Success Stories: Rajaram Tripathi सालाना टर्न ओवर 25 करोड़ से अधिक। खेती के लिए 7 करोड़ का हेलीकाॅप्‍टर

Success Stories Of Rajaram Tripathi

Rajaram Tripathi: राजाराम त्रिपाठी बस्‍तर के एक किसान हैं, जिन्‍होने कई बड़े सरकारी नौकरी को छोड़ कर खेती को अपनाया और आज खेती से ही करोड़ो का उत्‍पादन कर रहे हैं। उनके इस सफलता से बस्‍तर छत्‍तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे दुनिया में उनके नाम की चर्चा है, खेती के इस नये तरीके और उनकी फसलों की मांग देश विदेश तक है। तो आईये जानते हैं। आज के इस पोस्‍ट में बस्‍तर के किसान राजाराम त्रिपाठी की सफलता की कहानी…..!

खेती के लिए 7 करोड़ का हेलीकॉप्‍टर

Rajaram Tripathi और उनके ग्रुप द्वारा यह हेलीकॉप्‍टर दिल्‍ली के एक कंपनी से खेती के उपयोग के लिए लिया जा रहा है, जिससे कम समय में फसलों में दवाई का छिड़काव एवं फसलों की देखरेख में आसपास के लगभग 50 गांव में इसका उपयोग किया जायेगा। एवं लाभदायकता बढ़ाने के लिए काम आयेगा जिससे फसलों को कम नुकसान होगा और करोड़ो का फायदा होगा।

राजाराम त्रिपाठी कौन है ? Who is Rajaram Tripathi?

राजाराम त्रिपाठी का जन्‍म बस्‍तर जिले के दरभा विकासखण्‍ड के छोटे से गांव ककनार में हुआ था, उनके पूर्वज उत्‍तरप्रदेश के प्रापतगढ़ जिले से करीब 70 साल पहले यहां आकर बस गये और खेती किसानी करने लगे उनके दादा जी का नाम दादा शंभू नाथ त्रिपाठी एवं पिता जगदीश प्रसाद त्रिपाठी एक शिक्षक थे। आज इनकी 6-7 पीढ़ी हो चुकी है, जो यहां निवास कर खेती का काम कर रही है।

राजाराम त्रिपाठी की शिक्षा Education of Rajaram Tripathi

Rajaram Tripathi की पढ़ाई जगदलपुर कॉलेज से हुई उन्‍होने बीएसी गणित, एम.ए. अर्थशास्‍त्र, एम.ए. हिन्‍दी साहित्‍य, एम.ए. अंगेजी साहित्‍य, एम.ए. समाज शास्‍त्र में पढ़ाई की है, और आज एक ऐसे शख्‍स हैं, जिन्‍होने इतनी पढ़ाई करने के बावजूद खेती किसानी को अपना व्‍यवसाय बना कर करोड़ो का कारोबार कर रहे है।

खेती के लिए छोड़ी कई बड़े सरकारी नौकरियां

राजाराम त्रिपाठी यूं तो आज बस्‍तर में खेती किसानी के लिए बहुत ही चर्चित है, लेकिन उनके इस मुकाम के पीछे भी एक कहानी है, उन्‍होने पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज में प्रोफेसर, उसके बाद एडीओ फिर बैंक मैनेजर की नौकरी की नौकरी के साथ साथ खेती किसानी में समय न दे पाने के कारण उन्‍हाने बैंक की नौकरी छोड़ कर अपना पूरा ध्‍यान खेती पर देने लगे।

खेती की शुरूआत कैसे की ?

Rajaram Tripathi के पिता श्री जगदीश प्रसाद त्रिपाठी ने साल 1996 में लगभग 5 एकड़ की जमीन से सब्जी की खेती से शुरूआत की थी जिसके बाद वह सफेद मूसली और अश्वगंधा की खेती करने लगे, शुरुआती लाभ मिलने पर उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी साल 2002 में जब सफेद मूसली के दाम नीचे गिरे और उन्हें काफी नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी इसके बाद उन्होंने विभिन्‍न प्रकार की मिश्रित खेती करना शुरू की साल 2016 में ऑस्ट्रेलियन टीक वुड के साथ काली मिर्च की खेती का प्रयोग कर उन्होंने अच्छी खासी लाभ कमाई, इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, और आज उनकी सफलता आपके सामने है।

जैविक पद्वति से कर रहे हैं खेती

राजाराम त्रिपाठी खेती के लिए रासायनिक खाद एवं दवाईयों का उपयोग न करके जैविक तरीके से खेती करते है। उसके लिए उन्‍होने सबसे पहले आस्‍ट्रेलियन टीक का पेड़ लगाया, फिर उस पेड़ के पत्‍ते नीचे जमीन पर गिरकर सड़ गये तो उनका खाद बनाया। क्‍योंकि उस पेड़ में बारह महीने पत्‍ते रहतें है, इस तरह से जैविक खेती करके अपने व्‍यवसाय को देश दुनिया तक पहुंचा रहे है। और बस्‍तर के किसानों के लिए एक प्रेरणा स्‍त्रोत बने हैं।

राजाराम त्रिपाठी मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप के सीईओ

Rajaram Tripathi वर्तमान में 25 करोड़ रुपये सालाना टर्नओवर वाले मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप के सीईओ हैं और 400 आदिवासी परिवार के किसानों के साथ 1000 एकड़ में सामूहिक खेती कर रहे हैं यह ग्रुप यूरोपीय और अमेरिकी देशों में काली मिर्च का निर्यात कर रहा है। सन् 1996-97 में मॉ दन्‍तेश्‍वरी हर्बल ग्रुप की शुरूआत की थी।

किस किस की खेती कर रहे हैं ?

