Biography Of Gurunanak: Guru Nanak Jayanti 2024

Biography Of Gurunanak Guru Nanak Jayanti 2024

Biography Of Gurunanak: गुरूनानक का जीवन परिचय

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु थे, जिनका जन्म 15 अप्रैल, सन् 1469 को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम कालू मेहता और माता का नाम तृप्ता देवी था। बाल्यकाल से ही गुरु नानक एक असाधारण और संवेदनशील बालक थे। उनका मन बचपन से ही आध्यात्मिकता और भक्ति की ओर लग गया था, और वे अक्सर गहरे ध्यान और चिंतन में डूबे रहते थे। तो आईये जानते है। आज के इस पोस्‍ट Biography Of Gurunanak में उनके जीवन से जुड़ी महत्‍वपूर्ण बातें।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी का बाल्यकाल साधारण बच्चों की तरह नहीं था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत, फारसी और अरबी में प्राप्त की। बचपन में ही उन्होंने धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। गुरु नानक बचपन से ही धार्मिक और बुद्धिमान प्रवृत्ति के थे। वे स्कूल में शिक्षकों से गहरे सवाल पूछते थे, जिससे उनके ज्ञान और भक्ति की गहरी समझ का पता चलता था। वे प्रकृति, भगवान और मानवता के बारे में गहरी रुचि रखते थे और जल्द ही समाज की अन्यायपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाने लगे।

जब उनके पिता ने उन्हें व्यापार करने के लिए पैसे दिए, तो नानक ने उन पैसों से गरीबों को भोजन करवा दिया। इसे “सच्चा सौदा” कहा गया, जो उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जहाँ उन्होंने यह संदेश दिया कि सच्चा सौदा वह है, जिसमें मानवता की सेवा की जाए।

वैवहिक जीवन और परिवार

Biography Of Gurunanak:  गुरु नानक देव जी का विवाह सुलखनी देवी से हुआ था, जो एक साधारण लेकिन धार्मिक परिवार से थीं। उनका विवाह 1487 में बटाला (अब पंजाब, भारत में) में हुआ। उस समय वे 18 वर्ष के थे, सुलखनी देवी के पिता का नाम मूला था, और वे एक धार्मिक और कर्मशील व्यक्ति थे। विवाह के बाद गुरु नानक जी अपनी पत्नी के साथ सुलतानपुर चले गए, जहाँ उन्होंने कुछ समय तक नवाज शाह के यहाँ मोदी (अन्न भंडार के प्रबंधक) के रूप में कार्य किया।

गुरु नानक जी और सुलखनी देवी के दो पुत्र थे:

  1. श्रीचंद: उनका जन्म 1494 में हुआ था। श्रीचंद का जीवन भी आध्यात्मिक रहा, और वे साधना में लीन रहते थे। उन्होंने “उदासी संप्रदाय” की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक पंथ था और इसमें त्याग और साधना पर बल दिया गया। हालांकि वे गुरु परंपरा में नहीं आए, फिर भी उनकी शिक्षाएं और तपस्या का सिख धर्म पर गहरा प्रभाव रहा।
  2. लक्ष्मी दास: उनका जन्म 1497 में हुआ था। वे साधारण जीवन जीते थे और सांसारिक कार्यों में लगे रहे। गुरु नानक जी ने उन्हें भी हमेशा सत्य, ईमानदारी और सेवा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी।

गुरु नानक का पारिवारिक जीवन और आध्यात्मिकता

Biography Of Gurunanak: हालांकि गुरु नानक जी का पारिवारिक जीवन था, परंतु उनका मन सांसारिक बंधनों में नहीं रमता था। उनका ध्यान हमेशा ईश्वर की भक्ति और समाज की सेवा में लगा रहता था। उन्होंने परिवार में रहते हुए भी पूरी मानवता को अपना परिवार माना और अपने परिवार के लोगों को भी सेवा और भक्ति का महत्व सिखाया। उनकी पत्नी सुलखनी ने हमेशा उनका साथ दिया और उनके जीवन के मिशन में सहयोगी रहीं। गुरु नानक जी का पारिवारिक जीवन साधारण था, लेकिन उनके विचार और कार्य असाधारण थे। उनका परिवार और अनुयायी ही उनके सबसे प्रिय थे, और उनके परिवार ने उनके कार्य और शिक्षाओं में हमेशा योगदान दिया।

