Biography of Guru Ghasidas गुरू घासीदास का जीवन परिचय
Biography of Guru Ghasidas: बात उस समय की है जब छत्तीसगढ़ में 17 वीं सदी में समाज में छूआछूत, ऊंचनीच, भेदभाव छलकपट का बोलबाला था। मंंदिरोंं में धर्म और कर्म के नाम पर नरबलि पशुबलि की परम्परा प्रचलित थी अंधविश्वास के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा था। राजनीतिक महौल बहुत की खराब स्थिति में था। ऐसे समय में संत गुरू घासीदास जी का जन्म होता है।
उन्होने सतनाम धर्म की स्थापना की और मानव मानव एक समान का संदेश दिया तथा मूर्ति पूजा का विरोध कर असमानताओं को दूर करने एवं मानव कल्याण के सुधार के लिए काम करते हुए समाज में फैले जातपांत, छुआछूत जैसे कुरूतियों को दूर कर समाज में एक नई सोच और विचार उत्पन्न करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज के इस लेख में ऐसे महान संत Guru Ghasidas जी के जीवन के बारे में जानेगें।
Guru Ghasidas: सारांश :-
नाम | घासीदास |
उपनाम | संत गुरू बाबा घासीदास |
जन्म दिनांक | 18 दिसम्बर 1756 ईस्वी. |
जन्म स्थान | बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी |
माता का नाम | अमरौतिन |
पिता का नाम | मंहगूदास |
जीवन साथी का नाम | सपूरा देवी |
पुत्र/पुत्री का नाम | अमरदास, बालकदास, आगरदास, अड़गडिहा दास, सुभद्रा |
वंश | सतनामी |
धर्म | सतनाम (हिंदू) |
प्रसिद्वि | सतनाम धर्म के संस्थापक गुरू घासीदास बाबा |
उत्तराधिकारी | गुरू बालक दास |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | छत्तीसगढ़ |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जीवन काल | 94 वर्ष |
मृत्यु | सन् 1850 ईस्वी. |
गुरू घासीदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी का जन्म 18 दिसम्बर सन् 1756 में बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में हुआ था इनकी माता का नाम अमरौतिन व पिता का नाम मंहगूदास था बचपन में ही माता का देहांत हो जाने के बाद उनका पालन पोषण उनके पिता द्वारा किया गया। कुछ लोगों की मान्यता है, कि Guru Ghasidas के पूर्वज उत्तर भारत हरियाणा के नारनौल के रहने वाले थे।
सन् 1672 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब से लड़ाई के बाद वहां से पलायन कुछ सतनामी परिवार महानदी के किनारे मध्यप्रदेश के चंद्रपुर में आ कर बस गये। कहा जाता है, कि औरंगजेब ने फरमान जारी कर दिया था, कि जो भी राजा, जमींदार इनको शरण देगा उन्हे कठोर सजा दण्ड दिया जायेगा। उनके डर से कई राजा लोग इन सतनामियों को पड़ककर औरंगजेब के हवाले कर दिये। और कुछ परिवार चंद्रपुर से होते हुए सोनाखान के जंगलों में पहुंच गये और वे छत्तीसगढ़ में आकर बस गये।
गुरू घासीदास जी का वैवाहिक जीवन
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी का विवाह छत्तीसगढ़ की प्राचीन राधजानी एवं बौद्व नगर सिरपुर में वहां के रहने वाले अंजोरीदास की पुत्री सपुरा से हुआ था गुरू घासीदास का सिरपुर में आध्यात्मिक की ओर लगाव हुआ। विवाहोपरांत उनके 4 पुत्र और एक पुत्री का जन्म होता है। जिनके नाम 1. अमरदास 2. बालकदास 3. आगरदास 4. अड़गडिहा दास, एवं पुत्री का नाम सुभत्रा थी। उनके बड़े पुत्र अमरदास की युवावास्था में ही अचानक मृत्यु हो जाने से द्वितीय पुत्र बालकदास उनके उत्तराधिकारी बने।
सतनाम धर्म की स्थापना कब हुई थी?
