deo Sai ने 13 दिसंबर 2023 को रायपुर के साइंस कालेज मैदान में शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली और उन्‍हे छत्‍तीसगढ़ के राज्‍यपाल विश्‍वभूषण हरिचंदन ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाई साथ ही साथ डिप्‍टी सीएम के रूप में अरूण साव एवं विजय शर्मा ने भी शपथ ली। 3 दिसबंर को चुनावी नतीजे आने के बाद 10 दिसबंर को बीजेपी ने अपने सीएम केे नाम की घोषणा की थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी, केन्‍द्रीय गृहमंत्री अमित साह समेत कई दिगज नेता शामिल हुए।

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विष्‍णुदेव साय का जन्‍म कब हुआ था?

21 फरवरी 1964 को

विष्‍णुदेव साय का जन्‍म कहां हुआ था?

छत्‍तीसगढ़ के जशपुर जिला के बगिया गांव में

विष्‍णुदेव साय के पिता का क्‍या नाम है?

श्री रामप्रसाद साय

विष्‍णुदेव साय के माता का क्‍या है?

श्रीमति जश्‍मनी देवी

विष्‍णुदेव साय के पत्नि का क्‍या नाम है?

श्रीमति कौशिल्‍या देवी

विष्‍णुदेव साय कौन से विधान सभा से चुनाव जीते है?

कुनकुरी विधान सभा

विष्‍णुदेव साय कौन से पार्टी के नेता है?

भारतीय जनता पार्टी

विष्‍णुदेव साय ने पद एवं गोपनीयता की शपथ कब ली?

13 दिसंबर 2023 को

विष्‍णुदेव साय छत्‍तीसगढ़ के कौन से नबंर के मुख्‍यमंत्री बने हैं?

छत्‍तीसगढ़ के चौथेे मुख्‍यमंत्री

विष्‍णुदेव साय को किसने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई?

छत्‍तीसगढ़ के राज्‍यपाल विश्‍वभूषण हरिचंदन ने

विष्‍णुदेव साय के साथ डिप्‍टी सीएम के रूप में कौन कौन शपथ लिये?

अरूण साव एवं विजय शर्मा

माउंटेन मैन दशरथ मांझी Dashrath Manjhi Biography In Hindi

Dashrath Manjhi Biography In Hindi

माउंटेन मैन दशरथ मांझी (Mountain Man Dashrath Manjhi)

Dashrath Manjhi: यह जीवनी एक गरीब और आदिवासी मजदूर की है, जो बिहार के एक छोटे से और बेहद पिछड़े गांव के रहने वाले थे, उस गांव में उन दिनों बिजली, पानी, सड़क, अपस्‍ताल जैसी सुविधाओं का अभाव था। अपनी रोजमर्रा की छोटी छोटी जरूरतों एवं बेहतर सुविधाओं के लिए गांव के उस पार पहाड़ी को पार करके पास के कस्‍बे में जाना पड़ता था आगे इस पोस्‍ट में जानेगें की कैसे उन्‍होने उस पहाड़ को काटकर रास्‍ता बनाया और एक माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए।

दशरथ मांझी का संक्षिप्‍त विवरण (Description of Dashrath Manjhi)

नामदशरथ मांझी
उपनाममांउटेन मैन
जन्‍म दिनांक14 जनवरी 1934
जन्‍म स्‍थान गांवगहलौर
जिलागया
राज्‍यबिहार
देशभारत
जीवन साथी का नामफाल्‍गुनी देवी
पेशामजदूरी
निधन17 अगस्‍त 2007
उम्र73 वर्ष
मृत्‍यु का कारणपित्‍ताशय कैंसर
प्रसिद्धि का कारण22 वर्षो तक अकेले पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण किया

दशरथ मांझी का जन्‍म एवं आरंभिक जीवन (Early life of Dashrath Manjhi)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का जन्‍म 14 जनवरी 1934 को बिहार राज्‍य में गया जिले के गहलौर नामक गांव में हुआ था। जिस समय दशरथ मांझी का जन्‍म हुआ, उस समय हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था, पूरे देश के साथ साथ इस गहलौर गांव की स्थिति भी खराब और बहुत पिछड़ा हुआ था। 15 अगस्‍त सन् 1947 में जब देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद तो हो जाता है, फिर भी यहां के गरीब लोग अमीर जमींदार लोगोंं की गुलामी से मुक्‍त नही हो पाते।