Rajaram Tripathi बाजार के जरूरत के हिसाब से खेती कर रहे हैं जिसमें मुख्‍यत: स्‍टेविया, काली मिर्च, आस्‍ट्रेलियन टीक, सफेद मूसली, अश्‍वगंधा, हल्‍दी, विभिन्‍न प्रकार की जड़ी बूटी और कई तरह की हर्बल खेती बिना रासायनिक खादों के जैविक तरीके से कर रहे है।

सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड

भारत सरकार के कृषि एवं खाद्य परिषद एवं कृषि मंत्रालय की ओर से राजाराम त्रिपाठी को तीन बार देश का सर्वश्रेष्ठ किसान घोषित किया जा चुका है। जिससे बस्‍तर का नाम उन्‍नत खेती के क्षेत्र में उजागर हुआ है। राजाराम त्रिपाठी का कहना है, कि गरीब और बदहाल किसान की छवि युवाओं को खेती-किसानी के लिए प्रेरित नहीं कर सकती। नई पीढ़ी के युवा पढ़ लिख कर आज आईटी कंपनी में नौकरी कर सकते हैं। पर वे खेती को उद्यम बनाने की कोशिश नहीं करते।

पढ़े‍ लिखे युवाओं के लिए प्रेरणा स्‍त्रोत

बस्तर के किसान राजाराम त्रिपाठी आज के पढ़े लिखे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो अपनी खेती को उद्यम बनाने की जगह दूसरे धंधे में लगना चाहते हैं, राजाराम त्रिपाठी ने बस्तर के आदिवासियों को जैविक खेती से जोड़कर अपने साथ उन्हें भी आर्थिक रूप से संपन्न बनाया है। और यहां के किसानों के लिए एक रोल मॉडल बनकर सामने आये है।

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झिटकू मिटकी की प्रेम कहानी Jhitku Mitki’s Love Story

Jhitku Mitki Ki Prem Kahani

झिटकू मिटकी की अमर प्रेम कहानी

Jhitku Mitki की ये कहानी है बस्‍तर क्षेत्र के कोण्‍डागांव जिले के अंतर्गत केशकाल विश्रामपुरी के पेन्‍ड्रावन गांव में रहने वाले सात भाईयों की एकलौती बहन मिटकी और उनके घर जमाई दामाद झिटकू की, जो आज भी बस्‍तर छत्‍तीसगढ़ में झिटकू मिटकी की प्रेम कहानी, अनोखी प्रेमकथा, सत्‍य प्रेम कहानी आदि नामों से प्रचलित है। तो आईये जानते है, झिटकू मिटकी की इस अमर प्रेम कहानी की गाथा आज की इस लेख में।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का इतिहास (History of Jhitku Mitki’s love story)

कहा जाता है, कि बहुत साल पहले गुलू और कूटा नाम के दो सगे भाई केशकाल विश्रामपुरी के अंतर्गत पेन्‍ड्रावन नामक गांव में परिवार बसाने के लिए आये थे। दोनों भाई में से एक के कोई संतान नही थे, और दूसरे के 8 संतान थे, जिसमें सात भाई और एक बहन थी। उनका पूरा परिवार बहुत ही खुशहाली से अपना जीवन यापन कर रहा था। और उसी समय गांव के नदी में वे सातों भाई एक बांध बना रहे थे।

उस बांध के पानी से वे खेती करके अनाज पैदा कर जीवन यापन करना चाहते थे। उस बांध को बांधते बांधते काफी दिन और कई साल हो गये थे। प्रतिदिन बांध को वे सातों भाई बांध कर शाम को घर आ जाते और सुबह जाकर दखते तो बांध फिर टूटा हुआ मिलता था। यह कई सालों से चला आ रहा था फिर भी वे कभी हार नहीं माने।

उन सातों भाईयों की एक बहुत ही प्‍यारी और दुलारी बहन थी। जिनका नाम था, मिटकी वे अपनी बहन को खूब चाहते थे। उसे अपने आंखों के तारा के रूप में अपने पास घर में ही रखना चाहते थे। अगर उनका शादी भी करेगें तो घर जमाई (लमसेना) के रूप में दामाद को घर में रखने की सोच रहे थे। अगर घर में कोई मिटकी के लिए रिश्‍ता भी लेकर आते तो वे उन्‍हे दूसरे घर में शादी के लिए देना नहीं चाहते थे। और इस बात को सातों भाईयों ने सोच कर रखे थे।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) की प्रेम कहानी की शुरूआत

बस्‍तर की परंपरा एवं संस्‍कृति सदैैव ही अनूठी रही है, आज भी बस्‍तर के गांव गांव में एक नृत्‍य नाचा होता है, जिसे पुसकोलांग या डंडा नृत्‍य कहते है। जिसमें गांव के आदमी (पुरूष) लोग अपनी संस्‍कृति एवं पोशाक के साथ कई दिनों तक अपने घर से बाहर निकल कर किसी दूसरे गांव में  पुसकोलांग नाचने के लिए जाते है, बात उसी समय की है जब उस पेन्‍ड्रावन गांव में पड़ोस के गांव से पुसकोलांग नाचने के लिए कई पुरूष एक साथ आते है, उसमे झिटकू भी शामिल रहता है, और साथ में नाचते रहते है।

उसी बीच झिटकू की नजर मिटकी के ऊपर पर पड़ता है, और मिटकी की नजर झिटकू के ऊपर पड़ता है। दोनो एक दूसरे को देखकर मोहित हो जाते है, और नजरें मिलाने लगते है। पहली नजर में ही उन दोनों को एक दूसरे के प्रति लगाव, प्रेम हो जाता है। झिटकू मन ही मन सोचने लगता है, कि काश वो लड़की मेरे जीवन साथी बनती उसी तरह मिटकी भी मन ही मन झिटकू के प्रति लगाव महसूस करने लगती है। और वे नृत्‍य करते हुए दूसरे गांव की ओर चल देते है।

मिटकी के लिए घर जमाई दामाद ढूंढने का सफर 

इधर मिटकी के सातों भाई भी अपनी बहन के लिए घर जमाई दामाद (लमसेना) खोजने की सोच रहे थे। कई दिन बीत गये अपनी बहन के लिए दामाद खोजते खोजते। अचानक एक दिन वे पड़ोस के उसी गांव में जाते है, जिस गांव के लोग पुसकोलांग नृत्‍य करने के लिए उनके गांव आये थे। और वे संयोगवश झिटकू के घर में ही चले जाते है। और उनके परिवार से मिटकी की शादी के लिए बात करते है, कि हमारे यहां एक लड़की है, जिसके लिए हम लोग घर जमाई दामाद खोज रहे है।

फिर झिटकू के परिवार वाले  भी कहते है, कि हम भी इसके लिए लड़की ढूंढ रहे है। और दोनो परिवार वाले शादी के लिए राजी हो जाते है। फिर एक दिन अच्‍छा समय देखकर मिटकी के परिवार वाले लड़के के घर जाते है, और नीति नियम को पूरा करके झिटकू को घर जमाई बनाकर अपने घर ले आते है। सब लोग खुशी खुशी रहते है। सातों भाई चाहते थे, कि झिटकू और मिटकी घर पर ही रह कर काम करें उनसे ज्‍यादा काम न करवायें। इस तरह से वे सातों भाई काम करने जाते थे।