गुरूनानक जी की धार्मिक यात्रा (उदासियाँ)

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में कई धार्मिक यात्राएँ कीं, जिन्हें “उदासियाँ” कहा जाता है। इन यात्राओं का उद्देश्य समाज को एकता, प्रेम, और भक्ति का संदेश देना था। उन्होंने जाति-प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास, और सामाजिक अन्याय का विरोध किया। उनके संदेश ने न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी लाखों लोगों को प्रभावित किया। उन्होंने लगभग 25 वर्षों में चार मुख्य उदासियाँ कीं और इन यात्राओं के दौरान कई प्रमुख स्थानों का दौरा किया।

प्रथम उदासी (1500-1506)

Biography Of Gurunanak: पहली उदासी में गुरु नानक ने उत्तर भारत के प्रमुख स्थानों का दौरा किया। इसमें हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, मथुरा, वृंदावन, और बनारस जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल शामिल थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि सच्ची पूजा आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति प्रेम में है, न कि बाहरी रीति-रिवाजों में। हरिद्वार में उन्होंने एक ऐसी घटना का वर्णन किया, जिसमें लोगों ने देखा कि नानक जी नदी के विपरीत दिशा में जल अर्पित कर रहे हैं। इस पर उन्होंने लोगों को समझाया कि ईश्वर हर दिशा में है और यह प्रतीकात्मक अर्पण व्यर्थ है।

द्वितीय उदासी (1506-1513)

Biography Of Gurunanak: दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी ने दक्षिण भारत का दौरा किया। इस यात्रा में वे कांचीपुरम, रामेश्वरम, त्रिची, और अन्य स्थानों पर गए। दक्षिण भारत में उन्होंने विभिन्न मंदिरों का भ्रमण किया और कई संतों से मिले। यहाँ उन्होंने संतों के साथ विचार-विमर्श किया और उन्हें यह समझाया कि ईश्वर किसी विशेष स्थान पर नहीं, बल्कि हृदय में वास करता है।

तृतीय उदासी (1514-1518)

Biography Of Gurunanak: तीसरी उदासी में गुरु नानक ने पश्चिम की ओर यात्रा की। वे इस यात्रा के दौरान अरब और फारस भी गए। मक्का और मदीना की यात्रा भी इसी उदासी के अंतर्गत की गई थी। मक्का में उनकी प्रसिद्ध घटना हुई, जिसमें वे अपने पाँव मक्का की ओर करके सो गए थे। इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई, तो गुरु नानक ने कहा, “मुझे ऐसी दिशा दिखाओ, जहाँ ईश्वर न हो।” यह घटना उनके सार्वभौमिक और असीम ईश्वर के सिद्धांत को प्रदर्शित करती है।

चतुर्थ उदासी (1519-1521)

Biography Of Gurunanak: चौथी उदासी में गुरु नानक ने उत्तर भारत के कई अन्य क्षेत्रों और हिमालयी स्थानों की यात्रा की। इस यात्रा में वे तिब्बत और नेपाल जैसे स्थानों पर भी गए। उन्होंने यहाँ के संतों और साधुओं से मुलाकात की और उन्हें अपने विचारों से प्रेरित किया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य विभिन्न धार्मिक परंपराओं को समझना और लोगों को यह सिखाना था कि हर धर्म में समानता और प्रेम की शिक्षा है।

पाँचवीं और अंतिम यात्रा (1521-1522)

Biography Of Gurunanak: अंतिम यात्रा में गुरु नानक जी ने पंजाब के कई हिस्सों का दौरा किया। यह यात्रा उन्होंने अपने जन्मभूमि के पास के गाँवों में की। इस यात्रा में वे करतारपुर पहुँचे और वहीं अपना निवास बनाया। यही स्थान उनके जीवन का अंतिम पड़ाव था।