आजादी के बाद भी हर जगह जमींदारी प्रथा के चलते अमीर जमींदार अपना हक रखते हैं, गरीब और अशिक्षित लोगों को परेशान करते हैं, उनको उनके मेहनत और हक की रोटी भी नसीब नहीं होती इसी तरह दशरथ मांझी का परिवार भी बहुत गरीब था, उनके पिता एक समय में अपनी जीवन यापन लिए बहुत मेहनत करते थे। दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह फाल्‍गुनी देवी के साथ होता है। दशरथ मांझी के पिता गांव के जमींदार से पैसे उधार लिये थे। जिसे वह चुका नहीं पाये थे।

कर्ज नहीं चुका पाने के कारण जमींदार दशरथ मांझी के पिता को बहुत प्रताड़ि‍त करते है, और उन्‍हे अपने घर पर नौकरी करने के लए मजबूर करते है, तब उनके पिता ने दशरथ मांझी को जमींदार के घर नौकरी के लिए भेज देते है, लेकिन दशरथ मांझी को किसी मी गुलामी करना पंसद नहीं था, इसलिए रात में वे गांव को छोड़कर भाग जाते है। और धनबाद में एक कोयले की खदान में काम करने लग जाते है।

दशरथ मांझी का दुबारा गांव में वापसी

दशरथ मांझी को गांव छोड़कर कोयले के खादन में काम करते हुए लगभग 7 साल बाद सन् 1955 के आसपास जब अपने परिवार की याद सताने लगती है और फिर वह गांव वापस लौट आता है, तब भी उसका गांव वैसा का वैसा ही रहता है, बिजली, पानी, सड़के, स्‍कूल, अस्‍पताल, कुछ भी नहीं, सारी सुविधाओं का अभाव रहता है। और उसकी मां गुजर चुकी होती है। दशरथ मांझी अपने पिता के साथ मजदूरी करके अपना जीवन यापन गुजर बसर करने लगते है।

दशरथ मांझी का अपनी पत्नि से फिर से मुलकात

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह हुआ था और वह अपनी पत्नि को ठीक से पहचानता भी नहीं था दशरथ मांझी के दुबारा गांव वापस आने पर उनके पिता जब दशरथ के ससुराल लड़की को लेने के लिए जाते है, तो लड़की के घर वाले इस विवाह को मानने से इंकार करते हुए फाल्‍गुनी देेेवी को ले जाने से मना कर देते है, क्‍योंकि दशरथ उस समय कोई काम काज नहीं करता था। दशरथ मांझी अपने प्‍यार की खातिर फाल्‍गुनी देेेवी को भगा कर घर ले आता है। और एक अच्‍छे पति पत्नि की तरह जीवन यापन करते है।

दशरथ मांझी की पत्नि का निधन

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी और उनका परिवार मजदूरी करके खुशी खुशी जीवन यापन कर रहा था। दशरथ मांझी काम के लिए पहाड़ के उस पार कस्‍बे में जाते थे जिससे उनकी दो वक्‍त की रोटी का इंतजाम होता था। वह दिन भर काम करके शाम को वापस अपने घर आता। दशरथ मांझी की पत्नि उसके लिए दोपहर का खाना देने पहाड़ को पार करके उस पार जाती थी। एक दिन उसी तरह जब वह खाना देने के लिए उस पहाड़ पर चढ़ी उसी समय उनका पैर अचानक फिसल गई और ग‍िर पड़ी। उस समय उनकी पत्नि गर्भवती थी। गांव में अस्‍पताल जैसी सुविधांए नहीं थी उन्‍हे अस्‍पताल ले जाने के लिए पहाड़ को चढ़कर पार करना पड़ता तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

दशरथ मांझी द्वारा पहाड़ तोड़ने का कार्य (उपलब्धि)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी अपनी पत्नि की मौत की घटना से पूरी तरह टूट जाते है, और मन में ठान लेते है कि इस पहाड़ को तोड़कर सड़क का निर्माण करके गांव और उस पार कस्‍बे की दूरी को कम करेगें वह रोज सुबह छैनी और हथौड़ी लेकर पहाड़ को काटने के लिए निकल जाते थे। दशरथ मांझी 1960 से लेकर 1982 तक लगभग 22 साल तक पहाड़ को छैनी और हथौड़ी से काटते रहे। गहलौर गांव के लोग दशरथ मांझी को पागल तक करार दे दिये थे।

आखिरकार 22 साल की मेहनत के बाद 360 फुट लम्‍बा (110 मी.) 25 फुट गहरा (7.6 मी.) 30 फुट चौड़ा (9.1 मी.) गहलौर की पहाड़ी को काटकर उन्‍हाने सड़क बना दिया और इस सड़क के निर्माण से गया के अत्री और वजीरगंज सेक्‍टर की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। उनकी बनाई इस सड़क उपयोग आज भी उस गांव के लोग करते है।