Guru Ghasidas: रायपुर शहर से लगभग 56 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पूर्व में पलारी के समीप एक भंडार नामक गांव स्थित है, इस गांव की मालगुजारी यहां के एक लोहार परिवार रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एंव उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन रहते थे। उनके कोई वंशज नही थे, रायसिंग लोहार गौटिया को जब पता चलता है, कि संत गुरू घासीदास जी उनके गांव के पास हैं तो उन्हे अपने निवास स्थान चलने के लिए निवेदन करते है।
जब निवेदन स्वीकार कर Guru Ghasidas जी उनके निवास जाते है। वहां पर बहुत ही आदर पूर्वक उनका सम्मान, स्वागत सत्कार किया जाता है, और गुरू घासीदास के क्रांतिकारी विचार सुनते है। उनके विचार से प्रभावित होकर भंडार गांव का मालगुजारी स्वामित्व गुरू घासीदास जी को सौंप देते है, इस प्रकार सन् 1840 में भंडार गांव में रायसिंग (झुमुक) लोहार गौटिया एवं उनकी पत्नि बिरझा गौटिनीन के सहयोग से गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म की स्थापना की।
गुरु घासीदास जी का निधन
Guru Ghasidas: गुुरू घासीदास जी का निधन 1850 ई. में हुआ उनके मृत्यु का कारण अज्ञात है, मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकारी गुरू बालक दास हुए जो गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र थे और उनके बताये हुए मार्ग के अनुसार सतनाम धर्म को आगे बढ़ाया तथा सतनाम आंदोलन में बढ़ चढ़़कर हिस्सा लिये।
गुरु घासीदास जंयती 2023 (Guru Ghasidas Jayanti 2023)
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जंयती प्रतिवर्ष 18 दिसम्बर को मनाया जाता है गुरू घासीदास जंयती की शुरूआत 1938 ई. में दादा नकुल देव ने अपने गृह ग्राम भोरिंग (महासमुंद) में किया था। गुरू घासीदास जी की जानकारी और जंयती का सुझाव डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने भी दिया था। मान्यवर कांसीराम साहब ने उनके कार्यो और विचारों को देश विदेश में प्रसारित करने का महान काम किया। तब से लेकर आज तक हर साल 18 दिसम्बर को गुरू घासीदास जंयती मनाया जाता है।
गुरु घासीदास के कितने रावटी स्थल हैं?
Guru Ghasidas: संत गुरू घासीदास जी ने सतनाम मत को बहुत ही सरल शब्दों में अभूतपूर्व परिवर्तन किया। आश्चर्य की बात यह है, कि जिन जिन गांवो जगहों में उन्होने यात्रा की वहां की जन समस्याओं को समाधान करने का प्रयास किया उनकी इस प्रकार की यात्रायों को रावटी (पड़ाव) कहते थे। उन्होने जिन जिन जगहों पर रावटी पड़ाव लगाया था। उनमें से 7 रावटी (पड़ाव) जिसमें दलहा पोड़ी (जांजगीर चांपा), बस्तर दंतेवाड़ा, कांकेर, पानाबरस, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, भोरमदेव (कर्वधा) आदि का उल्लेख मिलता है। तथा मंडला, बालाघाट, जबलपुर, अमरकंटक, में भी सतनाम पंथ का प्रचार प्रसार किया था।
गुरु घासीदास जी का तपो स्थल छाता पहाड़ कहां स्थित है?
Chhata Pahad Chhattisgarh: यह छाता पहाड़ बलौदा बाजार से लगभग 50 किलोमीटर की दुरी पर गिरौदपूरी धाम में मुख्य मंदिर से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर सोनाखान रेंज ( बारनवापारा अभ्यारण्य ) के घनघोर जंगल में स्थित है। छातापहाड़, बलौदा बाजार जिले का एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल और सतनाम पंथ के प्रर्वतक Guru Ghasidas जी की तपोस्थली है। लोगो की मान्यता है, कि गुरू घासीदास जी गहन चितंन के लिए छह माह समय का लक्ष्य बानाया और उन्होने विचारों के लिए इस छाता पहाड़ को चुना था।
गुरु घासीदास जी का तपो स्थल छाता पहाड़ Chhata Pahad Chhattisgarh:
गुरू घासीदास जी के 42 अमृत वाणी क्या क्या है?
