गुरू घासीदास सतनाम धर्म के संथापक एवं महान व्यक्तित्व के थे, जिन्होने समाज में फैले अशांति को दूर करते हुए सामाजिक न्याय, समानता, सच्चाई और शांति की वकालत की और सामाजिक उत्पीड़न से उत्पीड़ित नीचली जातियों की मदद करने का प्रयास किया। जिसके परिणामस्वरूप उन्होने उस दौर की क्रूर एवं दमनकारी भारतीय समाज में एक नयी जागृति पैदा की। गुरू घासीदास जी के अनुयायी उन्हे “अवतारी पुरूष” मानते थे।
यही कारण है कि छत्तीसगढ़ राज्य में गुरू घासीदास की जयंती व्यापक उत्सव के रूप में पूरे राज्य में बड़ी धूम-धाम श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। गुरू घासीदास की जन्म भूमि और तपो भूमि गिरौदपुरी धामा तथा कर्मभूमि भंडारपूरी था। जहां उन्होने अपना उपदेश (संदेश) दिये थे। आज वे स्थान सतनामी समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात हैं। इसलिएगुरु घासीदास बाबाकी जयंती पर हर साल 18 दिसंबर को एवं पूरे माह भर बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
इस दिन सतनाम अपने घर के नजदीकी जैतखाम के पास जाकर पूजा करते हैं, सत्य और अहिंसा के आधार पर जो सतनामी पंथ में निहित है, और उसकी विशेषता है, भाईचारा और संगठन शक्ति। गुरू घासीदास जी सामाजिक तथा आध्यात्मिक जागरण की आधारशिला स्थापित करने में ये सफल हुए और छत्तीसगढ़ में इनके द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ के आज भी लाखों अनुयायी हैं। गुरू घासीदास जी की जयंती पर उनके सिद्धांत और अमृतवाणी के बारे में जानेंगे।
गुरू घासीदास बाबा के 42 अमृतवाणी (उपदेश)
1- सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।)
2-जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे।
Satrenga Picnic Spot प्रिसिद्ध पर्यटन स्थल सतरेंगा कोरबा।
Satrenga: छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला यूं तो उर्जा राजधानी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा कोरबा जिला पर्यटन के लिए भी मशहूर होता जा रहा है, आज हम उसी कोरबा जिले के सतरेंगा के बारे में बताने जा रहें है। जो बहुत ही कम समय में कोरबा का पर्यटन स्थल के रूप में सामने आया है। अगर आप भी अपने दोस्तों एवं परिवार के साथ कहीं घूमने की प्लानिंग कर रहे है। तो इस Satrenga की मनोरम एवं सुंदर वादियों का आनंद ले सकते है।
मिनी गोवा के नाम से मशहूर सतरेंगा पिकनिक स्पॉट की खास बातें।
अगर आप गोवा जाने का प्लान बना रहें है, और किसी कारणवश गोवा नहीं जा पा रहें है, तो आपको कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आप छत्तीसगढ़ में ही गोवा का एहसास कर सकते है। जी हां हम बात कर रहे है Satrenga Picnic Spot कोरबा की जो मिनी गोवा के नाम से भी प्रसिद्ध है। और यहां पर बहुत दूर दूर से पर्यटक गोवा जैसी मनोरम नजारों को देखने के लिए आते है, यह छत्तीसगढ़ के सबसे चर्चित पिकनिक स्पॉट में से गिना जाता है।
सतरेंगा पिकनिक स्पॉट कहां पर स्थित है?
Satrenga Picnic Spot छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। आपको बता दें कि हसदेव नदी पर जंगल के बीच में हसदेव बांगो बांध का निर्माण किया गया है। और यहां पर पहाड़ो से घिरे बांध के बीचों बीच कई छोटे छोटे दवीप टापू बने हुए है। उन्ही टापूओं में से यह सतरेंगा भी है। जो कोरबा के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है, और कोरबा की नई पहचान बन गई है। यह छोटे छोटे टापू सतरेंगा की खूबसूरती को और भी सुंदर बनाते है।
सतरेंगा में स्थित महादेव पर्वत का नजारा।
Satrenga में एक पहाड़ स्थित है, जिसे महादेव पर्वत के नाम से जाना जाता है। क्योंकि यह पर्वत शिवलिंग के आकार लिये हुए प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। इस पर्वत का खूबसूरत नाजारा यहां पर आने वाले पर्यटको को सेल्फी लेने के लिए मजबूर करता है। इसी को देखते हुए गार्डन में एक सेल्फी जोन भी बनाया गया है। पहाड़ो से घिरे हुए झील का नीला पानी यहां के महौल को और सुदंर बनाता है। और गोवा जैसे माहौल का अुनभव कराता है।
सतरेंगा में नौकाविहार एवं बोटिंग का भी आनंद ले सकते है।
Satrenga Picnic Spot छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि दूसरे राज्य एवं देश विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है। यहां पर आकर लोग विभिन्न प्रकार की मनोरंजन सुविधाओं जैसे बोंटिग, लक्जरी रिसोर्ट, फ्लोटिंग रेस्टारेंट, वाटर स्पोर्ट्स, एडवेंचर स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग एवं अन्य आकर्षण, घुड़सवारी, नौकाविहारआदि का आनंद ले सकते हैं। जिसमें सभी प्रकार की मनोरंजन सेवाओं के लिए अलग दरों में फिस निर्धारित किया गया है।
नौका विहार:- नौका विहार करने के लिए 20 से 50 रूपये तक का शुल्क लिया जाता है, जिसमें लगभग 0.5 किमी तक घुमाया जाता है।
बोटिंग:- अगर आपको बोटिंग का आनंद लेना है तो जल संसाधन विभाग द्वारा बोटिंग कराया जाता है, जिसका शुल्क लगभग 100 प्रति व्यक्ति है।
इसके साथ साथ सतरेंगा बोर्ड क्लब और रिसोर्ट में अलग-अलग बोटिंग के लिए अलग अलग शुल्क निर्धारित हैं।
Pontan Boat / 10 सीटर – 3000/- रूपये
Max Boat / 08 सीटर – रु. 2400/- रूपये
Rocket Boat / 04 सीटर – रु. 1600/- रूपये
Jeta Boat / 02 सीटर – रु. 1200/- रूपये
सतरेंगा को छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग ने वॉटर टूरिज्म के रूप में विकसित किया है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सतरेंगा के इस पकिनिक स्पॉट को विकसित करने के लिए फरवरी 2020 में एक बैठक हुई। जिसके फलस्वरूप इस स्थान को सुंदर और बेहतर बनाया जा रहा है। यहां खुबसुरत गार्डन का निर्माण, रेस्ट हाउस, वाटर स्पोर्टस और टिकिटिंग की भी व्यवस्था बनाई गई है, वैसे तो यहां पर ज्यादातर लोग फैमिली और दोस्तों के साथ पिकनिक या बोटिंग, नेचर कैम्पिंग के लिए ही आते है, पर रेस्ट हाउस बन जाने के बाद छत्तीसगढ़ के बहार से भी आने वाले पर्यटक यहां रूककर प्रकृति के बीच रहकर अपने फैमिली के साथ समय व्यतीत कर पायेंगे और यहां की सुदंर वादियों का आनंद ले पायेंगें।
Satrenga Picnic Spot जाने का सही समय जिससे की आप भरपूर आनंद ले सके।
अगर आप अपने दोस्तों या फैमिली के साथ Satrenga Picnic Spot जाने की योजना बना रहे है, तो यहाँ जाने का सबसे सही समय जुलाई से जनवरी-फरवरी तक माह होगा। क्योंकि इस समय यहाँ का पानी प्रर्याप्त मात्रा में भरा रहता हैं। जिससे आप वहां की सुविधाओं का भरपूर आनंद उठा सको। पहाड़ो के बीच में बने बांध का पानी कम होने की स्थिति में वहां बोटिंग और नौकाविहार का सही लुप्त नहीं ले पायेगें इसलिए यहां जाने का सही समय जुलाई से फरवरी महीने तक को माना जा सकता हैं।
Satrenga Picnic Spot तक कैसे पहुंचे।
छत्तीसगढ़ के इस खूबसूरत जगह पर आप अपनी फैमिली और दोस्तों के साथ समय बिता सकते हैं। कोरबा जिले के सतरेंगा जाने के लिए हवाई सफर, ट्रेन और निजी वाहनों से पहुंचा जा सकता है, रेल मार्ग से जाने के लिए सबसे निकटतम रेल स्टेशन कोरबा है, जिसकी दूरी लगभग 40 किलोमीटर है, बिलासपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 130 किलोमीटर है, हवाई मार्ग से जाने के लिए रायपुर एयरपोर्ट से लगभग 200 किलोमीटर और बिलासपुर एयरपोर्ट से 130 किलोमीटर दूर है। वहीं सतरेंगा पहुंचने के लिए कोरबा शहर से 45 किलोमीटर लंबी सड़क से आसानी से पहुंच सकते है।
Manjhingarh hill Station: छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर जिला प्राकृतिक सम्पदा एवं खनिज संसाधनो से तो भरपूर है ही, उसके साथ ही साथ यह प्रकृतिक सुदंरता से भी भरी पड़ी है, यहां के कल कल करती नदियां, चिडि़यों की चहचाहट से गूंज उठते पहाड़ी, एवं झरनों की सुंदरता किसी की भी मन को मोह लेती है। उसी तरह बस्तर के कोंण्डागांव जिले के अतंर्गत विश्रामपुरी में स्थित है मांझीनगढ़ की पहाड़ी जो अपने आप में एक प्रकृति की अनुपम छठा बिखेरती है। आज के इस पोस्ट में मांझीनगढ़ की पहाड़ी के बारे में बताने जा रहे है, जिससे की आप भी उस Manjhingarh hill Station तक पहुंचे और वहां की प्रकृतिक वादियों का आंनद ले।
Manjhingarh hill Station: मांझीनगढ़ पहाड़ी की भौगोलिक स्थिति
बस्तर क्षेत्र पूरी तरह से प्रकृतिक वादियों से घिरा हुआ है, किसी भी क्षेत्र या स्थान में वहां की भौगोलिक स्थिति का महत्वपूर्ण स्थान होता है, उसी तरह इस मांझीनगढ़ पहाड़ी की भी अपनी एक अलग भौगोलिक विशेषता है, यह पहाड़ी केशकाल के बड़ेराजपुर ब्लाक में विश्रामपुरी के ग्राम पंचायत खल्लारी से 8 किलोमीटर दूरी पर ऊपर की ओर पहाड़ो में बसा हुआ है। यह मांझीनगढ़ (Manjhingarh) समुद्री तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। और एक बहुत बडे़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
मांझीनगढ़ क्यों प्रसिद्ध है?