दशरथ मांझी का निधन (Dashrath Manjhi’s death)

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का निधन 73 वर्ष की आयु में 7 अगस्‍त 2007 को अखिल भरतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स), नई दिल्‍ली में हुआ वे पित्‍ताशय के कैंसर से ग्र‍िसित थे। बिहार की राज्‍य सरकार द्वारा उनका अंतिम संस्‍कार किया गया।

माउंनटेन मैन दशरथ मांझी का समाधि स्‍‍थल

Dashrath Manjhi: माउंटेन मैन दशरथ मांझी की समाधि स्थल सैलानियों के लिए प्रेम की मिसाल बन गया है। 22 साल तक उन्होंने अपनी पत्नी के प्रति अगाध प्रेम के चलते गहलौर घाटी की पहाड़ को काट कर रास्‍ता बनाया था उनका समाधि स्‍थल उनके गांव गहलौर में बनाया गया है। आज उनका समाधि (Mountain Man in Gehlaur) स्थल बिहार का ताजमहल के नाम से भी जाना जाता है।

पर्वत पुरूष दशरथ मांझी  का समाधि स्‍थल गहलौर

सम्‍मान

Dashrath Manjhi: दशर‍थ मांझी की इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्‍ताव रखा। और बिहार के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नी‍तीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और अस्‍पताल बनाने का फैसल किया।

Biography of Guru Ghasidas II गुरू घासीदास का जीवन परिचय II

दशरथ मांझी के जीवन पर बनी फिल्‍म

Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित “मांझी- द माउंटेन मैन” नाम से 2015 में एक फिल्‍म का निर्माण किया गया है। इस फिल्‍म के निर्देशक केतन मेहता और वायाकॉम 18 मोशन पिक्‍चर्स और एनएफडीसी  इंडिया द्वारा संयुक्‍त रूप से निर्मित है। जिसमें नवाजुद्वीन सिद्धकी द्वारा दशरथ मांझी का मुख्‍य रोल निभाया गया है। जबकि राधिका आप्‍टे ने मांझी की पत्नि की भूमिका निभाई है।

गुरू घासीदास जी का जीवन परिचय – Biography of Guru Ghasidas, Guru Ghasidas Jayanti

प्रश्‍नोत्‍तरी

दशरथ मांझी का जन्‍म कब हुआ था? When was Dashrath Manjhi born?

14 जनवरी 1934

दशरथ मांझी के पत्नि का क्‍या नाम था? What was the name of Dashrath Manjhi’s wife?

फाल्‍गुनी देवी

दशरथ मांझी के बेटा का क्‍या नाम था? What was the name of Dashrath Manjhi’s wife?

भागीरथी मांझी

मांउनटेन मैन के नाम से किसे जाना जाता है? Who is known as Mountain Man?

दशरथ मांझी

दशरथ मांझी ने कौन सा पहाड़ को काटा था? Which mountain was cut by Dasharatha Manjhi?

गहलौर पहाड़

दशरथ मांझी के जीवन पर बनी फिल्‍म का क्‍या नाम है? What is the name of the film made on the life of Dashrath Manjhi?

मांझी द मांउनटेन मैन

दशरथ मांझी की मृत्‍यु कब हुई? When did Dashrath Manjhi die?

17 अगस्‍त 2007 को नई दिल्‍ली में

बिहार का ताजमहल किसे कहा जाता है? Which is called Taj Mahal of Bihar?

दशरथ मांझी के समाधि स्‍थल को

दशरथ मांझी के समाधि स्‍थल कहां स्थित है? Where is the Samadhi place of Dashrath Manjhi located?

बिहार के गहलौर गांव में

Jyotiba Phule Biography: IIज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय II

Jyotiba Phule Biography II ज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय।I

Jyotiba Phule Biography: ज्‍योतिबा फुले का जीवन परिचय।

Jyotiba Phule:- इस देश में समय समय पर कई महान व्‍यक्ति एवं समाज सुधारक हुए जिन्‍होने समाज में व्‍याप्‍त बुराईयों को दूर कर समाज को ऊपर उठाने में अपना अहम् योगदान दिया। उन्‍ही में से एक महान व्‍यक्ति ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। उन्‍होने महिलाओं की शिक्षा से लेकर सभी वर्गो की शिक्षा के लिए उल्‍लेखनीय कार्य किये। आज के इस लेख में ज्‍योतिबा फुले के जीवन के बारे में जानकारी देंगें।