धार्मिक यात्राओं का उद्देश्य और प्रभाव

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी की इन यात्राओं का उद्देश्य केवल धार्मिक उपदेश देना नहीं था, बल्कि उन्होंने एक नई सामाजिक चेतना का संचार किया। उन्होंने जात-पात, अंधविश्वास, और धार्मिक आडंबरों का खंडन किया और सभी धर्मों के लोगों को समानता, प्रेम, और सेवा का महत्व सिखाया। उनके विचारों ने समाज में एकता, भाईचारे और समानता का संदेश दिया। गुरु नानक जी की इन यात्राओं के कारण ही सिख धर्म की नींव रखी गई, और उनके विचारों का प्रभाव आज भी समाज में देखा जा सकता है।

गुरूनानक जी की शिक्षाएं और संदेश

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं और संदेश दिए, जो सिख धर्म का आधार बने। उनकी शिक्षाओं ने समाज में प्रेम, करुणा, और समानता की भावना का प्रचार किया और धर्म, जाति, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी शिक्षाएं न केवल सिखों के लिए बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।

गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएं और संदेश

  1. “एक ओंकार” – ईश्वर एक है
    गुरु नानक का सबसे महत्वपूर्ण संदेश था “एक ओंकार,” जिसका अर्थ है कि भगवान एक है और सबमें समाहित है। उन्होंने कहा कि सभी जीव और सभी धर्म एक ही ईश्वर के बनाए हुए हैं, इसलिए हम सब एक हैं। ईश्वर निराकार है और वह हर स्थान और हर जीव में विद्यमान है।
  2. नाम जपना – ईश्वर का सिमरन
    गुरु नानक ने भगवान के नाम का सिमरन (ध्यान) करने की शिक्षा दी। उनका मानना था कि ईश्वर का नाम लेने से मन शुद्ध होता है और आत्मा को शांति मिलती है। उन्होंने लोगों को सिखाया कि सच्चे हृदय से भगवान का स्मरण करने से ही जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है।
  3. कीरत करना – ईमानदारी से जीवन यापन
    गुरु नानक जी ने सिखाया कि सभी को ईमानदारी और मेहनत से अपनी जीविका कमानी चाहिए। मेहनत से कमाया हुआ धन ही सच्चा धन होता है। उनका मानना था कि किसी को धोखा देकर या अन्याय से धन कमाना पाप है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और समाज के हित के लिए काम करना चाहिए।
  4. वंड छकना – बाँटना और सेवा करना
    गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि जो कुछ हमारे पास है, उसे दूसरों के साथ बाँटना चाहिए। उन्होंने “लंगर” की परंपरा की शुरुआत की, जिसमें हर व्यक्ति, चाहे उसका धर्म या जाति कुछ भी हो, साथ मिलकर भोजन करता है। यह परंपरा सभी में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती है।
  5. सभी धर्मों का सम्मान करना
    गुरु नानक देव जी ने सभी धर्मों का सम्मान किया और किसी भी धर्म का अपमान करने से मना किया। उनका मानना था कि सभी धर्मों के लोग ईश्वर की संतान हैं और सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। इसलिए, हमें हर व्यक्ति और हर धर्म का सम्मान करना चाहिए।
  6. जाति-पाति और भेदभाव का खंडन
    गुरु नानक ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच, और धार्मिक भेदभाव का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि सभी इंसान एक समान हैं और जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना गलत है। उन्होंने कहा कि सच्चे संत वही हैं, जो सभी में ईश्वर का अंश देखते हैं और किसी को भी ऊँचा या नीचा नहीं मानते।
  7. भौतिकवाद से दूर रहना
    गुरु नानक जी ने लोगों को सांसारिक मोह-माया से दूर रहने का उपदेश दिया। उनका मानना था कि धन-संपत्ति और सांसारिक भोग-विलास से व्यक्ति का मन अशांत होता है और वह सच्चे सुख का अनुभव नहीं कर पाता। उन्होंने लोगों को आडंबर, दिखावा और स्वार्थ से दूर रहकर एक सादा और सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा दी।
  8. स्त्री का सम्मान
    गुरु नानक देव जी ने महिलाओं के अधिकारों और उनके महत्व को मान्यता दी। उस समय समाज में महिलाओं को निम्न स्थान पर रखा जाता था, परंतु गुरु नानक ने उन्हें समान अधिकार देने की बात की। उन्होंने कहा कि स्त्री ही जीवन का आधार है और हमें उन्हें बराबरी का सम्मान देना चाहिए।