यह मांझीनगढ़ की पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, इस Manjhingarh hill Station पर जलप्रपात, एवं चट्टानों के बीच में प्राकृतिक गुफाएं विद्यमान है, जहां पर हजारों वर्ष पुराने शैलचित्र मौजूद हैं, जिसे आज से हजारों साल पहले के मानवों द्वारा इन अदभूत गुफाओं में सजीव पेन्टिंग किया गया है, और आश्चर्यजनक बात यह है, कि जब दुनिया में मंदिर मस्जिद, गढ़ किला किसी का भी अस्तित्व नहीं था। उस दौर में लिखने व पेन्टिंग करने की ऐसी उच्च तकनीक विकसित कर लिये थे। जिसका रंग आज भी सुरक्षित है।
इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी से आस पास के क्षेत्रों का सुंदर नाजारा दिखाई देता है, जिसमें इस पहाड़ी के ऊपर से कांकेर शहर, सरोना, और दुधावा बांध को भी देखा जा सकता है। यहां के घने जंगल, झरने, गुफाएं, एवं शैलचित्र यहां आने वाले पर्यटकों को एक विशेष अनुभव प्रदान करती है। इसके साथ ही साथ यहां पर इस क्षेत्र की लोक संस्कृति एवं यहां के निवासियों का देव स्थल मौजूद है। जिनके वजह से ही यह स्थान आज सुरक्षित एवं संरक्षित है।
Manjhingarh Hill Station मांझीनगढ़ की गुफा
मांझीनगढ़ में स्थित “गढ़मावली माता” एवं भादोम जात्रा के बारे में भी जानें
इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी को लोग सिर्फ प्रकृतिक सौंदर्य के लिए ही जानते है, लेकिन उससे भी बढ़कर इस स्थान का एक विशेष महत्व है। यह मांझीनगढ़ सबसे पहले यहां के निवासियों का देव स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। क्योंकि यहां पर “गढ़मावली माता” का स्थान है। जिसे आस पास के स्थनीय लोग सेवा अर्जी करते है पूजते है। और इस मांझीनगढ़ में जहां पर “गढ़मावली माता” विराजमान है। प्रतिवर्ष भादोम जात्रा का आयोजन किया जाता है।
यह भादोम जात्रा भादो माह में केशकाल के भंगाराम जात्रा के दिन ही आयोजित होती है। आस पास के सभी गांवों के लोग देवी देवता और पेन शक्तियों के साथ बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते है। और गांवों को प्राकृतिक आपदा से बचाने, सुख समृद्धि, खुशहाली के “गढ़मावली माता” के स्थान में सेवा अर्जी विनती करते है। जिसके कारण ही यहां की संस्कृति की अपनी अलग पहचान है जिसे यहां के निवासियों ने आज तक बचाकर संजोकर रखा है।
मांझीनगढ़ को जैव विविद्यता पार्क के रूप में विकसित करने की घोषणा
(Manjhingarh) मांझीनगढ़ कोंडागाँव जिले के एक विशेष प्रचलित ईको टूरिज्म स्थल के रूप में लोगों को लुभा रहा है। यहां के घने जंगल, प्राकृतिक गुफाएं हजारों साल पुराना शैलचित्र, वन्य जीव, औषधीय पौधे, सुंदर मनमोहक वादियाँ तथा यहां की भौगोलिक संरचनायें पर्यटकों को एक विशेष अनुभव और आनंद प्रदान करती हैं।
मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की इन्ही विशेषताओं के कारण 18 मार्च 2023 को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोंडागांव जिले के केशकाल विधानसभा के ग्राम बांसकोट में भक्त माता कर्मा जयंती एवं मुख्यमंत्री कन्या विवाह के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से भाग लेते हुए मांझीगढ़ को पर्यटन स्थल घोषित किया।
कोण्डागांव जिले के तत्कालिन कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने खालेमुरवेंड में लिंगोधारा पर्यटन स्थल, बांध और मांझिनगढ़ का सौंदर्यीकरण करने अधिकारियों के साथ स्थल निरीक्षण किया व सभी को जल्द से जल्द प्रोजेक्ट तैयार करने निर्देश दिया। और जंगल सफारी की तर्ज पर मांझीनगढ़ Manjhingarh hill Station को बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित किया जाएगा।
मांझीनगढ़ तक कैसे पहुंचे?
इस मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की पहाड़ी पर पहुंचने के लिए सबसे पहले रायपुर की तरफ से आने वाले पर्यटकों को केशकाल घाटी को पार करते हुए केशकाल में विश्रामपुरी चौक पहुंचना होगा उसी तरह जगदलपुर की ओर से आने वाले पर्यटकों को केशकाल के विश्रापुरी चौक पहुचना होगा और केशकाल से विश्रामपुरी की दूरी 20 किमी, विश्रामपुरी से आमडीही होते हुए ग्राम पंचायत खल्लारी की दूरी लगभग 06 किमी और खल्लारी से पहाड़ी तक 08 किमी की दूरी तय करके मांझीनगढ़ स्थल तक पहुंचा जा सकता है।
सारांश:-
इस मांझीनगढ़ को प्रकृति ने अपने प्राकृतिक सौंदर्य से खुब निखारा है, मांझीनगढ़ (Manjhingarh) की खूबसूरत नजारें, पेड़ पौधे, सुंदर वातावरण यहां आने वाले पर्यटकों के मन को मोह लेती है, जिससे की लोग इस स्थान पर बार बार आना पंसद करते है। और इस स्थान का आनंद लेना चाहते है। अगर आप भी इस स्थान पर आना चाहते है और मांझीनगढ़ के बारे में जानता चाहते है, तो एक बार मांझीगढ़ की यात्रा जरूर करें।
मेरी इस लेख की माध्यम से यहां आने वाले पर्यटकों से एक अग्रह है, कि जब भी इस तरह के प्राकृतिक जगहों पर जायें तो वहां के वातावरण का खास ध्यान दें कोई गंदगी न फैलायें, प्लास्टिक युक्त चीजों को इधर उधर न फेंके वहां की चीजों को नुकसान न पहुचायें जिससे की उस प्राकृतिक सौदंर्य पर कोई प्रभाव पड़े क्योंकि प्रकृति हमें कोई भी चीजें निशुल्क उपहार प्रदान करती है। और हम मानव अपनी स्वार्थ के लिए प्रकृति के दिये इस उपहार को नष्ट करके विनाश के कगार पर ले जाते है।
Biography Of Vishnu Deo Sai कौन है विष्णुदेव साय?