Jyotiba Phule सारांश :-

नामज्‍योतिबा फुले (Jyotiba Phule)
पूरा नाम महात्‍मा ज्‍योतिराव गोविन्‍दराव फुले
उपनामज्‍योतिबा फुले, महात्‍मा फुले, ज्‍योतिराव फुले
जन्‍म दिनांक11 अप्रैल 1827
जन्‍म स्‍थानखानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र
मा‍ता का नामचिमनबाई
पिता का नामगोविन्‍दराव फुले
जीवन साथी का नामसावित्री बाई फुले
पुत्र/पुत्री का नाम
भाई का नामराजाराम
मुख्‍य विचारनीतिशास्‍त्र, धर्म, मानवतावाद
प्रसिद्विसमाजिक कार्यकर्ता
उपाधिमहात्‍मा की उपाधि
देशभारत
राज्‍य क्षेत्रमहाराष्‍ट्र
राष्‍ट्रीयताभारतीय
जीवन काल63 वर्ष
मृत्‍यु28 नवंबर सन् 1890

ज्‍योतिबा फुले का जन्‍म एवं आरम्भिक जीवन

ज्‍योतिबा फुले का जन्‍म 11 अप्रैल 1827 ई0 को तात्कालिक ब्रिटिश भारत के खानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था इनके पिता का नाम गोविन्‍दराव और माता का नाम चिमनबाई था। मात्र 1 वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद इनका पालन पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई के द्वारा किया गया। इनके दादाजी कई वर्ष पूर्व सतारा से पुणे आकर माली के व्यवसाय में फूलों के गजरे बनाने का काम करने लगे, जिनके चलते ये फुले कहलाए और इन्हें महात्मा फुले और ज्यतिबा फुले (Jyotiba Phule) के नाम से भी जाना जाता है।

ज्‍योतिबा फुले की शिक्षा (Education)

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को 7 वर्ष के आयु में विद्यालय में दाखिला करवाया गया लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण वहां पढ़ाई नहीं कर पाए इनके अंदर पढ़ने की बहुत इच्छा थी इसलिए इनकी दाई, सगुनाबाई ने घर में ही पढ़ाई के इंतजाम कर दिए। ज्योतिबा फुले ने आरंभिक शिक्षा मराठी में अध्ययन किया, बीच में ही पढाई छूट जाने के बाद वे 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा तक की पढाई पूरी की इस तरह अध्ययन करते-करते उनका ज्ञान इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि वह अपने से बड़े उम्र के लोगों के साथ बैठकर चर्चा किया करते थे।

ज्‍योतिबा फुले का वैवाहिक जीवन

Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले का विवाह सन् 1840 में सावित्री बाई फुले से हुआ, उन्‍होने अपनी धर्मपत्नि सावित्री बाई फुले को स्‍वयं शिक्षा प्रदान की जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेविका बनीं। सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला अध्‍यापिका थी दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में तथा महिलाओं व पिछड़े व अछूतों के उत्‍थान के लिए दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर उल्‍लेखनीय कार्य किये।

ज्‍योतिबा फुले द्वारा स्‍कूल की स्‍थापना

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को शिक्षा के प्रति बहुत ही लगाव था, उन्‍हे महान व्‍यक्तियों की जीवनी पढ़ने और उनके बारे में जानने की बड़ी रुचि थी उन्हें जब ज्ञान हुआ कि सभी मनुष्‍य (नर-नारी) समान हैं, तो उनमें ऊँच-नीच  भेद भाव क्यों होना चाहिए। इसलिए स्त्रियों की  शिक्षा और उनकी दशा सुधारने के लिए ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने सन् 1848 में एक स्कूल खोला। बालिकाओं के लिए यह देश में पहला विद्यालय था परंतु लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली।

तब इन्होने दिन रात मेहनत करके स्वयं यह कार्य किया और अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया। किंतु कुछ उच्च वर्ग के लोगो द्वारा उनके इस कार्य में बाधा डालने की कोशिश की गई। परन्तु ज्योतिबा फुले नहीं रुके तो उनके पिता पर दबाव डाल कर इन्हे पत्नी सहित घर से निकलवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनके कार्य व जीवन में बाधा जरूर आयी। परन्तु शीघ्र ही वे फिर से अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो गए। और एक के बाद एक बालिकाओं के लिए तीन स्‍कूल खोल दिये। इस तरह से सावित्री बाई फुले देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनी।