लेकिन झिटकू के मन में भी रहता था कि वे भी उनके साथ काम करने के लिए जाएं एक दिन वह उनके साथ काम पर जाने के लिए पूछता है। फिर वे काम पर ले जाने के लिए तैयार हो जाते है। इस तरह से उस बांध को बांधने के बाद भी बार बार टूट जाने की बात गांव में रखते है। कोई आदमी रहता है, वह बताता है की पास के एक गांव में कोई बैगा रहता है, वहां जाकर देखो। तो मिटकी के कुछ भाई उस बैगा के पास जाते है, और अपनी परेशानी बताते है।

कई सालों हम लोग उस बांध को बांधने की कोशिश कर रहे है, दिन में बांध कर आते है, लेकिन सुबह फिर से वह टूट जाता है। तब वह बैगा बताता है कि आप जिस जगह में बांध को बांध रहे हो वहां पर नर बलि देने से बांध बंध जायेगा। और यह भी बताता है,‍ कि बलि अपने आदमी को नहीं देना है, किसी पराया आदमी की बलि देने से ही अपकी समस्‍या का हल होगा। फिर घर आकर ये सब बाते बतातें है, तो घर वाले मना कर देते है कि ऐसा करने से अगर लोगो को पता चलेगा तो बदनामी होगी।

झिटकू को बलि देने की कहानी

वे सातों भाई सोचते है कि अगर नरबलि नहीं देगें तो फिर उस बांध को कैसे बांध पायेंगे। इसी तरह कई दिन बीत गये कोई आदमी ही नहीं मिला वहां पर नरबलि देने के लिए तभी उन सातों भाईयों में एक भाई बोलता है, कि क्‍यों न हमारे घर जमाई दमाद को ही वहां बलि दे देते है। तो बाकि भाई लोग कहते है, कि ऐसा कैसे कर सकते है अगर ऐसे करेगें तो हमारी बहन का क्‍या होगा।

सभी भाई एक दूसरे से बात करते है, और सोचते है, बलि दिये बिना हमारा काम भी नहीं बनेगा। कई दिन बीत जाने के बाद सातों भाईयों में एक दिन आपसी सहमति बन जाती है। और वे तय कर लेते है, कि अपने घर जमाई दमाद को ही वहां पर बलि देगें और अपने बहन के लिए कोई दूसरा पति ढूंढ लेगें दूसरे दिन जब सब लोग अपने काम पर एक साथ काम कर रहे होते है।

तभी उसी बीच एक भाई झिटकू का हाथ को पकड़ता है। और बाकी भाई लोग टंगिया फावड़ा और कुदाल से झिटकू को मार कर वहीं पर बांध के पार में दफना कर उसकी बलि दे देते है। उसी समय घर में मिटकी सभी काम पूरा करने के बाद दोपहर को आराम करते रहती है। एक झपकी सी ले रही होती है। तभी अचानक मिटकी को सपना आता है, कि उसके भाई लोग झिटकू को दौड़ा दौड़ा कर मार रहे है, उनका नींद अचानक खुलता है, मन में बैचैनी सी होने लगती है।

झिटकू मिटकी की प्रेम कथा का अंत

फिर सोचती है कि उसके भाई लोग ऐसा नहीं कर सकते क्‍योंकि वे सभी उनसे बहुत ही लाड़ प्‍यार करते है। कुछ समय बाद उसके भाई लोग घर आ जाते है, तो वह पूछने लगती है कि झिटकू कहां है, तो सभी भाई अलग अलग बाते बनाकर बहकाने की कोशिश करतें है। फिर वह उस सपने के बारे में सोचती है, और वह उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ती है। और झिटकू झिटकू की आवाज देते हुए ढूंढने लगती है।

लेकिन कही भी झिटकू नजर नहीं आता है फिर उस बांध के पार में मिट्टी में दफन झिटकू का हाथ दिखाई देता है। वह उसे बहार निकालती है। चूंकि उन दोनो का शादी नहीं हुआ रहता है। इस प्रकार से मिटकी भी उसी बांध के गहरे पानी में कूदकर अपनी जान दे देती है।

झिटकू मिटकी की मरने के बाद की स्थिति 

उसी साल उस पेंड्रावन गांव में भारी अंकाल भूखमरी पड़ जाता है। बारिश नहीं होता आदमी लोग बीमार पड़ते है। पूरे गांव में महामारी फैल जाता है। पशु पक्षी मर रहे होते है, गांव में सन्‍नाटा छा जाता है उसके बाद वे सातों भाई फिर उसी बैगा के पास जाते है, तो वह बताता है कि आप जिसे बलि दिये थे। और आपकी बहन की आत्‍मा भटक रहें है।

अब उनको देवी देवता के रूप गांव में स्‍थान देकर मानना पड़ेगा। और वैसे ही किये फिर अकाल, भूखमरी गरीबी दूर हो गया। और लोगों में धीरे धीरे इस बात पर विश्‍वास हाेने लगा। तब से लेकर आज तक झिटकू बाबा, मिटकी माता जिसे गपादाई के नाम से भी लोग आराध्य देवी के रूप में पूजते हैं, आज भी विश्रामपुरी के उस गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु मिटकी Jhitku Mitki के नाम से चैत्र माह में मंडई मेला का आयोजन किया जाता है। जहां पर उन्‍हे पेंड्रावंडीन माता के रूप में पूजा जाता है।

झिटकू मिटकी (Jhitku Mitki) बस्‍तर आर्ट (शिल्‍पकला) के रूप में

बस्‍तर के कलाकार Jhitku Mitki की प्रेम कहानी को आज भी अपनी कलाओं में संजोकर जिवित रखे हुए है। काष्ठ और मेटल से बनी यह मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रचलित हैं, बस्तर संभाग के कई क्षेत्रों में आज भी झिटकु-मिटकी की मूर्तियां बनाई जाती हैं, मेटल से बनी इन प्रतिमाओं में झिटकू की पहचान हाथ में वाद्य यंत्र और मिटकी की पहचान हाथों मे बांस की टोकरी से की जाती है, एवं प्रेम करने वालो के दिलों में उनकी अमर प्रेम कहानी हमेशा के लिए जिवित है।