Biography Of Vishnu Deo Sai विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ राज्य में (बीजेपी) भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ आदिवासी नेता है, जिन्हे छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में मनोनित किया गया है, इससे पहले वे 2020 से 2022 तक छत्तीसगढ़ के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है। एवं रायगढ़ लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रह चके है। आज के इस पोस्ट में विष्णुदेव साय के वार्ड पंच से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का राजनीतिक सफर के बारे में हम जानेगें।
विष्णुदेव साय का संक्षिप्त परिचय :-
नाम
विष्णुदेव साय
जन्म तिथि
21 फरवरी 1964 (उम्र 59 वर्ष)
जन्म स्थान
बगिया
जिला
जशपुर
राज्य
छत्तीसगढ़़
देश
भारत
पिता का नाम
श्री रामप्रसाद साय
माता का नाम
श्रीमति जश्मनी देवी
जीवन साथी का नाम
कौशिल्या देवी
संतान
1 पुत्र एवं 2 पुत्री
शिक्षा
10 वी पास
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में
02 जून 2020 से 09 अगस्त 2022
राजनीतिक दल
भारतीय जनता पार्टी
छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ
13 दिसंबर 2023
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
विष्णुदेव साय का जन्म 21 फरवरी 1964 को छत्तीसगढ़ राज्य में जशपुर जिले के बगिया गांव में एक किसान परिवार में हुआ। Vishnu Deo Sai के पिता का नाम रामप्रसाद साय एवं माता का नाम जश्मनी देवी है। उन्होने प्रारंभिक स्कूली शिक्षा जशपुर के कुनकुरी स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल से की है।
विष्णुदेव साय का वैक्तिगत एवं वैवाहिक जीवन
विष्णुदेव साय सादगी के लिए मशहूर है। वे छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला के बगिया गांव से आते है। उन्होने 1991 में कौशिल्या देवी से विवाह की और उनके एक बेटा और दो बेटियां है।
राजनीतिक जीवन की शुरूआत
विष्णुदेव साय ने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1989 में अपने गांव बगिया से थी। उसके बाद वे छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख एवं लोकप्रिय नेता के रूप में उभकर सामने आये। Vishnu Deo Sai छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई बड़े मंत्री पदों पर रहे। इस तरह एक छोटे से गांव से राजनीतिक सफर की शुरूआत करके आज छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने जा रहे है। आगे उनके राजनीतिक सफर के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
गांव के वार्ड पंच से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
विष्णुदेव साय ने साल सन् 1989 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत गांव के वार्ड पंच का चुनाव जीतकर की थी, वे 1990 में निर्विरोध सरपंच के लिए चुने गये इसके बाद सन् 1990 में 1998 तक अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे और उनका राजनीतिक सफर धीरे धीर बढ़ती चली गई। सन् 1999 में 13 वीं लोकसभा में Vishnu Deo Sai रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने साल 2006 में बीजेपी ने उन्हे छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
2009 और 2014 में Vishnu Deo Sai फिर से रायगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने, इसके बाद 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उनको केन्द्रीय राज्यमंत्री बनाया। उनको इस्पात खान, श्रम रोजगार मंत्रालय दिया गया। इस तरह से 27 मई 2014 से 2019 तक मंत्री पद पर रहे। राजनीतिक कैरियर में उनकी लोकप्रियता दिनो दिन बढ़ती गई और 2020 में उनको एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्य समिति में Vishnu Deo Sai को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया इसके बाद 08 जुलाई 2023 को साय को भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय कार्य समिति का सदस्य बना दिया।
छत्तीसगढ़ के अगले मुख्यमंत्री होगें विष्णुदेव साय
विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के नये मुख्यमंत्री होंगे, आपको बता दे कि Vishnu Deo Sai कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतें है इस बार विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए भारत के केन्द्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कदृावर नेता अमित शाह ने कहा था, कि आप इन्हे विधायक बनाईये मै बड़ा आदमी बना दूंगा। भारतीय जनता पार्टी ने सरगुजा की 14 में से पूरी की पूरी 14 सीटों पर जीत हासिल की है और पूरे प्रदेश में भाजपा ने इस बार 90 में से 54 विधान सभा में जीत दर्ज करते हुए Vishnu Deo Sai को छत्तीसगढ़ के अगले आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण
छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में Vishnu Deo Sai ने 13 दिसंबर 2023 को रायपुर के साइंस कालेज मैदान में शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली और उन्हे छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाई साथ ही साथ डिप्टी सीएम के रूप में अरूण साव एवं विजय शर्मा ने भी शपथ ली। 3 दिसबंर को चुनावी नतीजे आने के बाद 10 दिसबंर को बीजेपी ने अपने सीएम केे नाम की घोषणा की थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित साह समेत कई दिगज नेता शामिल हुए।
माउंटेन मैन दशरथ मांझी (Mountain Man Dashrath Manjhi)
Dashrath Manjhi: यह जीवनी एक गरीब और आदिवासी मजदूर की है, जो बिहार के एक छोटे से और बेहद पिछड़े गांव के रहने वाले थे, उस गांव में उन दिनों बिजली, पानी, सड़क, अपस्ताल जैसी सुविधाओं का अभाव था। अपनी रोजमर्रा की छोटी छोटी जरूरतों एवं बेहतर सुविधाओं के लिए गांव के उस पार पहाड़ी को पार करके पास के कस्बे में जाना पड़ता था आगे इस पोस्ट में जानेगें की कैसे उन्होने उस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया और एक माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए।
दशरथ मांझी का संक्षिप्त विवरण (Description of Dashrath Manjhi)
नाम
दशरथ मांझी
उपनाम
मांउटेन मैन
जन्म दिनांक
14 जनवरी 1934
जन्म स्थान गांव
गहलौर
जिला
गया
राज्य
बिहार
देश
भारत
जीवन साथी का नाम
फाल्गुनी देवी
पेशा
मजदूरी
निधन
17 अगस्त 2007
उम्र
73 वर्ष
मृत्यु का कारण
पित्ताशय कैंसर
प्रसिद्धि का कारण
22 वर्षो तक अकेले पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण किया
दशरथ मांझी का जन्म एवं आरंभिक जीवन (Early life of Dashrath Manjhi)
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1934 को बिहार राज्य में गया जिले के गहलौर नामक गांव में हुआ था। जिस समय दशरथ मांझी का जन्म हुआ, उस समय हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था, पूरे देश के साथ साथ इस गहलौर गांव की स्थिति भी खराब और बहुत पिछड़ा हुआ था। 15 अगस्त सन् 1947 में जब देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद तो हो जाता है, फिर भी यहां के गरीब लोग अमीर जमींदार लोगोंं की गुलामी से मुक्त नही हो पाते।
आजादी के बाद भी हर जगह जमींदारी प्रथा के चलते अमीर जमींदार अपना हक रखते हैं, गरीब और अशिक्षित लोगों को परेशान करते हैं, उनको उनके मेहनत और हक की रोटी भी नसीब नहीं होती इसी तरह दशरथ मांझी का परिवार भी बहुत गरीब था, उनके पिता एक समय में अपनी जीवन यापन लिए बहुत मेहनत करते थे। दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह फाल्गुनी देवी के साथ होता है। दशरथ मांझी के पिता गांव के जमींदार से पैसे उधार लिये थे। जिसे वह चुका नहीं पाये थे।
कर्ज नहीं चुका पाने के कारण जमींदार दशरथ मांझी के पिता को बहुत प्रताड़ित करते है, और उन्हे अपने घर पर नौकरी करने के लए मजबूर करते है, तब उनके पिता ने दशरथ मांझी को जमींदार के घर नौकरी के लिए भेज देते है, लेकिन दशरथ मांझी को किसी मी गुलामी करना पंसद नहीं था, इसलिए रात में वे गांव को छोड़कर भाग जाते है। और धनबाद में एक कोयले की खदान में काम करने लग जाते है।
दशरथ मांझी का दुबारा गांव में वापसी
दशरथ मांझी को गांव छोड़कर कोयले के खादन में काम करते हुए लगभग 7 साल बाद सन् 1955 के आसपास जब अपने परिवार की याद सताने लगती है और फिर वह गांव वापस लौट आता है, तब भी उसका गांव वैसा का वैसा ही रहता है, बिजली, पानी, सड़के, स्कूल, अस्पताल, कुछ भी नहीं, सारी सुविधाओं का अभाव रहता है। और उसकी मां गुजर चुकी होती है। दशरथ मांझी अपने पिता के साथ मजदूरी करके अपना जीवन यापन गुजर बसर करने लगते है।
दशरथ मांझी का अपनी पत्नि से फिर से मुलकात
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का बचपन में ही बाल विवाह हुआ था और वह अपनी पत्नि को ठीक से पहचानता भी नहीं था दशरथ मांझी के दुबारा गांव वापस आने पर उनके पिता जब दशरथ के ससुराल लड़की को लेने के लिए जाते है, तो लड़की के घर वाले इस विवाह को मानने से इंकार करते हुए फाल्गुनी देेेवी को ले जाने से मना कर देते है, क्योंकि दशरथ उस समय कोई काम काज नहीं करता था। दशरथ मांझी अपने प्यार की खातिर फाल्गुनी देेेवी को भगा कर घर ले आता है। और एक अच्छे पति पत्नि की तरह जीवन यापन करते है।
दशरथ मांझी की पत्नि का निधन
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी और उनका परिवार मजदूरी करके खुशी खुशी जीवन यापन कर रहा था। दशरथ मांझी काम के लिए पहाड़ के उस पार कस्बे में जाते थे जिससे उनकी दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता था। वह दिन भर काम करके शाम को वापस अपने घर आता। दशरथ मांझी की पत्नि उसके लिए दोपहर का खाना देने पहाड़ को पार करके उस पार जाती थी। एक दिन उसी तरह जब वह खाना देने के लिए उस पहाड़ पर चढ़ी उसी समय उनका पैर अचानक फिसल गई और गिर पड़ी। उस समय उनकी पत्नि गर्भवती थी। गांव में अस्पताल जैसी सुविधांए नहीं थी उन्हे अस्पताल ले जाने के लिए पहाड़ को चढ़कर पार करना पड़ता तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।
दशरथ मांझी द्वारा पहाड़ तोड़ने का कार्य (उपलब्धि)
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी अपनी पत्नि की मौत की घटना से पूरी तरह टूट जाते है, और मन में ठान लेते है कि इस पहाड़ को तोड़कर सड़क का निर्माण करके गांव और उस पार कस्बे की दूरी को कम करेगें वह रोज सुबह छैनी और हथौड़ी लेकर पहाड़ को काटने के लिए निकल जाते थे। दशरथ मांझी 1960 से लेकर 1982 तक लगभग 22 साल तक पहाड़ को छैनी और हथौड़ी से काटते रहे। गहलौर गांव के लोग दशरथ मांझी को पागल तक करार दे दिये थे।
आखिरकार 22 साल की मेहनत के बाद 360 फुट लम्बा (110 मी.) 25 फुट गहरा (7.6 मी.) 30 फुट चौड़ा (9.1 मी.) गहलौर की पहाड़ी को काटकर उन्हाने सड़क बना दिया और इस सड़क के निर्माण से गया के अत्री और वजीरगंज सेक्टर की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। उनकी बनाई इस सड़क उपयोग आज भी उस गांव के लोग करते है।
दशरथ मांझी का निधन (Dashrath Manjhi’s death)
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी का निधन 73 वर्ष की आयु में 7 अगस्त 2007 को अखिल भरतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में हुआ वे पित्ताशय के कैंसर से ग्रिसित थे। बिहार की राज्य सरकार द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया।
माउंनटेन मैन दशरथ मांझी का समाधि स्थल