ज्‍योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्‍थापना

Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर सन् 1873 को एक सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य शुद्र और अछूतों को न्याय और समाज में उचित स्थान दिलाना था। और इसकी स्थापना के पीछे ज्योतिबा फुले के जीवन का एक बहुत बड़ा अनुभव जुड़ा हुआ है। वे एक शादी में गए थे वहां पर काफी अपमानित करके उन्‍हे निकाल दिया गया। बाद में अपने पिताजी से पूछा कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ तो उन्‍होने बताया कि वे लोग उच्च जाति के लोग हैं और हम नीच जाति के, इसलिए हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते।

जिस पर ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने अपने पिताजी से पूछा की वे किस मामले में हम से श्रेष्ठ है, मैं उनसे ज्यादा शिक्षित हूं, ज्यादा अच्छे कपड़ा पहनता हूं, ज्यादा अच्‍छा जीवन शैली में जी रहा हूं, इस सवाल जवाब उनके पिताजी के पास नहीं था। उन्होंने बस इतना ही कहा कि यह एक प्रथा है, जो सदियों से चली आ रही है और हमें इसे मानना ही पड़ेगा। बस यहीं से ज्योतिबा फूले के मन में सत्य को खोजने और जानने की इच्छा जागृत हुई।

उन्होंने धर्म के वास्तविकता को समझा और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रकृति कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करता, यह धर्म और शोषण वाले नियम तो इंसानों ने बनाए है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य यही था कि शूद्र और अछूत लोगों को पुजारी, पुरोहित आदि की दासता से मुक्त कराया जाए। इसीलिए उन्होंने पंडित, पुरोहित पुजारी के धार्मिक कार्य में अनिवार्यता का विरोध किया। निम्‍न वर्गो एवं शूद्रों को शिक्षित और योग्य बनाना इस संस्‍था के प्रमुख कार्य थे। 

सामाजिक कार्य एवं योगदान

Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले ने दलितों, पिछड़ो, अछूतों, विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के अनके कार्य किये, इसके साथ ही गरीब किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। ज्‍योतिबा फुले समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समर्थक थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्‍यवस्‍था ऊंच नीच की प्रथा, धर्म और भेदभाव के विरुद्ध थे। ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज में व्‍याप्‍त बुराईयों को मुक्त करना चाहते थे।

उन्‍होने अपना सम्पूर्ण जीवन स्त्रियों की शिक्षा एवं स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में लगा दिया। 19 वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। ज्‍योतिबा फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। इसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से मान्यता भी प्राप्त की। इन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया। ये विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे।

उपाधि एवंं सम्‍मान

  • महात्‍मा की उपाधि :- Jyotiba Phule:- ज्‍योतिबा फुले निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्‍याय दिलाने के लिए सत्‍यशोधक समाज की स्‍थापना की ब्राम्‍हण पुरोहित के बिना ही विवाह संस्‍कार आरम्‍भ करवाया और इसे मुबंई उच्‍च न्‍यायालय से भी मान्‍यता मिली। वे बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे उनके संघर्ष के कारण सरकार ने “एग्रीकल्‍चर एक्‍ट” पास किया। उन्‍होने अपने पूरे जीवन में समाज के लिए जो त्‍याग और बलिदान भरे कार्य किये थे, उनकी इस समाजसेवा को देखकर 1888 में मुबंई की एक विशाल सभा में बहादूर विटृठलराव कृष्‍णाजी वान्‍देकर ने उन्‍हे “महात्‍मा की उपाधि” दी।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि :- स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए ज्‍योतिबा फुले को सन् 1883 में तत्‍कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा “स्‍त्री शिक्षण के आद्यजनक” कहकर गौरवान्वित किया गया।

ज्‍योतिबा फुले का निधन

Jyotiba Phule:- अपना सम्‍पूर्ण जीवन समाज के लिए समर्पित करने वाले महान समाज सेवक ज्‍योतिबा फुले का शरीर अंतिम समय में लकवाग्रस्‍त होने के कारण दिनो दिन कमजोर होता चला गया और 28 नवंबर 1890 को 63 वर्ष की आयु में पुणे (महाराष्‍ट्र) में उनका निधन हो गया। 

महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले रोहिलखंड विश्‍वविद्यालय बरेली उ0प्र0 Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University

यह एक सरकारी विश्‍वविद्यालय है इसकी स्‍थापना 1975 में राेहिलखंड विश्‍वविद्यालय के रूप में की गई थी उसके बाद महान समाज सुधारक महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले के सम्‍मान में अगस्‍त सन् 1997 में इसका नाम बदलकर महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले राेहिलखंड विश्‍वविद्यालय (Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University) कर दिया गया है इस विश्‍वविद्यालय का परिसर लगभग 206 एकड़ (83) हेक्‍टेयर में फैला हुआ है। यह विश्‍वविद्यालय NAAC A ++ मान्‍यता प्राप्‍त है। आईएसओ 9001:2015 और 14001:2015 प्रमाणित विश्‍वविद्यालय है।

ज्‍योतिबा फुले की जंयती कब मनाई जाती है (Jyotiba Phule Jayanti)

Ans:- 11 अप्रैल 1827

भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थी?