लोग इन प्रेमी जोड़ों के प्रतीक कहलाने वाले Jhitku Mitki की मूर्ति ले जाते हैं. इन्हें अपने घर में रखना शुभ मानते हैं और इस अमर प्रेम कहानी के किस्‍से देश प्रदेश ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी सुनाएं जाते है।

झिटकू मिटकी पर बनी फिल्‍म (film based on jhitku mitki)

Jhitku Mitki की प्रेम कहानी पर एक फिल्‍म भी बनाया गया है, जिसके निर्देशक राजा खान एवं झिटकू का मुख्‍य किरदार लालजी कोर्राम एवं मिटकी का किरदार बाम्‍बे की ईरोइन लवली द्वारा निभाया गया है। और यह फिल्‍म पूरी तरह से झिटकू और मिटकी की प्रेम कहानी पर आधारित है।

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Praveer Chand Bhanjdev: बस्तर में अंतिम शासन महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव (1936-1948) ने किया। महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव बस्तर के सभी समुदाय, मुख्यतः आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। आदिवासियों और यहां के जनता के हितों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सरकार के सामने आवाजा उठाते है, उनका मानना था कि यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के आदिवासियों मूलनिवासियों का मालिकाना हक होना चाहिए। तो आईये जानते है, इस पोस्‍ट के माध्‍यम से उनकी जीवन से जुड़ी रोचक बातें।

प्रवीर चंद भंजदेव का परिचय एवं परिवार का विवरण

नामप्रवीर चंद भंजदेव
जन्‍म दिनांक25 जून 1929
जन्‍म स्‍थानशिलांग
माता का नामप्रफुल्‍ल कुमारी देवी
पिता का नामप्रफुल्‍ल चंद भंजदेव
पत्नि का नामशुभराज कुमारी
भाई/बहनकमला देवी, विजय चंद भंजदेव, गीता देवी
नाना का नामरूद्रप्रताप देव
शिक्षारायपुर के राजकुमार कालेज एवं लंदन में
मृत्‍यु25 मार्च 1966

प्रवीर चंद भंजदेव जी का जन्‍म एवं प्रारंभिक जीवन (Birth and early life of Praveer Chand Bhanjdev)

प्रवीर चंद भंजदेव जी का जन्‍म 25 जून 1929 को शिलांग में हुआ था उनकी माता का नाम प्रफुल्‍ल कुमारी देवी एवं पिता का नाम प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव था माता की मृत्‍यु के पश्‍चात् 6 वर्ष की अल्‍पायु में 28 अक्‍टूबर 1936 को ब्रिटिश शासन द्वारा उनका राजतिलक कर दिया जाता है, एवं ब्रि‍टिश शासन के संरक्षण में उनका देखभाल किया जाता है।

प्रवीर चंद भंजदेव की शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन (Praveer Chand Bhanjdev’s education and married life)

प्रवीर चंद भंजदेव की शिक्षा रायपुर के राजकुमार कालेज में हुई उसके बाद पढ़ने के लिए वे लंदन चले गये। उनका विवाह 4 जुलाई 1961 को पाटन राजस्‍थान की राजकुमारी शुभराज कुमारी, राज ऋषि राव साहेब उदय सिंहजी और पाटन की रानी त्रैलोक्‍य राज लक्ष्‍मी की बेटी से हुआ ।   

प्रवीर चंद भंजदेव का राजनैतिक जीवन (Political life of Praveer Chand Bhanjdev)

प्रवीर चंद भंजदेव का राजनैतिक जीवन तो बपचन से ही शुरू हो चुका था। 6 वर्ष की आयु में ही 28 अक्‍टूबर 1936 को ब्रिटिश शासन द्वारा उनका औपचारिक राजतिलक कर दिया जाता है। तथा प्रवीर चंद भंजदेव के 18 वर्ष की आयु पूर्ण होते ही जुलाई 1947 में उन्‍हे ब्रिटिश सरकार द्वारा बस्‍तर रियासत का पूर्ण राज्‍य अधिकार दे दिया जाता है।

उसी समय 1947- 48 में भारत देश आजाद होता है, और 15 दिसबंर 1947 को प्रवीर चंद भंजदेव विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर देते है, अधिकारिक तौर पर 1 जनवरी 1948 को बस्‍तर रियासत भारत के अधीन आ जाता है, सबसे पहले विधान सभा चुनाव 1957 में होता है, जिसमें अविभाजित मध्‍यप्रदेश विधानसभा में प्रवीर चंद भंजदेव जगदलपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते है, और विजयी हो जाते है।

तत्‍कालीन सरकार द्वारा बस्तर के वनों और खनिजों का दोहन किया जाता है। जिससे महाराजा को ऐसा महसूस होता है, कि यहां के जो आदिवासी जनता (प्रजा) है। उनका शोषण हो रहा है। और वे उस शोषण के विरूद्व सरकार के खिलाफ आवाज उठाते है, और विभिन्‍न तरीके से हड़ताल, एवं धरना प्रदर्शन करके सरकार का ध्‍यान आकर्षण करना चाहते है, फिर भी जब सरकार का ध्‍यान उनकी ओर आकर्षित नहीं होती है, तो वे अपने विधायक पद से सन् 1959 को इस्‍तीफा दे देते है।

सन् 1961 को प्रवीर चंद भंजदेव को जेल भेज दिया जाता है, जब वे 1962 को जेल से बहार आ जाते है, और सोचते है कि अब लोकतांत्रिक तरीके से यहां की जनता के लिए अब लड़ाई लड़नी है। उसके बाद तत्‍कालीन बस्‍तर क्षेत्र की 10 विधान सभा सीटों में अपनी अलग पार्टी बनाकर कर उम्‍मीदवार खड़ा करतें है। और अगामी विधान सभा चुनाव में 10 में से 09 सीटों पर विजयी हासिंल करते हैं।

प्रवीर चंद भंजदेव (Praveer Chand Bhanjdev) की मृत्‍यु एंव बस्‍तर महल गोली कांड कब हुआ ?

महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव की लोकप्रियता बस्‍तर में यहां के जनता के प्रति बहुत ही ज्‍यादा थी। वे बस्‍तर की प्रजा के लिए अपना सब कुछ न्‍यौछावर कर दिये। 24 मार्च 1966 को उनके राजमहल को घेराबंदी किया जाता है, और उन पर गोलियां चलाई जाती है। 25 मार्च 1966 को बस्‍तर महल गोली कांड होता है, और प्रवीर चंद भंजदेव की उनके ही राजमहल में मृत्‍यु हो जाती है।

प्रवीर चंद भंजदेव के पूर्वज एवं परिवारिक सदस्‍य  कौन कौन थे ?