Dashrath Manjhi: माउंटेन मैन दशरथ मांझी की समाधि स्थल सैलानियों के लिए प्रेम की मिसाल बन गया है। 22 साल तक उन्होंने अपनी पत्नी के प्रति अगाध प्रेम के चलते गहलौर घाटी की पहाड़ को काट कर रास्ता बनाया था उनका समाधि स्थल उनके गांव गहलौर में बनाया गया है। आज उनका समाधि (Mountain Man in Gehlaur) स्थल बिहार का ताजमहल के नाम से भी जाना जाता है।
पर्वत पुरूष दशरथ मांझी का समाधि स्थल गहलौर
सम्मान
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी की इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और अस्पताल बनाने का फैसल किया।
Dashrath Manjhi: दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित “मांझी- द माउंटेन मैन” नाम से 2015 में एक फिल्म का निर्माण किया गया है। इस फिल्म के निर्देशक केतन मेहता और वायाकॉम 18 मोशन पिक्चर्स और एनएफडीसी इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित है। जिसमें नवाजुद्वीन सिद्धकी द्वारा दशरथ मांझी का मुख्य रोल निभाया गया है। जबकि राधिका आप्टे ने मांझी की पत्नि की भूमिका निभाई है।
Jyotiba Phule Biography: ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय।
Jyotiba Phule:- इस देश में समय समय पर कई महान व्यक्ति एवं समाज सुधारक हुए जिन्होने समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर कर समाज को ऊपर उठाने में अपना अहम् योगदान दिया। उन्ही में से एक महान व्यक्ति ज्योतिबा फुले भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। उन्होने महिलाओं की शिक्षा से लेकर सभी वर्गो की शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किये। आज के इस लेख में ज्योतिबा फुले के जीवन के बारे में जानकारी देंगें।
Jyotiba Phule सारांश :-
नाम
ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule)
पूरा नाम
महात्मा ज्योतिराव गोविन्दराव फुले
उपनाम
ज्योतिबा फुले, महात्मा फुले, ज्योतिराव फुले
जन्म दिनांक
11 अप्रैल 1827
जन्म स्थान
खानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र
माता का नाम
चिमनबाई
पिता का नाम
गोविन्दराव फुले
जीवन साथी का नाम
सावित्री बाई फुले
पुत्र/पुत्री का नाम
–
भाई का नाम
राजाराम
मुख्य विचार
नीतिशास्त्र, धर्म, मानवतावाद
प्रसिद्वि
समाजिक कार्यकर्ता
उपाधि
महात्मा की उपाधि
देश
भारत
राज्य क्षेत्र
महाराष्ट्र
राष्ट्रीयता
भारतीय
जीवन काल
63 वर्ष
मृत्यु
28 नवंबर सन् 1890
ज्योतिबा फुले का जन्म एवं आरम्भिक जीवन
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 ई0 को तात्कालिक ब्रिटिश भारत के खानवाड़ी (पुणे) वर्तमान महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था इनके पिता का नाम गोविन्दराव और माता का नाम चिमनबाई था। मात्र 1 वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद इनका पालन पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई के द्वारा किया गया। इनके दादाजी कई वर्ष पूर्व सतारा से पुणे आकर माली के व्यवसाय में फूलों के गजरे बनाने का काम करने लगे, जिनके चलते ये फुले कहलाए और इन्हें महात्मा फुले और ज्यतिबा फुले (Jyotiba Phule) के नाम से भी जाना जाता है।
ज्योतिबा फुले की शिक्षा (Education)
Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को 7 वर्ष के आयु में विद्यालय में दाखिला करवाया गया लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण वहां पढ़ाई नहीं कर पाए इनके अंदर पढ़ने की बहुत इच्छा थी इसलिए इनकी दाई, सगुनाबाई ने घर में ही पढ़ाई के इंतजाम कर दिए। ज्योतिबा फुले ने आरंभिक शिक्षा मराठी में अध्ययन किया, बीच में ही पढाई छूट जाने के बाद वे 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा तक की पढाई पूरी की इस तरह अध्ययन करते-करते उनका ज्ञान इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि वह अपने से बड़े उम्र के लोगों के साथ बैठकर चर्चा किया करते थे।
ज्योतिबा फुले का वैवाहिक जीवन
Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले का विवाह सन् 1840 में सावित्री बाई फुले से हुआ, उन्होने अपनी धर्मपत्नि सावित्री बाई फुले को स्वयं शिक्षा प्रदान की जो बाद में स्वयं एक प्रसिद्ध समाजसेविका बनीं। सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थी दलित व स्त्रीशिक्षा के क्षेत्र में तथा महिलाओं व पिछड़े व अछूतों के उत्थान के लिए दोनों पति-पत्नी ने मिलकर उल्लेखनीय कार्य किये।
ज्योतिबा फुले द्वारा स्कूल की स्थापना
Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले को शिक्षा के प्रति बहुत ही लगाव था, उन्हे महान व्यक्तियों की जीवनी पढ़ने और उनके बारे में जानने की बड़ी रुचि थी उन्हें जब ज्ञान हुआ कि सभी मनुष्य (नर-नारी) समान हैं, तो उनमें ऊँच-नीच भेद भाव क्यों होना चाहिए। इसलिए स्त्रियों की शिक्षा और उनकी दशा सुधारने के लिए ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने सन् 1848 में एक स्कूल खोला। बालिकाओं के लिए यह देश में पहला विद्यालय था परंतु लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली।
तब इन्होने दिन रात मेहनत करके स्वयं यह कार्य किया और अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया। किंतु कुछ उच्च वर्ग के लोगो द्वारा उनके इस कार्य में बाधा डालने की कोशिश की गई। परन्तु ज्योतिबा फुले नहीं रुके तो उनके पिता पर दबाव डाल कर इन्हे पत्नी सहित घर से निकलवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनके कार्य व जीवन में बाधा जरूर आयी। परन्तु शीघ्र ही वे फिर से अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो गए। और एक के बाद एक बालिकाओं के लिए तीन स्कूल खोल दिये। इस तरह से सावित्री बाई फुले देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनी।
ज्योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना
Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर सन् 1873 को एक सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य शुद्र और अछूतों को न्याय और समाज में उचित स्थान दिलाना था। और इसकी स्थापना के पीछे ज्योतिबा फुले के जीवन का एक बहुत बड़ा अनुभव जुड़ा हुआ है। वे एक शादी में गए थे वहां पर काफी अपमानित करके उन्हे निकाल दिया गया। बाद में अपने पिताजी से पूछा कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ तो उन्होने बताया कि वे लोग उच्च जाति के लोग हैं और हम नीच जाति के, इसलिए हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते।
जिस पर ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने अपने पिताजी से पूछा की वे किस मामले में हम से श्रेष्ठ है, मैं उनसे ज्यादा शिक्षित हूं, ज्यादा अच्छे कपड़ा पहनता हूं, ज्यादा अच्छा जीवन शैली में जी रहा हूं, इस सवाल जवाब उनके पिताजी के पास नहीं था। उन्होंने बस इतना ही कहा कि यह एक प्रथा है, जो सदियों से चली आ रही है और हमें इसे मानना ही पड़ेगा। बस यहीं से ज्योतिबा फूले के मन में सत्य को खोजने और जानने की इच्छा जागृत हुई।
उन्होंने धर्म के वास्तविकता को समझा और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रकृति कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करता, यह धर्म और शोषण वाले नियम तो इंसानों ने बनाए है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य यही था कि शूद्र और अछूत लोगों को पुजारी, पुरोहित आदि की दासता से मुक्त कराया जाए। इसीलिए उन्होंने पंडित, पुरोहित पुजारी के धार्मिक कार्य में अनिवार्यता का विरोध किया। निम्न वर्गो एवं शूद्रों को शिक्षित और योग्य बनाना इस संस्था के प्रमुख कार्य थे।
सामाजिक कार्य एवं योगदान
Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले ने दलितों, पिछड़ो, अछूतों, विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के अनके कार्य किये, इसके साथ ही गरीब किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। ज्योतिबा फुले समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समर्थक थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था ऊंच नीच की प्रथा, धर्म और भेदभाव के विरुद्ध थे। ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में व्याप्त बुराईयों को मुक्त करना चाहते थे।
उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन स्त्रियों की शिक्षा एवं स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में लगा दिया। 19 वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। ज्योतिबा फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। इसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से मान्यता भी प्राप्त की। इन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया। ये विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे।
उपाधि एवंं सम्मान
महात्मा की उपाधि :- Jyotiba Phule:- ज्योतिबा फुले निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की ब्राम्हण पुरोहित के बिना ही विवाह संस्कार आरम्भ करवाया और इसे मुबंई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली। वे बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे उनके संघर्ष के कारण सरकार ने “एग्रीकल्चर एक्ट” पास किया। उन्होने अपने पूरे जीवन में समाज के लिए जो त्याग और बलिदान भरे कार्य किये थे, उनकी इस समाजसेवा को देखकर 1888 में मुबंई की एक विशाल सभा में बहादूर विटृठलराव कृष्णाजी वान्देकर ने उन्हे “महात्मा की उपाधि” दी।
ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि :- स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए ज्योतिबा फुले को सन् 1883 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा “स्त्री शिक्षण के आद्यजनक” कहकर गौरवान्वित किया गया।
ज्योतिबा फुले का निधन
Jyotiba Phule:- अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के लिए समर्पित करने वाले महान समाज सेवक ज्योतिबा फुले का शरीर अंतिम समय में लकवाग्रस्त होने के कारण दिनो दिन कमजोर होता चला गया और 28 नवंबर 1890 को 63 वर्ष की आयु में पुणे (महाराष्ट्र) में उनका निधन हो गया।
महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली उ0प्र0 Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University
यह एक सरकारी विश्वविद्यालय है इसकी स्थापना 1975 में राेहिलखंड विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी उसके बाद महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्मान में अगस्त सन् 1997 में इसका नाम बदलकर महात्मा ज्योतिबा फुले राेहिलखंड विश्वविद्यालय (Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University) कर दिया गया है इस विश्वविद्यालय का परिसर लगभग 206 एकड़ (83) हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह विश्वविद्यालय NAAC A ++ मान्यता प्राप्त है। आईएसओ 9001:2015 और 14001:2015 प्रमाणित विश्वविद्यालय है।
FaQs:-
ज्योतिबा फुले की जंयती कब मनाई जाती है (Jyotiba Phule Jayanti)
Ans:- 11 अप्रैल 1827
भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन थी?
Ans:- सावित्री बाई फुले
ज्योतिबा फुले के पिता का क्या नाम था?
Ans:- गोविन्दराम फुले
ज्योतिबा फुले के माता का क्या नाम था?
Ans:- चिमनबाई
ज्योतिबा फुले का पूरा नाम क्या था?
Ans:- महात्मा ज्योतिबाराव गोविन्दराव फुले
ज्योतिबा फुले की पत्नि का क्या नाम था?