Ans:- सावित्री बाई फुले

ज्‍योतिबा फुले के पिता का क्‍या नाम था?

Ans:- गोविन्‍दराम फुले

ज्‍योतिबा फुले के माता का क्‍या नाम था?

Ans:- चिमनबाई

ज्‍योतिबा फुले का पूरा नाम क्‍या था?

Ans:- महात्‍मा ज्‍योतिबाराव गोविन्‍दराव फुले

ज्‍योतिबा फुले की पत्नि का क्‍या नाम था?

Ans:- सावित्री बाई फुले

ज्‍योतिबा फुले की प्रमुख पुस्‍तक कौन सी है?

Ans:- गुलामगिरी

ज्योतिबा फुले कौन सी जाति के थे?

Ans:- माली

Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University कहां स्थित है?

Ans:- बरेली उत्‍तरप्रदेश

ज्योतिबा फुले को महात्मा क्यों कहा गया?

Ans:- ज्योतिबा ने दलितों और वंचित तबके को न्याय दिलाने के लिए 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की उनकी समाजसेवा देखकर साल 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।

ज्योतिबा फुले ने कौन सा स्कूल खोला था?

Ans:- 1848 में लड़कियों के लिए पहली पाठशाला पुणे में खोली।

ज्योतिबा फुले की मृत्‍यु कब हई?

Ans:- 28 नवंबर 1890

ज्योतिबा फुले की मृत्यु कैसे हुई?

Ans:- लकवाग्रस्त होन के कारण 

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Veer Narayan Singh: Jeevan Parichay

Veer Narayan Singh: देश के आजादी के लड़ाई में सैकड़ो स्‍वतंत्रता सेनानियों ने सालों तक संघर्ष किया और अपना बलिदान दिये उन बलिदान देने वालों में छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में एक नाम शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है। जिन्‍होने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपना बलिदान दिया शहीद वीर नारायण सिंह (1795-1857) छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के प्रथम स्‍वतंत्रता सेनानी, सच्‍चे देश भक्‍त एवं सोनाखान के जमींदार गरीबो के मसीहा थे। आईये जानते है शहीद वीर नारायण सिंह के वीर गाथा के बारे में।

वीर नारायण सिंह का जन्‍म Birth of Veer Narayan Singh

Veer Narayan Singh: वीर नारायण सिंह का जन्‍म छत्‍तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था पिता का नाम रामसाय था यह बिंझवार जनजाति के थे और इनके परदादा सोनाखान के दिवान थे। वीर नारायण सिंह के पूर्वज सारंगढ़ के जमींनदार के वंशज थे, और लगभग 300 गावों की जमींदारी इनके पास थी। पिता की मृत्‍यु के बाद 35 साल की उम्र में ही वीर नारायण सिंह ने अपने पिता से जमींदारी का अधिकार ले लिया था। उनका स्‍थानीय लोगों से अटूट लगाव था।

वीर नारायण सिंह का कार्य और योगदान।

Veer Narayan Singh: छत्‍तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल शहीद वीर नारायण सिंह ने फूंका था उन्‍होने छापामार युद्ध नीति का प्रयोग कर अंंग्रेजों के नाक में दम करके रख दिया था कई बार अंग्रेेेजी सेना ने उन्‍हे सोनाखान में पकड़ने और मारने के लिए योजना बनाई लेकिन असफल रहे। उन्‍होने यहां के गरीब जनता के उत्‍थान के लिए और आदिवासी समाज के विकास के लिए कार्य करते रहे और देश को आजाद कराने में उनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका रही।

वीर नारायण सिंह ने गोदाम में रखे अनाज को गरीबों में बंटवा दिया था।

Veer Narayan Singh: सन् 1856 में इस क्षेत्र में बारिश नहीं होने कारण भीषण अकाल पड़ गया लोग पीने के पानी तक के लिए तरस गये धान का भंडार कहा जाने वाला यह क्षेत्र सूखे से ग्रसित हो गया लोगो के पास खाने के लए कुछ नहीं था और जो कुछ भी था वो अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार जमाखोरी करके अपने गोदाम में भर कर रखे थे। उन्‍ही में एक अंग्रजों से सहायता प्राप्‍त कसडोल के साहूकार माखनलाल अपने गोदामों में अवैध और जोर जबरदस्‍ती से धन एकत्रित करके रखे हुए थे।