राजा प्रवीर चंद भंजदेव के राज परिवार में उनके पूर्वज नाना जी रूद्रप्रताप देव, माता जी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी, पिता प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव, एवं इनके चार भाई बहन थे, सबसे बड़ी बहन का नाम कमला देवी एवं दूसरे नंबर पर स्‍वयं प्रवीर चंद भंजदेव, तीसरे नंबर पर उनके भाई विजय चंद भंजदेव चौथे नंबर पर उनकी छोटी बहन गीता देवी थी।

बस्‍तर जगदलपुर का एयरपोर्ट कब बना था ?

प्रवीर चंद भंजदेव की माता जी बस्‍तर की महारानी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी को अपेंडिक्‍स की बिमारी हो जाती है, जिसका ईलाज कराने के लिए उन्‍हे पहले रायपुर फिर लंदन ले जाया जाता है। जहां पर उनकी मौत हो जाती है। मौत के बाद उन्‍हे वहीं पर दफना दिया जाता है। बाद में विरोध करने के उपरांत उनकी अस्थियां लाने के लिए बस्‍तर जगदलपुर में एयरपोर्ट बनाया जाता है।

निष्‍कर्ष:-

बस्‍तर रियासत के अंतिम महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव यहां के जनता के लिए बहुत की लोकप्रिय थे, उनकी लोकप्रियता इसी अंदाज से लगाया जा सकता है, कि बस्‍तर में दंतेश्‍वरी मांई जी के फोटो के साथ महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव जी का फाटो लोग अपने घरों में लगाते हैं, इतने वर्ष बीत जाने बाद भी प्रवीर चंद भंजदेव बस्‍तर के लोगों में आज भी जीवित है।

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FaQs

प्रवीर चंद भंजदेव का जन्‍म कब एवं कहां हुआ था ? When and where was Praveer Chand Bhanjdev born?

25 जून 1929 को शिलांग में।

प्रवीर चंद भंजदेव के पिता का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chand Bhanjdev’s father?

प्रफुल्‍ल चंद भंजदेव।

प्रवीर चंद भंजदेव के माता का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chand Bhanjdev’s mother?

प्रफुल्‍ल कुमारी दवी।

प्रवीर चंद भंजदेव की शादी कब हुई थी ? When did Praveer Chand Bhanjdev get married?

04 जुलाई 1961 को ।

प्रवीर चंद भंजदेव की पत्नि का क्‍या नाम था ? What was the name of Praveer Chandra Bhanjdev’s wife?

महारानी शुभराज कुमारी।

छत्‍तीसगढ़ की एकमात्र महिला शासिका कौन थी ? Who was the only woman ruler of Chhattisgarh?

महारानी प्रफुल्‍ल कुमारी देवी।

बस्‍तर महल गोली कांड कब एवं कहां हुआ था ? When and where did the Bastar Mahal shooting incident take place?

25 मार्च 1966 को बस्‍तर राजमहल में।

राज्‍य अंलकरण पुरस्‍कार तिरंदाजी के क्षेत्र में किसके सम्‍मान में दिया जाता है ? In whose honor is the State Decoration Award given in the field of archery?

प्रवीर चंद भंजदेव के सम्‍मान में।

प्रवीर चंद भंजदेव के पिता कौन से वंश के शासक थे ? Praveer Chand Bhanjdev’s father was the ruler of which dynasty?

उड़ीसा के मयूरभंज वंश के।

छत्‍तीसगढ़ में सेंट ऑफ जेरूसेलम की उपाधि किसे दिया गया था ? Who was given the title of Saint of Jerusalem in Chhattisgarh?

रूद्र प्रताप देव।

APJ Abdul Kalam: Best Biography अब्‍दुल कलाम की जीवनी

APJ Abdul Kalam:

APJ Abdul Kalam: Ka Jeevan Parichay

APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम भारत के “मिसाईल मेन” भारत के 11 वें राष्‍ट्रपति, एक जानेमाने वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) एवं भारतीय आं‍तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विकास कार्य में अपना महत्‍वपूण योगदान दिये। तथा द्वितीय परमाणु परीक्षण में निर्णायक भूमिका निभाने के साथ-साथ कई सर्वोच सम्‍मान से सम्‍मानित हुए उनकी जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें संक्षिप्‍त में विस्‍तार से आगे जानेगें……।

एपीजे अब्‍दुल कलाम का प्रारंभिक जीवन (Early Life):

APJ Abdul Kalam: का जन्‍म सन् 15 अक्‍टूबर 1931 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्‍य के रामेश्‍वर जिला, धनुषकोड़ी गांव में एक मध्‍यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलाब्‍दीन एक नाविक थे, और मछुआरों को नाव किराये पर देते थे। मां आशियम्‍मा एक गृहणी थी, पांच भाई बहनों में एपीजे अब्‍दुल कलाम सबसे छोटे थे। वे अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए बचपन के दिनों में अखबार बांटा करते थे। आगे चलकर यही व्‍यक्ति भारत का मिसाईल मेन से लेकर भारत के जनवादी राष्‍ट्रपति के रूप में पूरी दुनिया में लोकप्रिय बन गये।

एपीजे अब्‍दुल कलाम की शिक्षा (Education):

APJ Abdul Kalam: की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्‍वरम के पंचायत स्‍कूल में हुई वे पढ़ाई में सामान्‍य थे, पर नई नई चीजों को सीखने जानने के लिए उनके अंदर जुनून था। बचपन मे पक्षियों को उड़ते देख डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम ने तय कर लिया था। की उन्‍हे आगे चलकर विमान विज्ञान के क्षेत्र में ही जाना है, उसके बाद आगे की शिक्षा St. Joseph’s College से एवं सन् 1950 में मद्रास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (MIT) से एरोनिटिकल इंजीनियरिंग (आंतरिक्ष विज्ञान) में स्‍नातक की शिक्षा पूरी की ।

व्‍यवसाय (Career):

APJ Abdul Kalam: अपनी पढ़ाई मद्रास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी से पूरी करने के बाद हावरक्राप्‍ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान में प्रवेश लिया। उसके बाद वह सन् 1962 में भारतीय आंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आये। भारतीय वैज्ञानिक, अब्‍दुल कलाम ने देश के मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों को विकसित करने में  प्रमुख भूमिका निभाई ।