गुरु नानक देव जी के संदेश का सार

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार यह है कि मानवता की सेवा, ईश्वर का सिमरन, ईमानदारी से काम, और सभी के प्रति समानता का भाव ही सच्चा धर्म है। उनके विचार केवल धार्मिक उपदेश नहीं थे, बल्कि वे सामाजिक क्रांति का संदेश भी थे, जिसने समाज में प्रेम, करुणा, और भाईचारे का संचार किया।

उनकी शिक्षाएं आज भी हमें एक सच्चे, समर्पित और शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग दिखाती हैं। उनका जीवन और उनके संदेश पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।

गुरूनानक जी की “लंगर” की परंपरा

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने “लंगर” की परंपरा की शुरुआत की, जो सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लंगर एक ऐसा सामूहिक भोजन होता है, जहाँ बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को निःशुल्क भोजन परोसा जाता है। इसका उद्देश्य समाज में समानता, भाईचारा और सेवा की भावना को बढ़ावा देना है।

लंगर की परंपरा की शुरुआत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी के समय में समाज में जाति-प्रथा और ऊँच-नीच की भावना बहुत प्रबल थी। लोग जाति और धर्म के आधार पर एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते थे और एक ही स्थान पर बैठकर भोजन नहीं करते थे। गुरु नानक जी ने इस विभाजन को खत्म करने और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए लंगर की परंपरा शुरू की।

पहली बार लंगर का आयोजन उस समय किया गया जब गुरु नानक जी के पिता ने उन्हें व्यापार के लिए कुछ पैसे दिए थे। गुरु नानक जी ने उन पैसों का उपयोग गरीबों और भूखों को भोजन कराने में किया, जिसे “सच्चा सौदा” कहा गया। इसी घटना को गुरु नानक की सेवा भावना का पहला उदाहरण माना जाता है, और यहीं से लंगर की परंपरा का आरंभ हुआ।

लंगर की विशेषताएँ और उद्देश्य

  1. समानता और भाईचारा
    लंगर में हर व्यक्ति, चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग, या सामाजिक स्तर कुछ भी हो, एक साथ बैठकर भोजन करता है। यह परंपरा समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देती है। गुरु नानक जी का यह मानना था कि ईश्वर की दृष्टि में सभी एक समान हैं, और लंगर उसी भावना को दर्शाता है।
  2. सेवा और परोपकार
    लंगर की परंपरा सिखों के लिए सेवा (सेवा भाव) का प्रतीक है। लंगर में भोजन बनाने से लेकर परोसने तक का काम स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है। सभी लोग अपनी क्षमता अनुसार सेवा में योगदान देते हैं, चाहे वह खाना पकाना हो, बर्तन धोना हो, या भोजन परोसना हो। इसे “सेवा” कहा जाता है, और यह सिख धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक है।
  3. भूखों और जरूरतमंदों के लिए भोजन
    लंगर का उद्देश्य केवल समानता का संदेश देना नहीं, बल्कि भूखे और जरूरतमंद लोगों को भोजन प्रदान करना भी है। सिख गुरुद्वारों में लंगर हर समय उपलब्ध रहता है, और कोई भी व्यक्ति किसी भी समय यहाँ आकर भोजन कर सकता है।
  4. सादगी और शुद्धता का प्रतीक
    लंगर में परोसा जाने वाला भोजन सादा और शाकाहारी होता है, ताकि सभी लोग इसे ग्रहण कर सकें और किसी की धार्मिक या व्यक्तिगत मान्यताओं को ठेस न पहुँचे। इस भोजन को बड़े ही शुद्ध और विनम्र तरीके से बनाया जाता है और पूरे सम्मान के साथ परोसा जाता है।
  5. समर्पण और सामुदायिक भावना
    लंगर सामुदायिक भावना का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति सहयोग करता है और भोजन को साझा करता है। इसमें कोई उच्च-नीच का भाव नहीं होता। सभी लोग मिलकर खाना बनाते हैं, भोजन करते हैं, और इसके बाद मिलकर सफाई करते हैं।

लंगर का आधुनिक महत्व

Biography Of Gurunanak: आज भी लंगर की परंपरा दुनिया के हर गुरुद्वारे में निभाई जाती है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों लोग लंगर में भोजन करते हैं। यह परंपरा आज वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्ध हो चुकी है। आपदाओं के समय, प्राकृतिक संकटों के दौरान, और कहीं भी जरूरतमंदों के बीच सिख समुदाय लंगर सेवा के माध्यम से सहायता पहुँचाता है।