Ans:- सावित्री बाई फुले
ज्योतिबा फुले की प्रमुख पुस्तक कौन सी है?
Ans:- गुलामगिरी
ज्योतिबा फुले कौन सी जाति के थे?
Ans:- माली
Mahatma Jyotiba Phule Rohilkhand University कहां स्थित है?
Ans:- बरेली उत्तरप्रदेश
ज्योतिबा फुले को महात्मा क्यों कहा गया?
Ans:- ज्योतिबा ने दलितों और वंचित तबके को न्याय दिलाने के लिए 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की उनकी समाजसेवा देखकर साल 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।
ज्योतिबा फुले ने कौन सा स्कूल खोला था?
Ans:- 1848 में लड़कियों के लिए पहली पाठशाला पुणे में खोली।
Veer Narayan Singh: देश के आजादी के लड़ाई में सैकड़ो स्वतंत्रता सेनानियों ने सालों तक संघर्ष किया और अपना बलिदान दिये उन बलिदान देने वालों में छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक नाम शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है। जिन्होने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपना बलिदान दिया शहीद वीर नारायण सिंह (1795-1857) छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी, सच्चे देश भक्त एवं सोनाखान के जमींदार गरीबो के मसीहा थे। आईये जानते है शहीद वीर नारायण सिंह के वीर गाथा के बारे में।
वीर नारायण सिंह का जन्मBirth of Veer Narayan Singh
Veer Narayan Singh: वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था पिता का नाम रामसाय था यह बिंझवार जनजाति के थे और इनके परदादा सोनाखान के दिवान थे। वीर नारायण सिंह के पूर्वज सारंगढ़ के जमींनदार के वंशज थे, और लगभग 300 गावों की जमींदारी इनके पास थी। पिता की मृत्यु के बाद 35 साल की उम्र में ही वीर नारायण सिंह ने अपने पिता से जमींदारी का अधिकार ले लिया था। उनका स्थानीय लोगों से अटूट लगाव था।
वीर नारायण सिंह का कार्य और योगदान।
Veer Narayan Singh: छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल शहीद वीर नारायण सिंह ने फूंका था उन्होने छापामार युद्ध नीति का प्रयोग कर अंंग्रेजों के नाक में दम करके रख दिया था कई बार अंग्रेेेजी सेना ने उन्हे सोनाखान में पकड़ने और मारने के लिए योजना बनाई लेकिन असफल रहे। उन्होने यहां के गरीब जनता के उत्थान के लिए और आदिवासी समाज के विकास के लिए कार्य करते रहे और देश को आजाद कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
वीर नारायण सिंह ने गोदाम में रखे अनाज को गरीबों में बंटवा दिया था।
Veer Narayan Singh: सन् 1856 में इस क्षेत्र में बारिश नहीं होने कारण भीषण अकाल पड़ गया लोग पीने के पानी तक के लिए तरस गये धान का भंडार कहा जाने वाला यह क्षेत्र सूखे से ग्रसित हो गया लोगो के पास खाने के लए कुछ नहीं था और जो कुछ भी था वो अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार जमाखोरी करके अपने गोदाम में भर कर रखे थे। उन्ही में एक अंग्रजों से सहायता प्राप्त कसडोल के साहूकार माखनलाल अपने गोदामों में अवैध और जोर जबरदस्ती से धन एकत्रित करके रखे हुए थे।
वीर नारायण सिंह हजारो किसानों के साथ मिलकर उस गोदाम में रखे अनाज को लूट लेते है, और भूख से पीड़ित जनता में बांट देते है। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्टी इलियट से की गई और अंग्रेजों द्वारा उन्हे 24 अक्टूबर 1856 को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया जाता है। 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो जेल में बंद लोगो ने वीर नारायण सिंह को ही अपना नेता मान लिया। और अंग्रेजों के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों के विरूद्ध बगावत करने की ठान ली।
वीर नारायण सिंह द्वारा सेना का गठन।
Veer Narayan Singh: 28 अगस्त 1857 में ब्रिटिश सेना में कार्यरत कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण सिंह जेल से भाग निकले और अपने गांव सोनाखान पहुंच गये वहां पर उन्होने 500 सैनिकों की एक सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुकाबला किया अंग्रेज जब वीर नारायण सिंह से लड़ नहीं पाये तो बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने यहां के जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया उन्होने स्थानीय लोगों के घर जलाकर तरह तरह के अत्याचार करके लोगो से बदला लेना आरम्भ कर दिया।
लोगो को अंग्रेजों के अत्याचार से बचाने के लिए आत्मसमपर्ण।
Veer Narayan Singh: अंग्रेजों द्वारा जनता के प्रति अत्याचार से आहत होकर वीर नारायण सिंह ने अपने लोगो की जान बचाने के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने आत्मसमपर्ण कर दिया। उनके आत्मसमपर्ण का मूल उदेश्य यह था कि उनके कारण गरीब जनता को कोई हानि न पहुंचे उनको कोई अत्याचार सहना न पड़े और जनता की भलाई के लिए उन्होने आत्मसमपर्ण कर दिया।
वीर नारायण सिंह को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई।
Veer Narayan Singh: समपर्ण के बाद 10 दिसबंर 1857 को अंग्रेजों द्वारा रायपुर में उन्हे सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई और मृत्यु के बाद उनके शव को तोप से बांध कर सरे आम उड़ा दिया गया यह स्थान वर्तमान में जय स्तम्भ चौक के नाम से जाना जाता है। सार्वजनिक रूप से हुए इस कुकृत्य से आम लोगों में और ब्रिटिश सेना के भारतीयों में एक प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और एक नई क्रांति का आरम्भ हुआ। शहीद वीर नारायण सिंह को इस समर के लिए छत्तीसगढ़ का प्रथम बलिदानी माना जाता है।
वीर नारायण सिंह के नाम पर बनाई गई स्मृतियां एवं सम्मान।
Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह की गौरव गाथा आज भी छत्तीसगढ़ के इतिहास में जनमानस के बीच सुनाई देती है। सोनाखान के लोग उन्हे देवता की तरह पूजते है प्रदेशवासियों के साथ साथ पूरे देश में उन्हे एक आदर्श के रूप में माना जाता है। जिसके चलते छत्तीसगढ़ शासन ने प्रतिष्ठित जगहों के नाम उनके नाम पर रखा है एवं उनके स्मृति में पुरस्कार सम्मान प्रदान किया जाता है, जिसकी कुछ झलकियां निम्नानुसार है:-
Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium- छत्तीसगढ़ में देश के दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम का नाम शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर रखा है। रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण साल 2008 में करवाया है। यह स्टेडियम कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है। इस स्टेडियम की क्षमता 65,000 है। इस स्टेडियम की देख रेख व संचालन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किया जा जाता है।
Shaheed Veer Narayan Singh International Cricket Stadium Raipur
शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान- Veer Narayan Singh:स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह की स्मृति में “शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान” छत्तीसगढ़ आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्थान के लिए उत्कृष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को दिया जाता है। स्थापना वर्ष 2001 इस सम्मान के अंतर्गत 2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्ह युक्त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है। प्रथम प्राप्तकर्ता आदिवासी शिक्षण समिति, पाड़ीमार को वर्ष 2001 में प्रदान किया गया था।
पोस्टल स्टाम्प शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर- Veer Narayan Singh: शहीद वीर नारायण सिंह को सम्मान देने के लिए उनकी 130 वीं बरसी पर 1987 में भारत सरकार ने 60 पैसे का पोस्टल स्टाम्प जारी किया जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया।
वीर मेला राजा राव पठार के बारे में भी जाने:-
Veer Mela Rajarao Pathar:- छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृति, त्यौहार और परम्परा के लिए देश भर में जाना जाता है। जिसमें मेला मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के सभी जिलों में अलग अलग रूप से मंडई का आयोजन किया जाता है। लेकिन बालोद जिले में हर साल आयोजित होने वाले वीर मेला का एक विशेष महत्व होता है। जहां सर्व आदिवासी समाज के तत्त्वाधान में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में वीर मेला या देव मेला का आयोजन किया जाता है।
सर्व आदिवासी समाज द्वारा किया जाता है आयोजन:-Veer Narayan Singh: वीर मेला छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला में धमतरी जगदलपुर नेशनल हाईवे पर धमतरी से 15 किलोमीटर दूर स्थित राजा राव पठार पर छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह की याद में प्रतिवर्ष उनके बलिदान दिवस पर 10 दिसबंर को मनाया जाता है। यह आदिवासी समाज की वेशभूषा संस्कृति को जानने का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आकर आप उनकी संस्कृति से वाकिफ हो सकते है। इसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। यहां हर साल आम लोगों के साथ साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी पहुंचते हैं। इस मेल में प्रदेश भर के ध्रुव गोड़, बैगा, कमार समाज के आदिवासी शामिल हाेते हैं।
तीन दिनों तक होता है मेला का आयोजन:- Veer Narayan Singh: राजाराव पठार में सर्व आदिवासी समाज के तत्वावधान में प्रतिवर्ष 08, 09 और 10 दिसम्बर को शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर विराट वीर मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें देव स्थापना, देव मेला, आदिवासी हॉटबाज़ार, रैली, आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम, रेला पाटा, आदिवासी महापंचायत तथा शहीद वीर नारायण सिंह की श्रद्वांजली सभा का कार्यक्रम किया जाता है।
Veer Mela Rajarao Pathar वीर मेला राजा राव पठार
FaQs:-
वीर नारायण सिंह का जन्म कब हुआ था? When was Veer Narayan Singh born?
1795 में।
वीर नारायण सिंह का जन्म कहाँ हुआ था? Where was Veer Narayan Singh born?
छत्तीसगढ़ के सोनाखान में।
वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस कब मनाया जाता है?When is Veer Narayan Singh Martyrdom Day celebrated?
10 दिसबंर को।
वीर नारायण सिंह कौन से राज्य के थे?Veer Narayan Singh belonged to which state?
छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ।
वीर नारायण सिंह को फांसी की सजा क्यों दी गई है?Why has Veer Narayan Singh been given death sentence?
1857 की क्रांति का समर्थन करने की वजह से ।
वीर नारायण सिंह किसका पुत्र था?Whose son was Veer Narayan Singh?
सोनाखान के जमींदार रामसाय।
वीर नारायण सिंह का पूरा नाम क्या है?What is the full name of Veer Narayan Singh?
वीर नारायण सिंह बिंझवार।
वीर नारायण सिंह कौन से जाति के थे?Which caste did Veer Narayan Singh belong to?
बिंझवार।
सोनाखान क्यों प्रसिद्ध है?Why is Sonakhan famous?
सोनाखान के राजा वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण।
सोनाखान के राजा कौन थे?Who was the king of Sonakhan?
वीर नारायण सिंह।
सोनाखान के जमींदारन कौन थे?Who was the landlord of Sonakhan?
वीर नारायण सिंह।
शहीद वीर नारायण सिंह को फांसी कब दी गई?When was martyr Veer Narayan Singh hanged?
10 दिसंबर 1857 को।
वीर नारायण सिंह अंतराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम कब बना?When was Veer Narayan Singh International Cricket Stadium built?
2008 मे।
वीर नारायण सिंह अंतराष्ट्रीय क्रिकेट की क्षमता कितनी है? Veer Narayan Singh What is the potential of international cricket?
65000।
वीर नारायण सिंह सम्मान किस क्षेत्र में दिया जाता है? Veer Narayan Singh Samman is given in which field?
आदिवासी और पिछड़े वर्गो के उत्थान के लिए।
वीर नारायण सिंह सम्मान की शुरूआत कब हुई? When was Veer Narayan Singh Samman started?
2001 में।
वीर नारायण सिंह सम्मान में क्या प्रदान किया जाता है? What is given in Veer Narayan Singh Samman?
2 लाख रूपये नगद राशि और प्रतीक चिन्ह युक्त प्रशस्ति पटिृटका प्रदान की जाती है।
Pandit Sundarlal Sharma Jivan Parichay IIपंडित सुंदरलाल शर्मा की जीवनीII
Pandit Sundarlal Sharma: छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में विख्यात पं. सुन्दरलाल शर्मा नाट्यकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला में निपुण विद्ववान थे। उन्होने प्रदलाद चरित्र, करूणाद-पचीसी, व सतनामी-भजन-मालाा जैसे ग्रंथों की रचना की साथ ही छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा समाजिक क्रांति के अग्रदूत माने जाते है, वे कवि, सामाजसेवक, इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज के इस पोस्ट में पं. सुन्दरलाल शर्मा के जीवन के बारे में जानेगें।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म (Birth of Pandit Sundarlal Sharma)
Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसंबर 1881 को छत्तीसगढ़ प्रांत में राजिम के समीप महानदी के किनारे बसे ग्राम चन्द्रपुर में हुआ था। उनके पिता का जगलाल तिवारी उस समय कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे, एवं उनकी माता का नाम देवमति था। पंडित सुन्दरलाल शर्मा के हृदय में बचपन से ही हिंसा के प्रति घृणा थी, वे अस्पृश्यता को भारत के गुलामी तथा समाज के पतन का कारण मानते थे। उन्होने समाज की उत्थान एवं संगठन के लिए गांव-गांव घूमकर लोगों को जागरूक किया।
पंडित सुन्दरलाल शर्माकी शिक्षा(Education of Pandit Sunderlal Sharma)
Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्दरलाल शर्मा की स्कूली शिक्षा प्राथमिक स्तर तक ही हुई क्योंकि उन दिनो छत्तीसगढ़ में शिक्षा का प्रचार प्रसार बहुत कम था और आगे घर पर ही उन्होने स्वाध्याय से संस्कृत, बंग्ला, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, उड़िया आदि भाषाएं भी सीख ली सुन्दर लाल शर्मा साहित्य और पढ़ाई में अत्यधिक रूचि रखते थे उनके अंदर ज्ञान और दक्षता हासिल करने की जबरदस्त ललक थी, किशोरावस्था से ही उन्होने कविताएं, लेख, एवं नाटक लिखना शुरू कर दिये थे। गांवो में अंधविश्वास, अज्ञानता सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार प्रसार को अधिक महत्व देते थे।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा की रचनाएं (ग्रंथ) (Works (books) of Pandit Sunderlal Sharma)
Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्दरलाल शर्मा भाषा और साहित्य में विशेष रूचि रखने के साथ-साथ एक महान साहित्यकार थे। उन्होने हिन्दी भाषा के साथ छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का रूप दिलाने के लिए अथक प्रयास किया, वे हिन्दी भाषा एवं छत्तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की जिसमें छत्तीसगढ़ी दानलीला उनकी प्रसिद्ध रचना है। यह छत्तीसगढ़ का प्रथम प्रबंध-काव्य है। वे अपनी कविताओं में “सुन्दर कवि” उपनाम का उपयोग करते थे। उन्होने छत्तीसगढ़ी में दुलरवा पत्रिका, और हिन्दी में कृष्णा जन्म स्थान पत्रिका की रचना की।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा की प्रकाशित प्रमुख कृतियां
छत्तीसगढ़ी दानलीला
काव्यामृतवर्षिणी
राजीव प्रेम-पियूष
सीता परिणय
पार्वती परिणय
प्रल्हाद चरित्र
ध्रुव आख्यान
करूणा पच्चीसी
श्री कृष्णा जन्म आख्यान
सच्चा सरदार
विक्रम शशिकला
विक्टोरिया वियोग
श्री रघुनाथ गुण कीर्तन
प्रताप पदावली
सतनामी भजनमाला
कंस वध
पंडित सुन्दरलाल शर्मा का योगदान(Contribution of Pandit Sunderlal Sharma)
Pandit Sundarlal Sharma: छत्तीसगढ़ की राजनीति व देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका विशेष योगदान रहा है, 19 शताब्दी के अंमित चरण में देश में राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना की लहरें जाग उठ रही थी, उसी समय समाज सुधारकों, चिंतको तथा देशभक्तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को एक नयी सोच और सही दिशा प्रदान की छत्तीसगढ़ के गांव गांव में व्याप्त अंधविश्वास, अस्पृश्यता, समाजिक कुरीतियों, और रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए समाजिक चेतना को घर-घर पहुंचाने के लिए सुन्दरलाल शर्मा ने उल्लेखनीय कार्य किया।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने राष्ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेद, आदिवासी आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिस्कार तथा देशी वस्तुओं के प्रचार प्रसार पर जोर दिया। पंडित सुन्दरलाल शर्मा एक ऐसे विचारक थे जिनकी स्पष्ट मान्यता थी कि समाज के सभी वर्गो को राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक समानता का अधिकार मिलें पंडित सुन्दरलाल शर्मा 1903 में अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्य बने उन्होने 1907 में सूरत में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में जाने वाले छत्तीसगढ़ के युवाओं का नेतृत्व किया था।
सन् 1907 में राजिम में संस्कृत पाठशाला तथा कुछ वर्षो बाद वाचनालय स्थापित किया रायपुर के ब्राहृमण पारा में बाल समाज पुस्तकालय की स्थापना का श्रेय भी उन्हे दिया जाता है। सन 1916 में उन्होने गो-वध के विरूद्ध एक आंदोलन चलाया, उनके द्वारा सन् 1920 में धमतरी के समीप कंडेल नहर सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया गया। हरिजनोउद्धार का कार्य करवाया जिसकी प्रशंसा महात्मा गांधी ने अपने मुक्त कंठ से करते हुए सुन्दर लाल शर्मा को इस कार्य में अपना गुरू माना था। उनके इस प्रयासों से ही महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को पहली बार रायपुर आए।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा का निधन
Pandit Sundarlal Sharma: पंडित सुन्दरलाल शर्मा जीवन भर समाजिक कार्य और जनजागरण करते रहे, वे जीवन-पर्यन्त सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्शो का पालन करते हुए सदैव समाज सेवा में लीन रहते थे। अत्यधिक परिश्रम करने से, उनका शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर सन् 1940 को उनका निधन हो गया।
सम्मान:-
“पंडित सुन्दरलाल शर्मा सम्मान” छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा समाजिक क्रांति के अग्रदूत पं. सुन्दरलाल शर्मा के स्मृति में यह सम्मान छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग द्वारा साहित्य के क्षेत्र में दिया जाता है। इसकी स्थापना 2001 में की गई थी। पुरस्कार राशि 2 लाख रूपये प्रथम “सुन्दरलाल शर्मा सम्मान” विनोद कुमार शुक्ल को 2001 में प्रदान किया गया था।
सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना” पंडित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर की स्थापना छत्तीसगढ़ शासन के अधिनियम क्र. 26 सन् 2004 द्वारा। माननीय राज्यपाल की अनुमति से इस अधिनियम को 20 जनवरी, 2005 को की गई इसका उद्देश्य राज्य के दूरवर्ती इलाकों में शिक्षा से वंचित समूहों के लिए दूरस्थ शिक्षा प्रणाली द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञानदान, समर्थवान और कुशल बनाना है। आज दूरस्थ शिक्षा पद्धति को शिक्षा के क्षेत्र में सपनों को साकार करने वाली वैज्ञानिक पद्धति के रूप में जाना जाता है।
भारत सरकार ने पंडित सुन्दरलाल शर्मा की स्मृति में 1990 में एक डाक टिकट भी जारी किया था।
पं.सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय (Pandit Sundarlal Sharma University)
Biography of Guru Ghasidas गुरू घासीदास का जीवन परिचय
Biography of Guru Ghasidas: बात उस समय की है जब छत्तीसगढ़ में 17 वीं सदी में समाज में छूआछूत, ऊंचनीच, भेदभाव छलकपट का बोलबाला था। मंंदिरोंं में धर्म और कर्म के नाम पर नरबलि पशुबलि की परम्परा प्रचलित थी अंधविश्वास के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा था। राजनीतिक महौल बहुत की खराब स्थिति में था। ऐसे समय में संत गुरू घासीदास जी का जन्म होता है।
उन्होने सतनाम धर्म की स्थापना की और मानव मानव एक समान का संदेश दिया तथा मूर्ति पूजा का विरोध कर असमानताओं को दूर करने एवं मानव कल्याण के सुधार के लिए काम करते हुए समाज में फैले जातपांत, छुआछूत जैसे कुरूतियों को दूर कर समाज में एक नई सोच और विचार उत्पन्न करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज के इस लेख में ऐसे महान संत Guru Ghasidas जी के जीवन के बारे में जानेगें।
Guru Ghasidas:सारांश :-
नाम
घासीदास
उपनाम
संत गुरू बाबा घासीदास
जन्म दिनांक
18 दिसम्बर 1756 ईस्वी.