वीर नारायण सिंह हजारो किसानों के साथ मिलकर उस गोदाम में रखे अनाज को लूट लेते है, और भूख से पीड़‍ित जनता में बांट देते है। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्‍टी इलियट से की गई और अंग्रेजों द्वारा उन्‍हे 24 अक्‍टूबर 1856 को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया जाता है। 1857 में जब स्‍वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो जेल में बंद लोगो ने वीर नारायण सिंह को ही अपना नेता मान लिया। और अंग्रेजों के खिलाफ बढ़ते अत्‍याचारों के विरूद्ध बगावत करने की ठान ली।

वीर नारायण सिंह द्वारा सेना का गठन।

Veer Narayan Singh: 28 अगस्‍त 1857 में ब्रिटिश सेना में कार्यरत कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण सिंह जेल से भाग निकले और अपने गांव सोनाखान पहुंच गये वहां पर उन्‍होने 500 सैनिकों की एक सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुकाबला किया अंग्रेज जब वीर नारायण सिंह से लड़ नहीं पाये तो बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने यहां के जनता पर अत्‍याचार करना शुरू कर दिया उन्‍होने स्‍थानीय लोगों के घर जलाकर तरह तरह के अत्‍याचार करके लोगो से बदला लेना आरम्‍भ कर दिया।

लोगो को अंग्रेजों के अत्‍याचार से बचाने के लिए आत्‍मसमपर्ण।

Veer Narayan Singh: अंग्रेजों द्वारा जनता के प्रति अत्‍याचार से आहत होकर वीर नारायण सिंह ने अपने लोगो की जान बचाने के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने आत्‍मसमपर्ण कर दिया। उनके आत्‍मसमपर्ण का मूल उदेश्‍य यह था कि उनके कारण गरीब जनता को कोई हानि न पहुंचे उनको कोई अत्‍याचार सहना न पड़े और जनता की भलाई के लिए उन्‍होने आत्‍मसमपर्ण कर दिया।

वीर नारायण सिंह को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।

Veer Narayan Singh: समपर्ण के बाद 10 दिसबंर 1857 को अंग्रेजों द्वारा रायपुर में उन्‍हे सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई और मृत्‍यु के बाद उनके शव को तोप से बांध कर सरे आम उड़ा दिया गया यह स्‍थान वर्तमान में जय स्‍तम्‍भ चौक के नाम से जाना जाता है। सार्वजनिक रूप से हुए इस कुकृत्‍य से आम लोगों में और ब्रिटिश सेना के भारतीयों में एक प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और एक नई क्रांति का आरम्‍भ हुआ। शहीद वीर नारायण सिंह को इस समर के लिए छत्‍तीसगढ़ का प्रथम बलिदानी माना जाता है।

वीर नारायण सिंह के नाम पर बनाई गई स्‍मृतियां एवं सम्‍मान

Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह की गौरव गाथा आज भी छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में जनमानस के बीच सुनाई देती है। सोनाखान के लोग उन्‍हे देवता की तरह पूजते है प्रदेशवासियों के साथ साथ पूरे देश में उन्‍हे एक आदर्श के रूप में माना जाता है। जिसके चलते छत्‍तीसगढ़ शासन ने प्रतिष्ठित जगहों के नाम उनके नाम पर रखा है एवं उनके स्‍मृति में पुरस्‍कार सम्‍मान प्रदान किया जाता है, जिसकी कुछ झलकियां निम्‍नानुसार है:-

  • Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium- छत्‍तीसगढ़ में देश के दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्‍टेडियम का नाम शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर रखा है। रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम का निर्माण साल 2008 में करवाया है। यह स्टेडियम कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है। इस स्‍टेडियम की क्षमता 65,000 है। इस स्‍टेडियम की देख रेख व संचालन छत्‍तीसगढ़ सरकार द्वारा किया जा जाता है।   

Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium Raipur

  • शहीद वीर नारायण सिंह सम्‍मान- Veer Narayan Singh: स्‍वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह की स्‍मृति में “शहीद वीर नारायण सिंह सम्‍मान” छत्‍तीसगढ़ आदिम जाति कल्‍याण विभाग द्वारा आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्‍थान के लिए उत्‍कृष्‍ठ कार्य करने वाले व्‍यक्ति को दिया जाता है। स्‍थापना वर्ष 2001 इस सम्‍मान के अंतर्गत 2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्‍ह युक्‍त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है। प्रथम प्राप्‍तकर्ता आदिवासी शिक्षण समिति, पाड़ीमार को वर्ष 2001 में प्रदान किया गया था।
  • पोस्‍टल स्‍टाम्‍प शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर- Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह को सम्‍मान देने के लिए उनकी 130 वीं बरसी पर 1987 में भारत सरकार ने 60 पैसे का पोस्‍टल स्‍टाम्‍प जारी किया जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया।