गुरु नानक जी की यह परंपरा आज के समाज के लिए भी एक प्रेरणा है, जो मानवता, समानता और सेवा के मूल्यों को प्रदर्शित करती है। लंगर हमें यह सिखाता है कि हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं, और हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम, समानता, और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

गुरूनानक जी का अंतिम समय और ज्योति जोत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी का अंतिम समय भी उनके जीवन की तरह ही अद्वितीय और प्रेरणादायक था। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में करतारपुर नामक स्थान पर निवास किया, जिसे उन्होंने स्वयं बसाया था। यहाँ उन्होंने लोगों को धर्म, सेवा, और सत्य का मार्ग दिखाने के अपने कार्य को जारी रखा। करतारपुर में उन्होंने एक समुदाय की स्थापना की, जहाँ सभी लोग मिलकर काम करते थे और ईश्वर की भक्ति करते थे। गुरु नानक जी का यही स्थान उनके अनुयायियों के लिए शिक्षा और प्रेरणा का केंद्र बन गया था।

अंतिम समय और ज्योति जोत

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक देव जी ने 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में अपनी शारीरिक लीला समाप्त की। उनकी अंतिम विदाई के समय उनके अनुयायियों में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग थे। उनकी शिक्षाओं और उनके जीवन का हर एक पल सभी धर्मों के लोगों के लिए प्रेरणादायक था, और इसलिए सभी उन्हें अपने तरीके से विदाई देना चाहते थे।

उनके निधन के समय एक अनोखी घटना घटी। हिंदू अनुयायियों का मानना था कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होना चाहिए, जबकि मुस्लिम अनुयायी उनका दफन करना चाहते थे। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के अनुसार, वे न केवल किसी एक धर्म के थे, बल्कि सभी धर्मों का आदर करते थे और सभी के लिए समान प्रेम और सम्मान रखते थे।

यहाँ पर गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को पहले से ही यह संदेश दिया था कि उनके शारीरिक शरीर का मोह छोड़ देना चाहिए, क्योंकि असली गुरु का स्वरूप उसके विचारों और शिक्षाओं में होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब हिंदू और मुस्लिम अनुयायी उनके शरीर के पास पहुँचे तो वहाँ उनके शरीर के बजाय एक सफेद चादर मिली, और दोनों समुदायों ने इसे आधा-आधा बाँट लिया। हिंदू अनुयायियों ने उस चादर को जलाकर उसकी राख को प्रवाहित किया, जबकि मुस्लिम अनुयायियों ने उसे दफन कर दिया।

गुरु नानक का ज्योति जोत समाना

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक के निधन को “ज्योति जोत समाना” कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका प्रकाश (ज्योति) ईश्वर के साथ समाहित हो गया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण में यह संदेश दिया कि गुरु का कार्य कभी समाप्त नहीं होता; वह अनंत काल तक अपने विचारों और शिक्षाओं के रूप में जीवित रहता है।

गुरु नानक जी के बाद, उनकी शिक्षाओं को उनके उत्तराधिकारी गुरु अंगद देव जी ने आगे बढ़ाया। गुरु नानक जी ने गुरुत्व की यह परंपरा बनाई, जो उनके दसवें उत्तराधिकारी गुरु गोबिंद सिंह जी तक चली।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रभाव

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना उनके अनुयायियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। उनके विचार और शिक्षाएं उनके शारीरिक रूप से न होने के बाद भी लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करती रहीं। उनका जीवन और शिक्षाएं हमें बताती हैं कि सच्चा गुरु वही होता है जो अपने अनुयायियों को सच्चाई, प्रेम, और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

आज भी, गुरु नानक देव जी का प्रकाश उनके अनुयायियों के दिलों में जीवित है। उनकी शिक्षाओं और संदेशों ने सिख धर्म की नींव रखी और उनके विचार पूरी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

गुरु नानक जयंती कैसे मनाई जाती है?