जन्म स्थान
बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी
माता का नाम
अमरौतिन
पिता का नाम
मंहगूदास
जीवन साथी का नाम
सपूरा देवी
पुत्र/पुत्री का नाम
अमरदास, बालकदास, आगरदास, अड़गडिहा दास, सुभद्रा
वंश
सतनामी
धर्म
सतनाम (हिंदू)
प्रसिद्वि
सतनाम धर्म के संस्थापक गुरू घासीदास बाबा
उत्तराधिकारी
गुरू बालक दास
देश
भारत
राज्य क्षेत्र
छत्तीसगढ़
राष्ट्रीयता
भारतीय
जीवन काल
94 वर्ष
मृत्यु
सन् 1850 ईस्वी.
गुरू घासीदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी का जन्म 18 दिसम्बर सन् 1756 में बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में हुआ था इनकी माता का नाम अमरौतिन व पिता का नाम मंहगूदास था बचपन में ही माता का देहांत हो जाने के बाद उनका पालन पोषण उनके पिता द्वारा किया गया। कुछ लोगों की मान्यता है, कि Guru Ghasidas के पूर्वज उत्तर भारत हरियाणा के नारनौल के रहने वाले थे।
सन् 1672 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब से लड़ाई के बाद वहां से पलायन कुछ सतनामी परिवार महानदी के किनारे मध्यप्रदेश के चंद्रपुर में आ कर बस गये। कहा जाता है, कि औरंगजेब ने फरमान जारी कर दिया था, कि जो भी राजा, जमींदार इनको शरण देगा उन्हे कठोर सजा दण्ड दिया जायेगा। उनके डर से कई राजा लोग इन सतनामियों को पड़ककर औरंगजेब के हवाले कर दिये। और कुछ परिवार चंद्रपुर से होते हुए सोनाखान के जंगलों में पहुंच गये और वे छत्तीसगढ़ में आकर बस गये।
गुरू घासीदास जी का वैवाहिक जीवन
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी का विवाह छत्तीसगढ़ की प्राचीन राधजानी एवं बौद्व नगर सिरपुर में वहां के रहने वाले अंजोरीदास की पुत्री सपुरा से हुआ था गुरू घासीदास का सिरपुर में आध्यात्मिक की ओर लगाव हुआ। विवाहोपरांत उनके 4 पुत्र और एक पुत्री का जन्म होता है। जिनके नाम 1. अमरदास 2. बालकदास 3. आगरदास 4. अड़गडिहा दास, एवं पुत्री का नाम सुभत्रा थी। उनके बड़े पुत्र अमरदास की युवावास्था में ही अचानक मृत्यु हो जाने से द्वितीय पुत्र बालकदास उनके उत्तराधिकारी बने।
सतनाम धर्म की स्थापना कब हुई थी?
Guru Ghasidas: रायपुर शहर से लगभग 56 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पूर्व में पलारी के समीप एक भंडार नामक गांव स्थित है, इस गांव की मालगुजारी यहां के एक लोहार परिवार रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एंव उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन रहते थे। उनके कोई वंशज नही थे, रायसिंग लोहार गौटिया को जब पता चलता है, कि संत गुरू घासीदास जी उनके गांव के पास हैं तो उन्हे अपने निवास स्थान चलने के लिए निवेदन करते है।
जब निवेदन स्वीकार कर Guru Ghasidas जी उनके निवास जाते है। वहां पर बहुत ही आदर पूर्वक उनका सम्मान, स्वागत सत्कार किया जाता है, और गुरू घासीदास के क्रांतिकारी विचार सुनते है। उनके विचार से प्रभावित होकर भंडार गांव का मालगुजारी स्वामित्व गुरू घासीदास जी को सौंप देते है, इस प्रकार सन् 1840 में भंडार गांव में रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एवं उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन के सहयोग से गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म की स्थापना की।
गुरु घासीदास जी का निधन
Guru Ghasidas: गुुरू घासीदास जी का निधन 1850 ई. में हुआ उनके मृत्यु का कारण अज्ञात है, मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकारी गुरू बालक दास हुए जो गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र थे और उनके बताये हुए मार्ग के अनुसार सतनाम धर्म को आगे बढ़ाया तथा सतनाम आंदोलन में बढ़ चढ़़कर हिस्सा लिये।
गुरु घासीदास जंयती 2023 (Guru Ghasidas Jayanti 2023)
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जंयती प्रतिवर्ष 18 दिसम्बर को मनाया जाता है गुरू घासीदास जंयती की शुरूआत 1938 ई. में दादा नकुल देव ने अपने गृह ग्राम भोरिंग (महासमुंद) में किया था। गुरू घासीदास जी की जानकारी और जंयती का सुझाव डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने भी दिया था। मान्यवर कांसीराम साहब ने उनके कार्यो और विचारों को देश विदेश में प्रसारित करने का महान काम किया। तब से लेकर आज तक हर साल 18 दिसम्बर को गुरू घासीदास जंयती मनाया जाता है।
गुरु घासीदास के कितनेरावटी स्थल हैं?
Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी ने सतनाम मत को बहुत ही सरल शब्दों में अभूतपूर्व परिवर्तन किया। आश्चर्य की बात यह है, कि जिन जिन गांवो जगहों में उन्होने यात्रा की वहां की जन समस्याओं को समाधान करने का प्रयास किया उनकी इस प्रकार की यात्रायों को रावटी (पड़ाव) कहते थे। उन्होने जिन जिन जगहों पर रावटी पड़ाव लगाया था। उनमें से 7 रावटी (पड़ाव) जिसमें दलहा पोड़ी (जांजगीर चांपा), बस्तर दंतेवाड़ा, कांकेर, पानाबरस, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, भोरमदेव (कर्वधा) आदि का उल्लेख मिलता है। तथा मंडला, बालाघाट, जबलपुर, अमरकंटक, में भी सतनाम पंथ का प्रचार प्रसार किया था।
गुरु घासीदास जी का तपो स्थल छाता पहाड़ कहां स्थित है?
Chhata Pahad Chhattisgarh: यह छाता पहाड़ बलौदा बाजार से लगभग 50 किलोमीटर की दुरी पर गिरौदपूरी धाम में मुख्य मंदिर से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर सोनाखान रेंज ( बारनवापारा अभ्यारण्य ) के घनघोर जंगल में स्थित है। छातापहाड़, बलौदा बाजार जिले का एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल और सतनाम पंथ के प्रर्वतक Guru Ghasidas जी की तपोस्थली है। लोगो की मान्यता है, कि गुरू घासीदास जी गहन चितंन के लिए छह माह समय का लक्ष्य बानाया और उन्होने विचारों के लिए इस छाता पहाड़ को चुना था।
गुरु घासीदास जी का तपो स्थल छाता पहाड़Chhata Pahad Chhattisgarh:
गुरू घासीदास जी के 42 अमृत वाणी क्या क्या है?
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी के अमृतवाणियों में उनके 42 अमृतवाणी समाज में प्रचलित, प्रासंगिक और सर्वमान्य है।
1- सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।) 2-जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे। 3-सतनाम ल जानव, समझव, परखव तब मानव। 4-बइला-भईसा ल दोपहर म हल मत चलाव। 5-सतनाम ल अपन आचरण में उतारव। 6-अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परंपरावाद ल झन मानव। 7-दाई-ददा अउ गुरू के सनमान करिहव।
8-हुना ल साहेब समान जानिहव। 9-इही जनम ल सुधारना साँचा ये। (पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।) 10-गियान के पंथ किरपान के धार ये। 11-दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय। 12-मरे के बाद पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे। पितर पूजा झन करिहौ, जीते-जियात दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव। 13-जतेक हव सब मोर संत आव। 14-तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू। 15-रिस अउ भरम ल त्यागथे तेकरे बनथे। 16-दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन निकालहव। 17-बारा महीना के खर्चा सकेल लुहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे। 18-ये धरती तोर ये येकर सिंगार करव। 19-झगरा के जर नइ होवय ओखी के खोखी होथे। 20-नियाव ह सबो बर बरोबर होथे। 21-मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइही त मोला सूजगा मे हुदेसे कस लागही। 22-भीख मांगना मरन समान ये न भीख मांगव न दव, जांगर टोर के कमाए ल सिखव।
23-सतनाम ह घट घट में समाय हे, सतनाम ले ही सृष्टि के रचना होए हावय। 24-मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय। 25-पानी पीहु जान के अउ गुरू बनावव छान के। 26 -मोर ह सब्बो संत के आय अउ तोर ह मोर बर कीरा ये। (चोरी अउ लालच झन करव।)
27-सतनाम ह जीवन के आधार आय। 28-खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के राखिहव। 29-पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु। 30-जान के मरइ ह तो मारब आएच आय फेर कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय। 31-अवैया ल रोकन नहीं अऊ जवैया ल टोकन झन। 32-चुगली अऊ निंदा ह घर ल बिगाडथे। 33-धन ल उड़ावव झन, बने काम में लगावव। 34-जीव ल मार के झन खाहु। 35-गाय भैंस ल नागर म झन जोतहु। 36-मन के स्वागत ह असली स्वागत आय। 37-जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे पीहू पानी वइसे बोलहु बानी। 38-एक धुबा मारिच तुहु तोर बराबर आय। 39-काकरो बर काँटा झन बोहु। 40-बैरी संग घलो पिरीत रखहु। 41-अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु मन काकरो ले कमती नई हावव। 42-मंदिरवा म का करे जईबो अपन घर के ही देव ल मनईबो।
गुरु घासीदास जी के उपदेश क्या थे?