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास जी के अमृतवाणियों में उनके 42 अमृतवाणी समाज में प्रचलित, प्रासंगिक और सर्वमान्य है।
1- सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।)
2-जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे।
3-सतनाम ल जानव, समझव, परखव तब मानव।
4-बइला-भईसा ल दोपहर म हल मत चलाव।
5-सतनाम ल अपन आचरण में उतारव।
6-अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परंपरावाद ल झन मानव।
7-दाई-ददा अउ गुरू के सनमान करिहव।
8-हुना ल साहेब समान जानिहव।
9-इही जनम ल सुधारना साँचा ये। (पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।)
10-गियान के पंथ किरपान के धार ये।
11-दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।
12-मरे के बाद पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे। पितर पूजा झन करिहौ, जीते-जियात दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव।
13-जतेक हव सब मोर संत आव।
14-तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू।
15-रिस अउ भरम ल त्यागथे तेकरे बनथे।
16-दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन निकालहव।
17-बारा महीना के खर्चा सकेल लुहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे।
18-ये धरती तोर ये येकर सिंगार करव।
19-झगरा के जर नइ होवय ओखी के खोखी होथे।
20-नियाव ह सबो बर बरोबर होथे।
21-मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइही त मोला सूजगा मे हुदेसे कस लागही।
22-भीख मांगना मरन समान ये न भीख मांगव न दव, जांगर टोर के कमाए ल सिखव।
23-सतनाम ह घट घट में समाय हे, सतनाम ले ही सृष्टि के रचना होए हावय।
24-मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय।
25-पानी पीहु जान के अउ गुरू बनावव छान के।
26 -मोर ह सब्बो संत के आय अउ तोर ह मोर बर कीरा ये। (चोरी अउ लालच झन करव।)
27-सतनाम ह जीवन के आधार आय।
28-खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के राखिहव।
29-पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु।
30-जान के मरइ ह तो मारब आएच आय फेर कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय।
31-अवैया ल रोकन नहीं अऊ जवैया ल टोकन झन।
32-चुगली अऊ निंदा ह घर ल बिगाडथे।
33-धन ल उड़ावव झन, बने काम में लगावव।
34-जीव ल मार के झन खाहु।
35-गाय भैंस ल नागर म झन जोतहु।
36-मन के स्वागत ह असली स्वागत आय।
37-जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे पीहू पानी वइसे बोलहु बानी।
38-एक धुबा मारिच तुहु तोर बराबर आय।
39-काकरो बर काँटा झन बोहु।
40-बैरी संग घलो पिरीत रखहु।
41-अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु मन काकरो ले कमती नई हावव।
42-मंदिरवा म का करे जईबो अपन घर के ही देव ल मनईबो।
गुरु घासीदास जी के उपदेश क्या थे?
Guru Ghasidas: गुरु घासीदास जी ने सत्य के मार्ग पर चलना सिखाया, सभी जीवों और मनुष्यों पर दया करना, मांस-मदिरा, जीव-हत्या, चोरी, जुआ, मूर्तिपूजा व आडम्बरों का विरोध कर सभी में समानता का भाव, मानव-मानव में भेदभाव न रखना आदि उनके प्रमुख उपदेश थे घासीदास जी का कहना था, सभी मानव का धर्म एक है इन उपदेशों और संदेशों के माध्यम से सन्त गुरु घासीदास जी ने समाजसुधार के साथ-साथ धर्म का सही मार्ग दिखलाया था और समाज में एक नयी रोशनी पैदा की थी।
प्रमुख उपदेश :-
- सत्य एवं अहिंसा
- धैर्य
- लगन
- करूणा
- कर्म
- सरलता
- व्यवहार
- वह बचपन से सत्य और अहिंसा के पुजारी थे |
- वह हमेशा से लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलने का उपदेश देते थे |
- हमें जाती पाती को भुलाकर एकता को अपनाना चाहिए |
- हमें कभी भी गलत काम नहीं करना चाहिए |
- हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए |
जय स्तंभ (जैतखाम) की स्थापना कब हुई थी?