सफलताएं (Achievements) :

APJ Abdul Kalam: को मिसाईल मेन के नाम से भी जाना जाता है, वे एक वैज्ञानिक, इंजीनियर, के रूप में विख्‍यात थे। उन्‍होने बहुत सारे मिशन का नेतृत्‍व किया और सफल भी हुए। उन्‍हे पद्म भूषण, पद्म विभूषण, और भारत रत्‍न जैसे बड़े बड़े सम्‍मानों से नवाजा गया। और भारत के 11 वें राष्‍ट्रपति के रूप में भी चुने गये।

APJ Abdul Kalam:निधन (Death):

डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम 27 जुलाई सन् 2015  की शाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में “रहने योग्‍य ग्रह” पर एक व्‍याख्‍यान दे रहे थे तब उन्‍हे कार्डियक अरेस्‍ट (दिल का दौरा) पड़ा और वे बेहोश कर गिर पड़े लगभग 6:30 बजे उन्‍हे गंभीर हालत में बेथानी अस्‍पताल में में लाया गया, और शाम 7:45 बजे उनका निधन हो गया।  

एपीजे अब्‍दुल कलाम का पूरा नाम क्‍या है ? : (APJ Abdul Kalam: Full Name)

एपीजे अब्‍दुल कलाम का पूरा नाम “अवुल पाकिर जैनुलाब्‍दीन अब्‍दुल कलाम” था। जिसमें मतलब अवुल उनके परदादा पी मतलब पाकिर उनके दादा जे मतलब जैनुलाब्‍दीन  उनके पिता और अब्‍दुल कलाम उनका खुद का नाम था।

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Gundadhur Bhumkal Vidroh Ke Jannayak गुंडाधूर कौन थे। गुंडाधूर का जीवन परिचय

एपीजे अब्‍दुल कलाम को प्रदान किया गया सम्‍मान/पुरस्‍कार: (APJ Abdul Kalam: Award)
क्र.पुरस्‍कार/सम्‍मान का नामसम्‍मान का वर्ष
1पद्म भूषण1981
2पद्म विभूषण1990
3विशिष्‍ट शोधार्थी1994
4भारत रत्‍न1997
5इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय एकता पुरस्‍कार1997
6वीर सावरकर पुरस्‍कार1998
7रामानुजन पुरस्‍कार2000
8डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स की मानद उपाधि2007
9किंग चार्ल्‍स मेडल2007
10डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स एण्‍ड टेक्‍नोलॉजी की मानद उपाधि2007
11डॉक्‍टर ऑफ साइन्‍स मानद उपाधि2008
12डॉक्‍टर ऑफ इंजीनियरिंग मानद उपाधि2008
13वॉन कार्मन विंग्‍स अंतराष्‍ट्रीय अर्वाड2009
14हूवर मेडल2009
15मानद डॉक्‍टरेट2009
16डॉक्‍टर ऑफ इंजीनियरिंग2010
17आइ ई.ई.ई. मानद सदस्‍यता2011
18डॉ. ऑफ लॉज मानद उपाधि2012
19डॉ. ऑफ साइन्‍स2014
APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम द्वारा लिखी गई पुस्‍तकें: (Books)
  1. विंग्‍स ऑफ फायर एन ऑटोबायोग्राफी
  2. मिशन ऑफ इंडिया ए विजन ऑफ इंडिया यूथ
  3. टर्निंग पॉइंट्स ए जर्नी थ्रू चैलेंजस
  4. द फैमिली एंड द नेशन
  5. स्पिरिट ऑफ इंडिया
  6. गवर्नेंस फॉर ग्रोथ इन इंडिया
  7.  रेगनिटेड साइंटिफिक पाथवेयस टू ए ब्राईटर फ्यूचर
  8. इंडिया 2020 ऐ विजन फॉर द न्‍यू मिलेनियम
  9. फेलियर टू सक्‍सेस लेजेंडरी लिव्‍स
  10.  थॉट्स फॉर चेंज वी कैन डू इट
  11. मैनिफेस्‍टो फॉर चेंज
  12. टारगेट 3 बिलियन
  13.  द साइंटिफिक इंडिया ए टवेंटी फर्स्‍ट सेंचुरी गाइड टू द वर्ल्‍ड अराउंड अस
  14. इन्‍डोमिटेवल स्पिरिट
  15. माय जर्नी ट्रांस्‍फॉरर्मिंग ड्रीम्‍स इनटू एक्‍शनस
  16. यू आर बोर्न टू ब्‍लॉसम टेक माय जर्नी बियॉन्‍ड
  17. द लुमिनिउस स्‍पार्क्‍स ए बायोग्राफी इन वर्स एंड कलर्स
  18. ब्‍योंड 2020 ए विजन फॉर टुमारो इंडिया
  19. इग्‍नाइटेड माइंडस अन्‍लेशिंग द पॉवर विथिन इंडिया
  20. यू आर यूनिक स्‍केल न्‍यू हाइट्स बाए थॉट्स एंड एक्‍शनस
  21. गाइडिंग सोल्‍स डायलॉग्‍स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ
  22. ट्रांस्‍सन्‍डेंस माई स्पिरिचुअल एक्‍सपीरियंसीस
  23. फोर्स योर फ्यूचर कैंडिड, फोर्थराईट, इंस्‍पाइरिंग
  24. द गाइडिंग लाइट ए सिलेक्‍शन ऑफ कोटेशन फ्रॉम माई फेवरेट बुक्‍स
  25. इन्स्पिरिंग थॉट्स कोटेशन क्‍यूटेशन सीरीज
APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्‍दुल कलाम के महान विचार:-
  • इससे पहले की सपने सच हो आपको सपने देखने होगें।
  • शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा  है, किसी व्‍यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्‍य को आकार देता है।
  • अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो।
  • विज्ञान मानवता के लिए एक खूबसूरत तोहफा है, इसे हमें बिगाड़ना नहीं चाहिए।
  • इंतजार करने वाले को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।
  • मनुष्‍य के लिए कठिनाईयों का होना बहुत जरूरी है क्‍योंकि कठिनाईयों के बिना आंनद नहीं लिया जा सकता।
  • सपने हो नही जो आप सोते समय देखते हो, सपने हो है जो आपको सोने नही देते।