Guru Ghasidas: गुरु घासीदास जी ने सत्य के मार्ग पर चलना सिखाया, सभी जीवों और मनुष्यों पर दया करना, मांस-मदिरा, जीव-हत्या, चोरी, जुआ, मूर्तिपूजा व आडम्बरों का विरोध कर सभी में समानता का भाव, मानव-मानव में भेदभाव न रखना आदि उनके प्रमुख उपदेश थे घासीदास जी का कहना था, सभी मानव का धर्म एक है इन उपदेशों और संदेशों के माध्यम से सन्त गुरु घासीदास जी ने समाजसुधार के साथ-साथ धर्म का सही मार्ग दिखलाया था और समाज में एक नयी रोशनी पैदा की थी।
प्रमुख उपदेश :-
सत्य एवं अहिंसा
धैर्य
लगन
करूणा
कर्म
सरलता
व्यवहार
वह बचपन से सत्य और अहिंसा के पुजारी थे |
वह हमेशा से लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलने का उपदेश देते थे |
हमें जाती पाती को भुलाकर एकता को अपनाना चाहिए |
हमें कभी भी गलत काम नहीं करना चाहिए |
हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए |
जय स्तंभ (जैतखाम) की स्थापना कब हुई थी?
जैतखाम:- लकड़ी का बड़ा सा खंबा होता है जिसे चबूतरा में गढ़ाया जाता है उस खंबे को सफेद रंग में रंगकर सफेद झंडा लगाया जाता है। Guru Ghasidas ने सतनाम पंथ सतनाम आंदोलन के विजय के प्रतीक के रूप में 1849 ई. में जय स्तंभ जैतखाम की स्थापना की थी। जैतखाम सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जयस्तंभ है वास्तव में यह एक स्तम्भ है जिसे एक विशाल प्रतीक के रूप में माना जाता है।
इस स्तम्भ को सतनाम धर्म के लोगों द्वारा पूजा की जाती है। सतनाम धर्म को बोलचाल की भाषा में सतनामी जाती के रूप में जाना जाता है, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक माना जाता है। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में गुरू बाबा Guru Ghasidas की जन्मभूमि गिरौदपुरी धाम में राज्य शासन द्वारा 50 करोड़ की लागत से 77 मीटर ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है। जो दिल्ली के कुतुब मीनार से भी लगभग 5 मीटर ऊंचा है।
Jaitkham Girodhpuri Chhattisgarh जय स्तंभ (जैतखाम)गिरौदपुरी धाम
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (Guru Ghasidas Vishwavidyalaya)
Guru Ghasidas University:गुरु घासीदास विश्वविद्यालय भारत का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 16 जून 1983 को बिलासपुर, तत्कालीन मध्य प्रदेश में हुई थी। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। संसद में पेश केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2009 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया।
औपचारिक रूप से राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा स्थापित गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (जीजीयू) का औपचारिक रूप से उद्घाटन 16 जून 1983 को हुआ था। यह भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ और राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालयों के संघ का एक सक्रिय सदस्य है। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से B+ के रूप में मान्यता प्राप्त है। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में स्थित, विश्वविद्यालय का नाम महान संत गुरु घासीदास के सम्मान में उचित रूप से रखा गया है, विश्वविद्यालय एक आवासीय सह सम्बद्ध संस्था है, इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर राजस्व संभाग है।
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान : Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास नेशनल पार्क की स्थापना 5 अक्टूबर, 2021 को कि गई। 2001 से पहले यह संंजय गांंधी नेशनल पार्क सीधी (मध्यप्रदेश) का हिस्सा था यह पार्क कोरिया जिले के बैकुंठपुर सोनहत मार्ग में पांंच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, एवं छत्तीसगढ़ का चौथा टाईगर रिजर्व नेशनल पार्क है। अचानकमार टाईगर रिजर्व के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा टाईगर रिजर्व है इसका क्षेत्रफल 1440 वर्ग कि.मी. है इस पार्क के अंदर हसदेव नदी बहती है और गोपद नदी का उद्गगम स्थल है।
Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh: गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
FaQs
गुरु घासीदास के प्रमुख सिद्धांत कौन से थे?
(1) सतनाम् पर विश्वास रखना। (2) जीव हत्या नहीं करना। (3) मांसाहार नहीं करना। (4) चोरी, जुआ से दूर रहना।
गुरु घासीदास के कितने बच्चे थे?
5 बच्चे थे जिसमें 4 पुत्र एवं 1 पुत्री थी।
गुरु घासीदास के रावटी स्थल कितने हैं?
गुरू घासीदास जी के 7 रावटी स्थल है।
गुरु घासीदास के लिए छत्तीसगढ़ में कौन सा स्थान प्रसिद्ध है?
Dr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi: डॉ. भीमराव अंबेडकर का संक्षिप्त परिचय:-
Dr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi: डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में स्थित महू में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल एवं माता का नाम भीमाबाई थी वे उनके 14 वीं संतान थे। उनकी पत्नि का नाम रमा बाई था। उनका परिवार कबीर पंथ का अनुयायी था, दलित परिवार से संबंध रखने के कारण उन्हे कापी सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
बचपन में उन्हे आम बच्चो के साथ पढ़ने नहीं दिया जाता था। स्कूल मेंं सबसे पीछे अलग से बिठाया जाता था, उन्हे पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। फिर भी उनके अंदर पढ़ने की जबरदस्त ललक थी। इन सब परिस्थियों के बावजूद वे आगे बढ़ते रहेे। अपनेे जीवन मेंं उन्होने इतने ठोकरे खाई की उनके जीवन में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और अपने दिन रात की मेहनत से आगे चलकर यही व्यक्ति एक महान महापुरूष के रूप मेंं दुनिया के सामने आये।
अंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और आगे की पढ़ाई न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय एवं लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में की। उनकी लोकप्रियता पूरी दुनिया में बढ़ती गई। और उन्हे बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता था। आज हर कोई जानता है, कि वह भारतीय संविधान के निर्माताओं में से एक थे। वह एक बहुत ज्ञानवान, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, प्रख्यात न्यायविद्, दूरदर्शी, दार्शनिक, मनोविज्ञानी, इतिहासकार, वक्ता, लेखक, अर्थशास्त्री, विद्वान, समाजसुधारक और संपादक भी थे।
डाॅ. भीमराव अंबेडकर का निधन 6 दिसम्बर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनके निवास दिल्ली मेंं हुआ। उनके जीवन के एक एक पहलू हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, कैसे उन कठिन परिस्थियों से निकल कर उन्होने अपने समाज अपने देश के लिए और हर व्यक्ति के अधिकार के लिए लड़ाईयां लड़ी। आज की इस पोस्ट के माध्यम से उनके महान विचारों के बारे में जानेगें जिन्हे हम सभी को अपने जीवन मेंं उतारना चाहिए…..।
Dr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi:डॉ भीमराव अंबेडकर के अनमोल विचार
“शिक्षा वह शेरनी का दूध है, जो पियेगा वह दहाड़ेगा”
“शिक्षित बनो संगठित रहो और संघर्ष करो”
“जो झुक सकता है, वह सारी दुनिया को झुका भी सकता है”
“जीवन लंबा होने केे बजाए महान होना चाहिए”
“छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, उन अधिकारों को वसूल करना होता है”
Dr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi: जीवन के लिए मत्वपूर्ण महान विचार।
“जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती है, वो कौम अपना इतिहास भी नहीं बना सकती”
“बुद्वि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए”
“जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है”
“अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो”
“मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता समानता और भाईचारा सिखता है “
Dr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi: वह विचार जो आपकी जीवन बदल देगी।
“ज्ञान व्यक्ति के जीवन का आधार है “
“महात्मा आये और चले भी गये, लेकिन अछूत अछूत ही रहे “
“मेरे नाम की जय जय कार करने से अच्छा है, मेरे दिखाये हुए रास्ते पर चलो “
“मै रात भर इसलिए जागता हूं, क्योंकि मेरा समाज सो रहा है “
“यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरूपयोग हो रहा है, तो मै इसे सबसे पहले जलाउंगा ”
DDr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi:ऐसे विचार जिसे सभी को सीखना चाहिए
“अच्छा दिखने के लिए मत जियो, बल्कि अच्छा बनने के लिए जियो “
“किसी समाज का विकास उस समाज की महिलाओं से मापा जाता है “
“देश का राष्ट्रपति एक दलित हो सकता है, लेकिन एक मंदिर का पुजारी नहीं, राष्ट्रपति बनना संविधान की देन है, और पुजारी बनना धर्म की “
“यदि कोई व्यक्ति जीवन भर सीखना चाहे तो भी वह ज्ञान सागर के पानी मेंं घुटने जितना ही जा सकता है”
“इस दुनिया में गरीब वही है, जो शिक्षित नहीं है। इसलिए आधी रोटी खा लेना लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाना”
DDr. BR Ambedkar Top Quotes In Hindi:
डॉ. भीमराव अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस
डॉ.भीमराव आंबेडकर की भारतीय संविधान को तैयार करने में बहुत बड़ी भूमिका थी। इसी वजह से उन्हे संविधान के निर्माता के रूप में जाना जाता हैं। वह बड़े समाज सुधारक और विद्वान थे। आंबेडकर के अनुयायी और अन्य भारतीय नेता इस मौके पर चैत्य भूमि जाते हैं और भारतीय संविधान के निर्माता को श्रद्धांजलि देते हैं। उनका निधन 6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली स्थित उनके घर पर हुआ था उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है।