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जयंती, जिसे “गुरुपर्व” या “प्रकाश उत्सव” के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इसे सिख समुदाय के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है। इस दिन को गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

गुरु नानक जयंती मनाने के प्रमुख तरीके

  1. अखंड पाठ (गुरु ग्रंथ साहिब का लगातार पाठ)
    गुरु नानक जयंती से दो दिन पहले “अखंड पाठ” का आयोजन किया जाता है। इसमें गुरु ग्रंथ साहिब का लगातार 48 घंटे का पाठ किया जाता है। इसका आयोजन गुरुद्वारों में और कई लोग इसे अपने घरों में भी करते हैं। इस पाठ को बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ सुना जाता है, और इसके समापन पर भजन-कीर्तन किए जाते हैं।
  2. नगर कीर्तन
    गुरु नानक जयंती के एक दिन पहले “नगर कीर्तन” का आयोजन होता है। इसमें गुरु ग्रंथ साहिब को एक भव्य पालकी में सजाकर पूरे नगर में शोभायात्रा निकाली जाती है। यह शोभायात्रा मुख्यतः पंज प्यारों द्वारा नेतृत्व की जाती है, जो पारंपरिक वस्त्रों में होते हैं। शोभायात्रा में सिख झंडा (निशान साहिब) भी लहराया जाता है। कीर्तन, शबद और भक्ति संगीत के साथ यह शोभायात्रा बहुत ही उल्लासपूर्वक निकाली जाती है।
  3. प्रभात फेरियाँ
    गुरु नानक जयंती के कुछ दिन पहले से ही प्रभात फेरियाँ (सुबह की परिक्रमा) शुरू हो जाती हैं। भक्तजन सुबह-सुबह इकट्ठा होते हैं और गुरु नानक देव जी के भजन गाते हुए गुरुद्वारों या घरों के पास से गुजरते हैं। इन प्रभात फेरियों का उद्देश्य लोगों में गुरु नानक देव जी के विचारों और शिक्षाओं का प्रचार करना होता है।
  4. गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ और कीर्तन
    गुरु नानक जयंती के दिन गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ और कीर्तन का आयोजन होता है। इसमें गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है और उनकी जीवन कथा सुनाई जाती है। भक्तजन इस अवसर पर श्रद्धा भाव से गुरु नानक देव जी के संदेशों को सुनते हैं और उनका अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं।
  5. लंगर (सामूहिक भोजन)
    गुरु नानक जयंती के दिन हर गुरुद्वारे में लंगर का आयोजन होता है। लंगर सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें सभी जाति, धर्म, और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह परंपरा गुरु नानक देव जी के समानता, सेवा और भाईचारे के संदेश को साकार रूप में प्रकट करती है।
  6. कविता और प्रवचन
    इस दिन गुरु नानक देव जी के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित कविताएँ, प्रवचन, और शबद गाए जाते हैं। सिख विद्वान और गुरु के अनुयायी उनके विचारों, शिक्षाओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा करते हैं।
  7. विशेष सजावट
    गुरुद्वारे और सिख समुदाय के घरों को इस अवसर पर विशेष रूप से सजाया जाता है। लाइटिंग और रंग-बिरंगे फूलों से गुरुद्वारों को सजाया जाता है, जिससे पूरे वातावरण में एक उत्सव का माहौल बन जाता है।
  8. सामाजिक सेवा और परोपकार
    गुरु नानक देव जी की जयंती के अवसर पर सिख समुदाय में कई लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। वे कपड़े, भोजन, और अन्य आवश्यक वस्तुएं वितरित करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। इसके माध्यम से वे गुरु नानक जी की सेवा और परोपकार की शिक्षा का पालन करते हैं।

गुरु नानक जयंती का महत्व

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जयंती का महत्व न केवल सिखों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए है। गुरु नानक जी ने समाज में समानता, प्रेम, और सेवा का संदेश दिया था, और उनके जीवन से जुड़े ये मूल्य आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनकी शिक्षाओं के आधार पर इस पर्व का उद्देश्य लोगों को प्रेम, करुणा, और भाईचारे की भावना का पालन करने के लिए प्रेरित करना है।

गुरु नानक देव जी के संदेश और उनके जीवन की शिक्षाएँ आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं, और उनकी जयंती इन शिक्षाओं को पुनः याद करने और उनके मार्ग पर चलने का अवसर देती है।

गुरु नानक जयंती 2024 को कब मनाई जायेगी?