Gundadhur Free Biography In Hindi 1 गुंडाधूर का जीवन परिचय

Gundadhur:  बस्‍तर में भूमकाल विद्रोह के जननायक।

Gundadhur: भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल के अनेक महान क्रांतिकारी वीरों में बस्‍तर के अनेक क्रांतिकारियों का नाम सामने आता है, जिन्‍होने देश  लिए अपना सब-कुछ न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों के साथ आजादी के लड़ाई में अपना एक अलग योगदान दिया है, जिनका नाम  इतिहास में हमेशा के लिए याद किया जायेगा। तो आईये जानते है। बस्‍तर में भूमकाल विद्रोह के जननायक अमर शहीद वीर गुंडाधूर के जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें।

Gundadhur: का जीवन परिचय

गुण्डाधूर (Gundadhur) का जन्म बस्तर अंचल के एक नेतानार नामक  छोटे से गाँव में धुरवा जनजाति परिवार में हुआ था। यह वीर युवक सन् 1910 के भूमकाल विद्रोह का प्रमुख सूत्रधार था। बस्‍तर में हजारों आदिवासियों के प्रेरणा स्‍त्रोत और भूमकाल विद्रोह के जननायक वीर शहीद गुंडाधूर के नेतृत्‍व में आदिवासियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजी शासन के खिलाफ डटकर सामना किया और बस्‍तर के आदिवासियों के हक अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी बस्‍तर की प्राकृतिक संपदा को लूट रहे अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई और बस्‍तर को एक अगल पहचान दिलाई।

गुंडाधूर (Gundadhur) का अंग्रेजों के विरूत्द्ध आजादी के लड़ाई में योगदान ?

छत्‍तीसगढ़ का दक्षिणी भाग बस्‍तर क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, 1 फरवरी 1910 को समूचे बस्‍तर में एक विद्रोह का भूचाल आया  जिसे भूमकाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस समय अंग्रेजों के दमनकारी नीति के कारण बस्‍तर में भूमकाल के रूप में प्रकट हुआ। इसका संदेश आम की टहनियों में लाल मिर्च बांधकर गांव गांव भेजा जाता था ।

विद्रोह में सबसे पहले अंग्रेजों के संचार तंत्र को नष्‍ट कर अंग्रेजों के समर्थक कर्मचारियों को भयभीत किया गया। तब रायपुर से मेजर गेयर और डी ब्रेड को बस्‍तर आना पड़ा अंग्रेजों ने बहुत ही क्रूरतापूर्वक ग्रामों को जलाना शुरू कर दिया, और सैकड़ो लोगों को फांसी पर लटकाया गया । और यह विद्रोह मई 1910 तक कुचल दिया गया। वीर गुंडाधूर ने दोबारा अपने साथियों को एकत्रित करके बस्‍तर के एक ग्राम आलनार में अंग्रेजों के विरूद्ध मुकाबला शुरू किया, लेकिन इस बार सोनू मांझी नाम के एक विश्‍वसाघाती व्‍यक्ति ने इसकी सूचना अंग्रेजों का दे दी ।

अंग्रेजों ने अमर शहीद वीर गुंडधूर के साथियों को चारों तरफ से घेर लिया और इस आंदोलन से जुड़े सैकड़ो लोगों पर गोलियां चलवाई सभी मारे गये। किंतु अ्ंग्रेजों के बंदूक का सामना करते हुए वीर गूंडाधूर बच निकले और अंग्रेजों द्वारा बस्‍तर का कोना कोना छान मारने के बावजूद भी वे अंत तक पकड़ में नहीं आये। 35 साल की उम्र में गुंडाधूर ने एसे लड़ाई छेड़ी कि अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। कुछ समय के लिए अंग्रेजों को  गुफा मे छिपना पड़ा था। ऐसे महान क्रांतिकारी वीर गुंडाधूर को लोग आज भी याद करते है, और उनकी भूमकाल की गाथा आज भी बस्‍तर की लोक गीतों में सुनाई जाती है।

Gundadhur: गुंडाधूर को भूमकाल विद्रोह 1910 का जननायक क्‍यों कहा जाता है ?

बस्‍तर में राजा रूद्रप्रताप देव के शासन काल में अंग्रेजों ने बस्‍तर में एक ऐसा दीवान नियुक्‍त किया था। जो अंग्रेज शासन के अधीन काम करता था। वह बस्‍तर के आदिवासियों के साथ शोषण और उन पर अत्‍याचार करता था। उनसे काम लेकर मजदूरी नहीं देते थे। उस दीवान का नाम बैजनाथ पंडा था। बस्‍तर के लोगों को कोई समस्‍या होने पर राजा से मिलने नहीं दिया जाता था।

यह सब देखकर लोगों को समझ आने लगा की यह सब अंग्रेजों की दमनकारी नीति और यहां के लोगों का भोलेपन का परिणाम है, जिससे जनता में चिंता होने लगी सन् 1909 में जनता ने बस्‍तर राजा के चाचा लाल कालेन्‍द्र सिंह और उनकी सौतेली मॉ रानी सुवर्ण कुंवर के साथ मिलकर एक सभा का आयोजन किया।हजारों की संख्‍या में लोग इन्‍द्रावती नदी के तट पर एकत्रित हुए।

इस सभा में सर्वसम्‍मति से एक वीर साहसी नव युवक गुंडाधूर को इस विद्रोह का नेता चुना गया। गुंडाधूर बस्‍तर के नेतानार नामक गांव का एक निडर और पराक्रमी था। उस समय लोग गुंडाधूर को बागा धुरवा के नाम से जानते थे। जिन्‍होने ने 1910 में अंग्रे‍जों के खिलाफ शुरू की गई भूमकाल विद्रोह का नेतृत्‍व किया इस कारण शहीद वीर गुंडधूर को भूमकाल विद्रोह 1910 का जननायक कहा जाता है।

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Gundadhur:  भूमकाल दिवस कब मनाया जाता है ?