जैतखाम:- लकड़ी का बड़ा सा खंबा होता है जिसे चबूतरा में गढ़ाया जाता है उस खंबे को सफेद रंग में रंगकर सफेद झंडा लगाया जाता है। Guru Ghasidas ने सतनाम पंथ सतनाम आंदोलन के विजय के प्रतीक के रूप में 1849 ई. में जय स्तंभ जैतखाम की स्थापना की थी। जैतखाम सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जयस्तंभ है वास्तव में यह एक स्तम्भ है जिसे एक विशाल प्रतीक के रूप में माना जाता है।
इस स्तम्भ को सतनाम धर्म के लोगों द्वारा पूजा की जाती है। सतनाम धर्म को बोलचाल की भाषा में सतनामी जाती के रूप में जाना जाता है, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक माना जाता है। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में गुरू बाबा Guru Ghasidas की जन्मभूमि गिरौदपुरी धाम में राज्य शासन द्वारा 50 करोड़ की लागत से 77 मीटर ऊंचे जैतखाम का निर्माण करवाया गया है। जो दिल्ली के कुतुब मीनार से भी लगभग 5 मीटर ऊंचा है।
Jaitkham Girodhpuri Chhattisgarh जय स्तंभ (जैतखाम) गिरौदपुरी धाम
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (Guru Ghasidas Vishwavidyalaya)
Guru Ghasidas University: गुरु घासीदास विश्वविद्यालय भारत का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 16 जून 1983 को बिलासपुर, तत्कालीन मध्य प्रदेश में हुई थी। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। संसद में पेश केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2009 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया।
औपचारिक रूप से राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा स्थापित गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (जीजीयू) का औपचारिक रूप से उद्घाटन 16 जून 1983 को हुआ था। यह भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ और राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालयों के संघ का एक सक्रिय सदस्य है। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से B+ के रूप में मान्यता प्राप्त है। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में स्थित, विश्वविद्यालय का नाम महान संत गुरु घासीदास के सम्मान में उचित रूप से रखा गया है, विश्वविद्यालय एक आवासीय सह सम्बद्ध संस्था है, इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर राजस्व संभाग है।
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान : Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh
Guru Ghasidas: गुरू घासीदास नेशनल पार्क की स्थापना 5 अक्टूबर, 2021 को कि गई। 2001 से पहले यह संंजय गांंधी नेशनल पार्क सीधी (मध्यप्रदेश) का हिस्सा था यह पार्क कोरिया जिले के बैकुंठपुर सोनहत मार्ग में पांंच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, एवं छत्तीसगढ़ का चौथा टाईगर रिजर्व नेशनल पार्क है। अचानकमार टाईगर रिजर्व के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा टाईगर रिजर्व है इसका क्षेत्रफल 1440 वर्ग कि.मी. है इस पार्क के अंदर हसदेव नदी बहती है और गोपद नदी का उद्गगम स्थल है।
Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh: गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
FaQs
गुरु घासीदास के प्रमुख सिद्धांत कौन से थे?
(1) सतनाम् पर विश्वास रखना। (2) जीव हत्या नहीं करना। (3) मांसाहार नहीं करना। (4) चोरी, जुआ से दूर रहना।
गुरु घासीदास के कितने बच्चे थे?
5 बच्चे थे जिसमें 4 पुत्र एवं 1 पुत्री थी।
गुरु घासीदास के रावटी स्थल कितने हैं?
गुरू घासीदास जी के 7 रावटी स्थल है।
गुरु घासीदास के लिए छत्तीसगढ़ में कौन सा स्थान प्रसिद्ध है?
गिरौधपुरी धाम।
गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व से कौन सी नदी बहती है?
हसदेव नदी।
गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व कहां स्थित है?
कोरिया जिले के बैंकुठपुर में।
गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व किस राज्य में है?
छत्तीसगढ़़ में।
सतनाम पंथ में किसकी पूजा होती है?
गुरू घासीदास बाबा की।
गुरु घासीदास का गोत्र क्या है?
गुरू घासीदास धृतलहरे गोत्र के थे।
छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ के संपादक कौन थे?
गुरू घासीदास जी
गुरू घासीदास जंयती कब मनाई जाती है?
18 दिसबंर को।
सतनामी विद्रोह कब शुरू हुआ?
1672 में।
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