Biography Of Gurunanak: गुरु नानक जी की जयंती 2024 में 15 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी, जो कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। इस पवित्र पर्व को प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है और यह सिख समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और उनके जीवन को सम्मानित किया जाता है।

गुरुद्वारों में इस दिन “अखंड पाठ” का आयोजन किया जाता है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे तक लगातार पाठ होता है। इसके बाद नगर कीर्तन (धार्मिक जुलूस) निकाले जाते हैं, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब को सजाए गए रथ पर रखा जाता है और लोग भक्ति गीत गाते हुए चलते हैं। इस दौरान सिख पारंपरिक मार्शल आर्ट “गटका” का प्रदर्शन भी किया जाता है। गुरुद्वारों में लंगर (सामूहिक भोजन) की व्यवस्था होती है, जिसमें सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोग मिलकर भोजन करते हैं, जो गुरु नानक जी की समानता और सेवा की भावना का प्रतीक है।

FAQS-

1. गुरु नानक जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
गुरु नानक जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के ननकाना साहिब में स्थित है। उनके जन्मदिवस को कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है।

2. गुरु नानक जी का प्रमुख संदेश क्या था?
गुरु नानक जी ने “एक ओंकार” का संदेश दिया, जिसका अर्थ है “सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं।” उन्होंने समाज में समानता, सेवा, सत्य, और ईश्वर की भक्ति पर जोर दिया। उनके प्रमुख सिद्धांतों में “नाम जपो” (ईश्वर का नाम स्मरण करो), “किरत करो” (इमानदारी से काम करो), और “वंड छको” (अपनी संपत्ति को दूसरों के साथ साझा करो) शामिल हैं।

3. गुरु नानक जी की प्रमुख धार्मिक यात्राएँ कौन-सी थीं?
गुरु नानक जी ने चार मुख्य यात्राएँ (उदासियाँ) कीं, जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत, और अरब देशों में फैली हुई थीं। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों को धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्त करना और सच्चाई की राह दिखाना था।

4. गुरु नानक जी ने “लंगर” की परंपरा क्यों शुरू की?
गुरु नानक जी ने “लंगर” की परंपरा समानता और सेवा की भावना को बढ़ावा देने के लिए शुरू की। इसमें सभी जाति, धर्म, और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।

5. गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना का क्या अर्थ है?
गुरु नानक जी का ज्योति जोत समाना 22 सितंबर 1539 को हुआ था। इसका अर्थ है कि उनका भौतिक शरीर ईश्वर में समा गया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएँ अनंत काल तक जीवित रहेंगी।

6. गुरु नानक जी की शिक्षाओं को कौन से धार्मिक ग्रंथ में संग्रहित किया गया है?
गुरु नानक जी की शिक्षाएँ “गुरु ग्रंथ साहिब” में संग्रहित हैं। इसे सिखों का पवित्र धर्मग्रंथ माना जाता है, जिसमें उनके जीवन और शिक्षाओं के उपदेश और शबद (भजन) हैं।

7. गुरु नानक जी का संदेश किन समाजिक मुद्दों को संबोधित करता था?
गुरु नानक जी ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच का भेदभाव, अंधविश्वास, और धार्मिक कट्टरता का विरोध किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य समान हैं, और हमें प्रेम, सत्य, और सेवा की भावना के साथ जीवन जीना चाहिए।

8. गुरु नानक जी का उत्तराधिकारी कौन था?
गुरु नानक जी ने गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी चुना। गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और सिख धर्म की परंपरा को सुदृढ़ किया।

9. गुरु नानक जी के निधन को किस नाम से जाना जाता है?
उनके निधन को “ज्योति जोत समाना” कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका भौतिक रूप समाप्त हो गया, लेकिन उनका आध्यात्मिक प्रकाश अनंत है।

10. गुरु नानक जयंती कब मनाई जाती है?
यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो अक्टूबर-नवंबर में पड़ता है। 2024 में यह 15 नवंबर को मनाई जाएगी​।

11.गुरु नानक जी का योगदान किस ग्रंथ में संग्रहित है?
उनकी शिक्षाएँ और भजन “गुरु ग्रंथ साहिब” में संकलित हैं, जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है।

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