सन् 1910 में भूमकाल विद्रोह का आंरभ होता है। वीर गुंडाधूर के नेतृत्‍व में इस आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाती है, इस आंदोलन को स्‍थानीय बोली में भूमकाल कहा जाता है। क्रांति का संदेश  गांव गांव तक लोगों में पहुंचाने के लिए आम की टहनियों में लाल मिर्च बांधकर भेजा जाता है, जिसे लोग स्‍थानीय भाषा में डारामिरी कहते थे।

सबसे पहले बस्‍तर में 2 फरवरी 1910 को इस भूमकाल आंदोलन की शुरूआत होती है, और बस्‍तर के पुसपाल बाजार को सबसे पहले लूटा जाता है। अंग्रेजों के थाने में आग लगा दिया जाता है, और आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया जाता है। बस्‍तर की अस्मिता बचाने के लिए अ्ंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई इस लड़ाई में लगभग 25 हजार लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी। इस आंदोलन की दास्‍तान आज भी इतिहास में पन्‍नों में दर्ज है। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 10 फरवरी को वीर शहीद गुंडाधूर के बलिदान दिवस पर भूमकाल दिवस मनाया जाता है।

गुंडाधूर (Gundadhur) सम्‍मान किस क्षेत्र में दिया जाता है ?

वीर गुंडाधूर एक महान सेनानी तिरांदाजी में माहिर छापामार युद्ध के जानकार एंव बस्‍तर के आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए तत्‍पर थे। छत्‍तीसगढ़ शासन ने उनकी स्‍मतिृ में साहसिक कार्य और द्वारा खेल के क्षेत्र में तीरंदाजी में उत्‍कृट प्रदर्शन के लिए गुंडाधूर सम्‍मान की शुरूआत किया है।

Birsa Munda Jayanti 2023 : Birsa Munda Kaun the I बिरसा मुंडा जयंती 2023

Birsa Munda Jayanti 2023 : Birsa Munda Kaun the I बिरसा मुंडा जयंती 2023

Birsa Munda Jayanti 2023

Birsa Munda Jayanti 2023

Birsa Munda Jayanti 2023: भगवान बिरसा मुण्डा एक भारतीय युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी व मुंडा जनजाति के लोकप्रिय लोक नायक थे, उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत के समय बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया था। यही वजह है कि बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व लोकनायक के रूप में स्‍वतंत्रता सेनानी के रूप में उभर कर दुनिया के सामने आये। आज के समय में भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और पूजते हैं तथा ‘धरती आबा’ के नाम से भी जानते हैं।

बिरसा मुंडा जयंती 2023 में कब है?

जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है कि 15 नवंबर 1875 में बिरसा मुंडा का जन्‍म मुंडा जनजाति में करमी मुंंडा व सुगना मुंडा दम्‍पति के घर में उलीहातु गांव में हुआ था इसलिये पुरेे भारत में प्रतिवर्ष 15 नवंबर को मनाया जाता है । इस साल यानि कि 2023 में भी 15 नवंबर 2023 को भारत के आदिवासी समुुुुदाय व पूरा भारत Birsa Munda Jayanti मनायेगा ।

Birsa Munda ka Janm Kab Hua ?

बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय के मुंडा जनजाति में 15 नवंबर 1875 में झारखंड के खुटी जिले के उलीहातु नामक गांव में हुआ था, बिरसा मुंडा करमी मुंडा माता और पिता सुगना मुंडा के सुपुत्र थे । इनकी प्रारंभिक शिक्षा साल्‍हा गांव में ही पूरा हुआ उसके बाद वे चाईबासा जी0ई0एल0 चार्च (गोस्नर एवं जिलकल लुथार) से अपनी आगे की शिक्षा प्राप्‍त की थी ।

बिरसा मुंडा विद्रोह कब हुआ?

1858-94 का सरदारी आंदोलन बिरसा मुंडा के उलगुलान का आधार बना, जो भूमिज-सरदारों के नेतृत्व में लड़ा गया था। 1894 में सरदारी लड़ाई मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण सफल नहीं हुआ, जिसके बाद आदिवासी बिरसा मुंडा के विद्रोह में शामिल हो गए।

Birsa Munda Ka Nidhan kab hua tha ?

मुंडा विद्रोह को दबाने के लिए बिरसा मुंडा को 1895 में अंग्रेजी शासन ने हजारी बाग केन्‍द्रीय जेल कारागर में दो साल कारावास की सजा दी सुनाई गई, अंतिम में 09 जून 1900 में कारागार में ही अंग्रेजों के द्वारा जहर देकर बिरसा मुंडा की जान ले ली अर्थात् बिरसा मुंडा ने अपनी अंतिम सांस 1900 को रांची के कारागर में ली। आज भी बिरसा मुंडा को उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

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बिरसा मुंडा के नाम पर बनाई गई स्‍मृतियां

बिरसा मुंडा ने अपनी 25 साल की बहुत ही कम उम्र मेंं ही लोकप्रियता हासिल की थी जिसके चलते आदिवासी बाहुल्‍य राज्‍य झारखण्‍ड शासन ने उनके नाम पर राज्‍य के कई प्रतिष्ठित जगहों का नाम भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर रखा है। जिनकी कुछ झलकिंया निम्‍नानुसार है –

  • Birsa Munda Hockey Stadium– बिरसा मुंडा इतनी लोकप्रियता हासिल की थी कि झारखंण्‍ड व उड़ीसा सरकार ने अंतराष्‍ट्रीय हॉकी स्‍टेडियम का नाम आदिवासी नेता एवं स्‍वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है । इस स्‍टेडियम में 20011 स्‍थायी सीटों की बैठने की क्षमता है। इस स्‍टेडियम को 29 जनवरी 2023 को गिनीज वर्ल्‍ड रिकार्ड द्वारा सबसे बड़े हॉकी स्‍टेडियम का दर्जा दिया गया है। जो कि 15 एकड़ की भूमि में बना है। यह स्‍टेडियम उड़ीसा के राउरकेला में स्थित है यह स्‍टेडियम पूरी तरह उड़ीसा सरकार के स्‍वामित्‍व अधिकार में है। इस स्‍टेडियम का संचालन व देख रेख खेल एवं युवा सेवायेंं, उड़ीसा सरकार के द्वारा किया जाता है।
  • Birsa Munda Airport- बिरसा मुण्डा Airport झारखण्ड स्थित एक व्‍यस्‍ततम हवाई अड्डा है। इसका प्रबन्धन व संचालन भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के द्वारा की जाती है, जो कि राँची शहर के हिनू मोहल्ले के समीप स्थित है और शहर के मुख्य स्थानो से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है। यह पूरे भारत का बीसवाँ सबसे व्यस्त Airport है। इस Airport का नाम झारखंड के युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुण्डा के नाम पर रखा गया है।