वीर मेला राजा राव पठार के बारे में भी जाने:-

Veer Mela Rajarao Pathar:- छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृति, त्यौहार और परम्परा के लिए देश भर में जाना जाता है। जिसमें मेला मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के सभी जिलों में अलग अलग रूप से मंडई का आयोजन किया जाता है। लेकिन बालोद जिले में हर साल आयोजित होने वाले वीर मेला का एक विशेष महत्व होता है। जहां सर्व आदिवासी समाज के तत्त्वाधान में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में वीर मेला या देव मेला का आयोजन किया जाता है।

सर्व आदिवासी समाज द्वारा किया जाता है आयोजन:-Veer Narayan Singh: वीर मेला छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के बालोद जिला में धमतरी जगदलपुर नेशनल हाईवे पर धमतरी से 15 किलोमीटर दूर स्थित राजा राव पठार पर छत्‍तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह की याद में प्रतिवर्ष उनके बलिदान दिवस पर 10 दिसबंर को मनाया जाता है। यह आदिवासी समाज की वेशभूषा संस्कृति को जानने का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आकर आप उनकी संस्कृति से वाकिफ हो सकते है। इसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। यहां हर साल आम लोगों के साथ साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी पहुंचते हैं। इस मेल में प्रदेश भर के ध्रुव गोड़, बैगा, कमार समाज के आदिवासी शामिल हाेते हैं।

तीन दिनों तक होता है मेला का आयोजन:- Veer Narayan Singh: राजाराव पठार में सर्व आदिवासी समाज के तत्वावधान में प्रतिवर्ष 08, 09 और 10 दिसम्बर को शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर विराट वीर मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें देव स्थापना, देव मेला, आदिवासी हॉटबाज़ार, रैली, आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम, रेला पाटा, आदिवासी महापंचायत तथा शहीद वीर नारायण सिंह की श्रद्वांजली सभा का कार्यक्रम किया जाता है।

Veer Mela Rajarao Pathar वीर मेला राजा राव पठार

वीर नारायण सिंह का जन्‍म कब हुआ था? When was Veer Narayan Singh born?

1795 में।

वीर नारायण सिंह का जन्म कहाँ हुआ था? Where was Veer Narayan Singh born?

छत्‍तीसगढ़ के सोनाखान में।

वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस कब मनाया जाता है? When is Veer Narayan Singh Martyrdom Day celebrated?

10 दिसबंर को।

वीर नारायण सिंह कौन से राज्य के थे? Veer Narayan Singh belonged to which state?

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ।

वीर नारायण सिंह को फांसी की सजा क्यों दी गई है? Why has Veer Narayan Singh been given death sentence?

1857 की क्रांति का समर्थन करने की वजह से ।

वीर नारायण सिंह किसका पुत्र था? Whose son was Veer Narayan Singh?

सोनाखान के जमींदार रामसाय।

वीर नारायण सिंह का पूरा नाम क्या है? What is the full name of Veer Narayan Singh?

वीर नारायण सिंह बिंझवार।

वीर नारायण सिंह कौन से जाति के थे? Which caste did Veer Narayan Singh belong to?

बिंझवार।

सोनाखान क्यों प्रसिद्ध है? Why is Sonakhan famous?

सोनाखान के राजा वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण।

सोनाखान के राजा कौन थे? Who was the king of Sonakhan?

वीर नारायण सिंह।

सोनाखान के जमींदारन कौन थे? Who was the landlord of Sonakhan?

वीर नारायण सिंह।

शहीद वीर नारायण सिंह को फांसी कब दी गई? When was martyr Veer Narayan Singh hanged?

10 दिसंबर 1857 को।

वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम कब बना? When was Veer Narayan Singh International Cricket Stadium built?

2008 मे।

वीर नारायण सिंह अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट की क्षमता कितनी है? Veer Narayan Singh What is the potential of international cricket?

65000।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान किस क्षेत्र में दिया जाता है? Veer Narayan Singh Samman is given in which field?

आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्‍थान के लिए।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान की शुरूआत कब हुई? When was Veer Narayan Singh Samman started?

2001 में।

वीर नारायण सिंह सम्‍मान में क्‍या प्रदान किया जाता है? What is given in Veer Narayan Singh Samman?

2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्‍ह युक्‍त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है।

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